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बिहार की डगमगाती शिक्षा-व्यवस्था का एक ही निदान है!

    • आदित्य पाठक
    • Updated: 25 जून, 2017 02:35 PM
  • 25 जून, 2017 02:35 PM
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बिहार में आज अधिकांश कॉलेज डिग्री बेचने का अड्डा बन चुके हैं. डिग्री-प्राप्ति हेतु मुंहमांगी रकम चुकाई जाती है और डिग्री खरीद ली जाती है.

'बिहार की शिक्षा-व्यवस्था' एक ज्वलंत विषय हो चला है. पूरे भारत में बिहार की शिक्षा-व्यवस्था को भ्रष्टता का पर्याय समझा जाने लगा है. जिस राज्य को शिक्षा का उत्स समझा जाता था, जहां 'नालंदा' और 'विक्रमशिला' जैसे शिक्षण-संस्थान पूरे विश्व में विख्यात थे, आज उसी राज्य की शिक्षा इतनी बदतर क्यों हो गयी है, यह चिंता का विषय है.

शिक्षा की इस दयनीय स्थिति का प्रधान कारण है 'कॉलेज'. कॉलेज इस अर्थ में कि आज अधिकांश कॉलेज डिग्री बेचने का अड्डा बन चुके हैं. डिग्री-प्राप्ति हेतु मुंहमांगी रकम चुकाई जाती है और डिग्री खरीद ली जाती है. अब देखिए एक उदाहरण-

बिहार में शिक्षकों की खूब बहाली डिग्री के आधार पर हुई. डिग्री दिखाओ और नौकरी पाओ. परिणाम यह हुआ कि बी.एड. कालेजों में डिग्री बेचने का धंधा शुरु हो गया और आज भी खूब जोर-शोर से चल रहा है. डिग्री खरीददार आज सरकारी विद्यालयों में शिक्षक हैं और गरीब छात्रों के भविष्य-निर्माता. ऐसे शिक्षक स्वयं कुछ जानते नहीं तो छात्रों को कैसी शिक्षा दे सकते हैं, यह सहज ही समझा जा सकता है.

बिहा में शिक्षा की दयनीय स्थिति का प्रधान कारण हैं 'कॉलेज'

विश्वविद्यालय की शिक्षा में तो इतना अवमूल्यन हुआ है कि जहां ग्यारह प्रवक्ता हुआ करते थे, आज दो हैं. ग्यारह प्रवक्ताओं का कार्य दो प्रवक्ता कैसे संभालते होंगे, यह स्वयं सोचें. यह है ज्ञान का केन्द्र समझे जाने वाले बिहार की वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था.

अब प्रश्न उठता है कि क्या इसका निदान संभव है?

हां, बिलकुल है. इसके लिए सरकार द्वारा एक जांच कमिटी का निर्माण हो, जिसके द्वारा हर विद्यालय के शिक्षकों की योग्यता की जांच हो. यदि वे योग्य सिद्ध नहीं हुए तो उन्हें एक महीने का अल्टीमेटम दिया जाय ताकि वे स्वयं को योग्य सिद्ध कर सकें. यदि इस...

'बिहार की शिक्षा-व्यवस्था' एक ज्वलंत विषय हो चला है. पूरे भारत में बिहार की शिक्षा-व्यवस्था को भ्रष्टता का पर्याय समझा जाने लगा है. जिस राज्य को शिक्षा का उत्स समझा जाता था, जहां 'नालंदा' और 'विक्रमशिला' जैसे शिक्षण-संस्थान पूरे विश्व में विख्यात थे, आज उसी राज्य की शिक्षा इतनी बदतर क्यों हो गयी है, यह चिंता का विषय है.

