• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

ट्रिपल तलाक की तरह हिंदू कोड बिल के वक्त भी हुआ था बवाल

    • प्रसन्न प्रांजल
    • Updated: 22 अगस्त, 2017 11:46 PM
  • 22 अगस्त, 2017 11:46 PM
offline
पहली बार हिंदू महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार दिया जा रहा था और पुरुषों की मनमानी पर रोक लगाई जा रही थी. लेकिन तथाकथित धर्म के ठेकेदरों को यह बात नागवार गुजरी. इस बिल को लेकर संसद के अंदर और बाहर हंगामा मच गया था.

सालों की जद्दोजहद के बाद ट्रिपल तलाक पर रोक संबंधी सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है. निश्चित रूप से यह फैसला काबिल ए तारीफ है. देश के अधिकांश लोग इस फैसले से खुश हैं. लेकिन कट्टरपंथियों का एक तबका ऐसा भी है जो इस फैसले से नाखुश है. जिस तरह से ट्रिपल तलाक पर होने वाले बदलाव को मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा इस्लाम में दखल बताया जाता रहा है, ठीक उसी तरह के हालात सात दशक पहले हिंदू कट्टरपंथियों ने पैदा किए थे. 1947 में जब डॉ. बी आर अंबेडकर हिंदू कोड बिल लेकर आए थे, उस समय हिंदू कट्टरपंथियों ने इसे हिंदू धर्म पर हमला बताया था. हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने इसका काफी विरोध किया था.

डॉ. बी आर अंबेडकर के हिंदू कोड बिल का हिंदू कट्टरपंथियों कड़ा विरोध किया था

परंपरा के नाम पर हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के उद्देश्य से अंबेडकर ने 1947 में संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस बिल में विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव के प्रावधान किए गए थे. इसमें सांस्कारिक और सिविल दो तरह के विवाहों को मान्यता दी गई थी. हिंदू पुरुषों द्वारा एक से अधिक शादी करने पर प्रतिबंध लगाने के प्रावधान थे, साथ ही तलाक के लिए भी कई प्रमुख कारणों की चर्चा की गई थी. संविधान सभा में बात नहीं बनने के बाद देश के पहले कानून मंत्री के रूप में अंबेडकर ने 1951 में हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया.

हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने और हिंदू महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल में कई अहम प्रावधान किए थे. पैतृक संपत्ति में महिलाओं को बराबरी का हिस्सा देने के साथ साथ इस बिल में विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव के प्रावधान किए गए थे. तलाक के लिए परित्याग, धर्मांतरण, रखैल रखना या रखैल बनना, असाध्य मानसिक रोग, संक्रामक कुष्ठ...

सालों की जद्दोजहद के बाद ट्रिपल तलाक पर रोक संबंधी सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है. निश्चित रूप से यह फैसला काबिल ए तारीफ है. देश के अधिकांश लोग इस फैसले से खुश हैं. लेकिन कट्टरपंथियों का एक तबका ऐसा भी है जो इस फैसले से नाखुश है. जिस तरह से ट्रिपल तलाक पर होने वाले बदलाव को मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा इस्लाम में दखल बताया जाता रहा है, ठीक उसी तरह के हालात सात दशक पहले हिंदू कट्टरपंथियों ने पैदा किए थे. 1947 में जब डॉ. बी आर अंबेडकर हिंदू कोड बिल लेकर आए थे, उस समय हिंदू कट्टरपंथियों ने इसे हिंदू धर्म पर हमला बताया था. हिंदू धर्म के ठेकेदारों ने इसका काफी विरोध किया था.

डॉ. बी आर अंबेडकर के हिंदू कोड बिल का हिंदू कट्टरपंथियों कड़ा विरोध किया था

परंपरा के नाम पर हिंदू धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के उद्देश्य से अंबेडकर ने 1947 में संविधान सभा के सामने हिंदू कोड बिल पेश किया था. इस बिल में विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव के प्रावधान किए गए थे. इसमें सांस्कारिक और सिविल दो तरह के विवाहों को मान्यता दी गई थी. हिंदू पुरुषों द्वारा एक से अधिक शादी करने पर प्रतिबंध लगाने के प्रावधान थे, साथ ही तलाक के लिए भी कई प्रमुख कारणों की चर्चा की गई थी. संविधान सभा में बात नहीं बनने के बाद देश के पहले कानून मंत्री के रूप में अंबेडकर ने 1951 में हिंदू कोड बिल लोकसभा में पेश किया.

