• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

क्या ये लातों के भूत, बातों से सचमुच नहीं मानेंगे ?

    • रीता गुप्ता
    • Updated: 25 नवम्बर, 2016 09:16 PM
  • 25 नवम्बर, 2016 09:16 PM
offline
जाने कौन होते हैं ये लडके जो सड़कों पर बत्तमीजी करना अपना हक समझते हैं. क्या इनका घर-परिवार नहीं होता.

हर दिन की ही तरह मैं आज भी अपनी शाम की वॉक पर गयी थी. इलाके में आवारा कुत्तों का साम्राज्य है सो मैं एक छोटा सा मोटा डंडा हाथ में लेकर निकलती हूं, ताकि यदि कुत्ते पास आयें तो बचाव कर सकूं. संजोग से आज तक उपयोग करने की जरूरत ही नहीं पड़ी, शायद डंडा देख वे पास ही नहीं आते.

पड़ोसी की बेटी भी हर दिन की ही तरह उसी वक़्त निकली. वह फोन पर किसी से बातें करती जा रही थी सो उसने ध्यान नहीं दिया कि मोटरसाइकिल पर बैठे दो लड़के उसे कुछ बोलते हुए, पीछे मुड़-मुड़ कर घूरते जा रहे हैं. मैं पीछे से देख रही थी, सच जी में यही आया कि काश इनकी बाइक उलट जाए. साथ ही ध्यान आया कि यदि इन्हें कुछ होगा तो इनके माता-पिता पर क्या गुजरेगी. कुछ ही देर में पडोसी की बच्ची दौड़ती हुई मुझसे आगे निकल गयी.

 महिलाएं अपने साथ होने वाले व्यवहार के बारे में परिवारवालों को बताएं

जाने क्यूं कुछ सही नहीं लगा और मैं भी उसके पीछे तेजी से जाने लगी. साफ-सुथरी सुंदर सी उस सड़क पर जो हमारी कालोनी के पास ही है, जहां हम रोज टहलने निकलते हैं, देख रहीं हूं कि बच्ची घबराई सी इधर उधर हो रही और मोटी मोटी गालियां निकालती चीख रही है. और वे दोनों बाइक सवार उसके चारों तरफ घेरे बनाते हुए विभत्स्य सी अश्लील भाव लिए गोल गोल घूम रहे हैं. एक बारगी मैं सिहर गयी, ठंडी सांध्य में पसीने की बूंदें गर्दन की शिराओं से पूरे रीढ़ तक अचानक बह निकलीं. मैंने दूर से ही चीखा, कि क्या कर रहे हो?

ये भी पढ़ें- 

हर दिन की ही तरह मैं आज भी अपनी शाम की वॉक पर गयी थी. इलाके में आवारा कुत्तों का साम्राज्य है सो मैं एक छोटा सा मोटा डंडा हाथ में लेकर निकलती हूं, ताकि यदि कुत्ते पास आयें तो बचाव कर सकूं. संजोग से आज तक उपयोग करने की जरूरत ही नहीं पड़ी, शायद डंडा देख वे पास ही नहीं आते.

पड़ोसी की बेटी भी हर दिन की ही तरह उसी वक़्त निकली. वह फोन पर किसी से बातें करती जा रही थी सो उसने ध्यान नहीं दिया कि मोटरसाइकिल पर बैठे दो लड़के उसे कुछ बोलते हुए, पीछे मुड़-मुड़ कर घूरते जा रहे हैं. मैं पीछे से देख रही थी, सच जी में यही आया कि काश इनकी बाइक उलट जाए. साथ ही ध्यान आया कि यदि इन्हें कुछ होगा तो इनके माता-पिता पर क्या गुजरेगी. कुछ ही देर में पडोसी की बच्ची दौड़ती हुई मुझसे आगे निकल गयी.

