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दहेज प्रथा पर भी कुछ बोल दें मोदी जी

    • कुणाल वर्मा
    • Updated: 01 मई, 2017 05:13 PM
  • 01 मई, 2017 05:13 PM
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यह कितनी बड़ी विडंबना है कि 21वीं सदी में रहते हुए हम आए दिन दहेज हत्या की खबरों से रूबरू होते हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर दो घंटे में दहेज प्रताड़ना के केस सामने आ रहे हैं.

पूरा देश इस वक्त प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी को सुन रहा है. हालिया विधानसभा रिजल्ट के बाद एक बार फिर से नरेंद्र मोदी का कद बढ़ा है. एक प्रधानमंत्री के तौर पर वो आज भी सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं. अब जबकि पूरा देश उन्हें सुनने को तैयार है तो उनसे एक अनुरोध यह भी करना जरूरी है कि भारत की सबसे बड़ी कुप्रथा दहेज पर भी वो मंथन जरूर करें. एक बार इस कुप्रथा के खिलाफ भी आह्वान कर दें. उनकी हर बात भारत के लोग सुन रहे हैं, यह आह्वान भी जन आंदोलन में तब्दील हो सकता है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी के क्रांतिकारी कदम के बाद दहेज प्रथा पर करारा प्रहार किया है. वो शराबबंदी के जैसा कुछ नया नियम या कानून तो नहीं बना सके हैं, पर उन्होंने बिहार में दहेज प्रथा के खिलाफ नया अलख जगाने का प्रयास किया है. नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों से आह्वान किया है कि जिस घर में दहेज लिया या दिया जा रहा है वहां का मेहमान बनने से परहेज करें. मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि हाल के वर्षों में जिस तरह दहेज ने बड़ी कुप्रथा के रूप में हमारे समाज को अपनी जकड़ में ले लिया है उसके खिलाफ नीतीश का यह आह्वान महाअभियान बन सकता है. लंबे समय से दहेज के खिलाफ इसी तरह के महाअभियान की जरूरत महसूस की जा रही है. इस अभियान में न जात-पात का बंधन हो, न पार्टी पॉलिटिक्स की जगह हो.

यह कितनी बड़ी विडंबना है कि 21वीं सदी में रहते हुए हम आए दिन दहेज हत्या की खबरों से रूबरू होते हैं. तमाम कानूनों के बावजूद दहेज लोभियों के मन में इस तरह के कानूनों का रत्ती भर भी भय नहीं रह गया है. खुलेआम दहेज मांगा और दिया जा रहा है. अभी दो दिन पहले भी एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें सैकड़ों लोगों की भीड़ के सामने मंच से दहेज की रकम की गिनती हो रही थी. आंकड़ों पर गौर करें तो दिल दहल जाएगा. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर...

पूरा देश इस वक्त प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी को सुन रहा है. हालिया विधानसभा रिजल्ट के बाद एक बार फिर से नरेंद्र मोदी का कद बढ़ा है. एक प्रधानमंत्री के तौर पर वो आज भी सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं. अब जबकि पूरा देश उन्हें सुनने को तैयार है तो उनसे एक अनुरोध यह भी करना जरूरी है कि भारत की सबसे बड़ी कुप्रथा दहेज पर भी वो मंथन जरूर करें. एक बार इस कुप्रथा के खिलाफ भी आह्वान कर दें. उनकी हर बात भारत के लोग सुन रहे हैं, यह आह्वान भी जन आंदोलन में तब्दील हो सकता है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी के क्रांतिकारी कदम के बाद दहेज प्रथा पर करारा प्रहार किया है. वो शराबबंदी के जैसा कुछ नया नियम या कानून तो नहीं बना सके हैं, पर उन्होंने बिहार में दहेज प्रथा के खिलाफ नया अलख जगाने का प्रयास किया है. नीतीश कुमार ने बिहार के लोगों से आह्वान किया है कि जिस घर में दहेज लिया या दिया जा रहा है वहां का मेहमान बनने से परहेज करें. मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि हाल के वर्षों में जिस तरह दहेज ने बड़ी कुप्रथा के रूप में हमारे समाज को अपनी जकड़ में ले लिया है उसके खिलाफ नीतीश का यह आह्वान महाअभियान बन सकता है. लंबे समय से दहेज के खिलाफ इसी तरह के महाअभियान की जरूरत महसूस की जा रही है. इस अभियान में न जात-पात का बंधन हो, न पार्टी पॉलिटिक्स की जगह हो.

