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ईरानी हिजाब के लिए भारतीय महिला खिलाड़ियों की 'ना' सुषमा स्वराज के लिए सीख है

    • अमित अरोड़ा
    • Updated: 14 जून, 2018 09:59 PM
  • 14 जून, 2018 09:59 PM
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ईरान के अनिवार्य हिजाब नियम को लेकर भारत की महिला ग्रैंडमास्टर सौम्या स्वामीनाथन ने प्रतियोगिता से अपना नाम वापस ले लिया है, पर ये हिम्मत सुषमा स्वराज नहीं दिखा पाई थीं.

अगले महीने ईरान में होने वाली एक शतरंज की प्रतियोगिता से भारत की महिला ग्रैंडमास्टर सौम्या स्वामीनाथन ने अपना नाम वापिस ले लिया है. ईरान में सार्वजनिक स्थलों में महिलाओं का हिजाब पहनना अनिवार्य है. इस नियम को अपने बुनियादी मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन मानते हुए सौम्या ने ईरान जाने से माना कर दिया. अक्तूबर 2016 में इसी हिजाब के नियम का विरोध करते हुए भारतीय खिलाड़ी हिना सिद्धू ने ईरान में होने वाली शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लेने से माना कर दिया था.

दोनों, सौम्या और हिना ने ऐसे उदाहरण समाज के सामने प्रस्तुत किए हैं जिसके बाद हिजाब पर बहस होना निश्चित है. अनिवार्य हिजाब की प्रथा महिला सम्मान पर बहुत बड़ा प्रहार है. कुछ लोग हिजाब को महिलाओं की सुरक्षा के माध्यम के रूप में देखते हैं. महिलाओं को सुरक्षा समाज की स्वच्छ सोच से मिलती है, न कि हिजाब से.  

सौम्या स्वामीनाथन और हिना सिद्धू ने हिजाब को किया इनकार

हिजाब की धारणा महिला को छुपाकर और बचाकर रखने वाली वस्तु बना देता है. ऐसी वस्तु जिसे यदि बिना हिजाब के रखा जाए तो वह समाज की दूषित सोच की शिकार हो जाएगी. एक स्त्री को इस प्रकार केवल एक भोग की वास्तु के रूप में प्रस्तुत करना, दुनिया की आधी जनसंख्या का अपमान है. महिलाएं भी स्वतंत्र विचारों और इच्छाओं की मालकिन हैं. केवल भोग की वास्तु न हो कर वह भी समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उच्च प्रदर्शन कर सकती हैं.

एक तरफ तो हमारे देश की महिला खिलाड़ी हिजाब जैसी कुरीति से अपने स्तर पर लड़ाई लड़ रही हैं तो दूसरी ओर हमारे देश के राजनेता ही उनकी इस मुहिम को कमज़ोर कर रहे हैं.

अगस्त 2016 में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ईरान के दौरे पर गई थीं. अपनी आधिकारिक मुलाकात में सुषमा जिस प्रकार सिर से लेकर...

अगले महीने ईरान में होने वाली एक शतरंज की प्रतियोगिता से भारत की महिला ग्रैंडमास्टर सौम्या स्वामीनाथन ने अपना नाम वापिस ले लिया है. ईरान में सार्वजनिक स्थलों में महिलाओं का हिजाब पहनना अनिवार्य है. इस नियम को अपने बुनियादी मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन मानते हुए सौम्या ने ईरान जाने से माना कर दिया. अक्तूबर 2016 में इसी हिजाब के नियम का विरोध करते हुए भारतीय खिलाड़ी हिना सिद्धू ने ईरान में होने वाली शूटिंग चैंपियनशिप में भाग लेने से माना कर दिया था.

दोनों, सौम्या और हिना ने ऐसे उदाहरण समाज के सामने प्रस्तुत किए हैं जिसके बाद हिजाब पर बहस होना निश्चित है. अनिवार्य हिजाब की प्रथा महिला सम्मान पर बहुत बड़ा प्रहार है. कुछ लोग हिजाब को महिलाओं की सुरक्षा के माध्यम के रूप में देखते हैं. महिलाओं को सुरक्षा समाज की स्वच्छ सोच से मिलती है, न कि हिजाब से.  

सौम्या स्वामीनाथन और हिना सिद्धू ने हिजाब को किया इनकार

हिजाब की धारणा महिला को छुपाकर और बचाकर रखने वाली वस्तु बना देता है. ऐसी वस्तु जिसे यदि बिना हिजाब के रखा जाए तो वह समाज की दूषित सोच की शिकार हो जाएगी. एक स्त्री को इस प्रकार केवल एक भोग की वास्तु के रूप में प्रस्तुत करना, दुनिया की आधी जनसंख्या का अपमान है. महिलाएं भी स्वतंत्र विचारों और इच्छाओं की मालकिन हैं. केवल भोग की वास्तु न हो कर वह भी समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उच्च प्रदर्शन कर सकती हैं.

एक तरफ तो हमारे देश की महिला खिलाड़ी हिजाब जैसी कुरीति से अपने स्तर पर लड़ाई लड़ रही हैं तो दूसरी ओर हमारे देश के राजनेता ही उनकी इस मुहिम को कमज़ोर कर रहे हैं.

अगस्त 2016 में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ईरान के दौरे पर गई थीं. अपनी आधिकारिक मुलाकात में सुषमा जिस प्रकार सिर से लेकर पावं तक कपड़े से ढकी दिखीं, उस तस्वीर ने भारत के लोगों को हैरान कर दिया. अपने परिश्रम से, भारत सरकार के उच्च्तम स्तर तक पहुंचने वाली सुषमा उस हिजाब रूपी परिवेश में एक कमज़ोर नारी नजर आ रही थीं. स्वयं को उस परिधान में ढालकर सुषमा ने अपने व्यक्तिव की शक्ति, अपनी बौद्धिक कुशलता, अपने तेज को जैसे शीर्ण कर लिया था.

सिर से पांव तक ढकी दिखाई दी थीं सुषमा स्वराज

सुषमा की उस यात्रा, उस वेशभूषा की बहुत आलोचना हुई थी. शायद उस यात्रा का महत्व, सुषमा के हिजाब ने ढक दिया था. भविष्य के लिए यही उम्मीद करनी चाहिए कि जिस प्रकार भारत की महिला खिलाड़ियों ने इस मुद्दे पर हिम्मत दिखाई है, उसी प्रकार हमारी महिला राजनेत्रियां भी ऐसे देशों का बहिष्कार करने की हिम्मत दिखाएंगी. ईरान की महिलाएं भी इस अनिवार्य हिजाब के नियम का विरोध कर रही हैं. यदि भारतीय महिला राजनेत्रियां इस विषय पर कठोर रुख रखेंगी तभी ईरान जैसे देशों को अपनी गलती का एहसास होगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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