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जीने का अधिकार ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों को भी हर हाल में मिलना चाहिए!

    • shambhavi iksha
    • Updated: 26 दिसम्बर, 2022 10:12 PM
  • 26 दिसम्बर, 2022 10:12 PM
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ट्रांसजेंडर्स को लेकर चाहे कितनी भी बड़ी बड़ी बातें क्यों न हो जाएं लेकिन तमाम चुनौतियां हैं जिनका सामना उन्हें रोजाना की ज़िंदगी में करना होता है. हिजड़ा, छक्का जैसे शब्द अब इनके लिए रोज की बातें बन गए हैं और जैसे हाल हैं अब इन्होने भी इन शब्दों को दरकिनार करना शुरू कर दिया है.

हर इंसान, चाहे वो स्त्री हो पुरुष उसके लिये गरिमा सम्मान के साथ जीना कितना आसान है. उसे किसी भेद भाव का या समाज का कोई डर नही है. वहींजब हम किसी  ट्रांसजेंडर या LGBT समुदाय के व्यक्ति से बात करते हैं तो हमें पता चलता है कि उनकी ज़िन्दगी में गरिमा शब्द कितना अहमियत रखता है. ये लोग आए दिन हिजड़ा, छक्का जैसे शब्द सुनते हैं और ये लोग इस शब्द को इतना ज्यादा सुन चुके हैं कि अब तो इन्होने इसे दरकिनार करना शुरू कर दिया है. 

जैसी स्थिति है हर जगह भेदभाव झेलना ट्रांसजेंडर्स की नियति में शामिल हो गया है. अब तक इनकी आवाज सरकार के अलावा शायद ही किसी ने सुनी हो.जिसने Section 8(4) of the TG Act 2019 के तहत ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए तथा उनको आजीविका प्रदान करने के लिए गरिमा गृह योजना की शुरुआत की है.

ट्रांसजेंडर्स को आज भी सभ्य समाज अच्छी नजरों से नहीं देखता

गरिमा गृह का निर्माण एक ओर चीज़ के साथ संलगन है. वो है एक ऐसा प्रोवीजन जो कि Sec 12(3) of TG ACT 2019 के तहत है. अगर कोई व्यक्ति या माता-पिता ट्रांसजेंडर व्यक्ति की देखभाल नहीं कर रहा है तो कोर्ट के अनुसार उन्हें पुनर्वास केंद्र भेज जाएगा. गरिमा गृह योजना ना केवल ये देखेगी कि उन्हें सुरक्षित जगह मिल रही है बल्कि ये भी देखेगी कि इससे उनका सशक्तिकरण हो रहा है या नहीं.

हाल ही में चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडरों के लिए योजना के तहत गरिमा गृह स्थापित करने के लिए अधिकारियों को सूचित किया है. यह एक ऐसी योजना है जो सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी के लिए बीमा कवरेज का प्रावधान करती है.

चंडीगढ़ के अतिरिक्त उपायुक्त अमित कुमार को भी अदालत में पेश किया गया और कहा गया कि भविष्य में बोर्ड की बैठकें त्रैमासिक...

हर इंसान, चाहे वो स्त्री हो पुरुष उसके लिये गरिमा सम्मान के साथ जीना कितना आसान है. उसे किसी भेद भाव का या समाज का कोई डर नही है. वहींजब हम किसी  ट्रांसजेंडर या LGBT समुदाय के व्यक्ति से बात करते हैं तो हमें पता चलता है कि उनकी ज़िन्दगी में गरिमा शब्द कितना अहमियत रखता है. ये लोग आए दिन हिजड़ा, छक्का जैसे शब्द सुनते हैं और ये लोग इस शब्द को इतना ज्यादा सुन चुके हैं कि अब तो इन्होने इसे दरकिनार करना शुरू कर दिया है. 

जैसी स्थिति है हर जगह भेदभाव झेलना ट्रांसजेंडर्स की नियति में शामिल हो गया है. अब तक इनकी आवाज सरकार के अलावा शायद ही किसी ने सुनी हो.जिसने Section 8(4) of the TG Act 2019 के तहत ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए तथा उनको आजीविका प्रदान करने के लिए गरिमा गृह योजना की शुरुआत की है.

ट्रांसजेंडर्स को आज भी सभ्य समाज अच्छी नजरों से नहीं देखता

गरिमा गृह का निर्माण एक ओर चीज़ के साथ संलगन है. वो है एक ऐसा प्रोवीजन जो कि Sec 12(3) of TG ACT 2019 के तहत है. अगर कोई व्यक्ति या माता-पिता ट्रांसजेंडर व्यक्ति की देखभाल नहीं कर रहा है तो कोर्ट के अनुसार उन्हें पुनर्वास केंद्र भेज जाएगा. गरिमा गृह योजना ना केवल ये देखेगी कि उन्हें सुरक्षित जगह मिल रही है बल्कि ये भी देखेगी कि इससे उनका सशक्तिकरण हो रहा है या नहीं.

हाल ही में चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा के उच्च न्यायालय ने ट्रांसजेंडरों के लिए योजना के तहत गरिमा गृह स्थापित करने के लिए अधिकारियों को सूचित किया है. यह एक ऐसी योजना है जो सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी के लिए बीमा कवरेज का प्रावधान करती है.

चंडीगढ़ के अतिरिक्त उपायुक्त अमित कुमार को भी अदालत में पेश किया गया और कहा गया कि भविष्य में बोर्ड की बैठकें त्रैमासिक आयोजित की जाएंगी. जनहित याचिका न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल की खंडपीठ को सौंपी गई थी, जिसे छात्र याशिका ने अधिवक्ता मनिंदरजीत सिंह, पंजाब विश्वविद्यालय के साथ मिलकर तैयार किया था. 

याशिका पंजाब यूनिवर्सिटी में पोस्ट-ग्रेजुएट की छात्रा है और ट्रांसजेंडर होने के कारण छात्रावास में जगह नही दी गई थी. बाद में याचिका के दायर करने के बाद महिला आवास में रहने को जगह दी गई है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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