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महिला सुरक्षा के लिए कठोर कानून का दिखावा एक छलावा ही है

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 03 अगस्त, 2018 10:11 PM
  • 03 अगस्त, 2018 10:11 PM
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इस विषय में सरकार की नियत तो नेक है पर पिछले दिनों की घटनाओं से यह नजर आता है कि सख़्त कानून के बावजूद समाज में महिलाओं और विशेषकर बच्चियों पर हो रहे यौन अपराधों में कमी नहीं आई है.

लोकसभा ने आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 को पारित कर दिया है. इस विधेयक में 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं से बलात्कार करने वाले अपराधियों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान है. इसके साथ-साथ 16 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के साथ बलात्कार के दोषियों के लिए न्यूनतम 20 वर्ष की सजा का नियम है, जिसे उम्रकैद तक भी बढ़ाया जा सकता है. बलात्कार के अन्य मामलों में भी कम से कम सजा 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गई है. पहले जहां बलात्कार से संबंधित विषयों की जांच 3 महीनों में पूरी करनी होती थी, अब उसे घटाकर 2 महीने कर दिया गया है. 12 वर्ष तथा 16 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में अब अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी. हर प्रकार के अग्रिम जमानत के आवेदन में आवेदक को यह स्पष्ट करना पड़ेगा कि उसका अपराध क्या है?

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि राज्यसभा भी इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे देगा और एक नया कानून देश की स्त्री शक्ति की सुरक्षा के लिए उपलब्ध होगा. इसमे कोई दोराय नहीं है कि इस विधेयक के द्वारा बलात्कार से जुड़े नियम सख़्त किए गए हैं. सरकार की मंशा है कि यह कानून एक प्रतिरोधक का काम करे, जिसके चलते लोग ऐसे जघन्य अपराध करने से डरें.

12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं से बलात्कार करने वाले अपराधियों के लिए मृत्यु दंड

इस विषय में सरकार की नियत तो नेक है पर पिछले दिनों की घटनाओं से यह नजर आता है कि सख़्त कानून के बावजूद समाज में महिलाओं और विशेषकर बच्चियों पर हो रहे यौन अपराधों में कमी नहीं आई है. 21 अप्रेल 2018 को ही इस विषय पर केंद्र सरकार एक अध्यादेश ला चुकी है. अब इसी अध्यादेश को सरकार ने विधेयक का रूप देकर लोक सभा में प्रस्तुत किया था. इसका तात्पर्य यह है कि 21 अप्रेल के बाद से महिला उत्पीड़न की घटनाएं थम जानी चाहिए थीं, परंतु ऐसा...

लोकसभा ने आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक 2018 को पारित कर दिया है. इस विधेयक में 12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं से बलात्कार करने वाले अपराधियों के लिए मृत्यु दंड का प्रावधान है. इसके साथ-साथ 16 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के साथ बलात्कार के दोषियों के लिए न्यूनतम 20 वर्ष की सजा का नियम है, जिसे उम्रकैद तक भी बढ़ाया जा सकता है. बलात्कार के अन्य मामलों में भी कम से कम सजा 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष कर दी गई है. पहले जहां बलात्कार से संबंधित विषयों की जांच 3 महीनों में पूरी करनी होती थी, अब उसे घटाकर 2 महीने कर दिया गया है. 12 वर्ष तथा 16 वर्ष से कम आयु की कन्याओं के साथ दुष्कर्म की घटनाओं में अब अग्रिम जमानत नहीं मिल सकेगी. हर प्रकार के अग्रिम जमानत के आवेदन में आवेदक को यह स्पष्ट करना पड़ेगा कि उसका अपराध क्या है?

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि राज्यसभा भी इस विधेयक को अपनी मंजूरी दे देगा और एक नया कानून देश की स्त्री शक्ति की सुरक्षा के लिए उपलब्ध होगा. इसमे कोई दोराय नहीं है कि इस विधेयक के द्वारा बलात्कार से जुड़े नियम सख़्त किए गए हैं. सरकार की मंशा है कि यह कानून एक प्रतिरोधक का काम करे, जिसके चलते लोग ऐसे जघन्य अपराध करने से डरें.

12 वर्ष से कम आयु की कन्याओं से बलात्कार करने वाले अपराधियों के लिए मृत्यु दंड

इस विषय में सरकार की नियत तो नेक है पर पिछले दिनों की घटनाओं से यह नजर आता है कि सख़्त कानून के बावजूद समाज में महिलाओं और विशेषकर बच्चियों पर हो रहे यौन अपराधों में कमी नहीं आई है. 21 अप्रेल 2018 को ही इस विषय पर केंद्र सरकार एक अध्यादेश ला चुकी है. अब इसी अध्यादेश को सरकार ने विधेयक का रूप देकर लोक सभा में प्रस्तुत किया था. इसका तात्पर्य यह है कि 21 अप्रेल के बाद से महिला उत्पीड़न की घटनाएं थम जानी चाहिए थीं, परंतु ऐसा नहीं हुआ.

चाहे मुजफ्फरपुर में बालिका गृह में यौन शोषण का मामला हो, मंदसौर में 8 साल की बच्ची के साथ बलात्कार, पुणे के एक मदरसे में मौलाना के द्वारा 5 वर्ष से 14 वर्ष की 36 बालिकाओं से यौन उत्पीड़न की घटना हो. नए कानून का डर कहीं नजर नहीं आ रहा है.

यह बात साफ है कि महिला सुरक्षा के लिए केवल कठोर कानून ही पर्याप्त नहीं है. जब तक समाज में जागरूकता और महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव पैदा नहीं होगा तब तक सारे कानून और नियम धरे के धरे रह जाएंगे. महिला सम्मान की शुरूआत देश के प्रत्येक परिवार से होनी चाहिए, जहां महिलाओं को अपनी बात रखने का अधिकार हो, उनके विचारों को महत्व मिले और घर के निर्णयों में उनकी भी भागीदारी हो.

महिला सुरक्षा का सबसे बड़ा हथियार महिला सशक्तिकरण है, जिसमें स्त्री शक्ति की साक्षरता अहम भूमिका निभाती है. यदि परिवार में महिला साक्षर होगी तो वह अपने अधिकारों से अवगत होगी, वह अपनी बेटी को भी उन अधिकारों से अवगत करा पाएगी. साक्षरता के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी महिला सुरक्षा के लिए अति आवश्यक है. बचपन में मिले नैतिक शिक्षा के पाठ ही एक युवा मनुष्य को सही और गलत में अंतर करने की क्षमता प्रदान करते है. जिस समाज में नैतिक शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता वहां महिलाओं की स्थिति प्राय दयनीय बनी रहती है.

कठोर कानून, साक्षर स्त्री शक्ति, समाज में जागरूकता, नैतिक शिक्षा पर ज़ोर - इन सब के मिश्रण से ही महिला सुरक्षा के क्षेत्र में देश में सुधार हो सकता है. यदि हम केवल कठोर कानून से ही महिला सुरक्षा की उम्मीद करेंगे तो हमे कभी अपेक्षित परिणाम नहीं मिलेंगे. अतः यह कहना सही होगा कि महिला सुरक्षा के लिए यह कानून सिर्फ एक आरंभ है, उचित परिणाम पाने के लिए अभी कई ओर क्षेत्रों में काम करने की आवश्यकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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