यह कितनी बड़ी विडंबना है कि 21वीं सदी में रहते हुए हम आए दिन दहेज हत्या की खबरों से रूबरू होते हैं. तमाम कानूनों के बावजूद दहेज लोभियों के मन में इस तरह के कानूनों का रत्ती भर भी भय नहीं रह गया है. खुलेआम दहेज मांगा और दिया जा रहा है. अभी दो दिन पहले भी एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें सैकड़ों लोगों की भीड़ के सामने मंच से दहेज की रकम की गिनती हो रही थी. आंकड़ों पर गौर करें तो दिल दहल जाएगा. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर दो घंटे में दहेज प्रताड़ना के केस सामने आ रहे हैं. कई बार तो परिस्थितियां इस तरह बिगड़ जा रही हैं कि बेटियों को बहू के रूप में आना श्राप जैसा प्रतीत होने लगा है. कुछ तो हिम्मत हार जाती हैं और बहू के रूप में अपना जीवन ही बलिदान कर दे रही हैं.

भारत में समय-समय पर ऐसे लोगों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपने बलबूते भारत में व्याप्त तमाम बुराईयों, कुप्रथाओं पर लगाम लगाई है. उन महापुरुषों का आह्वान ऐसा होता था लोग खूद ब खूद आगे आकर ऐसी बुराईयों के प्रति जागरूकता पैदा करते थे. आज प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ऐसे ही व्यक्तिव के रूप में भारत के लोगों के सामने हैं. सामाजिक बुराईयों के प्रति उनकी हर एक बात को जनता सुन रही है. स्वच्छ भारत मिशन का आज यह असर है कि घर के बच्चे अपने पैरेंट्स को गाड़ी से बाहर कूड़ा फेंकने पर टोक देते हैं. रोड किनारे धड़ल्ले से मूत्र त्यागने वाले लोग चार बार इधर उधर देखकर ऐसा रिस्क उठा रहे हैं. हर घर में करो योग रहो निरोग की बातें हो रही हैं. स्वदेशी अपनाने को लेकर लोग एक दूसरे को जागरूक कर रहे हैं. प्रधानमंत्री के रूप में देश हित में किए जा रहे हर एक आह्वान पर लोग तालियां बजा रहे हैं. आपकी एक आह्वान पर करोड़ों लोग मोबाइल ऐप (भीम ऐप) तक डाउनलोड कर ले रहे हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि भारत की सबसे बड़ी कुप्रथा के खिलाफ भी बिगुल फूंका जाए.

यह सही है कि कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिस पर राजनीतिक बहसबाजी शुरू हो जाती है. कुछ मुद्दे ऐसे होते हैं जिससे पार्टी का नफा या नुकसान तौलने की जरूरत पड़ती है. पर इसमें कोई दो राय नहीं कि कुछ सामाजिक कुरीतियां ऐसी होती है जिस पर कोई भी आपको गलत नहीं ठहरा सकता है. दहेज विरोधी अभियान भी एक ऐसा मुद्दा है. अगर आज नीतीश कुमार ने दहेज के खिलाफ बिहार के लोगों का आह्वान किया है तो क्या यह राष्ट्रीय आह्वान नहीं बन सकता है? मोदी जी हो सकता है नीतीश कुमार से आपकी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता हो. हो सकता है कि आपके पार्टी के लोग आपको नीतीश कुमार के इस आह्वान से दूर होने की सलाह दें. पर आप मंथन जरूर करें. दहेज हत्या में जब बेटियां जला दी जाती हैं तो क्या आप खुद को माफ करने के काबिल समझ पाते हैं. नवरात्र पर नौ दिन का व्रत रखकर क्या आप यह संकल्प नहीं ले सकते कि जबतक लोग आपकी बातों को सुन रहे हैं आप दहेज के खिलाफ जोरदार आह्वान करते रहेंगे.

दहेज के मुद्दे पर पूरे देश के राजनेताओं, सरकारों और जन प्रतिनिधियों को राजनीति प्रतिद्वंदिता से ऊपर उठकर सोचने की जरूरत है. आज नीतीश कुमार ने यह आह्वाान किया है. अगर इसी आ"न को पूरे देश में आंदोलन का रूप दे दिया जाए तो हर साल हजारों की संख्या में दहेज की बली चढ़ने वाली बेटियों को सुरक्षित किया जा सकता है. दहेज के ही डर से हर साल लाखों बेटियों को कोख में ही मार दिया जाता   है. आज भी हम उस सोच से मुक्ति नहीं पा सके हैं कि बेटी पैदा हुई तो उसकी शादी के समय खेत खलियान सब बेचना पड़ेगा. इस सोच को जड़ से खत्म करने के लिए व्यापक जन आंदोलन और जनजागरुकता की जरूरत है. आज नरेंद्र मोदी इस जन आंदोलन के सबसे बड़े प्रणेता के रूप में खुद को सामने ला सकते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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