 महिलाएं अपने साथ होने वाले व्यवहार के बारे में परिवारवालों को बताएं

जाने क्यूं कुछ सही नहीं लगा और मैं भी उसके पीछे तेजी से जाने लगी. साफ-सुथरी सुंदर सी उस सड़क पर जो हमारी कालोनी के पास ही है, जहां हम रोज टहलने निकलते हैं, देख रहीं हूं कि बच्ची घबराई सी इधर उधर हो रही और मोटी मोटी गालियां निकालती चीख रही है. और वे दोनों बाइक सवार उसके चारों तरफ घेरे बनाते हुए विभत्स्य सी अश्लील भाव लिए गोल गोल घूम रहे हैं. एक बारगी मैं सिहर गयी, ठंडी सांध्य में पसीने की बूंदें गर्दन की शिराओं से पूरे रीढ़ तक अचानक बह निकलीं. मैंने दूर से ही चीखा, कि क्या कर रहे हो?

ये भी पढ़ें- क्या प्रेम सागर को खुला छोड़ना चाहिए?

पर शायद उन्हें मैं दिखी भी नहीं, या अनसुना किया. अब वे उसको छूने लगे थे. अचानक डंडे का ध्यान आया और मैंने जोर लगा उनकी तरफ चला दिया. संजोग ही था कि वह सीधे एक के सर पर जा लगा और वह बाइक सहित सड़क पर गिर पड़ा. तब तक पडोसी की बेटी उनके घेरे से आज़ाद हो वापस भागने लगी. दोनों हडबडा कर उठे और बाइक उठा भाग गए. लड़की आंटी बोल मुझसे लिपट गयी और बोलने लगी अब मैं टहलने नहीं निकलूंगी. मैं सिर्फ उसके हौसले को बढाने के लिए, उसे ये जताने के लिए कि कोई बड़ी घटना  नहीं हुई है, मैं अपनी वॉक पूरी करने आगे बढ़ गयी. पर लौटती बच्ची को फिर देर तक देखती सोच रही थी कि आज जाने क्या हो जाता. सच कहूं डर मुझे भी लगने लगा था कि कहीं वे लोग वापस और लोगों को लेकर ना आ जाएं. मैंने अपने डंडे को उठाया, सिरे पर ताज़ा लहू चमक रहा था. आखिर कुत्तों को ही भगाने के काम आया.

ये मानसिकता कितनी खराब है कि यदि कोई अकेली लड़की दिख जाए तो लड़के कुछ भी कर सकते हैं, चुहलबाजी, छेड़खानी या फिर जो मूड आ जाये. जाने कौन होते हैं ये लडके जो सड़कों पर बत्तमीजी करना अपना हक समझते हैं. क्या इनका घर-परिवार नहीं होता. मनुष्यता की भीड़ से अचानक हिंसक पशु में तब्दील होने वाले ये नर पिशाच वाकई मनुष्यता की बोली नहीं समझते. इनकी सोच पर पड़े पत्थर को, पत्थर मारकर ही तोड़ना होगा. जहां दिखे जो दिखे ऐसी छोटी सी भी पाश्विक प्रवित्तियों की ओर उन्मुख होते उसे तुरंत ही कुचलने की जरूरत है. जब बात नारी अस्मिता की आये तो मां को भी अपने लाडले के प्रति mother इंडिया ही बनना होगा.

ये भी पढ़ें- यौन हमले की शिकार महिला ने किया मोबाइल का सही इस्तेमाल

महिलाएं जिक्र करें कि उनके साथ क्या हुआ, अपने भाई-चाचा-ताऊ सबको बताएं कि कितना बुरा एहसास हुआ जब किसी ने सड़क पर छेड़खानी की. मानवता के दूसरे छोर पर बैठे पुरूषों को शुरू से ये अहसास जागृत होने चाहिए कि उस सिरे पर बैठी निरीह सी दिखती स्त्री सिर्फ भोग्या नहीं है.

मुझसे शायद आज गलती हुई. मुझे थाने में जाकर शिकायत करनी चाहिए थी. कल सुबह ही जाती हूं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