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25 कड़वे सवाल, जिनपर चिंतन करना मुसलमानों के हित में!

    • अभिरंजन कुमार
    • Updated: 12 अगस्त, 2017 08:21 PM
  • 12 अगस्त, 2017 08:21 PM
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हम धर्म से जुड़े प्रसंगों की बजाय जनता के बुनियादी मुद्दों पर बहस करना चाहते हैं, लेकिन देश और दुनिया का माहौल कुछ ऐसा हो चला है कि बार-बार उन्हीं प्रसंगों पर चर्चा छिड़ जाती है.

हम धर्म से जुड़े प्रसंगों की बजाय जनता के बुनियादी मुद्दों पर बहस करना चाहते हैं, लेकिन देश और दुनिया का माहौल कुछ ऐसा हो चला है कि बार-बार उन्हीं प्रसंगों पर चर्चा छिड़ जाती है. हामिद अंसारी प्रसंग ने मुझे फिर से इन सवालों पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है-

1. मुसलमानों को बहकाना इतना आसान क्यों है?

2. उनकी राजनीति करने वाले लोग अधिक शातिर हैं या मुसलमान अधिक बेवकूफ़ हैं?

3. मुसलमान मोदी से लड़ने की बजाय पहले इनसे क्यों नहीं लड़ लेते?

4. अगर मुसलमान इनसे लड़कर इन्हें अप्रासंगिक कर दें, तो क्या उन्हें मोदी से लड़ने की ज़रूरत रहेगी?

5. मुसलमान धर्म के लिए जितना लड़ते हैं, उतना अपने बच्चों के भविष्य के लिए क्यों नहीं लड़ते?

6. धर्म ने मुसलमानों को आततायी शासकों, आतंकवाद, बदनामी और घुटन के सिवा दिया क्या है?

7. मुसलमान जितना अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं, उतना दूसरे समुदायों की सुरक्षा के लिए चिंतित क्यों नहीं रहते?

8. देश के हिन्दू जितने एक-एक अखलाक या एक-एक जुनैद के लिए उद्वेलित दिखते हैं, देश के मुसलमान तीन लाख कश्मीरी पंडितों के लिए भी कभी उतने उद्वेलित क्यों नहीं दिखे?

9. अगर मुसलमान दूसरे समुदाय के लोगों के लिए उद्वेलित दिखने लगें, तो क्या आतंकवाद एक भी दिन ठहर पाएगा?

10. अगर मुसलमान दूसरे समुदाय के लोगों के लिए उद्वेलित दिखने लगें, तो क्या दुनिया में एक भी दिन उनके प्रति नफ़रत ठहर पाएगी?

11. मुसलमान जब कोई नया देश बनाते हैं, तो प्रायः वहां वे धर्मनिरपेक्षता क्यों नहीं...

हम धर्म से जुड़े प्रसंगों की बजाय जनता के बुनियादी मुद्दों पर बहस करना चाहते हैं, लेकिन देश और दुनिया का माहौल कुछ ऐसा हो चला है कि बार-बार उन्हीं प्रसंगों पर चर्चा छिड़ जाती है. हामिद अंसारी प्रसंग ने मुझे फिर से इन सवालों पर सोचने के लिए मजबूर कर दिया है-

1. मुसलमानों को बहकाना इतना आसान क्यों है?

2. उनकी राजनीति करने वाले लोग अधिक शातिर हैं या मुसलमान अधिक बेवकूफ़ हैं?

3. मुसलमान मोदी से लड़ने की बजाय पहले इनसे क्यों नहीं लड़ लेते?

4. अगर मुसलमान इनसे लड़कर इन्हें अप्रासंगिक कर दें, तो क्या उन्हें मोदी से लड़ने की ज़रूरत रहेगी?

5. मुसलमान धर्म के लिए जितना लड़ते हैं, उतना अपने बच्चों के भविष्य के लिए क्यों नहीं लड़ते?

6. धर्म ने मुसलमानों को आततायी शासकों, आतंकवाद, बदनामी और घुटन के सिवा दिया क्या है?

7. मुसलमान जितना अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं, उतना दूसरे समुदायों की सुरक्षा के लिए चिंतित क्यों नहीं रहते?

8. देश के हिन्दू जितने एक-एक अखलाक या एक-एक जुनैद के लिए उद्वेलित दिखते हैं, देश के मुसलमान तीन लाख कश्मीरी पंडितों के लिए भी कभी उतने उद्वेलित क्यों नहीं दिखे?

9. अगर मुसलमान दूसरे समुदाय के लोगों के लिए उद्वेलित दिखने लगें, तो क्या आतंकवाद एक भी दिन ठहर पाएगा?

