• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

रेपिस्ट के पास गन हुई तो मेरा पेपर स्प्रे क्‍या बिगाड़ लेगा !

    • मेघना कृपलानी
    • Updated: 31 जनवरी, 2017 04:48 PM
  • 31 जनवरी, 2017 04:48 PM
offline
मुझे बस ऐसा समाज चाहिए जहां लड़की होने के नाते मुझे सामान ना समझा जाए. NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के आंकड़े तो यही इशारा करते हैं कि सावधानी रखने में ही भलाई है.

पुणे से दिल दहला देने वाली खबर आई है कि इनफोसिस के ऑफिस में ही एक गार्ड ने एक साफ्टवेयर इंजीनियर युवती को गला घोंटकर मार दिया. जिस कंप्‍यूटर सिस्‍टम वह काम कर रही थी, गला भी उसी की केबल से घोंटा गया. हत्‍या की वजह सिर्फ यह थी कि उस इंजीनियर लड़की ने गार्ड द्वारा घूरने और पीछा करने की शिकायत की थी. अब दूसरी खबर पर गौर करते हैं जो कुछ दिन पहले अखबारों की सुर्खियां बनी थी. दिल्ली मेट्रो ने महिलाओं को चाकू के साथ मेट्रो में सफर करने की इजाजत दे दी थी. इस फैसले का जहां कुछ लोगों ने स्वागत किया वहीं कईयों ने सोशल मीडिया पर इसकी खूब खिल्ली भी उड़ाई थी. मेरी एक दोस्त ने लिखा- अब मेरा Swiss Knife कोई नहीं छिनेगा. तो दूसरी ने लिखा- अब मैं अपनी रक्षा कर पाउंगी.

हमारे देश में हर महिला के दिमाग में सबसे बड़ा सवाल गुंडों और मवालियों से बचाव का होता है. NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के मुताबिक देश में हर दो मिनट पर किसी महिला के साथ क्राइम की शिकायत दर्ज होती है. शिकायत में महिलाओं के खिलाफ छेड़छाड़ दूसरे नंबर पर है और रेप का चौथा नंबर आता है. महिलाओं के साथ बढ़ते अत्याचारों को देखते हुए हमें सेल्फ डिफेंस की क्लास ज्वाइन करने की सलाह दी जाती है. ताकि अगर कोई हम पर हमला करे तो हम पलट कर उसे जवाब दे पाएं. या घबराने के बजाए उसका सामना करें. शक्ति के साथ-साथ सामर्थ्य का भी होना जरूरी है.

खैर महिलाओं के प्रति पुरुषों के बदलते नजरिए और महिलाओं के लिए एक सुरक्षित समाज बनाने के बीच भी मैं हमेशा डर के साए में रहती हूं. मैं सोचती हूं कि अगर कभी मैं किसी रेपिस्ट या मनचले के चंगुल में फंस गयी तो क्या मैं बच पाउंगी? क्या होगा तब मेरे साथ? ये सारे ख्यालों से मैं जूझती रहती हूं. ऐसा नहीं है कि मुझे समाज में आ रहे बदलावों का पता नहीं चल रहा है. या मैंने सच्चाई से मुंह मोड़ रखा है. लेकिन फिर भी एक अनजाना सा डर मेरे जेहन में बैठा रहता है. मुझे एक अनजाना सा भय घेरे रहते है.

मैं अपनी सेफ्टी के लिए हमेशा साथ में Pepper spray रखती...

पुणे से दिल दहला देने वाली खबर आई है कि इनफोसिस के ऑफिस में ही एक गार्ड ने एक साफ्टवेयर इंजीनियर युवती को गला घोंटकर मार दिया. जिस कंप्‍यूटर सिस्‍टम वह काम कर रही थी, गला भी उसी की केबल से घोंटा गया. हत्‍या की वजह सिर्फ यह थी कि उस इंजीनियर लड़की ने गार्ड द्वारा घूरने और पीछा करने की शिकायत की थी. अब दूसरी खबर पर गौर करते हैं जो कुछ दिन पहले अखबारों की सुर्खियां बनी थी. दिल्ली मेट्रो ने महिलाओं को चाकू के साथ मेट्रो में सफर करने की इजाजत दे दी थी. इस फैसले का जहां कुछ लोगों ने स्वागत किया वहीं कईयों ने सोशल मीडिया पर इसकी खूब खिल्ली भी उड़ाई थी. मेरी एक दोस्त ने लिखा- अब मेरा Swiss Knife कोई नहीं छिनेगा. तो दूसरी ने लिखा- अब मैं अपनी रक्षा कर पाउंगी.

हमारे देश में हर महिला के दिमाग में सबसे बड़ा सवाल गुंडों और मवालियों से बचाव का होता है. NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो) के मुताबिक देश में हर दो मिनट पर किसी महिला के साथ क्राइम की शिकायत दर्ज होती है. शिकायत में महिलाओं के खिलाफ छेड़छाड़ दूसरे नंबर पर है और रेप का चौथा नंबर आता है. महिलाओं के साथ बढ़ते अत्याचारों को देखते हुए हमें सेल्फ डिफेंस की क्लास ज्वाइन करने की सलाह दी जाती है. ताकि अगर कोई हम पर हमला करे तो हम पलट कर उसे जवाब दे पाएं. या घबराने के बजाए उसका सामना करें. शक्ति के साथ-साथ सामर्थ्य का भी होना जरूरी है.

