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कोर्ट बेचारा क्या करे, जिसे सिगरेट पीनी होगी, गुटखा खाना होगा, वो तो खाएगा ही

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 23 दिसम्बर, 2017 11:23 AM
  • 23 दिसम्बर, 2017 11:23 AM
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कर्नाटक में लम्बे समय से तम्बाकू उत्पादों पर प्रतिबंध को लेकर बात हो रही थी. भले ही कोर्ट या सरकार का रुख इसपर कुछ भी हो, मगर जिसे इन प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करना होगा वो करके ही मानेगा उसे कोई नहीं रोक सकता.

खबर है कि सिगरेट और तंबाकू के पैकेट के 85 प्रतिशत हिस्से पर सचित्र चेतावनी देने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं की सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय तैयार हो गया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इन प्रोडक्ट्स के पैकेट पर 85 प्रतिशत हिस्से में चेतावनी देने वाले नियम को रद्द कर दिया था. कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किये जाने के बाद पुराना नियम प्रभावी हो गया जिसके अनुसार 40 फीसदी हिस्से पर ही तस्वीर छापी जाएगी. ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका तंबाकू कंपनियों द्वारा डाली गयी थी जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय को चुनौती दी थी.

सम्पूर्ण कर्नाटक में तम्बाकू उत्पादों का क्रय विक्रय कोर्ट को मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है

ज्ञात ही कि कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, तंबाकू विरोधी कार्यकर्ता और कई डॉक्टरों ने ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वे (जीएटीएस) 2016-17 के नवीनतम आंकड़े का हवाला दिया और कहा था कि पैकों पर बड़ी चेतावनियां लोगों को तंबाकू का सेवन करने से रोकने के लिए एक सफल प्रयास है. कहा जा सकता है कि कर्नाटक हाईकोर्ट का यह आदेश तंबाकू कंपनियों के लिए एक जीत की तरह तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य की वकालत करने वाले लोगों के लिए एक झटके की तरह था.

अब ये मामला उच्च न्यायालय से निकलकर सर्वोच्च न्यायालय में है. जाहिर है कुछ चेहरों पर गम होगा तो कुछ चेहरों पर खुशी. कोई इसे अच्छी पहल कह रहा है तो कहीं इसे कोर्ट की बेमतलब की दखलंदाजी माना जा रहा है. पहली नजर में ये अदालत से जुड़ी एक आम सी खबर है जिससे समाज प्रभावित हो रहा है, मगर जब हम इस खबर को अपने से जोड़कर देखें तो मिलता है कि कोर्ट, थाना, पुलिस, कुछ भी हो जाए अगर हम कुछ कर रहे हैं या फिर लम्बे समय से हम कुछ करते चले आ रहे हैं तो फिर मजाल है कोई हमें रोक ले. हम वही करेंगे जो हमारी आदत में शुमार हो चुका...

खबर है कि सिगरेट और तंबाकू के पैकेट के 85 प्रतिशत हिस्से पर सचित्र चेतावनी देने के खिलाफ दाखिल याचिकाओं की सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय तैयार हो गया है. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इन प्रोडक्ट्स के पैकेट पर 85 प्रतिशत हिस्से में चेतावनी देने वाले नियम को रद्द कर दिया था. कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा रद्द किये जाने के बाद पुराना नियम प्रभावी हो गया जिसके अनुसार 40 फीसदी हिस्से पर ही तस्वीर छापी जाएगी. ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट में ये याचिका तंबाकू कंपनियों द्वारा डाली गयी थी जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय को चुनौती दी थी.

सम्पूर्ण कर्नाटक में तम्बाकू उत्पादों का क्रय विक्रय कोर्ट को मुंह चिढ़ाता नजर आ रहा है

ज्ञात ही कि कर्नाटक उच्च न्यायालय के आदेश के बाद, तंबाकू विरोधी कार्यकर्ता और कई डॉक्टरों ने ग्लोबल एडल्ट तंबाकू सर्वे (जीएटीएस) 2016-17 के नवीनतम आंकड़े का हवाला दिया और कहा था कि पैकों पर बड़ी चेतावनियां लोगों को तंबाकू का सेवन करने से रोकने के लिए एक सफल प्रयास है. कहा जा सकता है कि कर्नाटक हाईकोर्ट का यह आदेश तंबाकू कंपनियों के लिए एक जीत की तरह तो दूसरी तरफ स्वास्थ्य की वकालत करने वाले लोगों के लिए एक झटके की तरह था.

अब ये मामला उच्च न्यायालय से निकलकर सर्वोच्च न्यायालय में है. जाहिर है कुछ चेहरों पर गम होगा तो कुछ चेहरों पर खुशी. कोई इसे अच्छी पहल कह रहा है तो कहीं इसे कोर्ट की बेमतलब की दखलंदाजी माना जा रहा है. पहली नजर में ये अदालत से जुड़ी एक आम सी खबर है जिससे समाज प्रभावित हो रहा है, मगर जब हम इस खबर को अपने से जोड़कर देखें तो मिलता है कि कोर्ट, थाना, पुलिस, कुछ भी हो जाए अगर हम कुछ कर रहे हैं या फिर लम्बे समय से हम कुछ करते चले आ रहे हैं तो फिर मजाल है कोई हमें रोक ले. हम वही करेंगे जो हमारी आदत में शुमार हो चुका है.

कर्नाटक हाई कोर्ट कुछ समय के लिए राज्य में तम्बाकू उत्पादों की बिक्री पर सख्त हुआ था

जी हां बिल्कुल सही सुन रहे हैं आप. मेरे जानने में ऐसे तमाम लोग हैं जो सिगरेट पीते हैं और जर्दा या पान मसाला सरीखी चीजों का भी इस्तेमाल करते हैं. ये लोग मॉल में मूवी देखने भी जाते हैं. मूवी में इन्हें टार वाला सिगरेट का ऐड या फिर "मुकेश" की कहानी भी दिखती है. ये उसे देखते हैं मगर तब इनका ध्यान उन "डराने वाले" विज्ञापनों पर नहीं बल्कि अपनी मोबाइल स्क्रीन पर, व्हाट्स ऐप के मैसेज पर रहता हैं. ये थियेटर में बैठ मन ही मन गालियां देते हुए उन विज्ञापनों को देखते सुनते हैं और पढ़े हुए मैसेज को दोबारा पढ़ते हुए यही मनाते हैं कि जल्दी से ये खत्म हों और फिल्म शुरू हो.

मन हुआ तो इंटरवल में या फिर फिल्म के बाद ऐसे लोग अपना काम तमाम कर ही लेते हैं. अब चाहे सिगरेट की डिब्बी पर तार वाले फेफड़े पूरे हों या फिर आधे जिसे खाना पीना होगा वो खाकर ही मानेगा और इसे अपनी निजता में दखलंदाजी कहेगा. अतः यही बात का सार और इस लेख का आधार है कि सरकार, कोर्ट, पुलिस चाहे जितना भी तम्बाकू उत्पादों के बारे में बात कर ले, उसपर प्रतिबन्ध लगा दे मगर जो खा रहा है या खाता आ रहा है वो ब्लैक से लेकर वाइट तक सब कुछ करते हुए इसे कहेगा और दुनिया की कोई भी ताकत उसे ऐसा करते हुए रोक नहीं पाएगी.    

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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