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ओपन लैटर : प्यारे टमाटर, तुम बिन मेरी थाली सूनी है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 28 जुलाई, 2017 06:06 PM
  • 28 जुलाई, 2017 06:06 PM
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एक साधारण आदमी के लिए टमाटर खरीदना सोना खरीदने जैसा हो गया है. ऐसी स्थिति में एक आम आदमी द्वारा टमाटर को खुला खत लिखकर ये बताने का प्रयास किया जा रहा है कि, उसके जीवन में टमाटर का कितना महत्वपूर्ण स्थान है.

प्यारे टमाटर

आशा है तुम जिस भी डाल पर होगे मस्त, स्वस्थ और फंगस-फफूंदी रहित होगे. बड़े दिन हुए, तुमको अपने किचन और रेफ्रिजिरेटर में देखा नहीं तो सोचा आज तुमको खत ही लिख दिया जाए. यूं भी अब तुम मेरी पहुंच से इतने दूर हो कि, केवल संचार के अलग-अलग माध्यम ही वो साधन हैं. जिनके जरिये तुम तक पहुँचा जा सकता है. कुछ अपना कहा जा सकता है, कुछ तुम्हारी सुना जा सकता है.

जानते हो, मैं आज भी तुम्हारे साथ बिताए हुए खूबसूरत पलों को याद कर इमोशनल हो उठता हूं. मैं आज भी याद करता हूं उन सुखद पलों को, जब मेरी करी से लेकर सलाद तक और चटनी से लेकर रायते तक सब जगह बस तुम ही तुम होते थे.

मैं अक्सर अपनी खुशी के अवसरों को भी याद करता हूं. खुशी के पलों में, मेरी खुशी में उस वक़्त चार चांद जाते थे जब मैं अपनी पीली दाल में जीरे और मिर्च संग तुमको इधर-उधर भागते देखता था. तुम मुझसे छुपने की कोशिश करते मगर मैं बड़े चाव से तुमको खा लेता. ये मेरे प्रति तुम्हारी सहिष्णुता और प्रेम ही है जिसके चलते तुम मेरे गुस्से में भी मेरा ही साथ देते. याद तो शायद तुम्हें भी होगा जब कई बार गुस्से के चलते मैंने तुम्हें अपनी थाली से अलग किया था.

एक आदमी की तकलीफों को बताता है टमाटर को लिखा ये खुला खत खैर, वो गुजरे वक्त की बातें थी, वो वक्त जब अच्छे दिन हुआ करते थे. हाल फिलहाल जो स्थिति है उसको देखकर तो लगता है कि, हमारे तुम्हारे प्रेम पर किसी की काली निगाह पड़ गयी. हां, मैं पूरे दावे से कह सकता हूं कि हमारी खुशियों को किसी की नजर लग गयी. शायद तुम विश्वास न करो मगर फिर भी जान लो, जब से तुम गए हो किचन से लेकर हर वो चीज जिससे तुम जुड़े थे अधूरी है. आज भले ही तुम मेरे साथ नहीं हो, मेरी पहुंच से दूर हो. मगर हर वो चीज जिससे तुम जुड़े थे आज मुझे एहसास करा रही है कि...

प्यारे टमाटर

आशा है तुम जिस भी डाल पर होगे मस्त, स्वस्थ और फंगस-फफूंदी रहित होगे. बड़े दिन हुए, तुमको अपने किचन और रेफ्रिजिरेटर में देखा नहीं तो सोचा आज तुमको खत ही लिख दिया जाए. यूं भी अब तुम मेरी पहुंच से इतने दूर हो कि, केवल संचार के अलग-अलग माध्यम ही वो साधन हैं. जिनके जरिये तुम तक पहुँचा जा सकता है. कुछ अपना कहा जा सकता है, कुछ तुम्हारी सुना जा सकता है.

जानते हो, मैं आज भी तुम्हारे साथ बिताए हुए खूबसूरत पलों को याद कर इमोशनल हो उठता हूं. मैं आज भी याद करता हूं उन सुखद पलों को, जब मेरी करी से लेकर सलाद तक और चटनी से लेकर रायते तक सब जगह बस तुम ही तुम होते थे.

मैं अक्सर अपनी खुशी के अवसरों को भी याद करता हूं. खुशी के पलों में, मेरी खुशी में उस वक़्त चार चांद जाते थे जब मैं अपनी पीली दाल में जीरे और मिर्च संग तुमको इधर-उधर भागते देखता था. तुम मुझसे छुपने की कोशिश करते मगर मैं बड़े चाव से तुमको खा लेता. ये मेरे प्रति तुम्हारी सहिष्णुता और प्रेम ही है जिसके चलते तुम मेरे गुस्से में भी मेरा ही साथ देते. याद तो शायद तुम्हें भी होगा जब कई बार गुस्से के चलते मैंने तुम्हें अपनी थाली से अलग किया था.

