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एक हिंदू राजा की तरह है हमारे पीएम मोदी का राजपाठ !

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 13 मई, 2017 01:44 PM
  • 13 मई, 2017 01:44 PM
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नरेंद्र मोदी इतिहास के एक राजा से काफी मिलते जुलते हैं. हम शक्ल की बात नहीं कर रहे, यहां बात हो रही है उन समानताओं की जो इन दोनों में हैं.

पीएम मोदी अब एक ऐसा नाम बन चुके हैं जिन्हें किसी परिचय की जरूरत नहीं. एक बात तो पक्की है मोदी ने चाहें जो भी किया हो नाम जरूर हुआ है. मोदी का काम और उनकी छवि इतिहास के उस सम्राट से मिलती है जिनका नाम कभी भुलाया नहीं जा सकता. वो थे राजा हर्षवर्धन.

कौन थे राजा हर्षवर्धन...

वर्धन वंश के राजा प्रभाकरा वर्धन के बेटे थे हर्षवर्धन. पिता और बड़े भाई की मृत्यु के बाद महज 16 साल की उम्र में उन्हें राजगद्दी मिल गई थी. राजा बनने के बाद सबसे पहले अपने पिता और बड़े भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए हर्षवर्धन ने गौड़ा राज्य के राजा शशांक के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. शशांक की मौत के बाद हर्षवर्धन ने पूरे उत्तर भारत को जीत लिया.

दक्षिण भारत हर्षवर्धन की जीत से अनछुआ था. हर्षवर्धन एक अच्छे लेखक और कवि भी थे. हर्षवर्धन ने संस्कृत में तीन नाटक भी लिखे थे. उनके समय नालंदा यूनिवर्सिटी शिक्षा का अहम केंद्र था और हर्षवर्धन ने वहां काफी दान भी दिया था. 647 A.D में हर्षवर्धन की मौत के बाद उनका राज्य वापस छोटे-छोटे राज्यों में बट गया.

कैसे एक जैसे हैं ये दोनों...

1. एक वंश का अंत कर किया राज..

हर्षवर्धन का राज गुप्ता वंश के अंत से शुरू हुआ और मोदी का कांग्रेस के राज को खत्म करके. दोनों ही अपने शाशन के लिए प्रसिद्ध हैं.

2. उत्तर भारत पर ऐतिहासिक जीत...

राजा हर्षवर्धन की सेना ने लगातार 6 साल युद्ध कर वल्लभी, मगध, कश्मीर, गुजरात और सिंध को जीत लिया था. हर्षवर्धन का राज्य गुजरात से असम तक फैला हुआ था और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में नर्मदा घाटी तक था.

उत्तर भारत में हर्षवर्धन और मोदी की जीत एक जैसी ही हैअगर मोदी की बात की जाए तो राजा हर्षवर्धन से थोड़ा बड़ा जरूर...

पीएम मोदी अब एक ऐसा नाम बन चुके हैं जिन्हें किसी परिचय की जरूरत नहीं. एक बात तो पक्की है मोदी ने चाहें जो भी किया हो नाम जरूर हुआ है. मोदी का काम और उनकी छवि इतिहास के उस सम्राट से मिलती है जिनका नाम कभी भुलाया नहीं जा सकता. वो थे राजा हर्षवर्धन.

कौन थे राजा हर्षवर्धन...

वर्धन वंश के राजा प्रभाकरा वर्धन के बेटे थे हर्षवर्धन. पिता और बड़े भाई की मृत्यु के बाद महज 16 साल की उम्र में उन्हें राजगद्दी मिल गई थी. राजा बनने के बाद सबसे पहले अपने पिता और बड़े भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए हर्षवर्धन ने गौड़ा राज्य के राजा शशांक के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. शशांक की मौत के बाद हर्षवर्धन ने पूरे उत्तर भारत को जीत लिया.

दक्षिण भारत हर्षवर्धन की जीत से अनछुआ था. हर्षवर्धन एक अच्छे लेखक और कवि भी थे. हर्षवर्धन ने संस्कृत में तीन नाटक भी लिखे थे. उनके समय नालंदा यूनिवर्सिटी शिक्षा का अहम केंद्र था और हर्षवर्धन ने वहां काफी दान भी दिया था. 647 A.D में हर्षवर्धन की मौत के बाद उनका राज्य वापस छोटे-छोटे राज्यों में बट गया.

कैसे एक जैसे हैं ये दोनों...

1. एक वंश का अंत कर किया राज..

हर्षवर्धन का राज गुप्ता वंश के अंत से शुरू हुआ और मोदी का कांग्रेस के राज को खत्म करके. दोनों ही अपने शाशन के लिए प्रसिद्ध हैं.

2. उत्तर भारत पर ऐतिहासिक जीत...

राजा हर्षवर्धन की सेना ने लगातार 6 साल युद्ध कर वल्लभी, मगध, कश्मीर, गुजरात और सिंध को जीत लिया था. हर्षवर्धन का राज्य गुजरात से असम तक फैला हुआ था और उत्तर में कश्मीर से दक्षिण में नर्मदा घाटी तक था.

