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डिप्लोमेसी ही नहीं शिकायत निवारण में भी तेज हैं मोदी!

    • सुनीता मिश्रा
    • Updated: 09 जून, 2016 08:01 PM
  • 09 जून, 2016 08:01 PM
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मोदी देश में हो या फिर विदेश अपनी मौजूदगी का एहसास करा ही देते हैं. भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी वह अपने चाहने वालों के दिलों पर राज करते हैं. बच्चों में भी तो वो खासे लोकप्रिय है...

इन दिनों विदेश में प्रधानमंत्री मोदी के ही चर्चे हैं. वह चाहे देश में हो या फिर विदेश अपनी मौजूदगी का एहसास करा ही देते हैं. भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी वह अपने चाहने वालों के दिलों पर राज करते हैं. तभी तो अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी उनकी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते. ऐसे ही देश में बच्चे-बच्चे की जुबान पर मोदी-मोदी रहता है. भला हो भी क्यों न जब उनके द्वारा लिखे गए एक पत्र पर पीएम इतनी जल्दी कार्रवाई जो करते हैं.

हाल ही में पुणे में दिल की बीमारी से जूझ रही छह साल की वैशाली यादव ने कभी सोचा भी नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे उसके पत्र पर इतनी तेजी से कार्रवाई होगी. उसे अपने दिल के ऑपरेशन के लिए मदद मिलेगी. एक सप्ताह के भीतर ही प्रधानमंत्री कार्यालय का पुणे जिला प्रशासन को अलर्ट करना और बच्ची की मदद करना बेहद ही काबिले तारीफ काम रहा है.

मदद मिलने पर न केवल बच्ची की सर्जरी हुई, अपितु उसके स्वास्थ्य में भी सुधार आ रहा है. एक गरीब परिवार से आने वाली वैशाली यादव कक्षा दो की छात्रा थी. उसके दिल में छेद था. मकानों की पुताई कर घर का खर्च चलाने वाले उनके पिता के लिए दिल के ऑपरेशन का खर्च उठाना संभव नहीं था और उन्होंने दवाइयां खरीदने के लिए खिलौने और साइकल तक बेच दी थी.

 बच्चों के साथ मोदी (फाइल फोटो)

यह कोई पहला ऐसा वाक्या नहीं है, जिसमें पीएम मोदी की तरफ से त्वरीत कार्रवाई की गई हो. इससे पहले भी कानपुर में अपने बीमार पिता के इलाज के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम दो मासूम बच्चों के एक पत्र पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने तुरंत कार्रवाई की. कानपुर के जिलाधिकारी को इलाज में मदद करने को कहा और...

इन दिनों विदेश में प्रधानमंत्री मोदी के ही चर्चे हैं. वह चाहे देश में हो या फिर विदेश अपनी मौजूदगी का एहसास करा ही देते हैं. भारत के साथ-साथ अन्य देशों में भी वह अपने चाहने वालों के दिलों पर राज करते हैं. तभी तो अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी उनकी तारीफों के पुल बांधते नहीं थकते. ऐसे ही देश में बच्चे-बच्चे की जुबान पर मोदी-मोदी रहता है. भला हो भी क्यों न जब उनके द्वारा लिखे गए एक पत्र पर पीएम इतनी जल्दी कार्रवाई जो करते हैं.

हाल ही में पुणे में दिल की बीमारी से जूझ रही छह साल की वैशाली यादव ने कभी सोचा भी नहीं था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे उसके पत्र पर इतनी तेजी से कार्रवाई होगी. उसे अपने दिल के ऑपरेशन के लिए मदद मिलेगी. एक सप्ताह के भीतर ही प्रधानमंत्री कार्यालय का पुणे जिला प्रशासन को अलर्ट करना और बच्ची की मदद करना बेहद ही काबिले तारीफ काम रहा है.

मदद मिलने पर न केवल बच्ची की सर्जरी हुई, अपितु उसके स्वास्थ्य में भी सुधार आ रहा है. एक गरीब परिवार से आने वाली वैशाली यादव कक्षा दो की छात्रा थी. उसके दिल में छेद था. मकानों की पुताई कर घर का खर्च चलाने वाले उनके पिता के लिए दिल के ऑपरेशन का खर्च उठाना संभव नहीं था और उन्होंने दवाइयां खरीदने के लिए खिलौने और साइकल तक बेच दी थी.

