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जब ये लोग यूपीएससी में पास हो सकते हैं, तो फिर आप क्यों नहीं?

    • सारा खान
    • Updated: 03 मई, 2018 03:39 PM
  • 03 मई, 2018 03:39 PM
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क्या आप जानते हैं कि कई ऐसे भी उम्मीदवार हैं जो सच में बधाई के लायक हैं? उनका नाम खोजने के लिए आसपास देखने या फिर गूगल पर उनके नाम खोजने की जहमत न उठाएं. उनके नाम आपको वहां नहीं मिलेंगे.

यूपीएससी के फाइनल रिजल्ट कुछ दिन पहले घोषित किए गए. रिजल्ट आने के बाद से देश भर में हर कोई एक दूसरे को बधाईयां दे रहा था. किसी के बेटे या बेटी ने यूपीएससी पास कर लिया या फिर किसी के दोस्त या रिश्तेदार ने परचम लहरा दिया. इन सफल लोगों में कई ऐसे भी होंगे जो समाज के बहुत ही निचले तबके से आते हों और जिन्होंने बहुत सीमित साधनों में पढ़ाई कर ये सफलता प्राप्त की होगी. इसमें कोई शक नहीं कि इन सभी उम्मीदवारों ने परीक्षा को पास करने के लिए बहुत मेहनत की और अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया होगा. यूपीएससी परीक्षा पास करना उनके लिए उम्मीद का नया सवेरा लेकर आया है.

क्या आप जानते हैं कि कई ऐसे भी उम्मीदवार हैं जो सच में बधाई के लायक हैं? उनका नाम खोजने के लिए आसपास देखने या फिर गूगल पर उनके नाम खोजने की जहमत न उठाएं. उनके नाम आपको वहां नहीं मिलेंगे. ये वो लोग हैं जो दुनिया के लिए आज भी अनजान हैं.

फिर आप सोच रहे होंगे कि आखिर वो कौन लोग हैं? और आखिर उन्हें हम बधाई क्यों दें?

ये वो लोग हैं जिन्होंने इस साल यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन फाइनल रिजल्ट में अपना नाम नहीं ला पाए. लेकिन फिर भी अपनी इस हार को भूलकर अगले साल के लिए फिर से कोशिश करने के लिए लग गए हैं. ये वो बहादुर लोग हैं जिन्हें उनके प्रयासों के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और बधाई दी जानी चाहिए.

यूपीएससी प्री के लिए 9.5 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. उनमें से 4.5 लाख से अधिक उम्मीदवार परीक्षा में बैठे और 13,366 ने मेन्स यानी मुख्य परीक्षा के लिए क्वालिफाई किया. फरवरी-अप्रैल 2018 में 2,568 उम्मीदवारों इंटरव्यू क्लियर किया. सभी बाधाओं को पार करने की उनकी कहानी उनके व्यक्तित्व की तरह ही प्रेरणादायक है.

यहां हम दो ऐसे लोगों के बारे में बताएंगे जिन्होंने कड़ी मेहनत की और जिनकी सफलता बहुत सारे उम्मीदवारों को प्रेरित करेगी.

अनु कुमारी, चार साल के बच्चे की मां हैं और उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईएमटी) नागपुर से एमबीए किया है. अनु कुमारी...

यूपीएससी के फाइनल रिजल्ट कुछ दिन पहले घोषित किए गए. रिजल्ट आने के बाद से देश भर में हर कोई एक दूसरे को बधाईयां दे रहा था. किसी के बेटे या बेटी ने यूपीएससी पास कर लिया या फिर किसी के दोस्त या रिश्तेदार ने परचम लहरा दिया. इन सफल लोगों में कई ऐसे भी होंगे जो समाज के बहुत ही निचले तबके से आते हों और जिन्होंने बहुत सीमित साधनों में पढ़ाई कर ये सफलता प्राप्त की होगी. इसमें कोई शक नहीं कि इन सभी उम्मीदवारों ने परीक्षा को पास करने के लिए बहुत मेहनत की और अपने जीवन में बहुत संघर्ष किया होगा. यूपीएससी परीक्षा पास करना उनके लिए उम्मीद का नया सवेरा लेकर आया है.

क्या आप जानते हैं कि कई ऐसे भी उम्मीदवार हैं जो सच में बधाई के लायक हैं? उनका नाम खोजने के लिए आसपास देखने या फिर गूगल पर उनके नाम खोजने की जहमत न उठाएं. उनके नाम आपको वहां नहीं मिलेंगे. ये वो लोग हैं जो दुनिया के लिए आज भी अनजान हैं.

फिर आप सोच रहे होंगे कि आखिर वो कौन लोग हैं? और आखिर उन्हें हम बधाई क्यों दें?