10. अगर मुसलमान दूसरे समुदाय के लोगों के लिए उद्वेलित दिखने लगें, तो क्या दुनिया में एक भी दिन उनके प्रति नफ़रत ठहर पाएगी?

11. मुसलमान जब कोई नया देश बनाते हैं, तो प्रायः वहां वे धर्मनिरपेक्षता क्यों नहीं चुनते?

12. मुसलमान जब कोई नया देश बनाते हैं, तो वहां वे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित क्यों नहीं कर पाते?

13. मुसलमान जब कोई नया देश बनाते हैं, तो अपने ही बीच के लोगों को भी शिया-सुन्नी और ऐसे ही अनेक आधारों पर मारना शुरू क्यों कर देते हैं?

14. मुसलमान जब कोई नया देश बनाते हैं, तो वहां की हवाओं में नागरिकों के लिए आज़ादी की सांस कम क्यों हो जाती है?

15. जब किसी देश में इस्लामिक कानून लागू होता है, तो महिलाओं की आज़ादी, इबादत की आज़ादी, अभिव्यक्ति की आज़ादी, शिक्षा, संगीत इत्यादि ख़तरे में क्यों पड़ जाते हैं?

16. एक आम मुसलमान 1400 साल पुरानी एक किताब से आगे क्यों नहीं सोच पाता?

17. इस्लामिक सरकारें चलाने वाले लोग भी उसी 1400 साल पुरानी किताब को आधार मानते हैं और इस्लाम के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले लोग भी उसी 1400 साल पुरानी किताब का हवाला देते हैं- इस विरोधाभास को ख़त्म करने के लिए जिस वैचारिक लचीलेपन, समझदारी और प्रगतिशीलता की ज़रूरत है, मुसलमान उसे अपने जीवन में जगह क्यों नहीं दे पाते?

18. एक आम मुसलमान पर अपने धर्म के पालन, प्रचार और विस्तार करने का इतना दबाव क्यों रहता है? क्यों नहीं उसे आज़ादी है कि अगर धर्म से इतर उसे कोई ख़ूबसूरत विचार दिखे, तो अपना ले?

19. यहां तक कि शादी-ब्याह जैसे प्रसंगों को भी मुसलमान अपने धर्म के विस्तार का माध्यम क्यों बना लेते हैं? मसलन, बेटा अगर दूसरे धर्म की लड़की लाए, तो ख़ुश हो जाते हैं, पर बेटी अगर दूसरे धर्म के लड़के के साथ चली जाए, तो पहाड़ टूट पड़ता है, क्यों?

20. धर्म का इतना विस्तार करके मुसलमानों को क्या मिलेगा? अगर दुनिया में सिर्फ़ इस्लाम का राज स्थापित हो जाए या कोई "काफ़िर" न बचे, तो इस्लाम किस तरह दुनिया के तमाम लोगों के जीवन और अधिकारों की सुरक्षा करेगा?

21. अगर दुनिया में सिर्फ़ इस्लाम रह जाए, तो दुनिया में शांति स्थापित हो जाएगी या मार-काट और बढ़ जाएगी?

22. इस्लामिक देशों में मची मार-काट को देखकर मुसलमानों का भ्रम क्यों नहीं टूटता?

23. क्या कुर्बानी जैसी कु-प्रथाओं के चलते मुसलमानों में हिंसा-वृत्ति बढ़ती है?

24. क्या 80-85 प्रतिशत की मेजॉरिटी रखते हुए मुसलमान दुनिया में भारत जैसा एक भी बड़ा और विविधतापूर्ण देश बना सकते हैं, जहां सभी धर्मों के लोगों के लिए बराबर दर्द महसूस किया जाता हो?

25. मुसलमानों को अगर एपीजे अब्दुल कलाम और हामिद अंसारी में से एक को चुनना पड़े, तो किसे चुनेंगे?

डिस्क्लेमर: उपरोक्त सारे सवाल मुसलमानों के लिए दर्द महसूस करते हुए पूछे गए हैं, इसलिए कोई इन्हें अपने विरोध में न समझे, न ही व्यक्तिगत ले, न ही हर मुसलमान के लिए लागू समझे. मुसलमान सोचे कि पूरी दुनिया में उसके प्रति नफ़रत क्यों बढ़ती जा रही है? मुसलमान तय करे कि उसके प्रति बढ़ती हुई इस नफ़रत के लिए वह केवल दूसरों को ही ज़िम्मेदार ठहराएगा या कुछ आत्म-चिंतन भी करेगा?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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