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एडिशनल एसपी टिंकी ने 'कुत्ते की मौत मरना' कहावत के मायने ही बदल दिये

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 09 फरवरी, 2021 10:35 PM
  • 09 फरवरी, 2021 10:34 PM
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टिंकी को पुलिस महकमे में सिंघम के नाम से जाना जाता था. महज 6 साल में उसने 6 प्रमोशन हासिल किए. कांस्टेबल से ASP बन गई. उसकी बिरादरी की ज्यादातर वफादारी की मिसाल दी जाती है, लेकिन उसने अपनी साहस और प्रतिभा के दम पर नया मुकाम हासिल किया था.

'कुत्ते की मौत मरना'...अक्सर हिंदी फिल्मों में यह प्रचलित मुहावरा सुनने को मिल जाता है. 'कुत्ते की मौत' यानी 'बहुत बुरी मौत' मानी जाती है. लेकिन यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में एक कुत्ते ने मुहावरे का मतलब ही बदल दिया. उसने साबित कर दिया कि यदि कर्म अच्छे हों, तो कुत्ता इंसान से भी बेहतर मौत मरता है. किसी बड़े नेता या अधिकारी की तरह मरणोपरांत उसका सम्मान किया जाता है. उसकी याद में मूर्ति लगवाई जाती है. उसकी शान में कसीदे पढ़े जाते हैं. उसकी याद में लोग रोते हैं. उसे मिस करते हैं. उसकी मिसाल देकर कहानियां सुनाते हैं. यूपी पुलिस की सुपर कॉप डॉग क्यूटिक्स उर्फ एडिशनल एसपी टिंकी की बात ही अलग थी. उसने अपनी प्रतिभा के दम पर ऐसी मिसाल कायम की है कि महकमे में उसकी प्रतिमा लगाई गई है. टिंकी जर्मन शेफर्ड नस्ल की मादा थी.

टिंकी यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर ASP तैनात थी.

टिंकी जब दो साल की थी, तब उसे यूपी पुलिस के डॉग स्क्वायड में शामिल किया गया था. ट्रेनिंग के लिए उसे मध्य प्रदेश के टेकनपुर स्थित बीएसएफ बेस भेजा गया. वहां से ट्रेनिंग लेने के बाद उसकी तैनाती बतौर कांस्टेबल यूपी के मुजफ्फरनगर में कर दी गई. अपनी प्रतिभा के दम पर जल्दी ही डॉग स्क्वायड में उसकी अलग पहचान बन गई. वह बड़े-बड़े केस सॉल्व करने में पुलिस की मदद करने लगी. बताया जाता है कि एक बार जिले के बुढ़ाना कस्बे में अवैध संबंधों को लेकर एक हत्या हुई. हत्या के बाद युवक की लाश छुपा दी गई थी. यह मर्डर केस पुलिस के लिए पहेली बन गया थी. तमाम लोगों से पूछताछ और जांच के बाद भी इसकी कड़ियां उलझती जा रही थीं. करीब 10 दिनों बाद टिंकी ने भूसे के ढेर में छिपाए गए युवक के शव को खोज निकाला. और फिर वो हत्या में शामिल मृतक की बहन तक पहुंच गई.

आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि किसी वारदात के बाद...

'कुत्ते की मौत मरना'...अक्सर हिंदी फिल्मों में यह प्रचलित मुहावरा सुनने को मिल जाता है. 'कुत्ते की मौत' यानी 'बहुत बुरी मौत' मानी जाती है. लेकिन यूपी के मुजफ्फरनगर जिले में एक कुत्ते ने मुहावरे का मतलब ही बदल दिया. उसने साबित कर दिया कि यदि कर्म अच्छे हों, तो कुत्ता इंसान से भी बेहतर मौत मरता है. किसी बड़े नेता या अधिकारी की तरह मरणोपरांत उसका सम्मान किया जाता है. उसकी याद में मूर्ति लगवाई जाती है. उसकी शान में कसीदे पढ़े जाते हैं. उसकी याद में लोग रोते हैं. उसे मिस करते हैं. उसकी मिसाल देकर कहानियां सुनाते हैं. यूपी पुलिस की सुपर कॉप डॉग क्यूटिक्स उर्फ एडिशनल एसपी टिंकी की बात ही अलग थी. उसने अपनी प्रतिभा के दम पर ऐसी मिसाल कायम की है कि महकमे में उसकी प्रतिमा लगाई गई है. टिंकी जर्मन शेफर्ड नस्ल की मादा थी.

टिंकी यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर ASP तैनात थी.

टिंकी जब दो साल की थी, तब उसे यूपी पुलिस के डॉग स्क्वायड में शामिल किया गया था. ट्रेनिंग के लिए उसे मध्य प्रदेश के टेकनपुर स्थित बीएसएफ बेस भेजा गया. वहां से ट्रेनिंग लेने के बाद उसकी तैनाती बतौर कांस्टेबल यूपी के मुजफ्फरनगर में कर दी गई. अपनी प्रतिभा के दम पर जल्दी ही डॉग स्क्वायड में उसकी अलग पहचान बन गई. वह बड़े-बड़े केस सॉल्व करने में पुलिस की मदद करने लगी. बताया जाता है कि एक बार जिले के बुढ़ाना कस्बे में अवैध संबंधों को लेकर एक हत्या हुई. हत्या के बाद युवक की लाश छुपा दी गई थी. यह मर्डर केस पुलिस के लिए पहेली बन गया थी. तमाम लोगों से पूछताछ और जांच के बाद भी इसकी कड़ियां उलझती जा रही थीं. करीब 10 दिनों बाद टिंकी ने भूसे के ढेर में छिपाए गए युवक के शव को खोज निकाला. और फिर वो हत्या में शामिल मृतक की बहन तक पहुंच गई.

आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि किसी वारदात के बाद 24 घंटे तक ही डॉग स्क्वायड से मदद मिल पाती है. लेकिन टिंकी की सूंघने की शक्ति गजब की थी. वह वारदात के 10 दिनों बाद तक अपना काम करने में सक्षम थी. उसने अपने कार्यकाल के दौरान मर्डर, लूट और चोरी-डकैती सहित 49 संगीन मामलों का खुलासा किया. पुलिस जब किसी मामले में बुरी तरह से फंस जाती, तो उसे टिंकी की ही मदद मिलती थी. वह पुलिस विभाग की जान बन चुकी थी. यहां तक कि उसे 'सिंघम' कहा जाने लगा था. उसने अपनी प्रतिभा के दम पर महज 6 साल में 6 प्रमोशन पाए. कांस्टेबल से ASP यानि एडिशनल एसपी के पद तक पहुंच गई. इस पद तक पहुंचना किसी साधारण सिपाही के बस की बात नहीं है. लेकिन टिंकी ने ऐसा कर दिखाया था. जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है.

एक कांस्टेबल यानि साधारण सिपाही किस प्रक्रिया के तहत ASP पद तक पहुंच सकता है? यहां तक पहुंचने के लिए कितना समय लग सकता है? वैसे तो इस सवाल का जवाब हर राज्य के लिए अलग-अलग हो सकता है, क्योंकि हर जगह की अपनी पुलिस और उसके नियम अलग होते हैं. फिर भी यदि आदर्श समय की बात की जाए, तो एक सिपाही को ASP बनने के लिए दिन-रात एक करना पड़ता है. सामान्य तौर पर यदि वह प्रमोशन के भरोसे रहे, तो उसे 35 साल लग सकते हैं. कुछ मामलों में 10 साल के अंदर भी सिपाही को अफसर बनते हुए देखा गया है, लेकिन इसके लिए उसे प्रतियोगी परीक्षाओं से होकर गुजरना पड़ता है. उदाहरण के लिए कर्नाटक के सिपाही वेंकटेश, जिन्होंने राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर यह मिसाल कायम की थी. वह 10 साल में सिपाही से DSP बन गए थे.

यदि कोई शख्स कांस्टेबल के पद पर पुलिस विभाग में भर्ती होता है, तो नियमित प्रमोशनों के जरिए वह सीनियर कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर के बाद इंस्पेक्टर बनता है. इसके बाद उसका सर्विस रिकॉर्ड देखते हुए डीएसपी बनाया जाता है. बहुत कम ही कांस्टेबल इस पोजिशन तक पहुंच पाते हैं. डीएसपी के बाद असिस्टेंट एसपी और उसके बाद एडिशनल एसपी का पद आता है. अब जरा सोचिए, टिंकी एक कांस्टेबल से एडिशनल एसपी के पद तक कैसे पहुंच गई? उसकी असाधारण प्रतिभा को देखते हुए ही पुलिस महकमे ने उसे इतना बड़ा पद दिया. वरना पुलिस विभाग में प्रमोट होना नाकों चने चबाने जैसा होता है. उसमें भी सिपाही से अफसर बनना तो और भी टेढ़ी खीर है. ASP टिंकी यूपी पुलिस के इतिहास में एक सुनहरे पन्ने के रूप में दर्ज हो चुकी है.

आंतों में इंफेक्शन की वजह से टिंकी बीमार रहने लगी थी. पिछले साल नवंबर में इलाज के लिए उसे मेरठ के सरदार वल्लभभाई पटेल हॉस्पिटल में लाया गया. वहां उसका ऑपरेशन भी किया गया. लेकिन डॉक्टर उसकी जान बचाने में असमर्थ रहे. टिंकी के हैंडलर महेश कुमार ने बताया कि उसने जिले की कई बड़ी वारदातों का राजफाश करने में अहम किरदार निभाया था. पुलिस महकमे को टिंकी की बेशुमार सेवाओं के बदले वरिष्‍ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक यादव ने पुलिस लाइन में उसकी प्रतिमा लगवाने का निर्णय लिया.

मेरठ के राजन नामक कलाकार ने करीब दो महीने के प्रयास के बाद टिंकी की प्रतिमा को आकार दिया. टिंकी के कई चित्र राजन को दिए गए थे और उनसे अपेक्षा की गई थी कि वो ऐसी प्रतिमा बनाएं कि देखने वालों को टिंकी याद आ जाए. टिंकी अब इस दुनिया में नहीं है. लेकिन अपनों कर्मों की बदौलत उसने ऐसी मिसाल कायम की है, जो हर इंसान के लिए सीख है. जिंदा रहते हुए अपराधियों के लिए काल बन चुकी टिंकी मरने के बाद भी प्रेरणास्रोत बनी रहेगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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