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समाज के कचरे का सच सामने लाता सराहा

    • रिम्मी कुमारी
    • Updated: 16 अगस्त, 2017 10:47 PM
  • 16 अगस्त, 2017 10:47 PM
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साराह का अरबी भाषा में मतलब होता है ईमानदारी. लेकिन यकीन मानिए इस एप को इस्तेमाल करने वाले या इसके जरिए किसी को मैसेज भेजने वालों का ईमानदारी से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता.

बीते कुछ दिनों में सोशल मीडिया यूजर को एक नया टाइम पास एप मिल गया है. वैसे तो निजी जिंदगी में हमारे यहां लोगों के पास घरवालों, दोस्तों, रिश्तेदारों से बात करने का टाइम नहीं होता लेकिन सोशल मीडिया पर टाइम पास करने का खुब टाइम होता है. यही कारण है कि अचानक से कोई एप आता है दिनों नहीं घंटों में हमारे फोन की स्क्रीन में कब्जा कर लेता है.

और अगर वो एप बिना किसी को अपनी पहचान बताए अपने दिल की भड़ास निकालने का हो तो फिर तो सोने पर सुहागा हो ही जाएगा. यही कुछ हुआ साराह के साथ. रातों-रात ये एप भारत में सोशल मीडिया यूजर के बीच हॉट केक हो गया. हर कोई इसका दीवाना हो गया. इस पर आए अनजान लोगों के मैसेजों को धड़ल्ले से फेसबुक, ट्विटर पर शेयर किया जाने लगा. बिना ये सोचे की इसके साइड इफेक्ट क्या होंगे.

बिना पहचान बताए पेल दो किसी को भी

साराह की शुरूआत तो मस्ती के लिए हुई लेकिन अंत लोगों में डिप्रेशन लेकर आया. साराह का अरबी भाषा में मतलब होता है ईमानदारी. लेकिन यकीन मानिए इस एप को इस्तेमाल करने वाले या इसके जरिए किसी को मैसेज भेजने वालों का ईमानदारी से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता. सब इसी में खुश होते हैं कि मैं किसी को गाली भी दूं तो वो मुझे पहचान नहीं पाएगा.

नतीजा? जमकर सभी अपने मन की भड़ास निकाल रहे. एक-दूसरे को दिल की बात बताने के नाम पर बरसों से दिल में छुपी उसके प्रति अपनी नफरत का इजहार कर रहे. साराह एप दो तरह के लोगों के लिए बिल्कुल मुफीद है. पहला वो जिन्हें लगता है कि पूरी दुनिया उनके ही इर्द-गिर्द घूमती है. दूसरे वो जिनके पास दुखी रहने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं होता. ये लोग दूसरों को ट्रोल करके खुशी पाते हैं.

साराह के दुरुपयोग के कई तरीके हैं. और इसके दुरुपयोग में सबसे बड़ा हथियार साबित होता है मैसेज करने वाले की...

बीते कुछ दिनों में सोशल मीडिया यूजर को एक नया टाइम पास एप मिल गया है. वैसे तो निजी जिंदगी में हमारे यहां लोगों के पास घरवालों, दोस्तों, रिश्तेदारों से बात करने का टाइम नहीं होता लेकिन सोशल मीडिया पर टाइम पास करने का खुब टाइम होता है. यही कारण है कि अचानक से कोई एप आता है दिनों नहीं घंटों में हमारे फोन की स्क्रीन में कब्जा कर लेता है.

और अगर वो एप बिना किसी को अपनी पहचान बताए अपने दिल की भड़ास निकालने का हो तो फिर तो सोने पर सुहागा हो ही जाएगा. यही कुछ हुआ साराह के साथ. रातों-रात ये एप भारत में सोशल मीडिया यूजर के बीच हॉट केक हो गया. हर कोई इसका दीवाना हो गया. इस पर आए अनजान लोगों के मैसेजों को धड़ल्ले से फेसबुक, ट्विटर पर शेयर किया जाने लगा. बिना ये सोचे की इसके साइड इफेक्ट क्या होंगे.

बिना पहचान बताए पेल दो किसी को भी

साराह की शुरूआत तो मस्ती के लिए हुई लेकिन अंत लोगों में डिप्रेशन लेकर आया. साराह का अरबी भाषा में मतलब होता है ईमानदारी. लेकिन यकीन मानिए इस एप को इस्तेमाल करने वाले या इसके जरिए किसी को मैसेज भेजने वालों का ईमानदारी से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता. सब इसी में खुश होते हैं कि मैं किसी को गाली भी दूं तो वो मुझे पहचान नहीं पाएगा.

