• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

समाज के लिए अच्छी वर्जिन औरत तैयार करना हर औरत की जिम्मेदारी है!

    • गीता गैरोला
    • Updated: 09 अप्रिल, 2017 01:06 PM
  • 09 अप्रिल, 2017 01:06 PM
offline
ये कौन औरतें हैं जो एक दूसरे के औरत होने को कोस रही हैं. किसने बनाई ये मानसिकता कि माहवारी होने पर औरत अशुद्ध हो जाती है? वो कौन से रिवाज हैं जिन्हें ये बिना प्रतिरोध के चुप-चाप ढो रही हैं?

''नवरात्री में अष्टमी को नौ कन्याओं को भोज कराया जाता है. मेरी पड़ोसन ने मुझसे पूछा कि आपकी बेटी माहवारी से तो नहीं होती. मैंने कहा क्यों?? तो बोली यदि माहवारी शुरू हो जाए तो कन्या भोज नहीं करा सकते !! मैंने कहा फिर देवी से मन्नत मांग लो की आपकी बेटी की कभी महावारी ही नहीं आये !!''

नवरात्रि के दौरान इस फेसबुक पोस्ट को शेयर कर मैंने उसमें असहमति के कमेंट का इंतजार करती रही. अब मैं अपनी ही सहमति से पूरे होशो हवास में असहमति दर्ज करती हूं.

इस पोस्ट में चार औरतें एक दूसरे को गरियाती, एक दूसरे के सामने खड़ी हैं. पहली मां जो कन्या भोज का निमंत्रण देती पूछती है 'तुम्हारी बेटी को माहवारी तो नहीं होती?' दूसरी वो लड़की जिसकी माहवारी के बारे में बात की जा रही है. तीसरी वो मां जिसकी बेटी को कभी माहवारी न होने का अभिशाप दिया गया. और चौथी वो बेटी जिसे अभिशाप दिया गया.

ये कौन औरतें हैं जो एक दूसरे के औरत होने को कोस रही हैं. किसने बनाई ये मानसिकता कि माहवारी होने पर औरत अशुद्ध हो जाती है? वो कौन से रिवाज हैं जिन्हें ये बिना प्रतिरोध के चुप-चाप ढो रही हैं?

जिस माहवारी के बिना कोई भी औरत समाज में पूरी नहीं मानी जाती उसे हिजड़ा बोल के बहिष्कृत किया जाता है. उसके लिए परिवार नामक संस्था वर्जित हो जाती है. इतनी महत्वपूर्ण प्राकृतिक देन के साथ ऐसी वर्जना, ऐसा छूतपात! कभी सोचा है क्यों?

जेंडर ट्रेनिंग के दौरान हम हमेशा माहवारी को पेड़ पर लगे फूल कहा करते थे. फूल लगने के बाद पेड़ की खूबसूरती बढ़ जाती है. तो फिर माहवारी भी तो हम औरतों की जिंदगी का फूल है. फिर फूल लगने पर ये वर्जनाएं क्यों सहनी पड़ती हैं?

जो दो पड़ोसन आपस में बात कर रही थीं उनके पीछे कसे शिकंजे किसी को दिखाई दिए. नहीं न. ये वही शिकंजे हैं जो मर्द को मर्द और औरत को औरत...

''नवरात्री में अष्टमी को नौ कन्याओं को भोज कराया जाता है. मेरी पड़ोसन ने मुझसे पूछा कि आपकी बेटी माहवारी से तो नहीं होती. मैंने कहा क्यों?? तो बोली यदि माहवारी शुरू हो जाए तो कन्या भोज नहीं करा सकते !! मैंने कहा फिर देवी से मन्नत मांग लो की आपकी बेटी की कभी महावारी ही नहीं आये !!''

नवरात्रि के दौरान इस फेसबुक पोस्ट को शेयर कर मैंने उसमें असहमति के कमेंट का इंतजार करती रही. अब मैं अपनी ही सहमति से पूरे होशो हवास में असहमति दर्ज करती हूं.

