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भारत में स्वास्थ्य सेवाओं में नैतिकता लाने के लिए आंदोलन शुरु हो गया है

    • दिनेश सी शर्मा
    • Updated: 31 मई, 2018 12:19 PM
  • 31 मई, 2018 12:19 PM
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हेल्थ केयर के क्षेत्र में नैतिकता चिकित्सा शिक्षा से संबंधित नीतियों, दवाओं के लागत विनियमन, प्रत्यारोपण और चिकित्सा उपकरणों से संबंधित नीतियों में बदलाव के बगैर नहीं लाई जा सकती.

अगर बाजार द्वारा कॉरपोरेट अस्पतालों के आंकलन को देखें तो अस्पतालों पर लगने वाले अंधाधुंध बिल चार्ज करने, कथित लापरवाही जैसे आरोप कोई मायने नहीं रखते हैं. खरीददारों के लिए ये सारे आरोप बेमानी हैं. इसका मतलब ये भी है कि कॉरपोरेट स्वास्थ्य सेवाएं किसी भी बिजनेस की ही तरह हैं. और इसकी नकेल भी बाजारवाद और फायदे नुकसान के हिसाब किताब के हाथ में होती है, नैतिकता और तर्कों के हाथ में नहीं.

एक ऐसे समय में जब डॉक्टरों और रोगियों के बीच के संबंध तनावग्रस्त होते जा रहे हैं. साथ ही स्वास्थ्य का भी भरपूर व्यावसायीकरण होता जा रहा है. तब डॉक्टरों के एक समूह ने हेल्थकेयर में नैतिकता को वापस लाने के लिए कमान संभाल ली है. ये कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी शुरुआत खुद चिकित्सा समुदाय के भीतर से ही हुई है किसी और जगह से नहीं. हेल्थकेयर के लिए एलायंस ऑफ डॉक्टर्स नाम एक नेटवर्क के तहत काम करते हुए, उन्होंने हाल ही में दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में एक बैठक आयोजित की.

दो दिनों तक भरपूर माथापच्ची के बाद, गठबंधन ने डॉक्टरों, मरीजों, सरकार और अस्पतालों के लिए एक एजेंडा बनाया और उसे अंतिम रूप दिया. सीधे व्यावसायीकरण के मूल कारणों पर हमला करते हुए गठबंधन ने अस्पतालों से अपील की कि वे डॉक्टरों पर राजस्व उत्पादन या "रूपांतरण" लक्ष्य न थोपें और बिल बनाने में पारदर्शिता लाएं. साथ ही अस्पतालों को सभी प्रकार के कमीशन भी बंद कर देना चाहिए.

स्वास्थ्य सेवाओं में अब बाजारवाद बंद होना चाहिए

डॉक्टरों से आग्रह किया गया है कि वे किसी भी तरह के उपहार, स्पॉन्सरशिप या दवा और चिकित्सा उपकरण कंपनियों से वित्तीय या गैर-वित्तीय प्रोत्साहनों को स्वीकार न करें. साथ ही उन्हें रोगियों के रेफरल के लिए कमीशन या रेफरल शुल्क भी न तो देना चाहिए...

अगर बाजार द्वारा कॉरपोरेट अस्पतालों के आंकलन को देखें तो अस्पतालों पर लगने वाले अंधाधुंध बिल चार्ज करने, कथित लापरवाही जैसे आरोप कोई मायने नहीं रखते हैं. खरीददारों के लिए ये सारे आरोप बेमानी हैं. इसका मतलब ये भी है कि कॉरपोरेट स्वास्थ्य सेवाएं किसी भी बिजनेस की ही तरह हैं. और इसकी नकेल भी बाजारवाद और फायदे नुकसान के हिसाब किताब के हाथ में होती है, नैतिकता और तर्कों के हाथ में नहीं.

