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सनी लियोनी का विरोध करने वाले अपने गिरेबान में झांक लें

    • हरमीत शाह सिंह
    • Updated: 21 जुलाई, 2018 04:27 PM
  • 21 जुलाई, 2018 04:27 PM
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कम से कम सनी लियोन ने पगड़ी पहनकर शराब पीने, हिंसा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कई पंजाबी गायक और सितारों के विपरीत अपनी पेशेवर या सार्वजनिक उपस्थिति में कभी भी किसी भी धार्मिक संकेत का उपयोग नहीं किया.

सिख परिवार में जन्म लेने के बावजूद मुझे अभी भी सिखी पाने के लिए मेहनत करनी होगी. सिखों के इतिहास पर अगर नजर डालें तो ये ऐसे नायकों से भरा पड़ा है जिन्होंने कभी अपना धर्म नहीं बदला लेकिन फिर भी हम सिख उनके आगे सिर झुकाते हैं. श्रीलंका, बगदाद और मक्का तक गुरु नानक के साथ यात्रा करने वाला कौन था? वह एक मुसलमान. मर्दाना था. जो एक मुसलमान के रूप में मरा था.

पीर बुद्ध शाह, दीवान टोडर मल, घनी खान और नबी खान के बारे में सुना है?

पीर बुद्ध शाह एक मुस्लिम थे जो गुरु गोबिंद सिंह के सहयोगी बन गए. 1688 में शिवालिक की पहाड़ों में भंगानी की लड़ाई में गुरु गोविन्द सिंह के साथ खुद पीर, उनके चार बेटे, दो भाई और उनके 700 अनुयायी पहाड़ी प्रमुखों की संयुक्त सेनाओं के खिलाफ लड़े. इस सब में पीर ने अपने दो बेटों, एक भाई और अपने कई शिष्यों को खो दिया.

सिखी उन लोगों ने भी धारण की है जिनका धर्म अलग था

सिखों के इतिहास में एक और किंवदंती दीवान टोडर मल हैं. दीवान टोडरमल सरहिंद के एक धनी हिंदू व्यापारी थे. उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह की मां और शहीद छोटे बेटों के अंतिम संस्कार के लिए जमीन के एक टुकड़े के बदले में अपनी पूरी संपत्ति मुगल अधिकारियों को बेच दी.

घनी खान और नबी खान पठान थे और मच्छीवाड़ा में घोड़ों के व्यापारी थे. 1705 में चमकौर की लड़ाई के बाद खान भाइयों ने गुरु गोविन्द सिंह को उच्छ दा पीर नामक एक मुस्लिम आध्यात्मिक व्यक्ति का वेश धराकर सुरक्षित बाहर निकालने में सहायता की थी. दोनों भाईयों का सम्मान इतना है कि अब उनका घर गुरुद्वारा उच्छ दा पीर के रूप में जाना जाता है.

1469 में गुरु नानक के जन्म से लेकर 1699 में गुरु गोविन्द सिंह द्वारा स्थापित खालसा तक. इस 230 साल के मिशन का मुख्य ध्यान समानता और सामाजिक मतभेदों को खत्म करने पर रहा...

सिख परिवार में जन्म लेने के बावजूद मुझे अभी भी सिखी पाने के लिए मेहनत करनी होगी. सिखों के इतिहास पर अगर नजर डालें तो ये ऐसे नायकों से भरा पड़ा है जिन्होंने कभी अपना धर्म नहीं बदला लेकिन फिर भी हम सिख उनके आगे सिर झुकाते हैं. श्रीलंका, बगदाद और मक्का तक गुरु नानक के साथ यात्रा करने वाला कौन था? वह एक मुसलमान. मर्दाना था. जो एक मुसलमान के रूप में मरा था.

पीर बुद्ध शाह, दीवान टोडर मल, घनी खान और नबी खान के बारे में सुना है?

