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सुन लो अलगाववादियों, सुंजवां में जवाबी हमला 'हिन्दू सेना' का नहीं था

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 11 फरवरी, 2018 05:38 PM
  • 11 फरवरी, 2018 05:38 PM
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सुंजवां आर्मी कैंप में हमला और उस हमले में सेना की तरफ से शहीद हुए 5 मुसलमान जवानों की मौत ये बताती है कि ये लड़ाई हिन्दू सेना और मुसलमान आतंकियों के बीच नहीं बल्कि आतंक और आतंकवाद के खिलाफ है

जम्मू कश्मीर के सुंजवां आर्मी कैंप में सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ जारी है. लेकिन वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के बारे में जो जानकारी मिली है, वो कई लोगों की आंखों पर पड़े पर्दे को हटाने के लिए काफी है. इस आतंकी हमले में सूबेदार मदन लाल चौधरी, सूबेदार मुहम्मद अशरफ नीर, हवालदार हबीबुल्लाह कुरैशी, नायक मंज़ूर अहमद, लांस नायक मुहम्मद इकबाल और उनके पिता मारे गए हैं. सेना की तरफ से शहीद हुए सभी लोग कश्मीर के कुपवाड़ा के रहने वाले थे. वही कुपवाड़ा जो कश्मीर में फैली अराजकता और आतंकवाद का गढ़ माना जाता था.

सुंजवां आर्मी कैंप में सेना की तरफ से एक बड़ी कार्यवाही अभी भी जारी है

उड़ी हमले के बाद ये दूसरी बार है जब आतंकियों ने सेना के बेस कैम्प को अपना निशाना बनाया और एक बड़ा हमला किया. सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 4 आतंकियों का खात्मा कर दिया है. आजतक संवाददाता अशरफ वानी के अनुसार आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी ली है. शनिवार सुबह 4.45 मिनट पर जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी सुंजवां आर्मी कैंप में घुसे और उन्होंने जूनियर कमीशन अधिकारियों के क्वाटर्स को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया. मगर सेना ने आतंकियों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया और एक बड़े ऑपरेशन के जरिये आतंकियों को रोकने का प्रयास किया. कैम्प में अब भी आतंकियों के छुपने की आशंका जताई जा रही है जिसके मद्देनजर सेना ने कैम्प में मौजूद 26 में से 19 फ्लैट खाली करा दिए हैं और ऑपरेशन अब भी जारी है.

इस हमले में सेना की तरफ से 5 जवान शहीद हुए हैं

उम्मीद करते हैं कि जैश के इस नापाक...

जम्मू कश्मीर के सुंजवां आर्मी कैंप में सेना और आतंकियों के बीच मुठभेड़ जारी है. लेकिन वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के बारे में जो जानकारी मिली है, वो कई लोगों की आंखों पर पड़े पर्दे को हटाने के लिए काफी है. इस आतंकी हमले में सूबेदार मदन लाल चौधरी, सूबेदार मुहम्मद अशरफ नीर, हवालदार हबीबुल्लाह कुरैशी, नायक मंज़ूर अहमद, लांस नायक मुहम्मद इकबाल और उनके पिता मारे गए हैं. सेना की तरफ से शहीद हुए सभी लोग कश्मीर के कुपवाड़ा के रहने वाले थे. वही कुपवाड़ा जो कश्मीर में फैली अराजकता और आतंकवाद का गढ़ माना जाता था.

सुंजवां आर्मी कैंप में सेना की तरफ से एक बड़ी कार्यवाही अभी भी जारी है

उड़ी हमले के बाद ये दूसरी बार है जब आतंकियों ने सेना के बेस कैम्प को अपना निशाना बनाया और एक बड़ा हमला किया. सेना ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 4 आतंकियों का खात्मा कर दिया है. आजतक संवाददाता अशरफ वानी के अनुसार आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद ने हमले की जिम्मेदारी ली है. शनिवार सुबह 4.45 मिनट पर जैश-ए-मुहम्मद के आतंकी सुंजवां आर्मी कैंप में घुसे और उन्होंने जूनियर कमीशन अधिकारियों के क्वाटर्स को अपने कब्जे में लेने का प्रयास किया. मगर सेना ने आतंकियों के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया और एक बड़े ऑपरेशन के जरिये आतंकियों को रोकने का प्रयास किया. कैम्प में अब भी आतंकियों के छुपने की आशंका जताई जा रही है जिसके मद्देनजर सेना ने कैम्प में मौजूद 26 में से 19 फ्लैट खाली करा दिए हैं और ऑपरेशन अब भी जारी है.

इस हमले में सेना की तरफ से 5 जवान शहीद हुए हैं

उम्मीद करते हैं कि जैश के इस नापाक मंसूबे को हमारी सेना बिना कोई शहादत दिए नाकामयाब कर देगी. लेकिन यहां उन शहीदों की बात करना जरूरी है, जिन्होंने इस हमले में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है. कश्मीर के अलगाववादी नेता और पाकिस्तान में बैठे हाफिज सईद - सैयद सलाहुद्दीन जैसे आतंकियों के रहनुमा ये अफवाह फैलाते नहीं थकते की घाटी में भारत की 'हिन्दू सेना' मुसलमानों पर जुल्म कर रहे हैं और उनकी जान ले रहे हैं.

इन धूर्त लोगों की बातों से गुमराह होने वालों की आंखों से पर्दा हटाने के लिए सुजवान कैम्प में आतंकियों से भिड़ जाने वाले उन 5 मुसलमानों के नाम काफी हैं. जिन्होंने इस बात की परवाह नहीं की कि कैम्प के भीतर रह रहे परिवार किस धर्म के हैं, वे देश के कौन से इलाके से आते हैं. कहा जा सकता है कि सुंजवां आर्मी कैंप में 5 मुसलमान जवानों की शहादत उन अलगाववादी नेताओं के मुंह पर करारा तमाचा है जो अपने भड़काऊ भाषणों से लगातार कश्मीर की जनता को बरगला रहे हैं और उन्हें भटकाने  का काम कर रहे हैं.

सुंजवां आर्मी कैंप में हुए इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मुहम्मद ने ली है

ययदि सीमित सोच वाले लोग ये मानते हैं कि कश्मीर में लड़ाई "हिन्दू सेना" बनाम "मुस्लिम" है तो उन्हें ये सोचना होगा कि यदि ऐसा होता तो कुपवाड़ा जैसे आतंक के गढ़ से निकलकर ये 5 लोग कभी भी सेना ज्वाइन नहीं करते और न ही ये 5 मुसलमान जवान वीरगति को प्राप्त होते. ज्ञात हो कि कश्मीर में सेना की लड़ाई मुसलमानों के खिलाफ नहीं, बल्कि उस आतंक के खिलाफ है जिसने कश्मीर जैसे समृद्ध राज्य और वहां की जनता को गर्त के अंधेरों में डाल दिया है. कहा जा सकता है कि घाटी में मौजूद मुसलमान जवानों के अलावा आम कश्मीरी भी आतंक की इस लड़ाई में अपने देश की सेना के साथ है और उनसे मोर्चा लेने को तैयार है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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