नतीजा? जमकर सभी अपने मन की भड़ास निकाल रहे. एक-दूसरे को दिल की बात बताने के नाम पर बरसों से दिल में छुपी उसके प्रति अपनी नफरत का इजहार कर रहे. साराह एप दो तरह के लोगों के लिए बिल्कुल मुफीद है. पहला वो जिन्हें लगता है कि पूरी दुनिया उनके ही इर्द-गिर्द घूमती है. दूसरे वो जिनके पास दुखी रहने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं होता. ये लोग दूसरों को ट्रोल करके खुशी पाते हैं.

साराह के दुरुपयोग के कई तरीके हैं. और इसके दुरुपयोग में सबसे बड़ा हथियार साबित होता है मैसेज करने वाले की पहचान छुपाने की इसकी खासियत. अपनी पहचान सामने ना आना ऐसा नशा है जिसकी खुमारी हर किसी को पसंद होती है. खासकर तब जब हमें किसी को ट्रोल करना हो उसको गालियां देनी हो. और सराहा ये प्लेटफॉर्म मुहैया कराता है.

आलम ये है कि निजी जिंदगी में अगर कोई लड़का किसी लड़की को सामने खड़े होकर कहे कि- 'तुम बहुत सेक्सी लग रही हो. या तुम हॉट लगती हो.' तो बहुत मुमकिन है कि वो लड़की गालियों, थप्पड़ों के साथ उसकी तारीफ का टोकरा वापस करे. लेकिन यही जब किसी ने सराहा पर लिख दिया तो खुशी-खुशी लोगों ने फेसबुक पर नुमाइश कर डाली. मानो कोई वीरता पुरस्कार मिल गया हो! ये हमारे आज के युवाओं की सोच को दिखाता है. जिनके लिए फेसबुक लाइक, स्नैपचैट फॉलोअर और इंस्टाग्राम लाइक की अहमियत दोस्त, परिवार के साथ बैठकर एक कप चाय पीने से ज्यादा है.

सराहा की सराहना करने वाले गलती कर रहे हैं

खैर सराहा को शुरु करने वाले ज़ैन अल-अबीदीन तावफीक का कहना है कि इस एप का मकसद लोगों को सकारात्मक मैसेज भेजना है. लेकिन 300 मीलियन से ज्यादा यूजर वाले इस एप का प्रयोग लोग नफरत और दुश्मनी को निपटाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं. इस एप का इस्तेमाल लोगों ने अपने ईगो को संतुष्ट करने के लिए किया है. जो बात सामने मुंह पर नहीं बोल पाते उसे इस एप के जरिए गुमनामी में धड़ल्ले से लिख रहे हैं.

इस एप के लिए गूगल प्ले पर लोगों के रिव्यू पढ़ने लायक हैं और सबक लेने की भी जरुरत है. एक यूजर ने लिखा है कि लगातार मिल रही गालियों के कारण उनकी एक दोस्त ने आत्महत्या कर ली. कई और लोग इस एप को असुरक्षित, साइबर बुलिइिंग के लिए एक प्लेटफॉर्म बता रहे हैं. खास बात ये है कि इस एप पर एक बार अकाउंट बना लेने के बाद आप अकाउंट को डिलीट नहीं कर सकते. सिर्फ फोन से अनइंस्टॉल कर सकते हैं.

और अगर आपको जरा भी इस बात की गलतफहमी है कि साराह की टीम आपके अकाउंट की देखभाल कर रही होगी तो जानकारी के लिए बता दें कि साराह की टीम में सिर्फ तीन ही स्टाफ हैं. अब आप खुद समझ सकते हैं कि 300 मीलियन से ज्यादा यूजर वाले इस एप को तीन लोग कैसे संभालेंगे. फेसबुक, ट्विटर पर तो किसी आपत्तिजनक मैसेज या पोस्ट को आप रिपोर्ट भी कर सकते हैं लेकिन साराह के साथ ऐसी कोई फैसिलिटी नहीं है. तो ईमानदारी की आशा अगर आप लगाते हैं तो बच्चे हैं आप.

एक समाज के तौर पर हम भाईचारे और मेलजोल की भावना भूल चुके हैं, जो समाज की रीढ़ है. गुमनामी हमारे अंदर के जानवर को पोषित करती है और अपने विकृत रूप को सामने रखती है. सराहा इस सोच को बढ़ावा देने का काम कर रही है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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