पीर बुद्ध शाह एक मुस्लिम थे जो गुरु गोबिंद सिंह के सहयोगी बन गए. 1688 में शिवालिक की पहाड़ों में भंगानी की लड़ाई में गुरु गोविन्द सिंह के साथ खुद पीर, उनके चार बेटे, दो भाई और उनके 700 अनुयायी पहाड़ी प्रमुखों की संयुक्त सेनाओं के खिलाफ लड़े. इस सब में पीर ने अपने दो बेटों, एक भाई और अपने कई शिष्यों को खो दिया.

सिखी उन लोगों ने भी धारण की है जिनका धर्म अलग था

सिखों के इतिहास में एक और किंवदंती दीवान टोडर मल हैं. दीवान टोडरमल सरहिंद के एक धनी हिंदू व्यापारी थे. उन्होंने गुरु गोबिंद सिंह की मां और शहीद छोटे बेटों के अंतिम संस्कार के लिए जमीन के एक टुकड़े के बदले में अपनी पूरी संपत्ति मुगल अधिकारियों को बेच दी.

घनी खान और नबी खान पठान थे और मच्छीवाड़ा में घोड़ों के व्यापारी थे. 1705 में चमकौर की लड़ाई के बाद खान भाइयों ने गुरु गोविन्द सिंह को उच्छ दा पीर नामक एक मुस्लिम आध्यात्मिक व्यक्ति का वेश धराकर सुरक्षित बाहर निकालने में सहायता की थी. दोनों भाईयों का सम्मान इतना है कि अब उनका घर गुरुद्वारा उच्छ दा पीर के रूप में जाना जाता है.

1469 में गुरु नानक के जन्म से लेकर 1699 में गुरु गोविन्द सिंह द्वारा स्थापित खालसा तक. इस 230 साल के मिशन का मुख्य ध्यान समानता और सामाजिक मतभेदों को खत्म करने पर रहा है. आध्यात्मिक या सैन्य रूप से, बिना किसी भेदभाव के धर्मों के मूल दर्शन को बनाए रखें. इसलिए, जब 1699 में गुरु गोबिंद सिंह ने आदेश दिया कि सिख पुरुष अपने नाम के पीछे सिंह और महिलाएं कौर लगाएंगी तो उन्होंने गुरु नानक के सिद्धांत को संस्थागत रुप दिया और महिला पुरुष दोनों ही के लिए बराबरी पर रखा. अब महिलाएं सिर्फ घर संभालने वाली और बच्चे पैदा करने वाली नहीं थीं.

दुनिया द्वारा महिलाओं को लड़ाई के मैदान में जगह देने से बहुत पहले 18वीं शताब्दी में ही सिख धर्म ने ये शुरुआत कर दी थी. कुछ उदाहरणों से ये बात आपको समझाता हूं.

मई भागू जिन्हें मई भागू कौर के रुप में भी जाना जाता है ने मुगलों के खिलाफ 40 सिख लड़ाकों का नेतृत्व किया था. 100 साल बाद सादा कौर का उदय एक मिलिट्री मास्टरमाइंड की तरह हुआ. उन्होंने अपने दामाद रंजीत सिंह को लाहौर के महाराजा के रूप में स्थापित किया. महाराजा रणजीत सिंह के तहत एकजुट पंजाब के राजनेता के रूप में, उन्होंने युद्ध के मैदान में सैनिकों का नेतृत्व किया. और एक ज़हीन राजनेता के रूप में राजनयिकों से बातचीत भी की.

सनी लियोनी ने कम से कम खुद को स्थापित करने के लिए अपने धर्म के नाम का तो इस्तेमाल नहीं किया

सिख इतिहास में अनगिनत कौर हैं जो पुरुषों के वर्चस्व वाली दुनिया में अपनी वीरता के लिए या तो सम्मान से देखी जाती हैं या डर से. या फिर दोनों. समय के साथ सिंह और कौर के सिख परिवारों के साथ जुड़ ही गए. अगर लड़का हुआ तो आखिरी नाम सिंह होगा और अगर लड़की हुई तो कौर. अब किसी को भी इसके लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती. और अब इस पर किसी के नियंत्रण में नहीं है. अमृतसर में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति (एसजीपीसी) जैसे शीर्ष सिख धार्मिक प्रशासन की तो बात ही छोड़ दें.

