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आदिवासी महिला को चप्पल पहनाते पीएम मोदी को समझना चाहिए पत्थलगड़ी

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 17 अप्रिल, 2018 01:53 PM
  • 17 अप्रिल, 2018 01:53 PM
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एक तरफ आदिवासी महिला को चप्पल पहनाती हुई पीएम मोदी की तस्वीर है दूसरी तरफ आदिवासी गांवों में पत्थलगड़ी के नाम पर लगे पत्थर हैं जो कहीं न कहीं आज विकास के मार्ग में एक बड़ी बाधा साबित होते नजर आ रहे हैं.

कुछ ही घंटे बीते हैं. प्रधानमंत्री की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई है. इस तस्वीर में पीएम एक आदिवासी महिला को अपने हाथों से चप्पल पहना रहे हैं. तस्वीरें बीजापुर की हैं. बीजापुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने ये भी कहा था कि केंद्र सरकार ने बीते चार साल में जो भी योजनाएं बनाई है वो सिर्फ और सिर्फ गरीबों, शोषित, पीड़ित, वंचित, पिछड़े, महिलाओं और आदिवासियों को बल देने के उद्देश्य से बनाई है. ध्यान रहे कि पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के जांगला गांव में आयुष्मान भारत योजना के पहले चरण की शुरूआत की थी.

मौके पर पीएम मोदी राज्य के मुख्यमंत्री से काफी खुश नजर आए और तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप के बीच पीएम मोदी ने रमन सिंह सरकार की जमकर तारीफ भी की. पीएम के अनुसार क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है और जल्द ही बस्तर एक प्रमुख इकोनॉमी हब के रूप में उभरेगा. ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर जांगला गांव में वन धन योजना, बस्तर नेट परियोजना की भी शुरूआत की और भानुप्रतापपुर में रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. ख़बरों की मानें तो इस अवसर पर राज्य में कई नई सड़क परियोजनाओं की भी शुरूआत की गई. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं पीएम द्वारा पिछड़े और आदिवासियों को ताकत देने के लिए योजनाएं बनाई गई हैं जिन्हें जल्द ही अमली जामा पहनाया जाएगा.

पीएम मोदी द्वारा आदिवासी महिला को चप्पल पहनाने के बाद भी आदिवासी हितों की बातें जस की तस बनी हुई हैं

सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाले पीएम काफी लम्बे समय से आदिवासियों और पिछड़ों के विकास और उनके उद्धार की बात कर रहे हैं. मगर जब हम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को ध्यान से देखें तो जो चीजें निकल कर सामने आती हैं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि अभी भी सरकार को...

कुछ ही घंटे बीते हैं. प्रधानमंत्री की एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई है. इस तस्वीर में पीएम एक आदिवासी महिला को अपने हाथों से चप्पल पहना रहे हैं. तस्वीरें बीजापुर की हैं. बीजापुर में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने ये भी कहा था कि केंद्र सरकार ने बीते चार साल में जो भी योजनाएं बनाई है वो सिर्फ और सिर्फ गरीबों, शोषित, पीड़ित, वंचित, पिछड़े, महिलाओं और आदिवासियों को बल देने के उद्देश्य से बनाई है. ध्यान रहे कि पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के जांगला गांव में आयुष्मान भारत योजना के पहले चरण की शुरूआत की थी.

मौके पर पीएम मोदी राज्य के मुख्यमंत्री से काफी खुश नजर आए और तमाम तरह के आरोप प्रत्यारोप के बीच पीएम मोदी ने रमन सिंह सरकार की जमकर तारीफ भी की. पीएम के अनुसार क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है और जल्द ही बस्तर एक प्रमुख इकोनॉमी हब के रूप में उभरेगा. ज्ञात हो कि प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर जांगला गांव में वन धन योजना, बस्तर नेट परियोजना की भी शुरूआत की और भानुप्रतापपुर में रेलगाड़ी को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. ख़बरों की मानें तो इस अवसर पर राज्य में कई नई सड़क परियोजनाओं की भी शुरूआत की गई. जैसा कि हम ऊपर बता चुके हैं पीएम द्वारा पिछड़े और आदिवासियों को ताकत देने के लिए योजनाएं बनाई गई हैं जिन्हें जल्द ही अमली जामा पहनाया जाएगा.

