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बेटे की चाहत में दक्षिण कोरिया ने तो भारत को भी पीछे छोड़ दिया था...

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 05 फरवरी, 2016 06:44 PM
  • 05 फरवरी, 2016 06:44 PM
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हमारे देश की तरह दक्षिण कोरिया कन्या भ्रूण हत्या की हालत ऐसी थी कि 100 लड़कियों के अनुपात में 116 लड़के हो गए थे. लेकिन कुछ कदम ऐसे उठाए गए, जिससे अब 100 लड़कियों के अनुपात में अब 105 लड़के हो गए हैं. हम भी ले सकते हैं यह सबक.

दक्षिण कोरिया की इस हकीकत के बारे में पढ़ेंगे तो तुरंत हरियाणा का ख्याल आ जाएगा. जहां पूर्वोत्तर राज्यों से दूल्हनें खरीदकर लाई जाती हैं. वैसे ही दक्षिण कोरिया जैसे अमीर देश में भी दुल्हनों की कमी के कारण 2008 तक हालात ये थे कि 11% शादियों में दुल्हनें विदेशी थीं. इन शादियों से स्थानीय समाज नाखुश रहा, लेकिन कोई चारा नहीं था. क्योंकि 100 लड़कियों के अनुपात में यहां 116 लड़के थे. ज्यादातर मिश्रित शादियां गांवों में हुई थीं. ऐसे में बड़ी तादाद मिश्रित बच्चों की हो गई. कहा ये जाने लगा कि 2020 तक दक्षिण कोरिया के गांवों में आधे बच्चे ‘कोजियन’ (कोरियन+एशियन) होंगे. लेकिन पिछले कुछ सालों में यहां क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, जो हमारे देश के लिए सबक हो सकते हैं.

हमारे देश में बेटे की चाहत रखने वालों की तरह दक्षिण कोरिया का समाज भी ऐसा ही सोचता है. मान्यता भी हूबहू वैसी, कि बेटा बड़ा होकर परिवार का वंश चलाएगा, बुढ़ापे में माता-पिता का ख्याल रखेगा, वगैरह-वगैरह. नतीजे ये कि कन्या भ्रूण हत्याएं बड़े पैमाने पर होती रहीं.

दक्षिण कोरियाई सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1988 में एक कानून भी बनाया जिसमें होने वाले बच्चे के लिंग की जानकारी देना डॉक्टरों के लिए गैरकानूनी हो गया. ठीक वैसे ही जैसे भारत में बनाया गया. लेकिन कानून बनने के बावजूद भी कन्या भ्रूण हत्याएं होती ही हैं. वहां भी होती रहीं. लिंग अनुपात में सुधार नहीं हुआ. 1990 में 116 लड़कों पर 100 लड़कियां जन्म लेती थीं.

सरकार समझ चुकी थी कि सिर्फ लिंग परीक्षण पर रोक लगाने से कुछ बदलने नहीं वाला. दक्षिण कोरिया भी एक पुरुष प्रधान समाज रहा है, जहां महिलाओं की स्थिति भी हमारे देश की महिलाओं की तरह ही थी. लिहाजा महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने महिलाओं को सशक्त करने का निर्णय लिया और इसी दिशा में कई योजनाओं की शुरुआत की.

स्कूल के बाद कॉलेज जाने वालों में लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले ज्यादा थी. फिर भी लड़कियों को नौकरियां कम मिलती थीं. और...

दक्षिण कोरिया की इस हकीकत के बारे में पढ़ेंगे तो तुरंत हरियाणा का ख्याल आ जाएगा. जहां पूर्वोत्तर राज्यों से दूल्हनें खरीदकर लाई जाती हैं. वैसे ही दक्षिण कोरिया जैसे अमीर देश में भी दुल्हनों की कमी के कारण 2008 तक हालात ये थे कि 11% शादियों में दुल्हनें विदेशी थीं. इन शादियों से स्थानीय समाज नाखुश रहा, लेकिन कोई चारा नहीं था. क्योंकि 100 लड़कियों के अनुपात में यहां 116 लड़के थे. ज्यादातर मिश्रित शादियां गांवों में हुई थीं. ऐसे में बड़ी तादाद मिश्रित बच्चों की हो गई. कहा ये जाने लगा कि 2020 तक दक्षिण कोरिया के गांवों में आधे बच्चे ‘कोजियन’ (कोरियन+एशियन) होंगे. लेकिन पिछले कुछ सालों में यहां क्रांतिकारी बदलाव हुए हैं, जो हमारे देश के लिए सबक हो सकते हैं.

हमारे देश में बेटे की चाहत रखने वालों की तरह दक्षिण कोरिया का समाज भी ऐसा ही सोचता है. मान्यता भी हूबहू वैसी, कि बेटा बड़ा होकर परिवार का वंश चलाएगा, बुढ़ापे में माता-पिता का ख्याल रखेगा, वगैरह-वगैरह. नतीजे ये कि कन्या भ्रूण हत्याएं बड़े पैमाने पर होती रहीं.

