• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

केवल 9 बच्चों को नहीं, बिहार के भविष्य को कुचल दिया गया है!

    • अभिरंजन कुमार
    • Updated: 25 फरवरी, 2018 05:42 PM
  • 25 फरवरी, 2018 05:41 PM
offline
जिन बच्चों को पूरी इक्कीसवीं सदी जीनी थी और जो कल के लाल बहादुर शास्त्री, रामनाथ कोविंद या नरेंद्र मोदी बन सकते थे, जब उन्हें इस तरह असमय काल के गाल में समाते हुए देखता हूं, तो रूह कांप उठती है.

आज हमारी पसंदीदा अभिनेत्रियों में से एक श्रीदेवी के असामयिक निधन की ख़बर भी आई है. उनकी मौत से भी दुखी हूं. उन्हें श्रद्धांजलि. लेकिन जबसे बिहार के मुज़फ्फरपुर में अनियंत्रित बोलेरो की चपेट में आकर 9 बच्चों के मारे जाने की ख़बर सुनी है, तबसे भयंकर सदमे में हूं और यह ऐसा सदमा है, जिससे इस जीवनकाल में तो उबर पाना संभव नहीं है.

छपरा के धर्मासती गंडामन गांव में मिड डे मील खाकर 23 बच्चों के मारे जाने की घटना के बाद यह दूसरी घटना है, जिसने मुझे भीतर तक हिलाकर रख दिया है. जिन बच्चों को पूरी इक्कीसवीं सदी जीनी थी और जो कल के लाल बहादुर शास्त्री, रामनाथ कोविंद या नरेंद्र मोदी बन सकते थे, जब उन्हें इस तरह असमय काल के गाल में समाते हुए देखता हूं, तो रूह कांप उठती है, संवेदना शून्य हो जाती है, ब्लड प्रेशर लो हो जाता है.

बिहार में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले हमारे बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं है. प्राइवेट स्कूल माफिया को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है और सरकारी स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से ध्वस्त किया जा रहा है. और इस ख़ौफ़नाक राष्ट्रीय, राजकीय, सामाजिक और शैक्षणिक अपराध की ज़िम्मेदारी से बिहार की सरकार मुक्त नहीं हो सकती.

बिहार में बोलेरो और ऐसी अन्य गाड़ियां भी ऐश्वर्य और वैभव के नंगे नाच का प्रतीक बन गई हैं. बिहार के अधिकांश बदमाश अक्सर ऐसी ही गाड़ियों से चलते हैं. अनाप-शनाप पैसे कमाने वाले हर रोज़ वहां तांडव कर रहे हैं, लेकिन उनपर अंकुश लगाने के लिए ज़िम्मेदार शक्तियां सिर्फ़ सत्ता पाने और बचाने के खेल में जुटी हुई हैं.

मुज़फ्फरपुर से एक साथी ने बताया कि आशंका है कि बोलेरो चालक नशे में था. अगर यह सच है, तो सवाल यह भी उठता है कि बिहार में कैसी नशा-बंदी है, कि लोग दिन-दहाड़े नशा करके सड़कों पर मौत का तांडव कर रहे हैं? आख़िर बिहार में...

आज हमारी पसंदीदा अभिनेत्रियों में से एक श्रीदेवी के असामयिक निधन की ख़बर भी आई है. उनकी मौत से भी दुखी हूं. उन्हें श्रद्धांजलि. लेकिन जबसे बिहार के मुज़फ्फरपुर में अनियंत्रित बोलेरो की चपेट में आकर 9 बच्चों के मारे जाने की ख़बर सुनी है, तबसे भयंकर सदमे में हूं और यह ऐसा सदमा है, जिससे इस जीवनकाल में तो उबर पाना संभव नहीं है.

छपरा के धर्मासती गंडामन गांव में मिड डे मील खाकर 23 बच्चों के मारे जाने की घटना के बाद यह दूसरी घटना है, जिसने मुझे भीतर तक हिलाकर रख दिया है. जिन बच्चों को पूरी इक्कीसवीं सदी जीनी थी और जो कल के लाल बहादुर शास्त्री, रामनाथ कोविंद या नरेंद्र मोदी बन सकते थे, जब उन्हें इस तरह असमय काल के गाल में समाते हुए देखता हूं, तो रूह कांप उठती है, संवेदना शून्य हो जाती है, ब्लड प्रेशर लो हो जाता है.

