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'बीफ' की बहस के बीच एक साध्वी का क्यूट सा बयान

    • आईचौक
    • Updated: 25 जून, 2017 04:00 PM
  • 25 जून, 2017 04:00 PM
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साध्वी सरस्वती ने बीफ खाने वालों को लेकर एक बड़ा बयान दिया है. उन्होंने बीफ खाने वालों को लेकर मोदी सरकार से अपील करते हुए कहा है कि जो भी लोग बीफ खाते हैं उन्हें बीच चौराहे पर खड़ा करके फांसी दे देनी चाहिए.

बाजार बड़ी मायावी चीज है इसके बारे में कहा जाता है कि प्रोडक्ट चाहे जितना अच्छा हो वो तब तक नहीं बिकता जब तक उसका ढंग से प्रचार न किया जाए. बाजार के बारे में एक अन्य मान्यता ये भी है कि खराब से खराब प्रोडक्ट अगर बार-बार दिखाया जाए तो एक समय ऐसा आता है जब उसे उसका खरीदार मिल ही जाता है. कहा जा सकता है कि बिकने के लिए गुणवत्ता नहीं दिखते रहना जरूरी है. जब दिखेंगे लोग हाथों हाथ लेंगे जब नहीं दिखेंगे तो कोई पूछने वाला न रहेगा.

अब इस बात को हमारे भारतीय समाज के अंतर्गत रखकर देखिये. मौलाना, मौलवी, संधू, संतों और साध्वियों तक हमारे इर्द गिर्द ऐसे कई लोग हैं जिनका जीवन ही ऊपर इंगित बाजार के सिद्धांत पर चल रहा है. ये इसलिए बिक रहे हैं क्योंकि ये दिख रहे हैं या ये भी हो सकता है इन्हें दिखाया जा रहा हो.

बात अगर ताजा हालात में हो तो मिलता है कि आज बिकने और दिखने के लिए 'बयान' बहुत ज़रूरी है. कहा जा सकता है एक बयान में इतनी शक्ति होती है कि वो व्यक्ति को रातों रात स्टार और लोगों के बीच आकर्षण और चर्चा का केंद्र बना सकता है.

साध्वी सरस्वती को महसूस हो रहा है कि लोग स्टेटस सिम्बल के लिए बीफ खाते हैं

खैर एक खबर के जरिये इस पूरी बात को आसानी से समझा जा सकता है. खबर है कि मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा की रहने वाली हैं साध्वी सरस्वती ने बीफ खाने वालों को लेकर एक बड़ा बयान दिया है. गोवा में आयोजित चार दिवसीय ऑल इंडिया हिंदू कंवेंशन के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए उन्होंने बीफ खाने वालों को लेकर मोदी सरकार से अपील करते हुए कहा है कि जो भी लोग बीफ खाते हैं उन्हें बीच चौराहे पर खड़ा करके फांसी दे देनी चाहिए.

साध्वी का ये भी मानना है कि आज कुछ लोग केवल अपना स्टेटस सिंबल मेंटेन करने के लिए भी बीफ का सेवन करते हैं. कुछ खाने के चलते फांसी देने...

बाजार बड़ी मायावी चीज है इसके बारे में कहा जाता है कि प्रोडक्ट चाहे जितना अच्छा हो वो तब तक नहीं बिकता जब तक उसका ढंग से प्रचार न किया जाए. बाजार के बारे में एक अन्य मान्यता ये भी है कि खराब से खराब प्रोडक्ट अगर बार-बार दिखाया जाए तो एक समय ऐसा आता है जब उसे उसका खरीदार मिल ही जाता है. कहा जा सकता है कि बिकने के लिए गुणवत्ता नहीं दिखते रहना जरूरी है. जब दिखेंगे लोग हाथों हाथ लेंगे जब नहीं दिखेंगे तो कोई पूछने वाला न रहेगा.

अब इस बात को हमारे भारतीय समाज के अंतर्गत रखकर देखिये. मौलाना, मौलवी, संधू, संतों और साध्वियों तक हमारे इर्द गिर्द ऐसे कई लोग हैं जिनका जीवन ही ऊपर इंगित बाजार के सिद्धांत पर चल रहा है. ये इसलिए बिक रहे हैं क्योंकि ये दिख रहे हैं या ये भी हो सकता है इन्हें दिखाया जा रहा हो.

बात अगर ताजा हालात में हो तो मिलता है कि आज बिकने और दिखने के लिए 'बयान' बहुत ज़रूरी है. कहा जा सकता है एक बयान में इतनी शक्ति होती है कि वो व्यक्ति को रातों रात स्टार और लोगों के बीच आकर्षण और चर्चा का केंद्र बना सकता है.

साध्वी सरस्वती को महसूस हो रहा है कि लोग स्टेटस सिम्बल के लिए बीफ खाते हैं

खैर एक खबर के जरिये इस पूरी बात को आसानी से समझा जा सकता है. खबर है कि मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा की रहने वाली हैं साध्वी सरस्वती ने बीफ खाने वालों को लेकर एक बड़ा बयान दिया है. गोवा में आयोजित चार दिवसीय ऑल इंडिया हिंदू कंवेंशन के उद्घाटन समारोह में बोलते हुए उन्होंने बीफ खाने वालों को लेकर मोदी सरकार से अपील करते हुए कहा है कि जो भी लोग बीफ खाते हैं उन्हें बीच चौराहे पर खड़ा करके फांसी दे देनी चाहिए.

साध्वी का ये भी मानना है कि आज कुछ लोग केवल अपना स्टेटस सिंबल मेंटेन करने के लिए भी बीफ का सेवन करते हैं. कुछ खाने के चलते फांसी देने वाले जजों की फेहरिस्त में साध्वी का नाम नया है. ये मार्केट में नई हैं, मगर ये इस बात को बखूबी जानती हैं कि जिस दिन आध्यात्म से मन भर जाए और राजनीति करनी पड़े उस दिन इस देश की जनता और उन पार्टियों द्वारा इन्हें हाथों हाथ ले लिया जायगा जो इन बातों को पसंद करती हैं.

गौरतलब है कि ये कोई पहली बार नहीं है जब हम साधू संतों के मुंह से ऐसी बातें सुन रहे हैं. इससे पहले भी हम उमा भारती से लेकर साध्वी रितम्बरा के मुंह से कई मौकों पर ऐसी बातें सुन चुके हैं जो लोगों के बीच का सौहार्द समाप्त करने के लिए काफी हैं. कह सकते हैं कि उमा भारती और साध्वी रितम्बरा जाना माना नाम हैं और साथ ही सक्रिय राजनीति में इनकी गहरी पैठ है. हो सकता हो साध्वी सरस्वती भी इनसे प्रेरणा लेते हुए कुछ ऐसा करने की आतुर हैं जिसके चलते इनका भी नाम लोगों की जुबान पर आ जाए.

अंत में हम यही कहेंगे कि जिस तरह आज खाने पीने पर बयान देकर फैसले सुनाए जा रहे हैं वो अपने आप में चिंता का विषय है. ऐसा इसलिए क्योंकि धर्म का चोगा ओढ़कर साधू संत, पंडित मौलाना तो निकल जा रहे हैं मगर इसका खामियाजा इस देश के आम आदमी को उठाना पड़ रहा है. आए दिन हम गौरक्षा या बीफ खाने के नाम पर हो रहे खूनी खेल देख रहे हैं और उनको देखकर ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति न होगी कि ऐसी ही बातें निकट भविष्य में भारत जैसे समृद्ध देश के विकास में बाधक होंगी. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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