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मुझे बचा लो मां, क्योंकि अब मैं बड़ी हो रही हूं...

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 06 अप्रिल, 2018 11:20 AM
  • 06 अप्रिल, 2018 11:20 AM
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एक लड़की जब बड़ी हो रही होती है तो उसके शरीर में कई बदलाव होते हैं. शारीरिक बदलाव तो आसानी से दिख जाते हैं पर मानसिक बदलावों को देखने की शक्ति हर किसी में नहीं होती. इस दौरान लड़कियों की जो हालत होती है वो समझी नहीं जा सकती...

वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती हूं, वो रात जब पहली बार मुझे मेरे बड़े होने का अहसास हुआ था. उससे पहले कभी ये नहीं लगा था कि मुझमें कोई दिक्कत है, उसके पहले मैं पापा और दादी की लाडली हुआ करती थी. खेलते समय मुझे कभी रामू और श्यामा में फर्क करने को नहीं कहा गया था. पर उसके बाद सब बदल गया.

पीरियड्स आ गए थे. दादी ने तो मुझे आधे घर में घूमने से भी मना कर दिया. तुमने भी मुझे घर के बाकी लोगों से मिलने से मना कर दिया, खाना-पानी लेने से भी मना कर दिया. तुम्हें फुर्सत नहीं थी तो मां दो घंटे मुझे प्यासे बैठना पड़ा, क्योंकि किसी और से तो कहना भी नहीं था न. मुझे शर्माना था और ये गंदी चीज थी इसलिए मुझे अलग कर दिया गया. पापा, चाचा, भईया, ताऊ सभी से छुपकर रहना था मुझे. ठंडी जमीन पर सोना था मुझे. एक चादर लेकर, दर्द के कारण उठा भी नहीं जा रहा था और सारे कपड़े रोज़ धोने थे मुझे.

मां, इसके बाद तो जैसे जिंदगी ही बदल गई. कहां एक ओर मैं फ्रॉक पहने, स्लीवलेस टॉप पहने घूमा करती थी अब मुझे कपड़े पहनने पर टोका जाने लगा. अब मुझे बड़ों की जिम्मेदारी निभानी थी. मैं अचानक खुद को सबसे दूर महसूस करने लगी, मेरे शरीर में बदलाव हो रहे थे. मेरे ब्रेस्ट बढ़ रहे थे, कूल्हे और चौड़े हो रहे थे. मेरे अंदर कई भावनाएं पैदा हो रही थीं, मां तुमने ये जरूर बताया था कि शरीर में बदलाव होंगे अब मुझे अच्छे से चलना होगा, सलीके से बात करनी होगी, किसी बड़े से मजाक नहीं करना होगा, लेकिन तुमने पड़ोस वाले अंकल को क्यों नहीं बताया कि उन्हें भी मेरे साथ सही से बर्ताव करना होगा. वो क्यों कोशिश करने लगे हैं मेरे पास आने की, मेरे टॉप में झांकने की, मुझे देखकर अजीब सी हरकतें करने की.

क्या ये होता है बड़े होने पर? मुझे ये तो पता ही नहीं था कि बड़े होने पर मेरे अंदर ही नहीं बल्कि सभी के अंदर बदलाव होने लगते...

वो रात मैं कभी नहीं भूल सकती हूं, वो रात जब पहली बार मुझे मेरे बड़े होने का अहसास हुआ था. उससे पहले कभी ये नहीं लगा था कि मुझमें कोई दिक्कत है, उसके पहले मैं पापा और दादी की लाडली हुआ करती थी. खेलते समय मुझे कभी रामू और श्यामा में फर्क करने को नहीं कहा गया था. पर उसके बाद सब बदल गया.

पीरियड्स आ गए थे. दादी ने तो मुझे आधे घर में घूमने से भी मना कर दिया. तुमने भी मुझे घर के बाकी लोगों से मिलने से मना कर दिया, खाना-पानी लेने से भी मना कर दिया. तुम्हें फुर्सत नहीं थी तो मां दो घंटे मुझे प्यासे बैठना पड़ा, क्योंकि किसी और से तो कहना भी नहीं था न. मुझे शर्माना था और ये गंदी चीज थी इसलिए मुझे अलग कर दिया गया. पापा, चाचा, भईया, ताऊ सभी से छुपकर रहना था मुझे. ठंडी जमीन पर सोना था मुझे. एक चादर लेकर, दर्द के कारण उठा भी नहीं जा रहा था और सारे कपड़े रोज़ धोने थे मुझे.

मां, इसके बाद तो जैसे जिंदगी ही बदल गई. कहां एक ओर मैं फ्रॉक पहने, स्लीवलेस टॉप पहने घूमा करती थी अब मुझे कपड़े पहनने पर टोका जाने लगा. अब मुझे बड़ों की जिम्मेदारी निभानी थी. मैं अचानक खुद को सबसे दूर महसूस करने लगी, मेरे शरीर में बदलाव हो रहे थे. मेरे ब्रेस्ट बढ़ रहे थे, कूल्हे और चौड़े हो रहे थे. मेरे अंदर कई भावनाएं पैदा हो रही थीं, मां तुमने ये जरूर बताया था कि शरीर में बदलाव होंगे अब मुझे अच्छे से चलना होगा, सलीके से बात करनी होगी, किसी बड़े से मजाक नहीं करना होगा, लेकिन तुमने पड़ोस वाले अंकल को क्यों नहीं बताया कि उन्हें भी मेरे साथ सही से बर्ताव करना होगा. वो क्यों कोशिश करने लगे हैं मेरे पास आने की, मेरे टॉप में झांकने की, मुझे देखकर अजीब सी हरकतें करने की.

