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गगनदीप पुलिसवाला है, उसे सिर्फ 'सिख' कहना उसकी ड्यूटी का अपमान है

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 29 मई, 2018 04:03 PM
  • 29 मई, 2018 04:03 PM
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एक सिख पुलिस अधिकारी द्वारा मुस्लिम व्यक्ति को उग्र भीड़ से बचाना को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी जीत के रूप में क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है?

क्या भारत में पुलिस का कर्तव्य धर्म के आधार पर न्याय देना है? यदि एक पुलिस अधिकारी हिंदू है तो क्या वह सिर्फ हिंदुओं की रक्षा करेगा? किसी और धर्म का व्यक्ति अगर उससे मदद मांगेगा तो क्या वह उसे मना कर देगा? क्या इस्लाम को मानने वाला पुलिसकर्मी केवल मुस्लिम समाज के लोगों को न्याय प्रदान करेगा? यदि उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर 'न' हैं तो फिर एक सिख पुलिस अधिकारी द्वारा मुस्लिम व्यक्ति को उग्र भीड़ से बचाना को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी जीत के रूप में क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है?

‘सिख होने के बावज़ूद पुलिस अधिकारी ने एक मुस्लिम व्यक्ति को बचा लिया’ मीडिया ने कुछ इस तरह मामले को प्रचारित किया

‘सिख होने के बावज़ूद पुलिस अधिकारी ने एक मुस्लिम व्यक्ति को बचा लिया’- तथ्यों को धर्म के साथ जोड़कर प्रस्तुत करना बिल्कुल ग़लत पत्रकारिता है.  नैनीताल के उस पुलिस अधिकारी का कर्तव्य कानून की रक्षा करना था. उग्र भीड़ द्वारा सड़क पर दिए जा रहे 'न्याय' से उस युवक को बचाना और कानून का राज स्थापित करना उस पुलिस अधिकारी से अपेक्षित था. उस पुलिस अधिकारी ने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया. पुलिस अधिकारी के धर्म को यहां उजागर करके लोग क्या साबित करना चाहते हैं? सिख पुलिस अधिकारी केवल सिखों की रक्षा करेगा? दूसरे धर्म के लोग क्या उससे मदद की उम्मीद न रखें? यह किस प्रकार का तर्क है?

पुलिस का काम जात-पात, धर्म, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष के भेद भाव से उपर उठकर कानून के अनुसार कार्य करने का होता है. उस पुलिस अधिकारी ने भी कानून के अनुसार कार्य किया जिसकी सराहना होनी चाहिए. हम उस पुलिस अधिकारी की इसलिए सराहना करें क्योंकि एक सिख पुलिस वाले ने मुस्लिम व्यक्ति को हिंदू उग्र भीड़ से बचा लिया - तथ्यों की यह व्याख्या पूर्णतः गलत...

क्या भारत में पुलिस का कर्तव्य धर्म के आधार पर न्याय देना है? यदि एक पुलिस अधिकारी हिंदू है तो क्या वह सिर्फ हिंदुओं की रक्षा करेगा? किसी और धर्म का व्यक्ति अगर उससे मदद मांगेगा तो क्या वह उसे मना कर देगा? क्या इस्लाम को मानने वाला पुलिसकर्मी केवल मुस्लिम समाज के लोगों को न्याय प्रदान करेगा? यदि उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर 'न' हैं तो फिर एक सिख पुलिस अधिकारी द्वारा मुस्लिम व्यक्ति को उग्र भीड़ से बचाना को धर्मनिरपेक्षता की सबसे बड़ी जीत के रूप में क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है?

‘सिख होने के बावज़ूद पुलिस अधिकारी ने एक मुस्लिम व्यक्ति को बचा लिया’ मीडिया ने कुछ इस तरह मामले को प्रचारित किया

‘सिख होने के बावज़ूद पुलिस अधिकारी ने एक मुस्लिम व्यक्ति को बचा लिया’- तथ्यों को धर्म के साथ जोड़कर प्रस्तुत करना बिल्कुल ग़लत पत्रकारिता है.  नैनीताल के उस पुलिस अधिकारी का कर्तव्य कानून की रक्षा करना था. उग्र भीड़ द्वारा सड़क पर दिए जा रहे 'न्याय' से उस युवक को बचाना और कानून का राज स्थापित करना उस पुलिस अधिकारी से अपेक्षित था. उस पुलिस अधिकारी ने अपना कर्तव्य बखूबी निभाया. पुलिस अधिकारी के धर्म को यहां उजागर करके लोग क्या साबित करना चाहते हैं? सिख पुलिस अधिकारी केवल सिखों की रक्षा करेगा? दूसरे धर्म के लोग क्या उससे मदद की उम्मीद न रखें? यह किस प्रकार का तर्क है?

पुलिस का काम जात-पात, धर्म, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष के भेद भाव से उपर उठकर कानून के अनुसार कार्य करने का होता है. उस पुलिस अधिकारी ने भी कानून के अनुसार कार्य किया जिसकी सराहना होनी चाहिए. हम उस पुलिस अधिकारी की इसलिए सराहना करें क्योंकि एक सिख पुलिस वाले ने मुस्लिम व्यक्ति को हिंदू उग्र भीड़ से बचा लिया - तथ्यों की यह व्याख्या पूर्णतः गलत है.

रामनगर (ज़िला नैनीताल) से 15 किलोमीटर दूर गर्जिया मंदिर के इलाके में मुस्लिम युवक और एक हिंदू युवती आपत्तिजनक स्थिति में पाए गए थे. इसके कारण हिंदू समुदाय में रोष था. किसी प्रकार का रोष कानून को अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं देता है. यह पुलिस जांच का विषय है कि युवक और युवती अपनी मर्ज़ी से वहां आए थे या दोनों एक दूसरे को पसंद करते हैं या नहीं.  यदि हिंदू समाज के लोगों को किसी प्रकार की साज़िश, कथित 'लव जिहाद' की बात महसूस होती तो उन्हें पुलिस के पास शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी. क़ानून को अपने हाथ में लेकर सड़क पर 'न्याय' देना अपराध है.

देखिए वीडियो-

एक भारतीय नागरिक को किसी तरह के शारीरिक हमले से बचाकर पुलिस अधिकारी ने अपना कर्तव्य निभाया है. हमारा भी यह दायित्व बनता है कि पुलिस अधिकारी की बहादुरी की प्रसंशा करे. पुलिस अधिकारी और युवक के धर्म का ढिंढोरा पीटकर हम पत्रकारिता को शर्मसार कर रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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