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अब खूनी होने लगी हैं अफवाहें

    • गिरिजेश वशिष्ठ
    • Updated: 01 मार्च, 2016 05:54 PM
  • 01 मार्च, 2016 05:54 PM
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भारत में राजनीतिक अफवाहों का बाजार पुराना है. बड़ी बात ये है कि इन अफवाहों का बार बार खंडन हुआ लेकिन फिर भी कई जिंदा हैं. अफवाहों और जालसाजी का कारोबार थमने का नाम ही नहीं ले रहा.

दिल्ली पुलिस को हाईकोर्ट में तगड़ी झाड़ पड़ी है. अदालत ने पुलिस से पूछा कि उसे पता भी है कि देशद्रोह क्या होता है? पुलिस के वकीलों को पास बगलें झांकने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. हार कर वो इतना ही कह सके कि हमारे पास गवाह हैं. अदालत में पुलिस ने जो भी कहा हो लेकिन उसके गवाह भी बहुत काम के नहीं हैं. टीवी टुडे ने हाल में जेएनयू के गवाहों से छिपे कैमरे पर बात की. सबका कहना था कि उन्होंने कन्हैया को भारत विरोधई नारे लगाते नहीं देखा. अदालत का फैसला इस मामले में कुछ भी आए लेकिन इस मामले ने देश को जिस तरह अफरातफरी के माहौल में धकेल दिय वो बेहद चिंता की बात है.

पूरे समाज को देशद्रोही और देशभक्त के दायरे में डालने की कोशिश हुई. विश्व के जाने माने शिक्षा संस्थान की प्रतिष्ठा पर बुरा असर पड़ा और उसमें पढ़ने वाले छात्रों को जबरदस्त मानसिक तनाव झेलना पड़ा. नतीजा ये हुआ कि इन छात्रों को आसपास के इलाकों में लोगों ने किराये पर मकान भी देना बंद कर दिए. सोशल मीडिया पर तरह तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया और अपमानजनक तस्वीरें पोस्ट की गई. ये शुक्र है कि इस मामले में किसी की जान नहीं गई. लेकिन इससे पहले कई बार लोगों की फर्ज़ीवाड़े के चक्कर में जान भी जा चुकी है.  

खौफनाक जानलेवा और खतरनाक अफवाहें, फर्जीवाड़े और जालसाजी के खेल की बात करें तो आप मुजफ्फरनगर के दंगों को नहीं भूल सकते. अगस्त 2013 में हुए इन दंगों में 42 मुसलमान और 20 हिंदू मारे गए. दंगे में 93 लोग घायल हुए. मामूली चोटें अलग हैं. इसके अलावा करीब 50 हज़ार लोग बेघर हो गए. इस दंगे में विधायक संगीत सोम पर मुकदमा दर्ज हुआ. मुकदमा था एक फर्जी वीडियो फैलाने का. इस वीडियो में एक हिंदू युवक को मुसलमानों के हाथों बेदर्दी से कत्ल करते दिखाया गया. इस सीडी को पूरे इलाके में बांटा गया और मोबाइल पर वीडिए शेयर किए गए. हालात इतने बिगड़ गए कि 20 साल के बाद पहली बार इस इलाके में फौज तैनात करनी पड़ी. 

ग्रेटर नोएडा के गांव बिसहड़ा में अखलाक की पीटपीट कर हत्या करने का मामला भी...

दिल्ली पुलिस को हाईकोर्ट में तगड़ी झाड़ पड़ी है. अदालत ने पुलिस से पूछा कि उसे पता भी है कि देशद्रोह क्या होता है? पुलिस के वकीलों को पास बगलें झांकने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. हार कर वो इतना ही कह सके कि हमारे पास गवाह हैं. अदालत में पुलिस ने जो भी कहा हो लेकिन उसके गवाह भी बहुत काम के नहीं हैं. टीवी टुडे ने हाल में जेएनयू के गवाहों से छिपे कैमरे पर बात की. सबका कहना था कि उन्होंने कन्हैया को भारत विरोधई नारे लगाते नहीं देखा. अदालत का फैसला इस मामले में कुछ भी आए लेकिन इस मामले ने देश को जिस तरह अफरातफरी के माहौल में धकेल दिय वो बेहद चिंता की बात है.

