• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

डॉक्टर कफील : जो कल का हीरो था, वही आज सिलेंडर चोर है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 15 अगस्त, 2017 10:34 AM
  • 15 अगस्त, 2017 10:34 AM
offline
जिस मीडिया ने डॉक्टर कफील खान को हीरो बनाया था, जब उसकी हकीकत खुली, तो ऐसे कई राज निकल के बाहर आए जो ये दर्शाते हैं कि जिसे पूर्व में मीडिया और हम रक्षक मान रहे थे असल में वो रक्षक नहीं भक्षक था.

मीडिया के बारे में मशहूर है कि ये बड़ी निर्मोही है. इसके द्वारा पल भर में किसी को फरिश्ता तो किसी को हैवान घोषित किया जा सकता है. यानी ये मीडिया ही है, जिसके द्वारा कम समय में, किसी को फर्श से अर्श पर लाया जा सकता है और अर्श से फर्श पर वापस पटका जा सकता है.

इतनी बातों को पढ़ते हुए और अगर गोरखपुर त्रासदी आपके जहन में होगी तो आप बात का सार समझ गए होंगे. जी हां सही समझा आपने. हमारा इशारा डॉक्टर कफील खान और उनकी करतूतों की तरफ है. वही कफील खान जिन्हें मीडिया द्वारा रातों रात हीरो बना दिया गया. कफील को लेकर मीडिया ने यही पेश किया कि उत्तर प्रदेश के खौफनाक अँधेरे में वही रौशनी की आखिरी मोमबत्ती है, उजाले के लिए सर्द हवाओं से लड़ता अंतिम दिया है.

डॉक्टर कफील पर पूर्व में भी कई गंभीर आरोप लग चुके हैं

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जापानी इन्सेफेलाइटिस से हुई बच्चों की अकाल मौत के बाद. जो बातें निकल के सामनें आई थी वो ये कि कैसे इन्सेफेलाइटिस विभाग के प्रमुख डॉक्टर कफील खान ने मरीजों को ऑक्सीजन के सिलेंडर मुहैया कराए और उसको दूसरी जगहों से मंगवाने के लिए 'अपनी जेब से पैसे खर्च किये'.

जैसे-जैसे दिन बीता ये भी निकल कर आया कि कफील ने जो किया वो एक सोची समझी साजिश के तहत किया था. वो खुद मीडिया के सामने हीरो वाली छवि बनाने के लिए प्रयासरत थे और इस पर मीडिया ने भी उनका पूरा साथ दिया. ज्ञात हो कि सरकार के नियमों के विरुद्ध जाकर प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर कफील खान के ऊपर पूर्व में भी गबन, धांधली, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ जैसे कई गंभीर आरोप लगे थे.

गौरतलब है कि, वर्तमान में, मीडिया समेत सम्पूर्ण सोशल मीडिया पर तमाम तरह की आलोचना के शिकार, डॉक्टर कफील इन्सेफेलाइटिस विभाग के प्रमुख के पद से हटाए जा चुके हैं. साथ ही इस मुद्दे...

मीडिया के बारे में मशहूर है कि ये बड़ी निर्मोही है. इसके द्वारा पल भर में किसी को फरिश्ता तो किसी को हैवान घोषित किया जा सकता है. यानी ये मीडिया ही है, जिसके द्वारा कम समय में, किसी को फर्श से अर्श पर लाया जा सकता है और अर्श से फर्श पर वापस पटका जा सकता है.

इतनी बातों को पढ़ते हुए और अगर गोरखपुर त्रासदी आपके जहन में होगी तो आप बात का सार समझ गए होंगे. जी हां सही समझा आपने. हमारा इशारा डॉक्टर कफील खान और उनकी करतूतों की तरफ है. वही कफील खान जिन्हें मीडिया द्वारा रातों रात हीरो बना दिया गया. कफील को लेकर मीडिया ने यही पेश किया कि उत्तर प्रदेश के खौफनाक अँधेरे में वही रौशनी की आखिरी मोमबत्ती है, उजाले के लिए सर्द हवाओं से लड़ता अंतिम दिया है.

डॉक्टर कफील पर पूर्व में भी कई गंभीर आरोप लग चुके हैं

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जापानी इन्सेफेलाइटिस से हुई बच्चों की अकाल मौत के बाद. जो बातें निकल के सामनें आई थी वो ये कि कैसे इन्सेफेलाइटिस विभाग के प्रमुख डॉक्टर कफील खान ने मरीजों को ऑक्सीजन के सिलेंडर मुहैया कराए और उसको दूसरी जगहों से मंगवाने के लिए 'अपनी जेब से पैसे खर्च किये'.

जैसे-जैसे दिन बीता ये भी निकल कर आया कि कफील ने जो किया वो एक सोची समझी साजिश के तहत किया था. वो खुद मीडिया के सामने हीरो वाली छवि बनाने के लिए प्रयासरत थे और इस पर मीडिया ने भी उनका पूरा साथ दिया. ज्ञात हो कि सरकार के नियमों के विरुद्ध जाकर प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर कफील खान के ऊपर पूर्व में भी गबन, धांधली, महिलाओं के साथ छेड़छाड़ जैसे कई गंभीर आरोप लगे थे.

