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हिंदू त्योहारों को ही हमेशा अपना निशाना क्यों बनाते हैं 'इंटेलेक्चुअल लिबरल'?

    • अनु रॉय
    • Updated: 22 अक्टूबर, 2020 05:47 PM
  • 22 अक्टूबर, 2020 05:46 PM
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नवरात्र (Navratri) की शुरुआत के साथ ही हिंदू त्योहारों (Hindu Festivals) पर लोगों का ज्ञान देना शुरू हो गया है. आख़िर कब तक हिंदू सहते रहें अपने देवी-देवताओं का मज़ाक़. कब तक अपने ही त्योहारों पर हिंदू किसी से ज्ञान की क्लास लेते रहें और क्यों. जवाब है तो दीजिए नहीं तो चुप ही रहिए.

दीवाली आते ही प्रदूषण की चिंता सताने लगती है, आधी पब्लिक को. दुर्गा पूजा (Durga Puja) आते ही बलात्कार (Rape) की चिंता में लोग मरने लगते हैं? तीज और करवा चौथ आते ही स्त्रियां सप्रेस होने लगती हैं? होली (Holi) आते ही पानी और धरती बचाना शुरू हो जाता है, जो साल भर नल खुला छोड़ कर शेविंग करते हैं या कार को हर दिन शॉवर दिलाते हैं वो भी होली में रोने लगते हैं. क्यों भाई? नहीं, सभी हिंदू त्योहार जागरुकता फैलाने का अभियान क्यों बन जाता है, कोई मुझे समझाए आकर? बाक़ी किसी भी धर्म के त्योहार में कोई खोट नहीं है क्या? ज्ञाता लोग आएं और मेरी अज्ञानता दूर करें. नहीं तो मुंह बंद रखें. मतलब कल जब मैंने ‘दीपिका सिंह’ के दुर्गा पूजा वाले ट्वीट पर लिखा कि, 'आप ईद में सेवईयों की फ़ोटो डाल कर ईद की शुभकामनाएं दे सकते हैं तो दुर्गा पूजा या दीवाली में आपकी वो उदारता कहां चली जाती है?

त्योहारों के दो अलग अंदाज जो लोगों की दोहरी मानसिकता दर्शाते हैं

बलात्कार क्या ईद के दौरान नहीं होते? क्या बलात्कार सिर्फ़ दुर्गा पूजा में ही होते हैं? बलात्कार सिर्फ़ बलात्कार है उसे किसी भी धर्म या त्योहार से जोड़ना कौन सी समझदारी है ये मेरे समझ से परे की बात है. आपको नहीं मनाना है त्योहार मत मनाइए लेकिन जिनकी आस्था है इन त्योहारों में, उनकी आस्था का मज़ाक़ तो नहीं बनाइए.

दुर्गा पूजा एक रिमाइंडर है हम स्त्रियों के शक्तिशाली होने का. जो हम भूल जाते हैं साल भर में कि हम ही सृजन और संहार कर सकते हैं वो हमें याद इन दस दिनों में एक बार फिर से आता है. ये पूजा पुरुषों से ज़्यादा हम स्त्रियों के लिए मायने रखती है कि हम अपनी ताक़त न भूलें. हम अबला नहीं हैं. हम दुर्गा और काली हैं लेकिन ये दीपिका सिंह राजपूत जैसी...

दीवाली आते ही प्रदूषण की चिंता सताने लगती है, आधी पब्लिक को. दुर्गा पूजा (Durga Puja) आते ही बलात्कार (Rape) की चिंता में लोग मरने लगते हैं? तीज और करवा चौथ आते ही स्त्रियां सप्रेस होने लगती हैं? होली (Holi) आते ही पानी और धरती बचाना शुरू हो जाता है, जो साल भर नल खुला छोड़ कर शेविंग करते हैं या कार को हर दिन शॉवर दिलाते हैं वो भी होली में रोने लगते हैं. क्यों भाई? नहीं, सभी हिंदू त्योहार जागरुकता फैलाने का अभियान क्यों बन जाता है, कोई मुझे समझाए आकर? बाक़ी किसी भी धर्म के त्योहार में कोई खोट नहीं है क्या? ज्ञाता लोग आएं और मेरी अज्ञानता दूर करें. नहीं तो मुंह बंद रखें. मतलब कल जब मैंने ‘दीपिका सिंह’ के दुर्गा पूजा वाले ट्वीट पर लिखा कि, 'आप ईद में सेवईयों की फ़ोटो डाल कर ईद की शुभकामनाएं दे सकते हैं तो दुर्गा पूजा या दीवाली में आपकी वो उदारता कहां चली जाती है?