क्या ये होता है बड़े होने पर? मुझे ये तो पता ही नहीं था कि बड़े होने पर मेरे अंदर ही नहीं बल्कि सभी के अंदर बदलाव होने लगते हैं. स्कूल ड्रेस में दाग लगने पर तो क्लास के लड़के भी देखकर हंसने लगे थे. मुझे उन्होंने जिस तरह देखा था मैं बता नहीं सकती. अब सॉक्स की जगह भी स्टॉकिंग्स ने ले ली है, क्लास की लड़कियां अब अलग तरह की बातें करने लगी हैं. मां जो लड़का स्कूल में मेरा सबसे अच्छा दोस्त था उसने भी मुझे देखकर मुंह फेरना शुरू कर दिया है. पीरियड्स को स्कूल के बच्चे भी बुरा मानते हैं. पर विज्ञान की कक्षा में तो बताया गया था कि इसी के कारण बच्चे होते हैं फिर ये इतने बुरे क्यों.

अब मेरे ब्रेस्ट बड़े हो रहे हैं तो ब्रा भी पहननी है. स्कूल जाने में भी शर्म आती है. अब फ्रॉक पहनना बिलकुल ही बंद हो गया है. जो भी मुझे पसंद था वो सब बंद हो गया है. अब मैं ज्यादा जोर से हंस दूं तो भी लोग टोक देते हैं कि बच्ची नहीं रही मैं. कैसे उठो, कैसे बैठो सब सिखाया जा रहा है, खाना बनाना सिखाया जा रहा है, घर को संभालने की ट्रेनिंग दी जा रही है. पर मां अभी तो मेरी शादी नहीं करनी न, अभी तो मैं स्कूल में ही हूं फिर क्यों मेरे साथ ऐसा व्यवहार. भईया भी तो बड़ा हुआ था, उसे क्यों नहीं सिखाया जाता ये सब. वो तो स्कूल में मेरे क्लास की लड़कियों से खूब बात करता है, उन्हें अपने साथ जाने के लिए कहता है फिर मुझे क्यों मना किया जा रहा है किसी लड़के से बात करने के लिए.

मेरे अंदर इतनी भावनाएं हैं, कभी लगता है रो पड़ूं, कभी लगता है हंसू, कभी लगता है खेलूं तो कभी लगता है चुप ही रहूं.. ये तो सभी लड़कियों के साथ होता है न फिर क्यों ये कहा जाता है कि हमेशा एक ही जैसा बर्ताव करना है.

मां, सभी को पता होता है कि लड़कियों के बड़े होते समय उन्हें कितनी तकलीफ होती है. तुम्हें भी तो पता है न फिर भी तुम क्यों नहीं समझातीं घर वालों को कि इन नियमों को न मानें. दुनिया भर के लिए समझना मुश्किल होगा पर कम से कम मेरा परिवार तो समझ ही सकता है न. एक लड़की के लिए इतने सारे कायदे और कानून, आप भी उनमें हां में हां मिलाने लगती हो. अपनी खीज भी मुझपर ही निकालती हो. कोई नहीं बताता की मेरी उम्र में मैं अपनी खीज किसपर निकालूं.

तुम तो कहती थी कि बड़ी हो जाना तो जो चाहे वो कर लेना पर कभी ये नहीं बताया कि बड़े होने पर तो कपड़ों से लेकर चाचा-ताऊ के साथ बाहर जाने तक पर पहरा लग जाएगा. ये नहीं बताया था कि दोस्तों के चुनाव पर बात होने लगेगी. ये नहीं बताया था कि अगर मेरी कोई सहेली लड़कों के साथ दिखी है तो उसे छोड़ना होगा. बचपन में तो ये नहीं होता था. न ही दोस्त, न ही कोई खेल कुछ भी तो गलत नहीं था फिर अब क्यों सभी बंधंन बांधे जा रहे हैं.

मां, मैंने तो कभी नहीं चाहा था कि मेरे साथ ये सब हो, न ही मैंने कभी कुछ गलत किया, फिर क्यों समाज मेरे साथ गलत कर रहा है. क्यों मुझे बड़े होने पर मोहल्ले के लोग अलग नजरों से देखने लगे, वो लोग जिन्हें मैं भाइया कहकर पुकारती थी आखिर क्यों मेरे शरीर को छूने लगे. वो लोग जो चॉकलेट खिलाने ले जाते थे आज वही क्यों मेरे बढ़ते शरीर को किसी भूखे की तरह देखने लगे हैं. आखिर क्यों दादी ने सारे दायरे लगा दिए हैं. मां अगर बड़े होना ऐसा ही होता है तो मुझे बचा लो मां. मुझे बड़ा नहीं होना.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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