खैर महिलाओं के प्रति पुरुषों के बदलते नजरिए और महिलाओं के लिए एक सुरक्षित समाज बनाने के बीच भी मैं हमेशा डर के साए में रहती हूं. मैं सोचती हूं कि अगर कभी मैं किसी रेपिस्ट या मनचले के चंगुल में फंस गयी तो क्या मैं बच पाउंगी? क्या होगा तब मेरे साथ? ये सारे ख्यालों से मैं जूझती रहती हूं. ऐसा नहीं है कि मुझे समाज में आ रहे बदलावों का पता नहीं चल रहा है. या मैंने सच्चाई से मुंह मोड़ रखा है. लेकिन फिर भी एक अनजाना सा डर मेरे जेहन में बैठा रहता है. मुझे एक अनजाना सा भय घेरे रहते है.

मैं अपनी सेफ्टी के लिए हमेशा साथ में Pepper spray रखती हूं. मैं ये भी ध्यान रखती हूं कि रात या दिन कभी भी जरुरत के समय ये स्प्रे सेकेंड में मेरे हाथ में आ जाए. मेरे मां-पापा को हमेशा पता होता है कि मैं कहां हूं, किसके साथ हूं. अगर मैं देर रात किसी पार्टी से लौट रही हूं और मैनें ज्यादा ड्रिंक कर लिया है तो मैं किसी दोस्त के घर पर रुकना जरूरी समझती हूं. बजाए इसके कि मैं खुद को बोल्ड लड़की मानकर उस बेहोशी के हालत में ऑटो या कैब लेकर घर जाने का रिस्क लूं. मेरी इस आदत के लिए आप जो चाहे मुझे बुला सकते हैं. लेकिन मुझे लगता है कि मेरे लिए ये सही है तो मैं इसे ही फॉलो करती हूं. क्योंकि मुझे पता कि सच्चाई में अगर कोई मनचला, रेपिस्ट या कोई मवाली मेरे सामने आकर खड़ा हो गया तो मेरा Pepper Spray या स्वीस चाकू या फिर सेल्फ डिफेंस का ज्ञान शायद उतने लाभदायक ना हों जितना की मेरी थोड़ी सी सावधानी है.

सोच बदलो लड़कियां खुद सरक्षित हो जाएंगी

मान लीजिए कि उसके पास बंदूक या चाकू हो तो? आप क्या करेंगे? उस समय में क्या ज्यादा मारक होगा- मेरा स्प्रे या उसकी बंदूक से निकली गोली? इससे भी ज्यादा खतरनाक ये है कि सोचिए अगर वो अपने दोस्तों के साथ है तो? क्या इस समय मेरे सेल्फ डिफेंस का ज्ञान मुझे बचा सकता है? सेल्फ डिफेंस की वजह से भले मैं दो या तीन लोगों को संभाल लूंगी लेकिन अगर 5 हमलावर हों तो?

और ऐसा नहीं है कि रेपिस्ट अनजाने लोग ही होते हैं. मेरे ऑफिस के कैब का ड्राइवर या मेरे साथ कैब में जाने वाला मेरा ऑफिस का कलीग या फिर मेरा दोस्त भी रेपिस्ट हो सकते हैं. इसलिए इस सच्चाई को हम सभी को जितनी जल्दी हो सके मान लेना चाहिए कि सुरक्षित हम कहीं भी नहीं हैं. खासकर ऐसे समाज में तो बिल्कुल भी नहीं जहां के मर्दों को यही सिखाया जाता है कि औरतें बनी ही होती हैं दबाए जाने के लिए. ऐसा भी नहीं है कि हर मर्द रेपिस्ट होता है. लेकिन एक ऐसे समाज में जहां कि कोई पिता अपनी बेटी का रेप करने से गुरेज नहीं करता, जहां कोई टीचर बच्चियों का शोषण करने में नहीं हिचकता मैं किसी भी मर्द पर भरोसा कर लूं! इसलिए अगर हमें इस समाज में कोई बचा सकता है तो हमारा सचेत दिमाग.

वैसे चाहे तो महिलाओं को साथ में बंदूक रखने की इजाजत दे दीजिए लेकिन जब तक ये मर्दवादी सोच समाज में रहेगी महिलाएं कहीं सेफ नहीं होंगी. ना घर में ना ही बाहर. जबतक लोगों को ये एहसास ना हो लड़का-लड़की से उपर सभी इंसान हैं. इंसान की तरह उन्हें भी इज्जत दें. उनके स्तनों से उन्हें नापना बंद करें. जबतक लोगों की सोच में ये खुलापन नहीं आता तबतक मैं डर के साए में ही रहूंगी.

मुझे नहीं चाहिए ऐसा समाज जहां मुझे हर कदम अपने साथ हथियार रखने की जरूरत हो. या मुझे अपनी रक्षा के लिए किसी हीरो की जरुरत पड़े. मुझे बस ऐसा समाज चाहिए जहां मेरे लड़की होने की वजह खतरा ना हो. जहां मैं लड़की हूं, इसलिए मुझे सामान ना समझा जाए.

ये भी पढ़ें- वो जो बच्चियों से भी डर गए..

ये भी पढ़ें- देखिए कदम-कदम पर कैसे-कैसे पति मिलते हैं..

ये भी पढ़ें- ये 4 बातें अपनाकर खुद के साथ-साथ दूसरों की भी रक्षा कर सकते हैं

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