गौरतलब है कि, वर्तमान में, मीडिया समेत सम्पूर्ण सोशल मीडिया पर तमाम तरह की आलोचना के शिकार, डॉक्टर कफील इन्सेफेलाइटिस विभाग के प्रमुख के पद से हटाए जा चुके हैं. साथ ही इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए डॉक्टर कफील का मत है कि, 'लोग उन्हें बेवजह साजिश का शिकार बना रहे हैं और इस मुद्दे को हिन्दी मुस्लिम का रंग दे रहे हैं.' कफील ने ये भी कहा है कि, उन्होंने जो भी किया वो सेवा की भावना लिए एक डॉक्टर की हैसियत से किया और उनके विरोधी इस बात को लेकर उन्हें फंसाना चाह रहे हैं.'

डॉक्टर कफील की अच्छाइयों की पोल खोलता पत्रकार नीलेश मिश्र का ट्वीट

बहरहाल, लेखक और पत्रकार निलेश मिश्रा ने ट्विटर पर इस घटना की निंदा की है और कहा है कि कफील जैसे लोगों को मीडिया द्वारा बेवजह हीरो बनाया जा रहा है जबकि सच्चाई कुछ और है. नीलेश के ट्वीट पर यकीन करें तो मिलता है कि डॉक्टर कफील ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऐसे विज्ञापन लगवा रखे थे जिसमें उन्होंने लोगों को सरकारी अस्पताल के बजाए अपने क्लिनिक में भर्ती होने को कहा था और इसका कफील जम के प्रचार और प्रसार कर रहे थे.

डॉक्टर कफील के कारनामें दर्शाता नीलेश का दूसरा ट्वीट

कफील के ऊपर लगे आरापों पर नजर डालें तो मिलता है कि, ये मामले बेबुनियाद नहीं हैं इनके पीछे कुछ वजहें हैं. डॉ. कफील मेडिकल कॉलेज की खरीद कमेटी के मेंबर रहे हैं. उन्हें इस बात की पूरी जानकारी थी कि अस्पताल में ऑक्सीजन किसी भी वक्त खत्म हो सकती है. बताया ये भी जा रहा है कि, बीते दिनों जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मेडिकल कॉलेज के दौरे पर आए थे डॉक्टर कफील मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द घूमते तो नजर आए मगर उन्होंने मुख्यमंत्री को ऑक्सीजन की बकाया रकम के बारे में कुछ नहीं बताया.

कफील और कॉलेज के प्रिंसिपल डॉक्टर राजीव मिश्रा को लेकर ये भी बातें उड़ रही हैं कि डॉक्टर कफील वहां होने वाली हर खरीद में कमीशन लेता था और उसका एक तय हिस्सा प्रिंसिपल राजीव मिश्रा तक पहुंचाता था. ऑक्सीजन कंपनी पुष्पा सेल्स के साथ चल रहे विवाद में भी राजीव मिश्रा के साथ कफील का बड़ा हाथ था.

मेडिकल कॉलेज में कर्मचारियों के बीच उड़ रही बातों पर यकीन करें तो शुक्रवार को जब बच्चों की मौत की खबर पर हंगामा चल रहा था तो कफील अपने प्राइवेट अस्पताल में मरीजों का इलाज कर रहे थे. वहीं से डॉक्टर कफील ने कुछ सिलेंडरों को अस्पताल भिजवा दिया. बताया ये भी जा रहा है कि जो सिलेंडर अस्पताल आए वो चोरी के सिलेंडर थे जिन्हें डॉक्टर कफील अपने साथ अस्पताल ले गए थे.

गोरखपुर मामले के मद्देनजर एक के बाद एक कई घिनौने रहस्य खुल कर सामने आ रहे हैं जो ये बताने के लिए काफी हैं कि समूचा स्वास्थ्य महकमा न सिर्फ  गंभीर भ्रष्टाचार का शिकार हैं बल्कि उसे इस बात की भी परवाह नहीं कि उनकी इन दो कौड़ी की हरकतों से निर्दोष और भोले भाले बच्चों की जान पर बन आई है.

अंत में इतना ही कि इस देश के नागरिक के तौर पर हमारे लिए ये भी देखना दिलचस्प रहेगा कि आखिर ऐसी क्या वजहें थी जिनके चलते स्वास्थ्य विभाग ने अब कफील पर लगे आरोपों की सुध ली और उन्हें उनकी सेवाओं से बर्खास्त किया. एक नागरिक के तौर पर हम सरकार से, इस आशा के साथ जवाब तलब करते हैं कि वो हमें, हमारे सवालों का जवाब देगी और बताएगी कि जब कफील इतना भ्रष्ट व्यक्ति था तो वो कैसे अस्पताल में अपनी सेवाएं दे रहा था.

ये भी पढ़ें -

मैं भी अगस्त में जन्मा था, नैतिकता के नाते मुझे भी मर जाना चाहिए

गोरखपुर जैसी समस्याओं का समाधान हमारे ही हाथों में है

गोरखपुर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बच्चों की मौत के ये हैं 7 कसूरवार

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