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बकरे का खुला खत गौरक्षकों के नाम

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 03 सितम्बर, 2017 11:45 AM
  • 03 सितम्बर, 2017 11:45 AM
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आप लोग का ध्यान केवल मां गाय और मौसी भैंस पर है तो कहीं कोने में इंवर्टर से एसी चला के सो रही हमारी भावना बहुत आहत है. आप लोगों ने केवल मां और मौसी के बारे में सोचा. कभी आप लोगों का ध्यान हमारे हितों की तरफ गया ही नहीं.

प्यारे गौरक्षकों,

अपनी बेबसी पर लाचार, मैं बहुत लंबे समय से खत लिखने की सोच रहा था. जिस वक्त मैंने चिट्ठी लिखने के लिए कागज, कलम और दवात उठाई उस वक्त विचार आया कि ये खत मैं किसे संबोधित करूं. प्रधानमंत्री इंडिया को न्यू इंडिया बनाने में अत्यंत व्यस्त हैं. शाह जी 2019 और 2014 के लिए बिजी हैं. खट्टर साहब इसलिए परेशान हैं कि उनको इस्तीफ़ा देना चाहिए कि नहीं. उत्तर प्रदेश के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री से लेकर हर वो शख्स जो मेरी मदद कर सकते थे सभी व्यस्त हैं. इनमें कुछ के पास व्यस्त होने के कारण हैं. कुछ बिन कारण के व्यस्त हैं. अतः प्यारे गौरक्षकों बहुत सोच विचार के मैंने ये प्लान किया है कि शायद आप लोग पूर्णतः खाली हैं तो क्यों न ये पत्र आप लोगों को संबोधित करते हुए लिखा जाए.

हां तो बात की शुरूआत दो मुहावरों से करूंगा पहला "बलि का बकरा" दूसरा "बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी". चूंकि बकरीद पर भी आप लोगों का ध्यान केवल मां गाय और मौसी भैंस पर रहा तो कहीं कोने में इंवर्टर से एसी चला के सो रही हमारी भावना बहुत आहत है. आप लोगों ने केवल मां और मौसी के बारे में सोचा. कभी आप लोगों का ध्यान हमारे हितों की तरफ गया ही नहीं. क्यों नहीं कभी आपने हमारी तरफ ध्यान आकर्षित किया. आखिर क्यों आपने सदैव हम बच्चों को नकारा और हमें छीन भावना से ग्रसित होने के लिए मजबूर किया.

मैं बकरा

ये मेरा पहला और अंतिम खत है. इसके बाद भले ही मेरे भाई बंधु आपको लेटर लिखे और आप हमारे समुदाय के हितों के प्रति गंभीर हों, मगर तब उस लैटर को देखने, सुनने और पढ़ने के लिए मैं न रहूंगा. बकरीद जो बीत जाएगी. तभी आपको ये खत मिलेगा.

मेरी शिकायत किसी से नहीं है. मैं किसी व्यक्ति से खफा बिल्कुल नहीं हूं. मेरी शिकायत धर्म के ठेकेदारों से है. मेरी शिकायत सिस्टम से है, मेरी शिकायत इस...

प्यारे गौरक्षकों,

अपनी बेबसी पर लाचार, मैं बहुत लंबे समय से खत लिखने की सोच रहा था. जिस वक्त मैंने चिट्ठी लिखने के लिए कागज, कलम और दवात उठाई उस वक्त विचार आया कि ये खत मैं किसे संबोधित करूं. प्रधानमंत्री इंडिया को न्यू इंडिया बनाने में अत्यंत व्यस्त हैं. शाह जी 2019 और 2014 के लिए बिजी हैं. खट्टर साहब इसलिए परेशान हैं कि उनको इस्तीफ़ा देना चाहिए कि नहीं. उत्तर प्रदेश के फायर ब्रांड मुख्यमंत्री से लेकर हर वो शख्स जो मेरी मदद कर सकते थे सभी व्यस्त हैं. इनमें कुछ के पास व्यस्त होने के कारण हैं. कुछ बिन कारण के व्यस्त हैं. अतः प्यारे गौरक्षकों बहुत सोच विचार के मैंने ये प्लान किया है कि शायद आप लोग पूर्णतः खाली हैं तो क्यों न ये पत्र आप लोगों को संबोधित करते हुए लिखा जाए.