इस पोस्ट में चार औरतें एक दूसरे को गरियाती, एक दूसरे के सामने खड़ी हैं. पहली मां जो कन्या भोज का निमंत्रण देती पूछती है 'तुम्हारी बेटी को माहवारी तो नहीं होती?' दूसरी वो लड़की जिसकी माहवारी के बारे में बात की जा रही है. तीसरी वो मां जिसकी बेटी को कभी माहवारी न होने का अभिशाप दिया गया. और चौथी वो बेटी जिसे अभिशाप दिया गया.

ये कौन औरतें हैं जो एक दूसरे के औरत होने को कोस रही हैं. किसने बनाई ये मानसिकता कि माहवारी होने पर औरत अशुद्ध हो जाती है? वो कौन से रिवाज हैं जिन्हें ये बिना प्रतिरोध के चुप-चाप ढो रही हैं?

जिस माहवारी के बिना कोई भी औरत समाज में पूरी नहीं मानी जाती उसे हिजड़ा बोल के बहिष्कृत किया जाता है. उसके लिए परिवार नामक संस्था वर्जित हो जाती है. इतनी महत्वपूर्ण प्राकृतिक देन के साथ ऐसी वर्जना, ऐसा छूतपात! कभी सोचा है क्यों?

जेंडर ट्रेनिंग के दौरान हम हमेशा माहवारी को पेड़ पर लगे फूल कहा करते थे. फूल लगने के बाद पेड़ की खूबसूरती बढ़ जाती है. तो फिर माहवारी भी तो हम औरतों की जिंदगी का फूल है. फिर फूल लगने पर ये वर्जनाएं क्यों सहनी पड़ती हैं?

जो दो पड़ोसन आपस में बात कर रही थीं उनके पीछे कसे शिकंजे किसी को दिखाई दिए. नहीं न. ये वही शिकंजे हैं जो मर्द को मर्द और औरत को औरत बनाते हैं. जो हमारी औरत बनाये जाने की कंडिशनिंग करते हैं, जो हमेशा पितृसत्ता के पोषक होते हैं, उसे जस का तस बने रहने की ताक़त देते हैं.

वो दोनों वही कह रही थीं जो उन्होंने अपनी मां के दूध के साथ पिया था, इस समाज में सर्वाइव करने के लिए, खुद को बनाये रखने के लिए. पितृ सत्ता तभी कायम रह सकेगी जब वो जिन पर काबिज हो उनको ही एक दूसरे के खिलाफ खड़ा रख सके.

उन दो लड़कियों के बारे में सोचिये जिन्हें इस घटना ने सबक सिखाया. सबक ये कि माहवारी जो तुम्हारी औरत होने की पहचान को कायम करती है, उससे डरो, अपने औरत होने की पहचान से डरो. प्रकृति ने सृजन करने की जो ताकत तुम्हें दी है, उसे ताकत नहीं कमजोरी समझ कर डरती रहो. अपनी यौनिकता को कमतर आंको, उसे छिपाये रखो. यौनिकता पर बात करना तुम्हारे लिए सामाजिक तौर पर वर्जित है.

इस डर को कायम रखने के लिए स्त्री यौनिकता और यौनिकता की खूबसूरत पहचान को धार्मिक वर्जन से जोड़ दिया. परम्पराएं बना दीं, रिवाज बना दिए. धार्मिक सामाजिक वर्जना को कायम रखने वाली गुप्त चुप्पी ने स्त्री यौनिकता के हस्तान्तरण को औरतों का कर्तव्य बना दिया, कि समाज के लिए तथाकथित अच्छी और वर्जिन औरत तैयार करना हर औरत की जिम्मेदारी है.

इस सामजिक जिम्मेदारी को निभाने में तुम औरतें एक दूसरे के औरत होने की पहचानों को बांटो और गरियाती रहो. और मौका आने पर हम बिना तर्क किये एक दूसरी को औरत बनाये जाने के शिकंजे में कसने को तैनात रहती हैं.

ये भी पढ़ें-

माहवारी के दौरान इन महिलाओं का इंतजार करता है एक भयानक नर्क!

छूकर तो देखो, खराब नहीं होगा अचार..

मिलिए भारत के 'माहवारी' वाले आदमी से

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