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पति के कफन के लिए चंदा मांगती आरती को आप सचमुच नहीं जानते?

    • सत्येंद्र प्रसाद श्रीवास्तव
    • Updated: 24 जुलाई, 2017 12:59 PM
  • 24 जुलाई, 2017 12:59 PM
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उन्नाव में जिलाधिकारी के दफ्तर में भीख मांगती इस महिला का दर्द देख प्रेमचन्द के घीसू और माधव भी शरमा गए होंगे. आरती का दर्द केवल उसका नहीं बल्कि पूरी इंसानियत का दर्द है.

आप आरती को नहीं जानते. मैं भी आज सुबह तक नहीं जानता था. दफ्तर में खबर बनाते वक्त मेरा परिचय आरती से हुआ. पूरे दिन का गर्भ. दर्द से छटपटाती. चेहरे पर दर्द पपड़ी बनकर स्थायी रूप से जम गया है. जिलाधिकारी के कक्ष के बाहर बनी लकड़ी की बेंच पर कभी बैठती तो कभी वहीं फर्श पर छटपटाती. लगता यहीं प्रसव हो जाएगा. जब बेंच पर बैठती तो आंचल फैलाकर भीख मांगती.

आंचल फैलाकर भीख मांगती हुई आरती

आरती ना तो भिखारिन है ना ही अपने लिए भीख मांग रही थी. वो अपने पति के लिए भीख मांग रही थी. उस पति के लिए, जिसने सुबह ही दम तोड़ दिया था. वह पति के इलाज के लिए नहीं बल्कि उसके कफ़न के लिए भीख मांग रही थी. साथ में था पांच साल का एक छोटा बच्चा.

उसके चेहरे पर उग आए दर्द के बड़े-बड़े कैक्टस प्रसव पीड़ा के थे, या पति की मौत के या उस भंयकर गरीबी के कि उसके पास कफ़न तक के लिए पैसे नहीं थे- यह कह पाना तो कम से कम मेरे वश की बात नहीं. उसका दर्द देख प्रेमचन्द के घीसू और माधव भी शरमा गए होंगे. अगर आज ये दोनों उन्नाव में जिलाधिकारी के दफ्तर के सामने होते तो शायद बुधिया के कफन के पैसे से शराब नहीं पीते बल्कि उसे आरती को दे देते. आरती का दर्द केवल उसका नहीं बल्कि पूरी इंसानियत का दर्द है.

पति के कफन के लिए पैसे नहीं

आरती के पति श्यामू के पेट में अल्सर था. जितना बन सका इलाज कराया लेकिन आखिरकार श्यामू ने दम तोड़ दिया. बिना इलाज श्यामू जैसे गरीब की मौत कोई नई बात नहीं. भारत जैसे देश में यह एक ऐसी आम बात है कि खबर भी नहीं बनती. 2013 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 27...

आप आरती को नहीं जानते. मैं भी आज सुबह तक नहीं जानता था. दफ्तर में खबर बनाते वक्त मेरा परिचय आरती से हुआ. पूरे दिन का गर्भ. दर्द से छटपटाती. चेहरे पर दर्द पपड़ी बनकर स्थायी रूप से जम गया है. जिलाधिकारी के कक्ष के बाहर बनी लकड़ी की बेंच पर कभी बैठती तो कभी वहीं फर्श पर छटपटाती. लगता यहीं प्रसव हो जाएगा. जब बेंच पर बैठती तो आंचल फैलाकर भीख मांगती.

आंचल फैलाकर भीख मांगती हुई आरती

आरती ना तो भिखारिन है ना ही अपने लिए भीख मांग रही थी. वो अपने पति के लिए भीख मांग रही थी. उस पति के लिए, जिसने सुबह ही दम तोड़ दिया था. वह पति के इलाज के लिए नहीं बल्कि उसके कफ़न के लिए भीख मांग रही थी. साथ में था पांच साल का एक छोटा बच्चा.

उसके चेहरे पर उग आए दर्द के बड़े-बड़े कैक्टस प्रसव पीड़ा के थे, या पति की मौत के या उस भंयकर गरीबी के कि उसके पास कफ़न तक के लिए पैसे नहीं थे- यह कह पाना तो कम से कम मेरे वश की बात नहीं. उसका दर्द देख प्रेमचन्द के घीसू और माधव भी शरमा गए होंगे. अगर आज ये दोनों उन्नाव में जिलाधिकारी के दफ्तर के सामने होते तो शायद बुधिया के कफन के पैसे से शराब नहीं पीते बल्कि उसे आरती को दे देते. आरती का दर्द केवल उसका नहीं बल्कि पूरी इंसानियत का दर्द है.

पति के कफन के लिए पैसे नहीं

आरती के पति श्यामू के पेट में अल्सर था. जितना बन सका इलाज कराया लेकिन आखिरकार श्यामू ने दम तोड़ दिया. बिना इलाज श्यामू जैसे गरीब की मौत कोई नई बात नहीं. भारत जैसे देश में यह एक ऐसी आम बात है कि खबर भी नहीं बनती. 2013 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 27 फीसदी मौत इलाज नहीं मिलने की वजह से होती है. चार साल में यह आंकड़ा और बढ़ा ही होगा.

आरती को अस्पताल से कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिए अपने पति की मौत को तकदीर समझ कर मान लिया. आरती को अपने गांव-समाज से कोई उम्मीद नहीं थी लेकिन उसकी उम्मीद प्रशासन पर जरूर टिकी थी. पता नहीं उसे ऐसा क्यों भरोसा था कि अगर वो जिलाधिकारी के पास जाएगी तो उसके पति के अंतिम संस्कार का इंतजाम हो जाएगा लेकिन उसका ये भरोसा भी उसके पति के साथ ही दम तोड़ गया. और तब वह दहाड़ें मार कर रो पड़ी. जिलाधिकारी के अर्दली ने उसे अन्दर जाने ही नहीं दिया. आखिर कोई आदमी इतना संवेदनहीन कैसे हो सकता है कि दर्द से छटपटाती पति के अंतिम संस्कार के लिए मदद मांगने आई महिला को फटकार कर भगा दे?

भीख में मिले इस रुपयों से क्या मिल पाएगा कफन?

मजबूर आरती आंचल फैलाकर वहीं भीख मांगने लगी. प्रशासन की नींद बाद में खुली लेकिन तब तक उसके काम करने के तरीके, संवेदनहीनता, अफसरशाही के ठसक की सारी पोल खुल चुकी थी.

दर्द की ये दास्तां केवल उन्नाव की आरती की नहीं है बल्कि हर उस आरती की है, जो सरकार द्वारा खींची गई गरीबी रेखा के नीचे किसी तरह जी रही हैं. हम अपने आसपास आंखें खोल कर देखें तो ऐसी ना जाने कितनी ही आरती और कितने ही श्यामू मिल जाएंगे लेकिन इनकी तकलीफ, इनका दर्द हमारे एजेंडा में नहीं हैं. हमारे एजेंडा में वो कृत्रिम लड़ाइयां हैं, जो हमें व्यस्त रखने के लिए रची गई हैं. हम समाज से कट कर सोशल मीडिया पर कथित रूप से क्रांति कर रहे हैं. उन मुद्दों पर माथापच्ची कर रहे हैं, जिन पर ध्यान नहीं देने से ही समाज और देश की भलाई है. फुरसत में बैठकर कभी सोचिएगा कि क्या आप सचमुच आरती को नहीं पहचानते?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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