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एक ब्रा होने का दुख तुम क्या जानो दुनिया वालों!

    • प्राप्ति एलिजाबेथ
    • Updated: 02 अगस्त, 2017 05:55 PM
  • 02 अगस्त, 2017 05:55 PM
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भगवान न करे अगर गलती से भी कभी मैं किसी लड़की के टी-शर्ट से बाहर निकल जाऊं तो अजनबी लोगों, पड़ोस की आंटियों और मम्मियों सभी को झटका सा लग जाता है, दौरा पड़ने की नौबत आ जाती है. एक ब्रा का दुख उसकी जुबानी...

हैलो मैं ब्रेसियर हूँ, आप लोग मुझे 'ब्रा' बुलाते हैं.

मैं हर जगह दिखती हूं- चमकदार शोरूम में, दुकानों में, फुटपाथ पर, सस्ते बाजारों में. मैं हर तरह के दाम में मिलती हूं. महंगे, सस्ते, ब्रांडेड, लोकल. सभी तरह की कैटेगरी में मैं पाई जाती हूं. साथ ही दुनिया में आबादी का बड़ा हिस्सा है जो मेरे बिना अपने घरों से बाहर नहीं निकलता है. शर्म - हया नाम की चिड़िया की सुरक्षा का मैं पहला पायदान हूं.

मैं लड़की की छाती की इज्जत सुरक्षित रखने में दूसरे नंबर पर आती हूं. मैं एक टाइट और असुविधाजनक परिधान हूं, जिससे लड़की की लाज ढंकी होती है. मैं एक बेहद नकारात्‍मक संघर्ष में फंस गई हूं. एक ओर मुझे धारण न करने वाली महिलाओं को बुरा समझे जाने की मानसिकता है तो दूसरी तरफ मुझे पहनने के बाद होने वाली असुविधा/घुटन. हालांकि इस परिस्‍थ‍िति के लिए न तो पुरुषों को दोषी ठहराया जा सकता है और न ही महिलाओं को. लेकिन इतना तय है कि महिलाएं इन दोनों परिस्थितियों से छुटकारा चाहती हैं.

ब्रा को बाहर की हवा चाहिए... दीजिए ना प्लीज!

जैसे भी स्तन हों- बड़े, छोटे, या फिर न के बराबर. सबका समाधान मैं ही हूं. लड़कियों से हमारा रिश्ता उनके किशोरावस्था में आते ही शुरू हो जाता है. मेरे साइज की वजह से कई लड़कियों को तरह-तरह की बातें भी सुनने को मिलती है. जैसे क‍ि मैं बहुत छोटी नहीं हो सकती क्योंकि तब मैं अपना काम ठीक से कर ही नहीं आती; और मैं बहुत बड़ी नहीं हो सकती क्योंकि तब मैं लोगों का बहुत ज्यादा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती हूं. मुझे सिर्फ सही साइज का होने की जरुरत होती है. लेकिन कोई भी आजतक मुझे इस बात का कोई ठोस जवाब नहीं दे पाया कि आखिर वो सही साईज है क्या? मेरा पूरी जिंदगी एक आदर्श, सेक्सी, और संस्कारी होने के बीच में ही लगातार लटकी रहती है. हर औरत की जिंदगी में मैं सिर्फ कपड़े का एक टुकड़ा हूं. और ये मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है.

हैलो मैं ब्रेसियर हूँ, आप लोग मुझे 'ब्रा' बुलाते हैं.

मैं हर जगह दिखती हूं- चमकदार शोरूम में, दुकानों में, फुटपाथ पर, सस्ते बाजारों में. मैं हर तरह के दाम में मिलती हूं. महंगे, सस्ते, ब्रांडेड, लोकल. सभी तरह की कैटेगरी में मैं पाई जाती हूं. साथ ही दुनिया में आबादी का बड़ा हिस्सा है जो मेरे बिना अपने घरों से बाहर नहीं निकलता है. शर्म - हया नाम की चिड़िया की सुरक्षा का मैं पहला पायदान हूं.

मैं लड़की की छाती की इज्जत सुरक्षित रखने में दूसरे नंबर पर आती हूं. मैं एक टाइट और असुविधाजनक परिधान हूं, जिससे लड़की की लाज ढंकी होती है. मैं एक बेहद नकारात्‍मक संघर्ष में फंस गई हूं. एक ओर मुझे धारण न करने वाली महिलाओं को बुरा समझे जाने की मानसिकता है तो दूसरी तरफ मुझे पहनने के बाद होने वाली असुविधा/घुटन. हालांकि इस परिस्‍थ‍िति के लिए न तो पुरुषों को दोषी ठहराया जा सकता है और न ही महिलाओं को. लेकिन इतना तय है कि महिलाएं इन दोनों परिस्थितियों से छुटकारा चाहती हैं.

