• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

जलियांवाला बाग के लिए एक बंगाली परिवार का अद्भुत प्रेम

    • विवेक शुक्ला
    • Updated: 13 अप्रिल, 2018 10:59 AM
  • 13 अप्रिल, 2016 06:53 PM
offline
सुकुमार मखर्जी धारा प्रवाह पंजाबी बोलते हैं. वे जलियांवाला बाग के एक-एक ईंट और पत्थर के इतिहास से वाकिफ हैं. तीन पीढ़ियों से इनका परिवार रोज देशी-विदेशी पर्यटकों को 13 अप्रैल, 1919 की घटना की जानकारी देते हैं.

अमृतसर के जलियांवाला बाग में प्रवेश करते ही आप मानो उस अभागे दिन में लौट जाते हैं जब आजादी के दीवानों पर अंधाधुंध गोलीबारी हुई थी. सैकड़ों लोग शहीद हो गए. आप जब घूमते हुए उन जगहों को देख रहे होते हैं जहां पर अब गोलियों के निशान नजर आते हैं, तब आपको एक शख्स दाएं-बाएं घूमता हुआ नजर आता है. इसका नाम है सुकुमार मुखर्जी. सुकुमार जलियांवाला बाग की व्यवस्था देखते हैं. उनके परिवार की तीन पीढियां जलियांवाला बाग मेमोरियल ट्रस्ट का मैनेजमेंट देख रही हैं. मूल रूप से बंगाल के हावड़ा का रहने वाला मुखर्जी परिवार सुबह-शाम इसकी व्यवस्था को देख रहा होता हैं.

सुकुमार मखर्जी धारा प्रवाह पंजाबी बोलते हैं. सुकुमार जलियांवाला बाग के चप्पे-चप्पे या कहें कि यहां के हर पत्थर के इतिहास से वाकिफ हैं. वे रोज इधर आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों को इधर जो कुछ 13 अप्रैल, 1919 में घटा उसकी जानकारी देते हैं. सामान्य सी पैंट-कमीज पहने सुकुमर यहां आने वाली भीड़ में बीच-बीच में गुम भी हो जाते हैं. वे उन पर्यटकों को कस भी देते हैं, जो जलियांबाग की दिवारों या किसी अन्य जगह को खराब करने की कोशिश करते हैं. कई टूरिस्ट जिधर गोलियों के निशां हैं, उन्हें खुरचने लगते हैं. कई इधर के पार्क में बैठकर खेलने–कूदने लगते हैं या फिर खाने-पीने लगते हैं. ये कोई सामान्य पार्क नहीं है.

जलियांवाला बाग में हुई थी अंधाधुंध गोलीबारी

सुकुमार के दादा डा.शशि चरण मुखर्जी 1920 में कत्लेआम के बाद हावड़ा से यहां आए थे. जलियांवाला कांड के बाद 1920 में कांग्रेस का अमृतसर में सालाना सत्र हुआ. ये एक तरह से अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए किया गया था. इसी सत्र के दौरान इधर एक स्मारक बनाने का फैसला हुआ. तब गांधी जी ने डा. मुखर्जी को स्मारक के कामकाज को...

अमृतसर के जलियांवाला बाग में प्रवेश करते ही आप मानो उस अभागे दिन में लौट जाते हैं जब आजादी के दीवानों पर अंधाधुंध गोलीबारी हुई थी. सैकड़ों लोग शहीद हो गए. आप जब घूमते हुए उन जगहों को देख रहे होते हैं जहां पर अब गोलियों के निशान नजर आते हैं, तब आपको एक शख्स दाएं-बाएं घूमता हुआ नजर आता है. इसका नाम है सुकुमार मुखर्जी. सुकुमार जलियांवाला बाग की व्यवस्था देखते हैं. उनके परिवार की तीन पीढियां जलियांवाला बाग मेमोरियल ट्रस्ट का मैनेजमेंट देख रही हैं. मूल रूप से बंगाल के हावड़ा का रहने वाला मुखर्जी परिवार सुबह-शाम इसकी व्यवस्था को देख रहा होता हैं.

सुकुमार मखर्जी धारा प्रवाह पंजाबी बोलते हैं. सुकुमार जलियांवाला बाग के चप्पे-चप्पे या कहें कि यहां के हर पत्थर के इतिहास से वाकिफ हैं. वे रोज इधर आने वाले देश-विदेश के पर्यटकों को इधर जो कुछ 13 अप्रैल, 1919 में घटा उसकी जानकारी देते हैं. सामान्य सी पैंट-कमीज पहने सुकुमर यहां आने वाली भीड़ में बीच-बीच में गुम भी हो जाते हैं. वे उन पर्यटकों को कस भी देते हैं, जो जलियांबाग की दिवारों या किसी अन्य जगह को खराब करने की कोशिश करते हैं. कई टूरिस्ट जिधर गोलियों के निशां हैं, उन्हें खुरचने लगते हैं. कई इधर के पार्क में बैठकर खेलने–कूदने लगते हैं या फिर खाने-पीने लगते हैं. ये कोई सामान्य पार्क नहीं है.

जलियांवाला बाग में हुई थी अंधाधुंध गोलीबारी

सुकुमार के दादा डा.शशि चरण मुखर्जी 1920 में कत्लेआम के बाद हावड़ा से यहां आए थे. जलियांवाला कांड के बाद 1920 में कांग्रेस का अमृतसर में सालाना सत्र हुआ. ये एक तरह से अंग्रेजी हुकूमत के जुल्मों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए किया गया था. इसी सत्र के दौरान इधर एक स्मारक बनाने का फैसला हुआ. तब गांधी जी ने डा. मुखर्जी को स्मारक के कामकाज को देखने के लिए कहा था. वे स्मारक ट्रस्ट के पहले सचिव बने. तब से मुखर्जी परिवार दिन-रात यहां पर लगा रहता है. मुखर्जी परिवार अपनी सेवा के बदले में वेतन के तौर पर कुछ नहीं लेता. उनकी आय का एकमात्र जरिया बाग से सटे उनके घर के एक हिस्से से चलने वाली पंजाब नेशनल बैंक की शाखा से आने वाला रेंट.