दक्षिण कोरियाई सरकार ने इस स्थिति से निपटने के लिए 1988 में एक कानून भी बनाया जिसमें होने वाले बच्चे के लिंग की जानकारी देना डॉक्टरों के लिए गैरकानूनी हो गया. ठीक वैसे ही जैसे भारत में बनाया गया. लेकिन कानून बनने के बावजूद भी कन्या भ्रूण हत्याएं होती ही हैं. वहां भी होती रहीं. लिंग अनुपात में सुधार नहीं हुआ. 1990 में 116 लड़कों पर 100 लड़कियां जन्म लेती थीं.

सरकार समझ चुकी थी कि सिर्फ लिंग परीक्षण पर रोक लगाने से कुछ बदलने नहीं वाला. दक्षिण कोरिया भी एक पुरुष प्रधान समाज रहा है, जहां महिलाओं की स्थिति भी हमारे देश की महिलाओं की तरह ही थी. लिहाजा महिलाओं की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने महिलाओं को सशक्त करने का निर्णय लिया और इसी दिशा में कई योजनाओं की शुरुआत की.

स्कूल के बाद कॉलेज जाने वालों में लड़कियों की संख्या लड़कों के मुकाबले ज्यादा थी. फिर भी लड़कियों को नौकरियां कम मिलती थीं. और उन्हें वेतन भी कम ही दिया जाता था. महिलाओं को सशक्त करने के लिए नौकरियों में उन्हें समान अवसर दिए गए. और उनका वेतन भी रेगुलेट किया गया. नये कानून बनाए गए और महिलाओं को उनके अधिकार दिए गए. औद्योगीकरण, शहरीकरण और शिक्षा ने सदियों पुरानी प्रथाएं जिसमें लड़के ही संपत्ति के हकदार होते थे और माता-पिता का ख्याल रखते थे उसे बदलकर रख दिया.

ये भी पढ़ें- लिंग परीक्षण अनिवार्य करने पर भी फेल है फॉर्मूला

लड़कों का मोह होना आपनी जगह था, लेकिन लड़कियों के प्रति अब लोगों की सोच बदलने लगी थी. वहां महिलाओं की स्थिति बेहतर होने लगी. वो अपने जीवन में सफलता के शिखर पर पहुंचने लगीं. रोजगार के मामले में दक्षिण कोरियाई महिलाएं आज हाई प्रोफाइल नौकरियां कर रही हैं. उच्च पदों पर पदस्थ हैं. वो डॉक्टर हैं, वकील हैं, वो सब कुछ कर रही हैं. और तो और देश की राष्ट्रपति भी अब एक महिला ही है. पार्क ग्यून हे दक्षिण कोरिया की पहली महिला राषट्रपति हैं. 2000 से 2012 में वहां की अर्थव्यवस्था में 73.3% पुरुषों की तुलना में महिलाओं का सहयोग 49.9% हो गया. इसी बीच देश का जेंडर इनकम गैप भी काफी कम हो गया. सन 2000 में पुरुषों से 35.3% कम वेतन दिया जाता था जो अब 32% पर आ गया है.

इन्हीं वजहों ने वहां लिंग अनुपात को प्रभावित किया. 2009 में लिंग परीक्षण पर लगी रोक भी हटा दी गई. अब गर्भाधान के 32 हफ्ते बाद माता-पिता अपने होने वाले बच्चे की जानकारी ले सकते हैं. लिंग अनुपात अब सामान्य है, 105 लड़कों पर 100 लड़कियां.

जन्म के समय अब भी लड़कों का अनुपात ज्यादा है. लेकिन फिरभी वहां के लिंग अनुपात में संतुलन बना हुआ है. उसका एक और कारण है कि वहां महिलाएं ज्यादा उम्र तक जीती हैं. 2011 के आंकड़ों के अनुसार 77.6 साल के पुरुष के मुकाबले कोरियाई महिलाएं 84.5 साल तक जीवित रहती हैं.

दक्षिण कोरिया में आश्चर्यजनक रूप से आए इस बदलाव से एशिया के दो बड़े देश भारत और चीन को भी सबक लेना चाहिए जहां लड़कों की चाहत में आज भी कन्या भ्रूण हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं. 2011 के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर 1000 पुरुष पर 940 महिलाएं हैं. जानकारों की मानें तो अगर भारत में पुरुषों का अनुपात इसी तरह ज्यादा रहा तो 2060 तक 191 पुरुषों पर 100 महिलाएं ही रह जाएंगी. अभी तो शादी के लिए दूसरे राज्यों से महिलाएं लाई जा रही हैं, तब विदोशों से महिलाएं लाई जाएंगी और फिर अगली पीढ़ी के बच्चों के लिए यहां भी जन्म होगा एक नये नाम का..

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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