पीएम मोदी द्वारा आदिवासी महिला को चप्पल पहनाने के बाद भी आदिवासी हितों की बातें जस की तस बनी हुई हैं

सबका साथ सबका विकास का नारा देने वाले पीएम काफी लम्बे समय से आदिवासियों और पिछड़ों के विकास और उनके उद्धार की बात कर रहे हैं. मगर जब हम नक्सल प्रभावित क्षेत्रों को ध्यान से देखें तो जो चीजें निकल कर सामने आती हैं वो ये बताने के लिए काफी हैं कि अभी भी सरकार को नक्सलियों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने में लम्बा वक़्त लगेगा. इस बात को पढ़ने के बाद दिमाग में कुछ प्रश्नों का आना और उनके उत्तर तलाश करना स्वाभाविक है. हमारे इस कथन का कारण और कुछ नहीं बस "पत्थलगड़ी" जैसे आंदोलन हैं, जिन्हें आदिवासी समुदाय अपने हित में मान रहा है तो वहीं ये आंदोलन राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है.

क्या है "पत्थलगड़ी आंदोलन" कैसे कर रहा है ये राज्य सरकारों को प्रभावित

इस आंदोलन को समझने के लिए हमें छत्तीसगढ़ से निकल कर झारखंड पहुंचना होगा. झारखंड के कई आदिवासी इलाकों में पत्थलगड़ी एक आम बात है. ग्रामसभाओं में स्थानीय आदिवासी गोलबंद हो रहे हैं और पत्थलगड़ी के माध्यम से स्वशासन की मांग कर रहे हैं. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इसके अंतर्गत ग्रामसभाओं की सरहद पर एक पत्थर गाड़ दिया जाता है. इन पत्थरों पर कुछ जरूरी नियम कानून लिखे होते हैं. कुल मिलकर इन पत्थरों का औचित्य बस इतना है कि इसके जरिये "हमारा शासन, हमारा निजाम" की थ्योरी को अंजाम दिया जा सके.

आदिवासी समुदायों में पत्थलगड़ी की परंपरा बहुत पुरानी है

दखलंदाजी पर गयी है लोगों की जान

आदिवासी इलाकों में ये पत्थलगड़ी ही वो कारण है जिसकी बदौलत ग्रामीणों ने न सिर्फ कई मौकों पर गांव में पुलिस के प्रवेश पर रोक लगाई. बल्कि उन्हें सबक सिखाने के लिए बंधक तक बनाया. पत्थलगड़ी के नियमों के मुताबिक, कोई भी बाहरी व्यक्ति इन पत्थर जड़े गांवों में प्रवेश नहीं कर सकता. यदि गांव की सरहद पर लगे इन पत्थरों पर जड़े सन्देश पढ़ने के बावजूद कोई गांव में प्रवेश करता है तो फिर इसके परिणाम घातक होते हैं. मीडिया में ऐसी भी कुछ ख़बरें आई हैं जहां ग्रामीण आदिवासियों के क्रोध के कारण लोगों को अपनी जान तक से हाथ धोना पड़ा है.

लगातार जारी है पुलिसवालों और ग्रामीणों में संघर्ष

इस तरह के जबरन कब्जे को स्थानीय पुलिस और प्रशासन द्वारा बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है. ऐसे में कार्यवाई का होना लाजमी है. पुलिस लगातार गांव की सरहदों पर पत्थर गाड़ने वाले इन ग्रामीणों पर शिकंजा कस रही है और उन्हें हिरासत में ले रही है. बताया जा रहा है कि बीती 25 फरवरी को "पत्थलगड़ी" को लेकर पुलिस की कार्यवाई तेज हुई थी. खबर है कि राज्य के खूंटी स्थित कोचांग समेत 6 अन्य गांवों में पत्थलगड़ी कर स्थानीय आदिवासियों ने अपनी कथित हुकूमत को अमली जामा पहनाया.