अब तो हावड़ा का मुखर्जी परिवार अमृतसरी हो चुका है

जलियांवाला बाग में घूमते हुए सुकुमार बताते हैं कि किस तरह से ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड डायर जैसे मूर्ख और क्रूर अधिकारी ने अपने आदेश से 13 अप्रैल, 1919 को 370 लोगों को गोलियों से भुनवा दिया था. उस दिन ये सारे लोग पंजाब के प्रमुख स्वाधीनता सेनानी डॉ.सत्यपाल डांग और डॉ. सैफुद्दीन किचलू की रिहाई के वास्ते जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे. जनरल डायर को यह नागवार गुजरा और उसने फायरिंग का आदेश देकर इस हत्याकांड को अंजाम दिया था. सुकुमार मुखर्जी उस काले खूनी दिन की पृष्ठभूमि आपके सामने रखते हैं. आजादी के आंदोलन को देश व्यापी जनसमर्थन मिलने लगा था. गोरी सरकार इसके चलते घबराई हुई थी. 13 अप्रैल से चंद रोज पहले यानी 6 अप्रैल को हड़ताल रखी गई थी. हड़ताल के कारण सारा शहर बंद था. इससे पंजाब का प्रशासन बौखला गया. पंजाब के दो बड़े नेताओं सत्यापाल डांग और डॉ. किचलू को गिरफ्तार कर निर्वासित कर दिया गया. इस कारण ही अमृतसर में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा था. हड़ताल इन्हें निर्वासित करने के विरोध में ही थी.

“ मैं मानता हूं कि जैसे ही पंजाब प्रशासन को यह खबर मिली कि 13 अप्रैल को बैसाखी के दिन आंदोलनकारी जलियांवाला बाग में जमा हो रहे हैं, तो उसने उन्हें जनता को सबक सिखाने की ठान ली. एक दिन पहले ही मार्शल लॉ की घोषणा हो चुकी थी.”

“पंजाब प्रशासन ने अतिरिक्त सैनिक टुकड़ी बुलवा ली थी. ब्रिगेडियर जनरल डायर के कमान में यह टुकड़ी 11 अप्रैल की रात को अमृतसर पहुंची और अगले दिन शहर में फ्लैग मार्च भी निकाला गया.“

“ 13 अप्रैल, 1919 जलियांवाला बाग में एक सभा रखी गई थी. जिसमें कुछ नेताओं को भाषण देना था. हालांकि शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था, फिर भी इसमें सैंकड़ों लोग ऐसे भी थे, जो आस-पास के इलाकों से बैसाखी के मौके पर परिवार के साथ मेला देखने और शहर घूमने आए थे और सभा की खबर सुन कर वहां जा पहुंचे थे. देखते ही देखते सभा के शुरू होने तक वहां हजारों लोग जमा हो गए थे. तभी इस बाग के एकमात्र रास्ते से डायर ने अपनी सैनिक टुकड़ी के साथ वहां पोजिशन ली और बिना किसी चेतावनी गोलीबारी शुरू कर दी. ”

जलियांवाला बाग में जमा लोगों की भीड़ पर कुल 1,650 राउंड गोलियां चलीं जिसमें सैंकड़ो अहिंसक सत्याग्रही शहीद हो गए, और हजारों घायल हो गए. घबराहट में कई लोग बाग में बने कुंए में कूद पड़े. सुकुमार मुखर्जी उस तरफ अब चल पड़े. कुछ भावुक होते हुए वे कहते हैं कि इस बर्बरता ने भारत में ब्रिटिश राज की नींव हिला दी. ये बात सुकुमार मुखर्जी सभी से कहते हैं जो उनसे मिलते हैं. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन 2013 में इधर आए तो मुखर्जी ने उन्हें भी यही कहा.

डेविड कैमरन ने जलियांवाला बाग को ब्रिटेन के इतिहास में एक शर्मनाक घटना बताया था. उन्होंने कहा कि इस नरसंहार को नहीं भूलना चाहिए. कैमरन ने जलियांवाला स्मारक आगंतुक रजिस्टर में लिखा, "ब्रिटेन के इतिहास में यह बेहद शर्मनाक घटना है. विंस्टन चर्चिल ने इस घटना को उस समय बेहद भयावह घटना कहा था. इस त्रासदी को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए, तथा हमें सुनिश्चित करना चाहिए कि इंग्लैंड हमेशा शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के पक्ष में खड़ा रहे."

हालांकि मुखर्जी को इस बात का गुस्सा है कि कैमरन जलियांवाला स्मारक पर आने वाले पहले ब्रिटिश प्रधानमंत्री थे, लेकिन उन्होंने इस त्रासदी के लिए किसी तरह की माफी नहीं मांगी.

सुकुमार मुखर्जी से विदा लेने से पहले हमने उनसे पूछा कि क्या उनके परिवार की अगली पीढियां भी जलियांवाला बाग की देखरेख करती रहेंगी? “ मेरे बाद इसे कोई और देखेगा. मेरी दोनों बेटियां ही हैं और वे तो शादी के बाद अपने घर चली जाएंगी ”. बहुत भावुक होते हुए उन्होंने अपनी बात खत्म की और फिर जलियांवाला बाग में आने वालों को कुछ निर्देश देने लगे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