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Parvin Shakir Birthday: आशिक और माशूक के रिश्ते को शब्दों में पिरोने वाली शायरा!

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 24 नवम्बर, 2020 07:02 PM
  • 24 नवम्बर, 2020 07:00 PM
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आशिक और माशूक के रिश्ते को जो शब्द परवीन शाकिर ने अपनी क़लम से दिए वो अपने में बेमिसाल हैं. शायद ही आज हमारे बीच ऐसा कोई शायर हो जो परवीन शाकिर के कद को छू पाए.

खुली आंखों में कोई सपना झांकता है

वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है

तेरी चाहत के भीगे जंगलों में

मेरा तन मोर बन कर नाचता है

मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे

वो मेरे सब हवाले जानता है

मैं उस की दस्तरस में हूं मगर वो

मुझे मेरी रज़ा से मांगता है

लिखना हर किसी के बस की बात नहीं है और जब बात परवीन शाकिर (Parveen Shakir Birthday) जैसा लिखने की हो तो मौजूदा वक्त में कोई विरला ही होगा जो परवीन के शब्दों को और बेहतर शब्द दे पाए. परवीन शाकिर का शुमार उर्दू अदब के उन चुनिंदा शायरों में है जिन्होंने पहली बार शायरी में 'लड़की' शब्द का इस्तेमाल किया और वो नजीर स्थापित की जिसका तोड़ शायद ही आज किसी शायर या शायरा के पास हो. सवाल होगा कि परवीन शाकिर का जिक्र क्यों? तो जवाब है 24 नवंबर ही वो दिन है जब इस अज़ीम शायरा ने जन्म लिया और उर्दू शायरी को वहां पहुंचाया जहां पहुंच कर शायरी और उर्दू दोनों को नई परवाज़ मिली. 

परवीन शाकिर ने जैसा लिख दिया है अब शायद ही कोई उसे छू पाए

बता दें कि परवीन शाकिर एक उर्दू शायरा, शिक्षिका और प्रशासनिक अधिकारी थी. उनका जन्म पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के कराची शहर में 24 नवंबर 1952 को हुआ था.

परवीन शाकिर ने 1966 में अपनी मैट्रिकुलेशन, 1968 में इंटरमीडिएट, 1970 में बीए (ऑनर्स) और 1972 में कराची विश्वविद्यालय से एमए (अंग्रेजी) किया. 1982 में उन्होंने सीएसएस पास किया और पूरे पाकिस्तान में दूसरी रैंक हासिल की.

ये तो बात हो गई परवीन शाकिर की लिखाई पढ़ाई की. बात अगर शेर ओ शायरी की हो तो हिज्र की...

खुली आंखों में कोई सपना झांकता है

वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है

तेरी चाहत के भीगे जंगलों में

मेरा तन मोर बन कर नाचता है

मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे

वो मेरे सब हवाले जानता है

मैं उस की दस्तरस में हूं मगर वो

मुझे मेरी रज़ा से मांगता है

लिखना हर किसी के बस की बात नहीं है और जब बात परवीन शाकिर (Parveen Shakir Birthday) जैसा लिखने की हो तो मौजूदा वक्त में कोई विरला ही होगा जो परवीन के शब्दों को और बेहतर शब्द दे पाए. परवीन शाकिर का शुमार उर्दू अदब के उन चुनिंदा शायरों में है जिन्होंने पहली बार शायरी में 'लड़की' शब्द का इस्तेमाल किया और वो नजीर स्थापित की जिसका तोड़ शायद ही आज किसी शायर या शायरा के पास हो. सवाल होगा कि परवीन शाकिर का जिक्र क्यों? तो जवाब है 24 नवंबर ही वो दिन है जब इस अज़ीम शायरा ने जन्म लिया और उर्दू शायरी को वहां पहुंचाया जहां पहुंच कर शायरी और उर्दू दोनों को नई परवाज़ मिली. 

परवीन शाकिर ने जैसा लिख दिया है अब शायद ही कोई उसे छू पाए

बता दें कि परवीन शाकिर एक उर्दू शायरा, शिक्षिका और प्रशासनिक अधिकारी थी. उनका जन्म पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के कराची शहर में 24 नवंबर 1952 को हुआ था.

परवीन शाकिर ने 1966 में अपनी मैट्रिकुलेशन, 1968 में इंटरमीडिएट, 1970 में बीए (ऑनर्स) और 1972 में कराची विश्वविद्यालय से एमए (अंग्रेजी) किया. 1982 में उन्होंने सीएसएस पास किया और पूरे पाकिस्तान में दूसरी रैंक हासिल की.

ये तो बात हो गई परवीन शाकिर की लिखाई पढ़ाई की. बात अगर शेर ओ शायरी की हो तो हिज्र की रातों और अपने आशिक़ से जुदा होने का जिक्र उर्दू शायरी में तमाम शायरों ने किया है मगर जिस अंदाज में परवीन शाकिर ने इन बातों का जिक्र किया उससे वाक़ई इस बात की तस्दीख हो जाती है कि मुहब्बत आसान तो हरगिज़ नहीं है.