एक आदमी की तकलीफों को बताता है टमाटर को लिखा ये खुला खत खैर, वो गुजरे वक्त की बातें थी, वो वक्त जब अच्छे दिन हुआ करते थे. हाल फिलहाल जो स्थिति है उसको देखकर तो लगता है कि, हमारे तुम्हारे प्रेम पर किसी की काली निगाह पड़ गयी. हां, मैं पूरे दावे से कह सकता हूं कि हमारी खुशियों को किसी की नजर लग गयी. शायद तुम विश्वास न करो मगर फिर भी जान लो, जब से तुम गए हो किचन से लेकर हर वो चीज जिससे तुम जुड़े थे अधूरी है. आज भले ही तुम मेरे साथ नहीं हो, मेरी पहुंच से दूर हो. मगर हर वो चीज जिससे तुम जुड़े थे आज मुझे एहसास करा रही है कि कितना महत्त्व था मेरे जीवन में तुम्हारा.

न,मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है. मैं तुमसे बिल्कुल भी नाराज नहीं हूं, बस मेरे कुछ सवाल हैं. मैं उन कारणों को जानने का इच्छुक हूं. जिसके चलते तुमने बरसों पुराने साथ हो चुटकियों में अलविदा कह दिया. मैं पूरे दावे के साथ कह रहा हूं ये महंगाई की मार बिल्कुल नहीं है, हरगिज नहीं है. जरूर कोई और कारण है. ऐसे कारण जो तुमने छुपाए हुए हैं. मैं जब एकांत में रहकर तुम्हारे बारे में सोच रहा हूं, तो मुझे महसूस हो रहा है कि, तुम यूं एक पल में गायब नहीं हो सकते. ज़रूर ऐसा कुछ हुआ है जिसके चलते तुमने भी दिल पर पत्थर रखकर ये अहम फैसला लिया है.

ये जुलाई है, हां वो जुलाई जब तुम 100 से 120 रुपए किलो हो, मुझे अब भी याद है वो फरवरी, मार्च, अप्रैल और मई जब बाजार में तुम 15-20 रुपए किलो थे. लोग सब्जी मंडी में आते मशरूम, बेबी कॉर्न, शिमला मिर्च और पनीर सरीखी 'महंगी' सब्जियां खरीदते तुमको देखते और नजरंदाज करके चले जाते. तुम्हारी जगह मैं भी होता तो ये बात मुझे भी खटकती, मेरे भी दुःख का कारण बनती.

आम आदमी भले ही महंगी सब्जी खरीद ले, मगर उन सब्जियों का कल्याण टमाटर ही करेगा लोग कह रहे हैं तुम बदल गए हो. अपनी औकात से ज्यादा ऊंचा दिखने की कोशिश कर रहे हो. आज जो लोग ये सब बातें कह रहे हैं उन्होंने इस समय तुम्हारे बढ़े हुए दाम तो देख लिए, मगर शायद वो तुम्हारे धैर्य को नहीं देख पा रहे हैं. मेरा सवाल उन लोगों से भी है जो आज तुम्हारे महंगा होने को लेकर विधवा विलाप कर रहे हैं, मगर ये तब खमोश थे जब तुम्हें इनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी.

चाहे लोग मानें या न मानें, मगर मैं जानता हूं कि इस जालिम समाज से ये तुम्हारा खामोश बदला है. तुमने उनसे बदला लेकर, उन्हें ये भली प्रकार बता दिया है कि लोग भले ही कितनी महंगी-महंगी सब्जियां खरीद लें मगर उन सब्जियों का कल्याण अगर कोई कर सकता है तो वो केवल तुम ही हो.

देखो अब बात लम्बी हो रही है. मुझे आशा है तुम वो समझ गए होगे जो मैं तुम्हें समझाना चाह रहा हूं. मुझे यकीन है कि तुम सारी गुजरी बातों को भूल कर मेरी थाली में वापस आओगे. वही थाली जिसकी पीली दाल में, मैं जीरे और मिर्च संग तुमको इधर-उधर भागते देखता था. वही थाली जिसमें तुम मुझसे छुपने की कोशिश करते मगर मैं बड़े चाव से तुमको ढूंढ के खा लेता था.   

तुम्हारा

आम आदमी       

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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