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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने महेंद्र सिंह धोनी की तरह खेलने की चुनौती

    • आईचौक
    • Updated: 29 जून, 2018 05:26 PM
  • 29 जून, 2018 05:26 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखें तो मिलता है कि न सिर्फ उन्हें चौतरफा आलोचना का सामना करना पड़ रहा है बल्कि उनका वर्तमान राजनीतिक जीवन चुनौतियों से भरा हुआ है.

देश के सबसे उर्जावान नेताओं में शुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाख कोशिशों के बावजूद अर्थव्यवस्था पटरी पर आने का नाम ही नहीं ले रही है. कड़वी दवा से लेकर बिजनेस डिप्लोमेसी तक सब आज़मा लिया गया लेकिन भारत की मुद्रा रुपया, विश्व नेता बन चुके मोदी को लगातार चिढ़ा रहा है और अब इसने हद कर दी है और 1 डॉलर के मुकाबले 69 के आंकड़े को छू गया है. जो पहले कभी नहीं हुआ वो इस चुनावी साल में होने के कारण ऐसा लगने लग गया है कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों में दम नहीं है. झटका अगर एक मोर्चे पर लगे तो चिंता की कोई ख़ास बात नहीं होती है लेकिन यहां तो हर मोर्चे पर मोदीनॉमिक्स फेल हो रही है. इस बात को हम आरबीआई की एक रिपोर्ट सेसमझ सकते हैं. आरबीआई की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आने वाले दिनों में बैंकों का एनपीए 12.2% से बढ़कर 13.3% तक हो सकता है.

वर्तमान परिपेक्ष में पीएम मोदी के सबसे एक से बढ़कर एक चुनौतियां हैं

इसके अलावा तेल की बढ़ी हुई कीमतों के कारण भी सरकार सवालों के घेरे में है. माना जा रहा है कि कच्चे तेल के बढ़ते दामों ने भी रुपए में आग लगाने का काम किया है. बात अगर एयर इंडिया की हो तो उसे भी कोई खरीदार नहीं मिल रहा है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार हिचकोले खा रहा है. बेरोज़गारी पर कुछ हद तक लगाम लगी है लेकिन देश की जनसंख्या उसमे लगातार संतुलन बनाने का काम कर रही है. देश पहली बार सबसे ज्यादा  गरीब लोगों की सूची से बाहर तो निकला लेकिन अभी भी 7 करोड़ से ज्यादा लोग भयंकर गरीबी में रहकर जीवन जीने को मजबूर हैं.

मोदी सरकार की कुछ योजनाओं ने ठीक ठाक हलचल मचाई है लेकिन उन योजनाओं का उसे कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा ये अभी समय के अधीन है. भारत में किसानों के मुद्दे को सुलझाना अब इंसानो के वश में नहीं रहा इसलिए थोड़ा धैर्य रखिये और किसी...

देश के सबसे उर्जावान नेताओं में शुमार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लाख कोशिशों के बावजूद अर्थव्यवस्था पटरी पर आने का नाम ही नहीं ले रही है. कड़वी दवा से लेकर बिजनेस डिप्लोमेसी तक सब आज़मा लिया गया लेकिन भारत की मुद्रा रुपया, विश्व नेता बन चुके मोदी को लगातार चिढ़ा रहा है और अब इसने हद कर दी है और 1 डॉलर के मुकाबले 69 के आंकड़े को छू गया है. जो पहले कभी नहीं हुआ वो इस चुनावी साल में होने के कारण ऐसा लगने लग गया है कि मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों में दम नहीं है. झटका अगर एक मोर्चे पर लगे तो चिंता की कोई ख़ास बात नहीं होती है लेकिन यहां तो हर मोर्चे पर मोदीनॉमिक्स फेल हो रही है. इस बात को हम आरबीआई की एक रिपोर्ट सेसमझ सकते हैं. आरबीआई की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आने वाले दिनों में बैंकों का एनपीए 12.2% से बढ़कर 13.3% तक हो सकता है.

वर्तमान परिपेक्ष में पीएम मोदी के सबसे एक से बढ़कर एक चुनौतियां हैं

इसके अलावा तेल की बढ़ी हुई कीमतों के कारण भी सरकार सवालों के घेरे में है. माना जा रहा है कि कच्चे तेल के बढ़ते दामों ने भी रुपए में आग लगाने का काम किया है. बात अगर एयर इंडिया की हो तो उसे भी कोई खरीदार नहीं मिल रहा है और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी लगातार हिचकोले खा रहा है. बेरोज़गारी पर कुछ हद तक लगाम लगी है लेकिन देश की जनसंख्या उसमे लगातार संतुलन बनाने का काम कर रही है. देश पहली बार सबसे ज्यादा  गरीब लोगों की सूची से बाहर तो निकला लेकिन अभी भी 7 करोड़ से ज्यादा लोग भयंकर गरीबी में रहकर जीवन जीने को मजबूर हैं.