ये वो लोग हैं जिन्होंने इस साल यूपीएससी की परीक्षा दी लेकिन फाइनल रिजल्ट में अपना नाम नहीं ला पाए. लेकिन फिर भी अपनी इस हार को भूलकर अगले साल के लिए फिर से कोशिश करने के लिए लग गए हैं. ये वो बहादुर लोग हैं जिन्हें उनके प्रयासों के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और बधाई दी जानी चाहिए.

यूपीएससी प्री के लिए 9.5 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. उनमें से 4.5 लाख से अधिक उम्मीदवार परीक्षा में बैठे और 13,366 ने मेन्स यानी मुख्य परीक्षा के लिए क्वालिफाई किया. फरवरी-अप्रैल 2018 में 2,568 उम्मीदवारों इंटरव्यू क्लियर किया. सभी बाधाओं को पार करने की उनकी कहानी उनके व्यक्तित्व की तरह ही प्रेरणादायक है.

यहां हम दो ऐसे लोगों के बारे में बताएंगे जिन्होंने कड़ी मेहनत की और जिनकी सफलता बहुत सारे उम्मीदवारों को प्रेरित करेगी.

अनु कुमारी, चार साल के बच्चे की मां हैं और उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईएमटी) नागपुर से एमबीए किया है. अनु कुमारी ने इस साल के यूपीएससी परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया है. वह हरियाणा से आती हैं और अब उन्हें हरियाणा सरकार ने अपने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मुहिम का ब्रांड एंबेसेडर नियुक्त कर दिया है.

अन्नू की कहानी असाधारण क्यों है? एक ऐसे समय में जब हजारों छात्र कोचिंग में अपना बहुत सारा समय और पैसा खर्च करते हैं, 31 वर्षीय अनु ने कभी कोचिंग नहीं लिया. उन्होंने हर रोज 10-12 घंटे सेल्फ स्टडी की. परीक्षा की तैयारी करने के लिए वो अपने मामा के घर चली गईं जहां उन्हें अखबार तक नहीं मिलते थे. परीक्षा के लिए उन्होंने गुरुग्राम में अविवा लाइफ इंश्योरेंस में अपनी नौकरी छोड़ दी थी और अपने 4 साल के बेटे को अपनी मां के घर पर छोड़ दिया था.

जब आजकल लोग अपना ज्यादातर समय इंटरनेट पर गेम खेलने, चैट करने और बात करने में बिताते हैं, तो अनु ने इंटरनेट का सबसे अच्छा उपयोग किया. उसने इंटरनेट का प्रयोग पढ़ने के लिए किया ऑनलाइन स्टडी मैटेरियल जुटाने के लिए किया. अनु की कहानी इस बात का भरोसा दिलाती है कि जब हमारे पास कोचिंग और रिफेरेंस मैटेरियल तक की पहुंच नहीं हो तो भी हमारे पास कोई न कोई विकल्प जरुर होता है.

अनु और शाहिद उन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं जिन्होंने संघर्ष से हार मान ली

दूसरी कहानी 28 साल के शाहिद तिरुवल्लूर की जिन्होंने छठे अटेंप्ट में यूपीएससी परीक्षाओं की परीक्षा पास की! शाहिद उन लोगों के लिए उदाहरण हैं जो ये सोच कर अपने सपनों को छोड़ देते हैं कि "मैंने पूरी कोशिश की". आर्थिक तंगी के कारण शाहिद तिरुवल्लूर ने मदरसे और पत्राचार के माध्यम से अपनी पढ़ाई पूरी की. अपने खर्चों को पूरा करने के लिए उन्होंने मदरसे में पढ़ाने का काम किया. वह मलयालम पत्रिकाओं के लिए भी लगातार लिखते थे ताकि उससे थोड़ी ज्यादा कमाई हो सके.

मदरसे में वे एक मामूली वेतन पर काम कर रहे थे. इसके बाद उन्होंने मदरसे की नौकरी छोड़ दी और चंद्रिका डेली में उप-संपादक के तौर पर काम करने लगे. इस नौकरी के दौरान शाहिद को राजनीति और खबरों के बारे में गहराई से पता चला. तब उन्होंने यूपीएससी परीक्षाओं देने का फैसला किया. शाहिद उसके बाद तबतक कोशिश करते रहे जबतक की उन्हें सफलता न मिल गई. शाहिद की कहानी उस कहावत को चरितार्थ करती थी- try and try till you succeed.

अनु कुमारी और शाहिद तिरुवल्लूर जैसी कहानियां हर उम्मीदवार के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगी और उन्हें इस बात का भरोसा दिलाती रहेगी कि- मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती.

तो अब ये आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चुनते हैं- हार मानकर बैठ जाना या फिर सफलता के लिए पूरे जी जान से कोशिश करते रहना.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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