उत्तर भारत में हर्षवर्धन और मोदी की जीत एक जैसी ही हैअगर मोदी की बात की जाए तो राजा हर्षवर्धन से थोड़ा बड़ा जरूर है, लेकिन जीत का सिलसिला कुछ वैसा ही है. मोदी सेना ने भी पिछले 3 सालों में लगातार जीत हासिल की है.

3. दयावान राजा हर्षवर्धन और मोदी...

राजा हर्षवर्धन एक दयावान राजा थे. जितने भी राज्यों को उन्होंने जीता था वहां उनके राजा को राज करने दिया था. केवल कन्नौज और थानेश्वर को छोड़कर. हर्षवर्धन की सभा में सभी को बोलने का हक था.

मोदी को भी एक दयावान राजा माना जाता है. कोई भी हो पीएम तक अगर उनकी अर्जी पहुंची है तो उसका हल करते हैं. फिर चाहें असम की दुधमुही बच्ची को बचाना हो या फिर अपना स्टोल एक फैन को भेजना.

4. चीन के साथ बने डिप्लोमैट...

राजा हर्षवर्धन ने 7वीं सदी में चीन के साथ डिप्लोमैटिक रिश्ते बना लिए थे. यहां तक की चीनी दूत शुआन्झेंग हर्षवर्धन के राज्य में 8 साल तक रहा था और राजा का दोस्त भी बन गया था.

अब मोदी ने भी चीन के साथ डिप्लोमैटिक रिश्ते बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. जहां एक ओर हर्षवर्धन विदेशी राजाओं से अच्छे रिश्ते बनाने को आतुर रहते थे वैसे ही नरेंद्र मोदी भी हैं. चीनी यात्री हियुन सांग ने हर्षवर्धन का राज्य देखा था और अपनी किताब शि-यु-की (जिसका मतलब है मेरे अनुभव) में हर्षवर्धन का कई बार जिक्र किया था.

राजा हर्षवर्धन और मोदी दोनों ही अपनी विदेशी छवि के कारण बहुत लोकप्रिय थे.

5. महिलाओं के लिए किए काम...

राजा हर्षवर्धन ने सति प्रथा अपने राज्य में खत्म कर दी थी. इसकी शुरुआत उन्होंने अपनी बहन को सति होने से बचाने से की थी. महिलाओं की रक्षा के लिए हर्षवर्धन ने कई काम किए थे. मोदी भी महिलाओं के लिए कई तरह के काम कर रहे हैं. प्रधानमंत्री उज्जवला योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना भी इसका ही उदाहरण है.

6. शिक्षा को लेकर किए काम....

राजा हर्षवर्धन एक राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ शिक्षा के लिए काफी अग्रसर थे. उन्होंने नालंदा यूनिवर्सिटी के लिए काफी दान दिया था. हर्षवर्धन के राज में ही नालंदा यूनिवर्सिटी अपने चरम में थी.

नरेंद्र मोदी ने भी शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम किया है. कई स्कीम निकाली गई है. प्रधानमंत्री युवा योजना, विजयलक्ष्मी स्कीम, नैश्नल अप्रेंटिस प्रमोशन स्कीम आदि इसमें शामिल हैं.

शिक्षा, अर्थव्यवस्था, महिलाओं की रक्षा आदि के मामले में दोनों ने ही काम किए7. मजबूत अर्थव्यवस्था...

राजा हर्षवर्धन के राज में अर्थव्यवस्था काफी बेहतर हो गई थी. उनका साम्राज्य गंगा के किनारे होने के कारण काफी फलाफूला था. कारोबार हर्षवर्धन के राज्य में बेहतर था.

मोदी के राज में भी अर्थव्यवस्था पहले दो सालों में अच्छी हुई. जीडीपी 2014 के मुकाबले बढ़ी, रुपया मजबूत हुआ, फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व बढ़े, होम लोन रेट घटा है, फिस्कल डिफिसिट कम हुई है.

8. बिना वंशज ही रह गए...

राजा हर्षवर्धन के दो बेटे थे जिनकी हत्या कर दी गई थी. राजकुमार विजयवर्धन और कल्यानवर्धन दोनों ही अरुनाष्व (हर्षवर्धन के मंत्री) द्वारा मार दिए गए थे. इस कारण हर्षवर्धन बिना वंशज ही रह गए.

नरेंद्र मोदी के बारे में तो आप जानते ही होंगे कि क्यों उनका कोई वारिस नहीं है.

ये तो थीं कुछ समानताएं जो राजा हर्षवर्धन और नरेंद्र मोदी दोनों में मिलती हैं. हालांकि, राजा हर्षवर्धन एक महान सम्राट थे और नरेंद्र मोदी एक महान नेता. उम्मीद तो यही की जा सकती है कि राजा हर्षवर्धन की तरह मोदी का नाम भी इतिहास में इसी तरह दर्ज हो जाए.

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