ब्रा को बाहर की हवा चाहिए... दीजिए ना प्लीज!

जैसे भी स्तन हों- बड़े, छोटे, या फिर न के बराबर. सबका समाधान मैं ही हूं. लड़कियों से हमारा रिश्ता उनके किशोरावस्था में आते ही शुरू हो जाता है. मेरे साइज की वजह से कई लड़कियों को तरह-तरह की बातें भी सुनने को मिलती है. जैसे क‍ि मैं बहुत छोटी नहीं हो सकती क्योंकि तब मैं अपना काम ठीक से कर ही नहीं आती; और मैं बहुत बड़ी नहीं हो सकती क्योंकि तब मैं लोगों का बहुत ज्यादा ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करती हूं. मुझे सिर्फ सही साइज का होने की जरुरत होती है. लेकिन कोई भी आजतक मुझे इस बात का कोई ठोस जवाब नहीं दे पाया कि आखिर वो सही साईज है क्या? मेरा पूरी जिंदगी एक आदर्श, सेक्सी, और संस्कारी होने के बीच में ही लगातार लटकी रहती है. हर औरत की जिंदगी में मैं सिर्फ कपड़े का एक टुकड़ा हूं. और ये मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है.

और भगवान न करे अगर गलती से भी कभी मैं किसी लड़की के टी-शर्ट से बाहर निकल जाऊं तो अजनबी लोगों, पड़ोस की आंटियों और मम्मियों सभी को झटका सा लग जाता है, दौरा पड़ने की नौबत आ जाती है.

मुझे ये समझ नहीं आता कि आखिर वो मुझसे इतनी नफरत क्यों करती हैं!

इस दिखावटी दुनिया में मैं उन चीजों में से एक हूं जिसे लाइफ में कभी भी किसी की आंखों के सामने नहीं आना चाहिए. कभी-कभी तो मुझे ये बिल्कुल समझ नहीं आता. एक पुतले पर मुझे बाहर टांग दिया जाता है ताकि हर आने-जाने वाला मुझे देख सकें, लेकिन जैसे ही मैं किसी लड़की के शरीर पर आती हूं मुझे छुपाकर रखना पड़ता है.

मॉडलिंग के दिनों में किसी पत्रिका या विज्ञापन में होने पर मैं ये कल्पना करती रहती थी कि मुझे पहनने वालों को कितनी आजादी और उनकी आराम महसूस होगा. लेकिन सच्चाई में असलियत इससे कोसों दूर है.

तो अब आप बहुत अच्छी से ये समझ सकते हैं कि मैं किस तरह के पहचान की संकट से जूझ रही हूं.

यह सच्चाई है कि जिस तरह से मैं काम करती हूं, वैसा उससे कोई औरत नहीं चाहती है. मेरी भूमिका शरीर के उस हिस्‍से से जुड़ी है, जिसे पूरी दुनिया देखना चाहती है. मुझे स्तनों को बड़े, छोटे या सपाट करने की जरूरत के अनुसार ढाला जाता है. मैं वो सामान हूं जो गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को खारिज कर देती है. कुछ कपड़ों पर फिट होने के लिए मुझे स्ट्रैपलेस बना दिया जाता है. कपड़ों के बाहर निपल्स ना दिखें इसलिए मुझमें फोम भर दिया जाता है. मुझे लोगों के अनुसार रहना पड़ता है. कब दिखना है, कब छुपना है, कब मुझे गायब हो जाना है- अब ये आप अच्छे से समझ सकते हैं कि मैं कैसी जिंदगी जीती हूं.

हां अब चीजें मेरे लिए थोड़ा बदल रही हैं. कभी-कभी मैं थोड़ी देर के लिए कपड़ों से बाहर झांक सकती हूं. मेरे कुछ मालिक तो मेरे सपोर्ट में तब भी खड़े हो जाते हैं जब उन्हें कहा जाता है कि मैं उनके कपड़े से बाहर झांक रही हूं. मुझे सबसे अच्छी योग क्लासेस लगती हैं. यहां पर मैं बिल्कुल फ्री होकर रह पाती हूं. बाहर की हवा ले पाती हूं. मुझे डरने की बिल्कुल जरुरत नहीं होती. मुझे बस इतनी सी ही तो आजादी चाहिए. आखिर किसी को भी वहां होना पसंद नहीं जहां उसकी कोई इज्जत ना हो, कीमत ना हो. है ना? तो फिर मुझे अलग क्यों होना चाहिए?

(OddNaari से साभार)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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