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देखिए नेताओं से किस अंदाज में बात करता है पुणे

    • पंकज खेलकर
    • Updated: 20 फरवरी, 2017 08:59 PM
  • 20 फरवरी, 2017 08:59 PM
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महाराष्ट्र में पुणे शहर के लोगों का अपनी बात कहने का व्यंगात्मक और हंसाने वाला एक अलग अंदाज है जो किसी और प्रदेश में शायद ही देखने को मिले.

राज्य-प्रांत-देश-प्रदेश में जैसे लोगों की बोली बदलती जाती है, वैसे ही वहां के लोगों का बात करने का तरीका भी बदलता जाता है. महाराष्ट्र में पुणे शहर के लोगो का अपनी बात कहने का व्यंगात्मक और हंसाने वाला एक अलग अंदाज है जो किसी और प्रदेश में शायद ही देखने को मिले. पुणे की पुणेरी पाट्या, ये एक दिलचस्प तरीका है अपनी बात कहने का जो यहां के लोग (ख़ास करके पेठ इलाको में रहने वाले), नेताओ को उनकी गलतियां बताने के लिए बेख़ौफ़ इस्तेमाल करते है.

पुणेरी पाट्या के माध्यम से यहां के लोग अपनी दिल की बात कुछ ऐसे चुटीले लेकिन तीखे अंदाज में कह जाते हैं, कि सामने वाले को चोट तो पहुंचती है लेकिन वो जाहिर नहीं कर पाता, सिवाय चुप रहकर सहन करने के. उदाहरण के तौर पर, फिलहाल देश के पांच राज्यो में जहां विधानसभा चुनाव की गहमा गहमी है, वहीं महाराष्ट्र में दस महानगरपालिका चुनाव और अनेक ज़िला परिषद् के चुनाव प्रचार अपने आखरी चरण में है, ऐसे में राजनितिक पार्टियों के प्रत्याशी वोटरों को लुभाने के लिए जी जान एक करके, वोटरों को रिझाते हुए नजर आ रहे है. स्वाभाविक है के पांच साल अगर कोई नगरसेवक उनके जिम्मेदारी से चूके है तो उन्हें उनकी गलती का एहसास हो इसके लिए कुछ त्रस्त पुणे के नागरिको ने इस पुणेरी पाटी के जरिए उनका घुस्सा नगरसेवकों तक पहुंचाने का प्रयास किया है.

पुणे के पेठ इलाके के गलियो में ऐसी ही एक पुणेरी पाटी इलेक्ट्रिक पोल पर लगा दी हैं. ये पुणेरी पाटी किसने लगायी है, कौन लगाता है ये आजतक किसी को नहीं पता, ना ही कोई ये जानने का प्रयास करते है, लेकिन एक बात सच है के इस पुणेरी पाटी का लोग भरपूर आंनद लेते है और कामचोर नेताओ पर हस्ते है. चित्र और लिखाई से जो देखो वो इसे देखने लिए रुक जाता है. लोगो में इस बात की चर्चा भी कई दिनों तक होती रहती है. हर एक शहर के नगरसेवकों की आदते लगभग एक जैसी ही होती है. एक बार चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो अगले चुनाव तक, नेता का चेहरा जनता को देखना नसीब नहीं होता. ऐसे नेताओ के कान खीचने की ये एक कोशिश.

राज्य-प्रांत-देश-प्रदेश में जैसे लोगों की बोली बदलती जाती है, वैसे ही वहां के लोगों का बात करने का तरीका भी बदलता जाता है. महाराष्ट्र में पुणे शहर के लोगो का अपनी बात कहने का व्यंगात्मक और हंसाने वाला एक अलग अंदाज है जो किसी और प्रदेश में शायद ही देखने को मिले. पुणे की पुणेरी पाट्या, ये एक दिलचस्प तरीका है अपनी बात कहने का जो यहां के लोग (ख़ास करके पेठ इलाको में रहने वाले), नेताओ को उनकी गलतियां बताने के लिए बेख़ौफ़ इस्तेमाल करते है.

