• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

क्या उर्दू मुसलमानों की और हिंदी हिंदुओं की जुबान है?

    • आईचौक
    • Updated: 17 नवम्बर, 2018 04:23 PM
  • 17 नवम्बर, 2018 04:23 PM
offline
अक्सर लोग हिंदी को हिंदुओं और उर्दू को मुसलमानों की भाषा समझने की गलती कर जाते हैं, लेकिन क्या असल में बात ऐसी ही है? क्या आप जानते हैं कि हिंदी और उर्दू में समानता क्या है?

दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी ऑडिटोरियम में 16 नवंबर से साहित्य आजतक शुरू हो गया है और ये तीन दिन तक चलने वाला कार्यक्रम कई साहित्यकारों को साथ लाएगा. इस कार्यक्रम में तीन मंच हैं और हर मंच पर अलग-अलग लोगों द्वारा देश और साहित्य के ज्वलंत मुद्दों पर बात की जा रही है. इसी बीच एक सत्र में शम्स ताहिर खान के साथ बात की लेखक और उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने. इस बातचीत का विषय था 'उर्दू जिसे कहते हैं'. इस सत्र में एक बेहद अहम मुद्दे पर बात की गई और वो था एक जव्लंत सवाल कि आखिर कौन सी भाषा किस धर्म की है.

अक्सर लोगों को ये कहते सुना है कि उर्दू तो मुसलमानों की भाषा है और हिंदी हिंदुओं की. कई लोगों को ये सवाल असल में सवाल लगता ही नहीं बल्कि उनके लिए तो ये फैक्ट है, लेकिन कितने लोग ये जानते हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले तक तो असल में उर्दू कोई भाषा ही नहीं थी? गालिब और तारिक मीर जिन्हें उर्दू के शायर माना जाता है उन्होंने तो खुद कभी कहा ही नहीं कि वो उर्दू में लिख रहे हैं जब्कि उन्होंने अपनी शायरी, खतों को हिंद्वी भाषा का नाम दिया. फिर कैसे उर्दू को कहा जा सकता है कि वो मुसलमानों की भाषा है?

साहित्य आजतक के मंच पर उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह

ये सवाल अब्दुल बिस्मिल्लाह के लिए किसी कटाक्ष जैसा ही था जिसका जवाब भी बहुत साफ शब्दों में दिया गया. यहां कोई बड़ी-बड़ी बातों को नहीं बल्कि फैक्ट्स को चुना गया और फैक्ट्स की बात ही की गई.

अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले उर्दू भाषा के बारे में किसी को पता ही नहीं था. ये बस एक विभाजन की तकनीक थी. इसके पहले तो हिंदवी भाषा कहा जाता था उसे क्योंकि मुगल जब भारत आए तो वो अपनी भाषा लेकर आए. हजारों सैनिकों के साथ, लेकिन यहां आते-आते उनकी फौज कम हो गई और उन्हें हिंदू सैनिकों की...

दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी ऑडिटोरियम में 16 नवंबर से साहित्य आजतक शुरू हो गया है और ये तीन दिन तक चलने वाला कार्यक्रम कई साहित्यकारों को साथ लाएगा. इस कार्यक्रम में तीन मंच हैं और हर मंच पर अलग-अलग लोगों द्वारा देश और साहित्य के ज्वलंत मुद्दों पर बात की जा रही है. इसी बीच एक सत्र में शम्स ताहिर खान के साथ बात की लेखक और उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह ने. इस बातचीत का विषय था 'उर्दू जिसे कहते हैं'. इस सत्र में एक बेहद अहम मुद्दे पर बात की गई और वो था एक जव्लंत सवाल कि आखिर कौन सी भाषा किस धर्म की है.

अक्सर लोगों को ये कहते सुना है कि उर्दू तो मुसलमानों की भाषा है और हिंदी हिंदुओं की. कई लोगों को ये सवाल असल में सवाल लगता ही नहीं बल्कि उनके लिए तो ये फैक्ट है, लेकिन कितने लोग ये जानते हैं कि अंग्रेजों के आने से पहले तक तो असल में उर्दू कोई भाषा ही नहीं थी? गालिब और तारिक मीर जिन्हें उर्दू के शायर माना जाता है उन्होंने तो खुद कभी कहा ही नहीं कि वो उर्दू में लिख रहे हैं जब्कि उन्होंने अपनी शायरी, खतों को हिंद्वी भाषा का नाम दिया. फिर कैसे उर्दू को कहा जा सकता है कि वो मुसलमानों की भाषा है?

साहित्य आजतक के मंच पर उपन्यासकार अब्दुल बिस्मिल्लाह

ये सवाल अब्दुल बिस्मिल्लाह के लिए किसी कटाक्ष जैसा ही था जिसका जवाब भी बहुत साफ शब्दों में दिया गया. यहां कोई बड़ी-बड़ी बातों को नहीं बल्कि फैक्ट्स को चुना गया और फैक्ट्स की बात ही की गई.

अब्दुल बिस्मिल्लाह ने कहा कि अंग्रेजों के आने से पहले उर्दू भाषा के बारे में किसी को पता ही नहीं था. ये बस एक विभाजन की तकनीक थी. इसके पहले तो हिंदवी भाषा कहा जाता था उसे क्योंकि मुगल जब भारत आए तो वो अपनी भाषा लेकर आए. हजारों सैनिकों के साथ, लेकिन यहां आते-आते उनकी फौज कम हो गई और उन्हें हिंदू सैनिकों की भर्ति करनी पड़ी. इसके बाद शुरू हुआ भाषा का मेल मिलाप और यही बनी भाषा हिंदवी जहां हिंदी के भी शब्द थे और उसमें उज्बेकिस्तान, तजीकिस्तान की भाषा और फारसी के भी शब्द थे जहां से मुगल आए थे.

इस तरह की बातें वाकई कई बार सुनने को मिलती हैं कि ये तो उर्दू बोल रहा है, ये तो मुसलमान होगा या इस्लाम से जुड़ाव होगा या फिर सूफी गाने तो मुसलमानों के लिए होते हैं. उनमें तो उर्दू बोली जाती है, लेकिन क्या आपने कभी सोचने की कोशिश की कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में आखिर कितने उर्दू के शब्द बोल जाते हैं?

दोस्त, दोस्ती, दिल, औरत, आजादी, कानून, साहब, खून, इमारत, हालत, कमरा, दरवाजा, शर्म, इज्जत, किस्सा, ईमान, किस्मत और न जाने कितने ही ऐसे शब्द हैं जिन्हें हम हिंदी मानकर हिंदी का ही हिस्सा समझते हैं और उन्हें रोजाना बोलते हैं लेकिन ऐसा है नहीं कि वो हिंदी है.

आज हिंदुस्तान में किसी राह चलते इंसान से पूछा जाए कि क्या वो उर्दू जानता है तो उसका जवाब होगा नहीं, लेकिन अगर उसे भी बताए जाएंगे ये सारे शब्द तो शायद वो भी चौंक जाए कि आखिर उसे कितनी उर्दू आती है.

अगर हम इसे ही नहीं समझ सकते कि आखिर हिंदी और उर्दू में फर्क क्या है और ये विभाजन किसने किया हम बस अपने मन में नफरत पाले फिरते हैं और उसी को सत्य मानते हैं. पर क्या इस हिंदू मुस्लिम के बंटवारे से ऊपर उठकर हम कुछ नहीं सोच सकते?

ये भी पढ़ें-

Metoo को नए सिरे से देखने पर मजबूर कर देगी ये कविता

क्या स्त्री का 'अपना कोना' सिर्फ रसोई घर ही है?

 


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