हिंदू समाज में क्रांतिकारी सुधार लाने और हिंदू महिलाओं को समानता का अधिकार दिलाने के लिए अंबेडकर ने हिंदू कोड बिल में कई अहम प्रावधान किए थे. पैतृक संपत्ति में महिलाओं को बराबरी का हिस्सा देने के साथ साथ इस बिल में विवाह संबंधी प्रावधानों में बदलाव के प्रावधान किए गए थे. तलाक के लिए परित्याग, धर्मांतरण, रखैल रखना या रखैल बनना, असाध्य मानसिक रोग, संक्रामक कुष्ठ रोग, संक्रामक यौन रोग और क्रूरता जैसे कई प्रमुख प्रावधान किए गए थे. सही मायनों में कहा जाए तो पहली बार हिंदू महिलाओं को तलाक लेने का अधिकार दिया जा रहा था और पुरुषों की मनमानी पर रोक लगाई जा रही थी. लेकिन तथाकथित धर्म के ठेकेदरों को यह बात नागवार गुजरी. इस बिल को लेकर संसद के अंदर और बाहर हंगामा मच गया था. धर्म के ठेकेदारों के साथ-साथ काफी संसद सदस्यों ने भी इसका विरोध किया. 

बिल का विरोध करने वाले अलग-अलग तर्क दे रहे थे. संसद के बाहर जहां हिंदू धर्म पर हस्तक्षेप की बात कही जा रही थी, वहीं संसद के अंदर कई तरह के तर्क. कुछ सांसदों का तर्क था कि संसद के उस समय संसद सदस्य जनता के चुने हुए नहीं है, इसलिए उन्हें इस अहम बिल को पास करने का अधिकार नहीं है. वहीं कुछ विरोधियों का तर्क था कि बहुविवाह अन्य धर्मों में भी है फिर सिर्फ हिंदुओं के लिए ही क्यों कानून लाया जा रहा है.

प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, कानून मंत्री डॉ. अंबेडकर और तमाम कांग्रेस सदस्यों के प्रयास के बावजूद इस बिल पर सहमति नहीं बन पाई. संसद के अंदर और बाहर काफी हंगामा हुआ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, हिंदू महासभा और कई अन्य हिंदू संगठनों ने इसके खिलाफ देशभर में प्रदर्शन किए. अंतत: यह बिल पास नहीं हो सका. हिंदू कोड बिल समेत कई अन्य मुद्दों को लेकर अंबेडकर ने कानून मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया, लेकिन बात नहीं बन सकी.

देश के पहले आम चुनाव के बाद जनता की चुनी हुई सरकार बनी. संसद में अब यह तर्क बेबुनियाद था कि यह जनता की चुनी हुई सरकार नहीं है. लेकिन पहले के विरोध को देखते हुए हिंदू कोड बिल पर फिर से बहस नहीं हुई. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिंदू कोड बिल को कई हिस्सों में तोड़ कर अलग-अलग कानून बनाने का रास्ता चुना. अपने इस फैसले में वह सफल भी रहे.

1955 में हिंदू कोड बिल पर विचार विमर्श

नेहरू की इस योजना के तहत 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बना. इसके तहत तलाक को कानूनी मान्यता देने के साथ-साथ एक समय में एक से अधिक विवाह को गैरकानूनी घोषित किया गया. साथ ही अलग-अलग जातियों के महिला-पुरुष को एक दूसरे से विवाह का अधिकार दिया गया. हिंदू कोड बिल को तोड़कर ही 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, हिंदू दत्तक ग्रहण और पोषण अधिनियम, 1956 और हिंदू अवयस्कता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 बनाया गया. इन सभी कानूनों को लागू कर महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिया गया. पहली बार महिलाओं को बच्चे गोद लेने का अधिकार और संपत्ति में अधिकार दिया गया साथ ही पुरुषों की तरह उन्हें अन्य अधिकार मिलें.

तमाम विरोधों के बावजूद जिस तरह हिंदू कोड बिल कई अन्य कानूनों में बदलकर हिंदू महिलाओं की स्थिति को सुधारने का काम किया. उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल तलाक के फैसले के बाद आने वाले दिनों में मुस्लिम महिलाओं की स्थिति भी बेहतर होती जाएगी. उन्हें भी समानता का अधिकार मिलेगा और वह भी अपने फैसले खुद ले सकेंगी.

ये भी पढ़ें-

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देने से पहले तीन तलाक के इन पहलुओं को जान लीजिए

मुस्लिम महिलाओं का जीवन हराम करने वाले हलाला को जान तो लीजिए


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