पुणेरी पाट्या के माध्यम से यहां के लोग अपनी दिल की बात कुछ ऐसे चुटीले लेकिन तीखे अंदाज में कह जाते हैं, कि सामने वाले को चोट तो पहुंचती है लेकिन वो जाहिर नहीं कर पाता, सिवाय चुप रहकर सहन करने के. उदाहरण के तौर पर, फिलहाल देश के पांच राज्यो में जहां विधानसभा चुनाव की गहमा गहमी है, वहीं महाराष्ट्र में दस महानगरपालिका चुनाव और अनेक ज़िला परिषद् के चुनाव प्रचार अपने आखरी चरण में है, ऐसे में राजनितिक पार्टियों के प्रत्याशी वोटरों को लुभाने के लिए जी जान एक करके, वोटरों को रिझाते हुए नजर आ रहे है. स्वाभाविक है के पांच साल अगर कोई नगरसेवक उनके जिम्मेदारी से चूके है तो उन्हें उनकी गलती का एहसास हो इसके लिए कुछ त्रस्त पुणे के नागरिको ने इस पुणेरी पाटी के जरिए उनका घुस्सा नगरसेवकों तक पहुंचाने का प्रयास किया है.

पुणे के पेठ इलाके के गलियो में ऐसी ही एक पुणेरी पाटी इलेक्ट्रिक पोल पर लगा दी हैं. ये पुणेरी पाटी किसने लगायी है, कौन लगाता है ये आजतक किसी को नहीं पता, ना ही कोई ये जानने का प्रयास करते है, लेकिन एक बात सच है के इस पुणेरी पाटी का लोग भरपूर आंनद लेते है और कामचोर नेताओ पर हस्ते है. चित्र और लिखाई से जो देखो वो इसे देखने लिए रुक जाता है. लोगो में इस बात की चर्चा भी कई दिनों तक होती रहती है. हर एक शहर के नगरसेवकों की आदते लगभग एक जैसी ही होती है. एक बार चुनाव के नतीजे घोषित हुए तो अगले चुनाव तक, नेता का चेहरा जनता को देखना नसीब नहीं होता. ऐसे नेताओ के कान खीचने की ये एक कोशिश.

इस पुनेरी पाटी पर लिखा है - 'गुमशुदा नगरसेवक मिल गये है. वो फिरसे आ गए हैं हमे मिलने के लिए. 2012 से 2017 तक ये गुम हो गए थे. 2017 में वो मिल गए है.'

अब और एक पुणेरी पाटी देखिये- जो बता रही है के पुणे के लोग समय को अहमियत देते है, चाहे आप कितने ही  बड़े क्यों न हो, लेकिन मिलने के लिए सही समय और वक्त को अहमियत देने वाले ही पुणे के लोगो को पसंद है. चुनाव प्रचार के दौरान दिन भर नेता घर-घर जाकर लोगो को विनती करते रहते हैं, लेकिन पुणे का वोटर साफ़ बताने को नहीं चूकते के दोपहर का समय वो किसी से परेशान होना नहीं चाहते. ये पुणेरी पाटी एक नागरिक ने घर के दीवार पर दरवाजे के घंटी के ठीक नीचे चिपका दी है, ताकि आनेवाला नेता और उसके कार्यकर्ता पढ़े और उन्हें परेशान न करे. 

वोटर दोपहर को सोते है, तो कृप्या दोपहर के समय डोर बेल न बजाय, अन्यथा वोट नहीं मिलेंगा.

और शायद पुणे वासियो की ये आदत है जिस वजह से शनिवार को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की सभा में महज कुछ लोग जुटे, अधिकतर कुर्सियां खाली पड़ी नजर आयी. विरोधी नेता कितनी ही आलोचना करें कि, भाजपा से पुणेवासी नाराज है, लेकिन ये बात भी उतनी ही सच है कि इस शहर के लोगो को अभी भी दोपहर में; एक बजे से श्याम चार  बजे तक घर में आराम करने की आदत है, जिसे वो वामकक्षी कहते है. इस प्रगतिशील शहर को अनेक ख़िताब से नवाजा गया है, जैसे ऑक्सफ़ोर्ड ऑफ़ ईस्ट, डेट्रॉइट ऑफ़ ईस्ट, देश का आईटी कैपिटल, लेकिन ये सांस्कृतिक शहर  अपना पेंशनर्स पैरेडाईस का खिताब अभी भी छोड़ने को तैयार नहीं है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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