अब गर जो इस बात को समझना हो तो हमें परवीन शाकिर का लिखा एक शेर पढ़ना चाहिए. शेर हमें उस कैफ़ियत से वाबस्ता कराएगा जिसका एहसास एक माशूका को अपने आशिक़ के लिए होता है.

तेरे सिवा भी कई रंग ख़ुशनज़र थे मगर

जो तुझको देख चुका हो वो और क्या देखे.

परवीन शाकिर की शायरी की जो बात सबसे ज्यादा अच्छी और दिल को सुकून देने वाली है वो ये कि उन्होंने अपने शेरों में लड़कियों के मद्देनजर समाज से बात की है और कोई न कोई मैसेज ज़रूर दिया है. आइये परवीन शाकिर के लिखे एक शेर पर नजर डालें और इस बात को समझने की कोशिश करें.

हुस्न के समझने को उम्र चाहिए जानां

दो घड़ी की चाहत में लड़कियां नहीं खुलतीं.

जैसा कि हमने परवीन शाकिर की शायरी में हिज्र और जुदाई का जिक्र किया था तो आइए इस बात को एक अन्य शेर के जरिये जानने, समझने का प्रयास किया जाए.

मेरे सुकूत से जिसको गिले रहे क्या-क्या

बिछड़ते वक़्त उन आंखों का बोलना देखे.

कहावत है कि एक अच्छा शायर न केवल अपने वक़्त से दो हाथ आगे निकलते हुए लिखता है बल्कि उसे इस बात का भी अंदाजा बखूबी होता है वो कि कौन कौन से टॉपिक हैं जिनपर लिखने से जनता का प्यार और जिन्हें मुशायरों में सुनाने से दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट मिलेगी. परवीन शाकिर इससे आगे की चीज थीं उन्होंने किसी को खुश करने के लिए शेर नहीं कहे बल्कि उनके शेर थे ही इतने खूबसूरत कि वो अपने आप ही मौके और माहौल दोनों पर फिट बैठ जाते थे. परवीन शकिर को पढ़ते हुए ये कहना अतिश्योक्ति न है कि उन्होंने अपनी कलम से तीखा और धारदार व्यंग्य किया. और न ये व्यंग्य वाक़ई ऐसे हैं जिन्हें समझने के लिए बहुत सारी हिम्मत की दरकार है.

वो तो खुशबू है हवाओं में बिखर जाएगा

मसला तो फूल का है फूल किधर जाएगा ...

उपरोक्त पंक्तियों को पढ़कर इस बात का अंदाजा आसानी के साथ लगाया जा सकता है कि भले ही शेर कहने के लिए परवीन शाकिर ने अलग अलग चीजों को बतौर उदाहरण अपनी शायरी में फिट किया लेकिन जब बात इन्हें समझने की आई तो कोई भी इन बातों को अपने ऊपर ले सकता है.

गुलाब हाथ में होआंख में सितारा हो

कोई वजूद मोहब्बत का इस्तिआ'रा हो

क़ुसूर हो तो हमारे हिसाब में लिख जाए

मोहब्बतों में जो एहसान हो तुम्हारा हो

उफ़ुक़ तो क्या है दर-ए-कहकशां भी छू आएं

मुसाफ़िरों को अगर चांद का इशारा हो.

अपनी शायरी में तमाम मौके ऐसे भी आए हैं जब परवीन शाकिर आशिक से मुखातिब हुई हैं और वो कह दिया है जो अक्सर ही हम अपने समाज में देखते आए हैं

मैं सच कहूंगी मगर फिर भी हार जाऊंगी

वो झूठ बोलेगा और ला-जवाब कर देगा.

आज भले ही शायर विशेषकर महिला शायर अपनी शायरी में महिला सशक्तिकरण के पुट डालने के भरसक प्रयास कर रही हो लेकिन जब हम परवीन शाकिर को पढ़ते हैं तो मालूम होता है कि ये सब वो बहुत पहले ही कर के जा चुकी हैं.

मिलते हुए दिलों के बीच और था फ़ैसला कोई

उस ने मगर बिछड़ते वक़्त और सवाल कर दिया

आज परवीन शाकिर जैसी शख्सियत का जन्मदिन है. हमारी बस ईश्वर से यही दुआ है कि वो इस शायरा को स्वर्ग में स्थान दे. ये जो काम करके चली गईं हैं वो शायरी और उर्दू दोनों में ही मील का पत्थर है. अपनी रचनाओं में परवीन शाकिर ऐसा बहुत कुछ कह गईं हैं जहां तक मौजूदा दौर का शायर या फिर शायरा पहुंच पाए.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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