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'रिवाल्वर रानी' का तमगा नहीं, सहूलियतें दो तो बात बने

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 31 मई, 2017 12:27 PM
  • 31 मई, 2017 12:27 PM
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ऐसी बहादुरी के बाद भी अगर हमारा देश दो दिन में आयशा जैसी खिलाड़ी को भूल जाता है तो ओलंपिक में गोल्ड की नहीं बल्कि हमें सोने के तस्करी में ही नंबर वन होने की आशा करनी चाहिए. और हम यही डिजर्व भी करते हैं.

बीते कुछ दिनों में दो लड़कियां मीडिया की आंखों का तारा बनी हुई थी. एक थी पाकिस्तान में अपने दरिंदे पति की चंगुल से छूटकर आई उजमा और दूसरी है रियल लाइफ रिवाल्वर रानी आयशाफलक. दो लड़कियां, दो कहानियां, दोनों एक से एक. अगर कोई इंसान चाहे तो इनसे बहुत कुछ सीख सकता है.

20 साल की उजमा पाकिस्तान में फंसी थी. उजमा पाकिस्तान के कबायली जिले खैबर-पख्तूनख्वा में फंसी थी और वहां तालिबान और जमींदारों का राज चलता है. ऐसी जगह से बाहर आने के लिए उजमा ने जिस सूझबूझ से काम लिया था वो काबिले-तारीफ है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी उजमा के मसले को निपटाने में अहम किरदार निभाया.

लेकिन उजमा से भी ज्यादा प्रेरणादायक दिल्ली की आयशा फलक की कहानी है. राजधानी दिल्ली में नेशनल लेवल शूटर आयशा ने अपनी बहादुरी और सूझबूझ से न सिर्फ अपने देवर की जान बचाई बल्कि अपहरणकर्ताओं को धूल भी चटा दी.

आयशाफलक

आयशा के देवर को दो लोगों ने किडनैप कर लिया था और 25000 की फिरौती की मांग की थी. आयशा और उनके पति ने पुलिस को तो फोन किया ही साथ ही खुद अपनी .32 बोर की लाइसेंसी बंदुक लेकर अपहरणकर्ताओं की बताई जगह पर चले गए. आयशा ने अपहरणकर्ताओं पर दो फायर किए एक को गोली छूकर निकल गई और दूसरे के पैर में गोली लगी. आयशा ने महिलाओं के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है, जो साहस और सूझबूझ का परिचय देने के साथ ही लोगों को जगाने का काम भी करती है.

33 साल की नेशनल लेवल शूटर आयशा ने 2015 में गोल्ड मेडल जीता था लेकिन अब गुमनामी के अंधेरे में खो गई थी. लेकिन एक कहावत है न ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता. वही आयशा के भी साथ हुआ. आयशा लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की कोचिंग देती हैं और लड़कियों को हर मुश्किल वक्त के लिए तैयार रहना सिखाती हैं. वही लैसन खुद उनके ही काम आ...

बीते कुछ दिनों में दो लड़कियां मीडिया की आंखों का तारा बनी हुई थी. एक थी पाकिस्तान में अपने दरिंदे पति की चंगुल से छूटकर आई उजमा और दूसरी है रियल लाइफ रिवाल्वर रानी आयशाफलक. दो लड़कियां, दो कहानियां, दोनों एक से एक. अगर कोई इंसान चाहे तो इनसे बहुत कुछ सीख सकता है.

20 साल की उजमा पाकिस्तान में फंसी थी. उजमा पाकिस्तान के कबायली जिले खैबर-पख्तूनख्वा में फंसी थी और वहां तालिबान और जमींदारों का राज चलता है. ऐसी जगह से बाहर आने के लिए उजमा ने जिस सूझबूझ से काम लिया था वो काबिले-तारीफ है. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने भी उजमा के मसले को निपटाने में अहम किरदार निभाया.

लेकिन उजमा से भी ज्यादा प्रेरणादायक दिल्ली की आयशा फलक की कहानी है. राजधानी दिल्ली में नेशनल लेवल शूटर आयशा ने अपनी बहादुरी और सूझबूझ से न सिर्फ अपने देवर की जान बचाई बल्कि अपहरणकर्ताओं को धूल भी चटा दी.

आयशाफलक

आयशा के देवर को दो लोगों ने किडनैप कर लिया था और 25000 की फिरौती की मांग की थी. आयशा और उनके पति ने पुलिस को तो फोन किया ही साथ ही खुद अपनी .32 बोर की लाइसेंसी बंदुक लेकर अपहरणकर्ताओं की बताई जगह पर चले गए. आयशा ने अपहरणकर्ताओं पर दो फायर किए एक को गोली छूकर निकल गई और दूसरे के पैर में गोली लगी. आयशा ने महिलाओं के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है, जो साहस और सूझबूझ का परिचय देने के साथ ही लोगों को जगाने का काम भी करती है.

33 साल की नेशनल लेवल शूटर आयशा ने 2015 में गोल्ड मेडल जीता था लेकिन अब गुमनामी के अंधेरे में खो गई थी. लेकिन एक कहावत है न ज्ञान कभी बेकार नहीं जाता. वही आयशा के भी साथ हुआ. आयशा लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की कोचिंग देती हैं और लड़कियों को हर मुश्किल वक्त के लिए तैयार रहना सिखाती हैं. वही लैसन खुद उनके ही काम आ गया.

आयशा हमारे देश की उन बदनसीब प्रतिभावान लोगों में से एक हैं जिन्हें उगते सूरज को प्रणाम करने वाले लोगों ने गुमनामी में जीने को मजबूर कर दिया. खेल के नाम पर हमारे देश में सिर्फ क्रिकेट बिकता है. ठीक वैसे ही जैसे पत्रकार के नाम पर एंकरों और रिपोर्टरों को जाना जाता है, खबर के नाम पर सेक्स, क्राइम और पॉलिटिक्स होती है और हीरो के नाम पर सलमान, आमिर और शाहरूख खान होते हैं.

आयशा ने अपने हुनर को सिर्फ शूटिंग रेंज में पिन ड्रॉप साइलेंस से भरे कमरे तक ही नहीं सीमित रखा बल्कि असल जीवन में भी एक विनर बनकर उभरीं हैं. ऐसी बहादुरी के बाद भी अगर हमारा ये देश दो दिन में उसे भूल जाता है तो ओलंपिक में गोल्ड की नहीं बल्कि हमें सोने के तस्करी में ही नंबर वन होने की आशा करनी चाहिए. और हम यही डिजर्व भी करते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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