त्योहारों के दो अलग अंदाज जो लोगों की दोहरी मानसिकता दर्शाते हैं

बलात्कार क्या ईद के दौरान नहीं होते? क्या बलात्कार सिर्फ़ दुर्गा पूजा में ही होते हैं? बलात्कार सिर्फ़ बलात्कार है उसे किसी भी धर्म या त्योहार से जोड़ना कौन सी समझदारी है ये मेरे समझ से परे की बात है. आपको नहीं मनाना है त्योहार मत मनाइए लेकिन जिनकी आस्था है इन त्योहारों में, उनकी आस्था का मज़ाक़ तो नहीं बनाइए.

दुर्गा पूजा एक रिमाइंडर है हम स्त्रियों के शक्तिशाली होने का. जो हम भूल जाते हैं साल भर में कि हम ही सृजन और संहार कर सकते हैं वो हमें याद इन दस दिनों में एक बार फिर से आता है. ये पूजा पुरुषों से ज़्यादा हम स्त्रियों के लिए मायने रखती है कि हम अपनी ताक़त न भूलें. हम अबला नहीं हैं. हम दुर्गा और काली हैं लेकिन ये दीपिका सिंह राजपूत जैसी स्त्रियां नहीं समझ सकती हैं. इनको दुर्गा पूजा भी स्त्री विरोधी जैसी कोई चीज़ लगती है. काश कि आप समझ पातीं नवरात्र के मायने और उसका एहसास कर पातीं, दूसरी स्त्रियों को. लेकिन आपकी बुद्धि कुंद हो चुकी है.

मैं इस पर लगातार बातें कर रही हूं जिससे कुछ जाहिलों की भावनाएं हर्ट हो गयीं. आ कर मुझे ज्ञान देने लगे कि मैंने ईद से नवरात्रि की तुलना कैसे कर दी. जबकि मैंने तुलना त्योहारों की नहीं बल्कि उस हिपोक्रेसी कि की थी जो दीपिका जैसे मूढ़मगज लोग करते हैं. वो ईद की बधाइयां बिना किसी गंद पाले देंगे और नवरात्रि या दूसरे हिंदू त्योहार में खोट निकालेंगे, बधाई तो उनके मुंह से नहीं फूटेगी.

ख़ैर, कल जिनको क्लीयर नहीं हुआ उनको आज क्लीयर हो इसलिए ये पोस्ट लिख रही हूं. हे अक़्ल के दुश्मन प्राणियों दोनों फ़ोटो को ग़ौर से देखिए और अंतर ख़ुद समझने की कोशिश कीजिए. देखिए कैसे ईद की बधाई दी जा रही हैं और कैसे पोस्टर नवरात्रि के लिए बनाए जा रहें हैं? क्या हिंदुओं की आस्था का मज़ाक़ उड़ाना ही ट्रेंडिंग है? क्या हिंदुओं के त्योहार इसीलिए बनायें गए हैं कि उनका इस कद्र अपमान किया जाए.

Eros Now के Instagram पेज पर ये फ़ोटो शेयर की गयीं थी जो अब हटा ली गयीं है. अगर आप गूगल करेंगे तो आपको दिख जाएगा कि कैसे रणबीर, दीपिका और सलमान खान के फ़ोटो के साथ अश्लील लाइन लिख कर शेयर किया गया है. ऊपर से आयरनी ये कि अगर आप इन घटिया सोच वालों के ख़िलाफ़ लिखेंगे तो आपको ही कट्टर हिंदू कहने लगेंगे. आप ही असहिष्णु हो जाएंगे.

आख़िर कब तक भाई हम सहते रहें अपने देवी-देवताओं का मज़ाक़. कब तक अपने ही त्योहारों पर हम किसी से ज्ञान की क्लास लेते रहें और क्यों. जवाब है तो दीजिए नहीं तो चुप ही रहिए!

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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