आदिवासी समुदाय नहीं चाहता कि कोई उनके मामलों में दखलंदाजी करे

पत्थलगड़ी की परंपरा है बहुत पुरानी

बताया जाता है कि आदिवासी समुदाय और गांवों में पत्थलगड़ी की परंपरा बेहद पुरानी है. इसमें वो सभी जानकारियां निहित रहती हैं जो एक समुदाय के बारे में विस्तृत जानकारियां देती हैं. मगर वर्तमान में जिस तरह आदिवासी समुदायों में पत्थलगड़ी के नाम पर जबरन कानून का उल्लंघन किया जा रहा है वो अपने आप में एक गहरी चिंता का विषय है.

वर्तमान में पत्थलगड़ी के पत्थरों में क्या लिखा जा रहा है.

इन दिनों आदिवासी समुदाय द्वारा जो पत्थर लगाए जा रहे हैं यदि उनपर गौर करें तो मिलता है कि इनमें आदिवासियों द्वारा अंकित किया गया है कि

1- आदिवासियों के स्वशासन व नियंत्रण क्षेत्र में गैररूढ़ि प्रथा के व्यक्तियों के मौलिक अधिकार लागू नहीं है. लिहाजा इन इलाकों में उनका स्वंतत्र भ्रमण, रोजगार-कारोबार करना या बस जाना, पूर्णतः प्रतिबंध है.

2- पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में संसद या विधानमंडल का कोई भी सामान्य कानून लागू नहीं है.

3- अनुच्छेद 15 (पारा 1-5) के तहत एसे लोगों जिनके गांव में आने से यहां की सुशासन शक्ति भंग होने की संभावना है, तो उनका आना-जाना, घूमना-फिरना वर्जित है.

4- वोटर कार्ड और आधार कार्ड आदिवासी विरोधी दस्तावेज हैं तथा आदिवासी लोग भारत देश के मालिक हैं, आम आदमी या नागरिक नहीं.

5- संविधान के अनुच्छेद 13 (3) क के तहत रूढ़ि और प्रथा ही विधि का बल यानी संविधान की शक्ति है.

सरकारों द्वारा आदिवासी और पिछड़ों के कल्याण की बात कोई नई नहीं है

 

झारखंड के आदिवासियों की पहल छत्तीसगढ़ में पसार चुकी है अपने पांव

आज देश के पीएम छत्तीसगढ़ के अलावा तमाम आदिवासियों और पिछड़ों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ना चाहते हैं. मगर उन्हें ये जान लेना चाहिए कि ये इतना आसन नहीं होने वाला है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी गवाही खुद पत्थलगड़ी के अंतर्गत लगे पत्थर दे रहे हैं. वो पत्थर जो अब झारखंड से निकल कर छत्तीसगढ़ तक अपने पांव पसार चुके हैं. आज छत्तीसगढ़ के कई आदिवासी क्षेत्रों में भी इन पत्थरों को देखना एक आम सी बात है. साथ ही ये इन आदिवासियों का आतंक ही है जिसके चलते स्थानीय पुलिस और प्रशासन तक ने इनके आगे अपने घुटने टेक दिए हैं. हिंसा यहां के आदिवासियों के लिए कोई नई बात नहीं है.

अतः हम ये कहते हुए अपनी बात खत्म करेंगे कि जो आदवासी वोटर कार्ड और आधार कार्ड जैसी चीजों को आदिवासी विरोधी दस्तावेज मानते हैं उन्हें पीएम मोदी का चप्पल पहनाना एक मेगा इवेंट तो हो सकता है मगर बदलाव संभव हो इसके विषय में अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी. रही बात विकास की तो इन आदिवासियों का विकास तब ही संभव है जब ये वाम समर्थकों की बात सुनना बंद कर दें और खुद के विकास की दशा में धयन दें और मेहनत करें.

कहा जा सकता है कि आज इनके द्वारा जिस तरह का विद्रोह किया जा रहा है उसको देखने के बाद कोई भी ये कह सकता है कि अभी भी समाज की मुख्य धारा से जोड़ने में सरकार को इनके लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा.   

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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