पूरे समाज को देशद्रोही और देशभक्त के दायरे में डालने की कोशिश हुई. विश्व के जाने माने शिक्षा संस्थान की प्रतिष्ठा पर बुरा असर पड़ा और उसमें पढ़ने वाले छात्रों को जबरदस्त मानसिक तनाव झेलना पड़ा. नतीजा ये हुआ कि इन छात्रों को आसपास के इलाकों में लोगों ने किराये पर मकान भी देना बंद कर दिए. सोशल मीडिया पर तरह तरह की अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया और अपमानजनक तस्वीरें पोस्ट की गई. ये शुक्र है कि इस मामले में किसी की जान नहीं गई. लेकिन इससे पहले कई बार लोगों की फर्ज़ीवाड़े के चक्कर में जान भी जा चुकी है.  

खौफनाक जानलेवा और खतरनाक अफवाहें, फर्जीवाड़े और जालसाजी के खेल की बात करें तो आप मुजफ्फरनगर के दंगों को नहीं भूल सकते. अगस्त 2013 में हुए इन दंगों में 42 मुसलमान और 20 हिंदू मारे गए. दंगे में 93 लोग घायल हुए. मामूली चोटें अलग हैं. इसके अलावा करीब 50 हज़ार लोग बेघर हो गए. इस दंगे में विधायक संगीत सोम पर मुकदमा दर्ज हुआ. मुकदमा था एक फर्जी वीडियो फैलाने का. इस वीडियो में एक हिंदू युवक को मुसलमानों के हाथों बेदर्दी से कत्ल करते दिखाया गया. इस सीडी को पूरे इलाके में बांटा गया और मोबाइल पर वीडिए शेयर किए गए. हालात इतने बिगड़ गए कि 20 साल के बाद पहली बार इस इलाके में फौज तैनात करनी पड़ी. 

ग्रेटर नोएडा के गांव बिसहड़ा में अखलाक की पीटपीट कर हत्या करने का मामला भी पुराना नहीं है. वहां भी मंदिर के लाउड स्पीकर से अफवाह फैलाई गई कि गांव का एक शख्स धर में गोमांस पका रहा है. अफवाह फैलते ही आसपास के इलाके के 1000 लोग इकट्ठा हो गए. इखलाक के घर भीड़ ने धावा बोला. घर में उग्र भीड़ ने आग लगा दी. जो हाथ लगा उसे निर्ममता से पीटा गया. वहां कुछ मांस बरामद भी हुआ. लेकिन बाद में जांच से पता चला कि मांस बकरे का था. एक और मामले में अफवाह जानलेवा बन चुकी थी. ये हाल के मामले हैं. भारत में राजनीतिक अफवाहों का बाज़ार पुराना है. बड़ी बात ये हैं कि इन अफवाहों का बार बार खंडन हुआ लेकिन फिर भी कई जिंदा हैं. आइए एक नजर में आपको सारी अफवाहें बताते हैं.  

- राजीव गांधी और सोनिया गांधी ने बोफोर्स में पैसा खाया.

- सुभाष चंद्र बोस की मौत के पीछे गांधी और नेहरू ज़िम्मेदार थे.

- भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को फांसी के पीछे महात्मा गांधी का हाथ था.

- संजय गांधी की हत्या इंदिरा गांधी ने करवाई थी.

- नाथूराम गोड़से महात्मा गांधी की हत्या का दोषी नहीं था.

- पंडित जवाहर लाल नेहरू के कई महिलाओं से संबंध थे.

- लाल बहादुर शास्त्री की मौत हार्टअटैक से नहीं हुई.

- सोनिया गांधी भारतीय खज़ाने को इटली ले गईं.

- होमी जहांगीर भाभा की हत्या सीआईए ने करवाई थी.  

बदकिस्मती की बात ये है कि अफवाहों और जालसाजी का कारोबार थमने का नाम ही नहीं ले रहा. जब तक ये विचार विमर्श, सोशल मीडिया की चिमगोइयां, और बहस तक सीमित था तबतक तो बर्दाश्त हो गया. लेकिन अब अफवाहें जानलेवा होने लगी हैं. झूठे सबूत और जानकारियां राजनीति का हथियार बन रही हैं. ये सही समय है जब इसका मजबूती से विरोध किया जाए वरना देश के लिए ये बड़े खतरे से कम नहीं हैं. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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