 बच्चों के साथ मोदी (फाइल फोटो)

यह कोई पहला ऐसा वाक्या नहीं है, जिसमें पीएम मोदी की तरफ से त्वरीत कार्रवाई की गई हो. इससे पहले भी कानपुर में अपने बीमार पिता के इलाज के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम दो मासूम बच्चों के एक पत्र पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने तुरंत कार्रवाई की. कानपुर के जिलाधिकारी को इलाज में मदद करने को कहा और बच्चों के बीमार पिता का इलाज तुरंत शुरू हो गया.

स्कूली यूनिफॉर्म की सिलाई का काम करने वाले नौबस्ता के संजय गांधी नगर के 50 वर्षीय सरोज मिश्रा पिछले दो साल से अस्थमा से बुरी तरह पीड़ित थे. बीमारी के चलते उनका काम बंद होने से घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई तथा उनके बेटे सुशांत व तन्मय की पढ़ाई पर भी संकट आ गया था. तब बच्चों ने 28 जनवरी 2016 को प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर अपने पिता का इलाज कराने की बात कही थी.

दिल्ली से सटे नोएडा की एक बेटी ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी कि वह उसकी शादी में मदद करें. 31 वर्षीय लड़की जो कि 12वीं पास थी वह अपनी दो छोटी बहनों और दो भाईयों के साथ बरोला गांव के छोटे से मकान में रहती थी. पिता एक प्राईवेट कम्पनी में माली थे और मां गृहणी. माता-पिता उसकी शादी करने के लिए काफी समय से प्रयास कर रहे हैं, लेकिन दहेज के कारण शादी तय नहीं हो पा रही थी.

आर्थिक तंगी के कारण शादी की डेट भी आगे बढ़ती जा रही थी. इससे पूरा परिवार मानसिक रूप से परेशान हो चला था. लड़की ने दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल से भी मदद मांगी थी, लेकिन वहां से भी कोई मदद नहीं मिली तब उसने प्रधानमंत्री मोदी जी को पत्र लिखकर मदद की गुहार लगाई. यहां न केवल उसके दर्द को सुना गया, बल्कि सभी प्रकार की मदद भी की गई.

इसी के चलते एक 12 साल के बच्चे नयन सिन्हा ने भी रेलवे ट्रैक की बाधा से परेशान होकर सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिख दी. पीएमओ ने भी नयन सिन्हा का भरोसा न तोड़ते हुए उसकी चिट्ठी पर तुरंत एक्शन लेते हुए रेल विभाग को निर्देश जारी कर दिए. अब इस बार महाराष्ट्र के खामगांव के एक परिवार ने जिले के दबंग बाहुबली के अत्याचारों से तंग आकर दरियादिल पीएम से न्याय की गुहार लगाई है. सुशील अग्रवाल नाम के इस व्यक्ति का आपराधिक रिकॉर्ड है. वह 2013 में अपनी ही कंपनी की महिला कर्मचारी के बलात्कार के आरोप जेल जा चुका है.

62 वर्षीय प्रकाशचंद्र डिडवानिया का परिवार 28 वर्षों से महाराष्ट्र में ही रहता है. उन्होंने प्रधानमंत्री को खत लिखकर अपने परिवार पर हो रहे असहनीय अत्याचारों के खिलाफ त्वरीत कारवाई की मांग की है. इन लोगों ने डिडवानिया के घर का रास्ता, पानी और सड़क के आवागमन पर रोक लगा दी. घर का एक कोना छोड़कर उसे पूरा लोहे की तार से बांध दिया है.

हारकर इन्होंने पुलिस में केस भी दर्ज किया, जिस पर 12 फीट की सड़क खोलने का आदेश दिया गया. लेकिन इन रसूखदारों ने न्यायपालिका के आदेश की अवहेलना करते हुए अभी तक सड़क को नहीं खोला.

इसके बाद मुख्यमंत्री फडवनीस को भी इसके बारे में पत्र लिखा गया, लेकिन उनके आदेश देने के बाद भी ये अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं. ये दबंग अपने पैसों के दम पर कानून के साथ खिलवाड़ करते हैं. इसमें कानून का बिल्कुल भी भय नहीं रहा है. इस तरह के लोगों के कारण आम आदमी को दहशत में जीने को मजबूर होना पड़ रहा है. लोकतंत्र में तानाशाही न रही है और न ही प्रधानमंत्री मोदी के राज में रहेगी. न्यायालय के आदेशों को ताक पर रखने वालों को खुला छोड़ना मुनासिब नहीं होगा. इस परिवार को भी अन्य लोगों की तरह ही प्रधानमंत्री मोदी से न्याय की दरकार है. ताकि जल्द से जल्द से कानून की खिल्ली उड़ाने वालों पर कार्रवाई हो सके.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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