घनी और नबी खान, दीवान तोडरमल, पीर बुद्ध शाह धर्म से सिंह नहीं थे. लेकिन फिर भी उन्होंने सिखी हासिल की. लेकिन हर समुदाय की तरह हमारे यहां भी कुछ लोग हैं तो नाम बदनाम करते हैं. वे अपने आपको सिंह और कौर विरासत का मानते हैं लेकिन सिखी से कोसों दूर हैं. क्या किसी सिख का हत्या, लूट, धोखाधड़ी, बलात्कार इन सभी में नाम नहीं आया है और क्या कोई सिंह या कौर जेल में नहीं है? हैं. बिल्कुल हैं.

तब फिर क्यों एसजीपीसी, सनी लियोन के कौर नाम का इस्तेमाल करने और जन्म से लेकर पॉर्न स्टार बनने तक की अपनी जीवनी को बड़े पर्दे पर दिखाने का विरोध कर रहे?

कनाडा में आप्रवासी माता-पिता के घर पैदा हुई, करणजीत कौर वोहरा ने पॉर्न इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने के लिए अपना नाम सनी लियोन रख लिया. उसे गूगल पर सबसे ज्यादा सर्च किया जाता है. 2015 में द न्यूयॉर्क टाइम्स को उन्होंने कहा, "भारत एक बहुत ही ज्यादा रूढ़िवादी देश है." लेकिन मुझे इस पाखंड का सामना नहीं करना पड़ा. मैं इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में हूं. मतलब मैं एक बुलबुले के अंदर हूं."

सनी उन सिख लोगों से बहुत अच्छी है जो पगड़ी पहनकर शराब पीने और हिंसा को बढ़ावा देते हैं

कम से कम सनी लियोन ने पगड़ी पहनकर शराब पीने, हिंसा और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले कई पंजाबी गायक और सितारों के विपरीत अपनी पेशेवर या सार्वजनिक उपस्थिति में कभी भी किसी भी धार्मिक संकेत का उपयोग नहीं किया. यहां तक कि उनके ब्रांड का नाम भी धर्म से तटस्थ है. इसलिए सनी लियोन को अपने शुरुआती जिंदगी से कौर को हटाने का दबाव डालना पूरी तरह से अनुचित है.

उनकी आने वाले बायोपिक करणजीत कौर: द अनटोल्ड स्टोरी ऑफ़ सनी लियोन में उनके आखिरी नाम का विरोध करके एसजीपीसी ने मुसीबतों का पिटारा खोल दिया है. लियोनी के आलोचकों में से एक पूर्व एसजीपीसी प्रमुख और एक कौर बीबी जागीर कौर भी हैं. जागीर कौर पर अपनी ही बेटी की ऑनर किलिंग का आरोप लगा है.

कम से कम सनी लियोन ईमानदार तो रही है. उन्होंने इंडस्ट्री में खुद को स्थापित करने के लिए अपना नाम बदल लिया. लेकिन हममें से कितने लोग जिनके पास धार्मिक शक्ति है और उन्होंने कभी भी ये सोचा कि क्या वो सच में सिंह और कौर के टाइटल के लिए बने हैं? यहां तक की हम में से कितने लोग सिखी को पाने की कोशिश करते हैं?

आपने पॉर्नोग्राफी में अपने करियर के लिए एक महिला का तो विरोध कर दिया और उन्हें अपने समुदाय से अलग कर लिया. ये सब सिर्फ इसलिए क्योंकि वह पहले कौर थीं. लेकिन क्या आपने कभी किसी भी सिख आदमी को उसकी गतिविधियों की वजह से सिंह टाइटल छोड़ने के लिए कहा है? थोड़ा रुककर इस बत पर सोचें.

(DailyO से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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