बिहार में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले हमारे बच्चों की सुरक्षा के लिए कुछ भी नहीं है. प्राइवेट स्कूल माफिया को लगातार बढ़ावा दिया जा रहा है और सरकारी स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से ध्वस्त किया जा रहा है. और इस ख़ौफ़नाक राष्ट्रीय, राजकीय, सामाजिक और शैक्षणिक अपराध की ज़िम्मेदारी से बिहार की सरकार मुक्त नहीं हो सकती.

बिहार में बोलेरो और ऐसी अन्य गाड़ियां भी ऐश्वर्य और वैभव के नंगे नाच का प्रतीक बन गई हैं. बिहार के अधिकांश बदमाश अक्सर ऐसी ही गाड़ियों से चलते हैं. अनाप-शनाप पैसे कमाने वाले हर रोज़ वहां तांडव कर रहे हैं, लेकिन उनपर अंकुश लगाने के लिए ज़िम्मेदार शक्तियां सिर्फ़ सत्ता पाने और बचाने के खेल में जुटी हुई हैं.

मुज़फ्फरपुर से एक साथी ने बताया कि आशंका है कि बोलेरो चालक नशे में था. अगर यह सच है, तो सवाल यह भी उठता है कि बिहार में कैसी नशा-बंदी है, कि लोग दिन-दहाड़े नशा करके सड़कों पर मौत का तांडव कर रहे हैं? आख़िर बिहार में नशा-बंदी के नाम पर कौन-सा खेल चल रहा है? क्या पहले दारू की दुकानें खुलवाकर पैसे कमाए गए और अब दारू बंद कराने के नाम पर धंधे चलाए जा रहे हैं?

मारे गए बच्चों के परिजनों को 4-4 लाख रुपये के मुआवजे का एलान तो हुआ है, लेकिन मुआवजे ऐसी समस्या का समाधान नहीं हैं. संभावनाओं से भरे इन बच्चों की जान की कीमत कुछ लाख रुपये नहीं लगाई जा सकती, इसलिए बिहार की सरकार, जिसमें जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी दोनों शामिल हैं, उससे मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि सरकारी स्कूलों को बचाने और बेहतर बनाने के लिए कुछ कीजिए.

सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती? और कम से कम शिक्षा और स्वास्थ्य की पूरी-पूरी ज़िम्मेदारी तो उसे लेनी ही चाहिए. बिहार में समान स्कूल प्रणाली समय की मांग है. "मंत्री का बेटा हो या भंगी की हो संतान, सबको शिक्षा एक समान..." यह कोई राजनीतिक स्लोगन नहीं, हमारा सपना है.

सभी बच्चों को समान शिक्षा, समान सुरक्षा, समान अवसर, समान सुविधाएं मुहैया कराके ही हम एक बेहतर बिहार और बेहतर देश का निर्माण कर सकते हैं. अन्यथा शिक्षा व्यवस्था में हमने जो अनेकानेक परतें बना दी हैं, वह हमारे राष्ट्रीय और सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करता रहेगा और समाज में भेदभाव न सिर्फ़ कायम रहेगा बल्कि और बढ़ता ही चला जाएग.

आज बिहार के सरकारी स्कूलों में केवल मज़दूरों और गरीब किसानों के बच्चे ही पढ़ने जाते हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है और हम लोगों के बाल्यकाल तक भी ऐसी स्थिति नहीं थी. हम चाहते हैं कि सरकारी स्कूलों में ही मंत्री, सांसद, विधायक, डीएम, एसपी, डॉक्टरों, ठेकेदारों इत्यादि के बच्चे भी पढ़ें, ताकि वहां के हालात को सुधारने में मदद मिले और एक नए बिहार का निर्माण हो सके.

आज हमारे इन 9 लाल बहादुर शास्त्रियों को कुचले जाने की घटना से ऐसा लग रहा है जैसे किसी ने हमारे समूचे बिहार के भविष्य को ही कुचल दिया है और हमारी सरकार ने इसकी कीमत महज 36 लाख रुपये लगाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान ली है. बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और हृदयविदारक.

ये भी पढ़ें-

तेजस्वी और तेज प्रताप की बातें तो लालू यादव की राजनीति को पतन की ओर ले जा रही हैं

ट्रेन लेट होने के मामले में बिहार है फर्स्ट, गुजरात में टाइम से चलती है गाड़ी


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