शिक्षा की इस दयनीय स्थिति का प्रधान कारण है 'कॉलेज'. कॉलेज इस अर्थ में कि आज अधिकांश कॉलेज डिग्री बेचने का अड्डा बन चुके हैं. डिग्री-प्राप्ति हेतु मुंहमांगी रकम चुकाई जाती है और डिग्री खरीद ली जाती है. अब देखिए एक उदाहरण-

बिहार में शिक्षकों की खूब बहाली डिग्री के आधार पर हुई. डिग्री दिखाओ और नौकरी पाओ. परिणाम यह हुआ कि बी.एड. कालेजों में डिग्री बेचने का धंधा शुरु हो गया और आज भी खूब जोर-शोर से चल रहा है. डिग्री खरीददार आज सरकारी विद्यालयों में शिक्षक हैं और गरीब छात्रों के भविष्य-निर्माता. ऐसे शिक्षक स्वयं कुछ जानते नहीं तो छात्रों को कैसी शिक्षा दे सकते हैं, यह सहज ही समझा जा सकता है.

बिहा में शिक्षा की दयनीय स्थिति का प्रधान कारण हैं 'कॉलेज'

विश्वविद्यालय की शिक्षा में तो इतना अवमूल्यन हुआ है कि जहां ग्यारह प्रवक्ता हुआ करते थे, आज दो हैं. ग्यारह प्रवक्ताओं का कार्य दो प्रवक्ता कैसे संभालते होंगे, यह स्वयं सोचें. यह है ज्ञान का केन्द्र समझे जाने वाले बिहार की वर्तमान शिक्षा-व्यवस्था.

अब प्रश्न उठता है कि क्या इसका निदान संभव है?

हां, बिलकुल है. इसके लिए सरकार द्वारा एक जांच कमिटी का निर्माण हो, जिसके द्वारा हर विद्यालय के शिक्षकों की योग्यता की जांच हो. यदि वे योग्य सिद्ध नहीं हुए तो उन्हें एक महीने का अल्टीमेटम दिया जाय ताकि वे स्वयं को योग्य सिद्ध कर सकें. यदि इस पर वे खड़े न उतरें तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जाए. इससे विद्यालयों में केवल योग्य शिक्षक रह जाएंगे. साथ-ही-साथ योग्य शिक्षक प्रतिदिन पढ़ाते हैं या नहीं, छात्रों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं, इसकी भी जांच हो. इसके लिए प्रत्येक विद्यालय के प्रधानाचार्य प्रत्येक माह एक रिपोर्ट सौंपे, जिसमें छात्रों की प्रगति को दर्शाया जाएगा. यह भी हिदायत दी जाए कि जांच-कमिटी कभी भी छात्रों से पूछताछ करने आ सकती है तथा शिक्षकों के बर्ताव पर भी चर्चा कर सकती है. इससे शिक्षक छात्रों के साथ अच्छा व्यवहार करेंगे और उन्हें ठीक से शिक्षा भी देंगे. ऐसा करने पर बहुत हद तक विद्यालयस्तर की शिक्षा मजबूत और सुदृढ़ हो जाएगी.

विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा-व्यवस्था को सुधारने का पहला कदम है 'योग्य प्रवक्ताओं की नियुक्ति'. योग्य प्रवक्ता के अभाव में ऊंची शिक्षा पाने के लिए बिहारियों को बाहर जाना पड़ता है, यह शर्म की बात है. हमारे यहां पटना विश्वविद्यालय, मगध विश्वविद्यालय आदि महान शिक्षण-संस्थान हैं तब भी हमें बाहर जाना पड़े, यह ठीक नहीं. प्रवक्ता-नियुक्ति के साथ-साथ डिग्री बेचने वाले संस्थान की मान्यता रद्द की जाय ताकि डिग्री योग्य छात्र ही ले सकें.

सरकार को उपर्युक्त विषयों पर गंभीरता से विचार करना चाहिए, यदि वह बिहार की शिक्षा के प्रति सचमुच चिंतित है तो. सत्ता आती है, जाती है, किन्तु सत्ताधारी द्वारा किया गया काम हमेशा याद किया जाता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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