मोदी सरकार की कुछ योजनाओं ने ठीक ठाक हलचल मचाई है लेकिन उन योजनाओं का उसे कितना राजनीतिक लाभ मिलेगा ये अभी समय के अधीन है. भारत में किसानों के मुद्दे को सुलझाना अब इंसानो के वश में नहीं रहा इसलिए थोड़ा धैर्य रखिये और किसी दैवीय चमत्कार का इंतजार कीजिये.

इन बातों के अलावा 'विदेश' से भी लगातार पीएम मोदी की नाक में दम किया जा रहा है. ईरान से तेल की खरीद फरोख्त को लेकर अमेरिका से गाइड लाइन जारी हुई. ध्यान रहे कि भारत बहुत बड़ी मात्रा में ईरान से कच्चे तेल का आयात करता है. अमेरिका ने हाल ही में उन देशों को अपने चिर-परिचित अंदाज़ में धमकी दी है जो ईरान से कच्चे तेल का आयात करते हैं और व्यापारिक सम्बन्ध रखते हैं. नवंबर तक इन देशों को ईरान से अपने ट्रेड को बंद करना होगा नहीं तो उन्हें अमेरिका की नाराज़गी झेलनी पड़ सकती है.

कहीं न कहीं अमेरिका ने भी मोदी सरकार की मुसीबत में इजाफा करने का काम किया है गौरतलब है कि भारत ने हाल ही में चीन और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के मुकाबले में ईरान से चाबहार पोर्ट को विकसित करने के लिए समझौता किया है.जो कि सामरिक रूप से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि भारत इस रूट के ज़रिये सीधे अफगानिस्तान और यूरोप तक पहुंच जायेगा. लेकिन अमेरिका की अप्रत्यक्ष धमकी के बाद इस योजना के ऊपर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं. ऐसे में भारत अमेरिका को मनाने के लिए अफगानिस्तान कार्ड का इस्तेमाल कर सकता है लेकिन कहावत है न बहुत कठिन डगर है, पनघट की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आर्थिक मोर्चों के साथ -साथ राजनीतिक मोर्चे पर भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. भारतीय राजनीति के सबसे बड़े अवसरवादी नेताओं में से एक नीतीश कुमार किसी भी वक्त 'अंतरात्मा की आवाज़' को सुनते हुए पलटी मार सकते हैं. नीतीश कभी बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्ज़ा मांग रहे हैं तो कभी बिहार में लोकसभा की 25 सीटें. ऐसे में पीएम मोदी कंफ्यूज हो गए हैं कि वास्तव में उनको चाहिए क्या? ऐसे भी ये नीतीश कुमार हैं जब इनके गुरुजॉर्ज फर्नांडिस उन्हें नहीं समझ पाएं तो मोदी जी को लंघी मारने में इनको ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी. शिवसेना पहले से ही बेवफा सनम की तरह व्यवहार कर रही है.

नीतीश के रवैये को लेकर भी सरकार के सामने संदेह की स्थिति बनी हुई है

इन बातों के अलावा विपक्षी एकता ने भी भाजपा विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी की नाक में दम कर रखा है. इन दिनों राहुल गांधी की क्रिएटिविटी सातवें आसमान पर है. अखिलेश यादव अपनी बुआ के लिए और अपने बंगले का बदला लेने के लिए कुछ सीटों का बलिदान करने के लिए अलग से तैयार हैं. योगी आदित्यनाथ जातीय समीकरण तो छोड़िये हिंदुत्व को भी नहीं साध पा रहे हैं. संत समाज और प्रवीण तोगड़िया राम मंदिर का निर्माण नहीं होने से खफ़ा हैं.

देश के सबसे बड़े राज्य में संगठन और पार्टी के बीच आंतरिक गुटबाज़ी चरम सीमा पर है. इन सब बातों के बावजूद  कुछ राजनीतिक विश्लेषक देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महेंद्र सिंह धोनी की तरह मानते हैं जो अंतिम समय में बाज़ी पलटने का पूरा माद्दा रखते हैं.

कंटेंट - विकास कुमार (इंटर्न इंडिया टुडे)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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