हां तो बात की शुरूआत दो मुहावरों से करूंगा पहला "बलि का बकरा" दूसरा "बकरे की मां कब तक खैर मनाएगी". चूंकि बकरीद पर भी आप लोगों का ध्यान केवल मां गाय और मौसी भैंस पर रहा तो कहीं कोने में इंवर्टर से एसी चला के सो रही हमारी भावना बहुत आहत है. आप लोगों ने केवल मां और मौसी के बारे में सोचा. कभी आप लोगों का ध्यान हमारे हितों की तरफ गया ही नहीं. क्यों नहीं कभी आपने हमारी तरफ ध्यान आकर्षित किया. आखिर क्यों आपने सदैव हम बच्चों को नकारा और हमें छीन भावना से ग्रसित होने के लिए मजबूर किया.

मैं बकरा

ये मेरा पहला और अंतिम खत है. इसके बाद भले ही मेरे भाई बंधु आपको लेटर लिखे और आप हमारे समुदाय के हितों के प्रति गंभीर हों, मगर तब उस लैटर को देखने, सुनने और पढ़ने के लिए मैं न रहूंगा. बकरीद जो बीत जाएगी. तभी आपको ये खत मिलेगा.

मेरी शिकायत किसी से नहीं है. मैं किसी व्यक्ति से खफा बिल्कुल नहीं हूं. मेरी शिकायत धर्म के ठेकेदारों से है. मेरी शिकायत सिस्टम से है, मेरी शिकायत इस देश की राजनीति से है. मेरी शिकायत घटिया राजनीति कर रहे लोगों से है.

बात ये है कि कुछ खाना या न खाना ये किसी भी व्यक्ति के लिए बेहद व्यक्तिगत विषय है. लेकिन ये बात मेरी समझ से बाहर है कि, लोग एक ही दिन हमारे अधिकारों को क्यों याद करते हैं. क्यों नहीं इन्होंने हमारी ठेकेदारी का जिम्मा साल भर उठाया. क्यों साल भर ये हमें काटते रहे और हम अपने भाई बंधुओं को कटता हुआ देखते रहे. देखिये साहब, मैं एक बकरा तो हूं मगर मुझे अच्छे से पता है कि आप लोग मेन स्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पर मेरे नाम पर बकरीद के दिन ही घिनौनी राजनीति कर रहे थे. एक ऐसी राजनीति जिसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ नफरत फैलाना और आग लगाना है.

प्यारे गौरक्षकों, लोगों को जान लेना चाहिए कि बकरे केवल ईद पर नहीं कटे हैं. ये बीते दिन और उससे पहले भी कटे थे. हिन्दू मुस्लिम सभी लोगों ने हजार, दो हजार, 100, 500 के नए- नए नोट देकर इसे किलो, दो किलो, पांच किलो अपनी सामर्थ्य के अनुसार खरीदा था. मगर तब सब लोग खामोश थे. क्या बक़रीद, क्या नवरात्र ये जान लीजिए हमारे भाग्य में केवल कटना है.  बहरहाल, मैं और किसी से कुछ नहीं कह सकता. बस आप लोगों के माध्यम से अपील कर रहा हूं कि, जिस तरह लोग इस एक दिवसीय संरक्षण में आए हैं, ये साल भर भी इतने एक्टिव रहें. यदि ये लोग साल भर मुझे भूल केवल एक दिन के लिए मुझे याद रखें तो इसे मेरी निगाह में और कुछ नहीं बस व्यक्ति का दोहरा चरित्र कहा जायेगा. 

अंत में इतना ही कि यदि लोग हमारे समुदाय के विषय में साल भर सोचे, तो ये वाकई एक तारीफ के योग्य बात है और अगर ऐसा नहीं हुआ और लोग किसी एक दिन हमारे प्रति फिक्रमंद हुए तो इसे बस वोट बैंक सुरक्षित करने का एक माध्यम माना जाएगा. मैं अनुरोध करना चाहूंगा कि या तो लोग रोज मटन की दुकानों पर अपना विरोध दर्ज करें और अगर नहीं कर सकते तो फिर हमें ऐसे ही कटने के लिए छोड़ दें बाकि अब तक तो हम लोग मान ही चुके हैं कि हमारा जन्म कटने और हिन्दू मुस्लिम समेत सभी धर्मों का पेट भरने के लिए हुआ है. 

आपका

वो बकरा जो ये खत लिखने तक जिंदा रहा...

 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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