एक ऐसे समय में जब डॉक्टरों और रोगियों के बीच के संबंध तनावग्रस्त होते जा रहे हैं. साथ ही स्वास्थ्य का भी भरपूर व्यावसायीकरण होता जा रहा है. तब डॉक्टरों के एक समूह ने हेल्थकेयर में नैतिकता को वापस लाने के लिए कमान संभाल ली है. ये कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसकी शुरुआत खुद चिकित्सा समुदाय के भीतर से ही हुई है किसी और जगह से नहीं. हेल्थकेयर के लिए एलायंस ऑफ डॉक्टर्स नाम एक नेटवर्क के तहत काम करते हुए, उन्होंने हाल ही में दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) में एक बैठक आयोजित की.

दो दिनों तक भरपूर माथापच्ची के बाद, गठबंधन ने डॉक्टरों, मरीजों, सरकार और अस्पतालों के लिए एक एजेंडा बनाया और उसे अंतिम रूप दिया. सीधे व्यावसायीकरण के मूल कारणों पर हमला करते हुए गठबंधन ने अस्पतालों से अपील की कि वे डॉक्टरों पर राजस्व उत्पादन या "रूपांतरण" लक्ष्य न थोपें और बिल बनाने में पारदर्शिता लाएं. साथ ही अस्पतालों को सभी प्रकार के कमीशन भी बंद कर देना चाहिए.

स्वास्थ्य सेवाओं में अब बाजारवाद बंद होना चाहिए

डॉक्टरों से आग्रह किया गया है कि वे किसी भी तरह के उपहार, स्पॉन्सरशिप या दवा और चिकित्सा उपकरण कंपनियों से वित्तीय या गैर-वित्तीय प्रोत्साहनों को स्वीकार न करें. साथ ही उन्हें रोगियों के रेफरल के लिए कमीशन या रेफरल शुल्क भी न तो देना चाहिए और न ही लेना चाहिए. इतना ही नहीं कदाचार को उजागर करने में व्हिसिल ब्लोअर की भूमिका भी अदा करें.

गठबंधन ने मरीजों से उचित देखभाल करने और डॉक्टरों से उनकी हालत से संबंधित विस्तृत जानकारी लेने के लिए भी कहा है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रोगियों को सिर्फ सुनी सुनाई बातों पर भरोसा करके डॉक्टरों से किसी भी तरह के इलाज की मांग नहीं करनी चाहिए. जब भी एक गैर आपात स्थिति में लोगों को किसी बड़ी प्रक्रियाओं की सलाह दी जाती है तो उन्हें अपने विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए और दूसरी राय जरुर लेनी चाहिए. हालांकि एक तरफ जहां मरीजों को अपने डॉक्टरों से बातचीत करनी चाहिए, वहीं दूसरी तरफ अगर प्रतिक्रिया उचित नहीं मिलने पर उन्हें हिंसा से बचना चाहिए.

हेल्थ केयर के क्षेत्र में नैतिकता चिकित्सा शिक्षा से संबंधित नीतियों, दवाओं के लागत विनियमन, प्रत्यारोपण और चिकित्सा उपकरणों से संबंधित नीतियों में बदलाव के बगैर नहीं लाई जा सकती. इसके लिए पैनल ने सिफारिश की कि निजी मेडिकल कॉलेजों में फीस कानून के तहत् सरकारी मेडिकल कॉलेजों से ज्यादा होने की बाध्यता लगा देनी चाहिए.

सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप के नाम पर निजी अस्पतालों को नहीं सौंप दिया जाना चाहिए. पैनल के मुताबिक, हर राज्य में यूनिवर्सल हेल्थ केयर (यूएचसी) की प्रणाली विकसित करना भी जरूरी है. लेकिन इसे किसी भी तरह के व्यापारिक सोच से अलग रखकर विकसित करना होगा.

नैतिक हेल्थकेयर के लिए आंदोलन अब शुरू हो गया है और इस गठबंधन में औपचारिक रूप से शामिल हुए लगभग 170 सदस्य हैं. लेकिन अन्य लोग भी इसका समर्थन कर रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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