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भारत का सबसे नया और खतरनाक ट्रेंड Medical Kidnapping..

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 19 जून, 2018 05:56 PM
  • 19 जून, 2018 05:56 PM
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मेडिकल किडनैपिंग भारत का एक खतरनाक ट्रेंड बनता जा रहा है जहां अस्पताल अपनी मनमानी कर मरीज़ों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. इसका ताज़ा मामला सामने है..

हैदराबाद की एक महिला ने अपनी मां की मृत्यु और उनके इलाज को मेडिकल किडनैपिंग का नाम दिया है. हैदराबाद की पारुल भसिन ने बताया कि उनकी मां लिवर फेल होने के कारण सिकंदराबाद के यशोदा अस्पताल में एडमिट हुई थीं. इसके बाद दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल में. इन सबका खर्च कुल 1.2 करोड़ रुपए आया और उनकी मां कई इन्फेक्शन होने के कारण बच न सकीं.

क्या है पूरा मामला?

पारुल भसीन की मां 2 जनवरी को दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल में एड्मिट हुईं और पता चला कि लिवर ट्रांस्प्लांट करना होगा. इसके बाद हैदराबाद की ज्योत्सना वर्मा ने उन्हें बताया कि लिवर ट्रांस्पलांट हो सकता है जिसकी कीमत 23 लाख आएगी और सिर्फ जानकारी देने के 1 लाख रुपए उसने लिए. इसके बाद मरीज़ को यशोदा अस्पताल शिफ्ट किया गया और कीमत 27 लाख हो गई.

पारुल और उनकी मां

20 दिन के ट्रीटमेंट के बाद मां को लंग इन्फेक्शन हो गया और वो और 30 दिन अस्पताल में रहीं. हर दिन का खर्च लगभग 1 लाख रुपए था. अकाउंट डिपार्ट्मेंट ने कहा कि वो इलाज नहीं करेंगे अगर पैसे नहीं दिए. 13 मार्च को परिवार ने अस्पताल को बताया कि उनके पास अब पैसे नहीं हैं तो अगले ही दिन उनकी मां को डिस्चार्ज कर दिया गया ये कहकर की अब उन्हें सिर्फ नर्सिंग की जरूरत है.

परिवार वापस दिल्ली आ गया और ट्रीटमेंट लेने लगा. बीएल कपूर अस्पताल ने या मान लिया कि दवाइयां उनकी फार्मेसी से नहीं किसी अन्य फार्मेसी से ली जाएंगी, लेकिन थोड़े दिन में जब दोबारा एड्मिट करने की बात की गई तो अस्पताल ने परिवार को फोर्स किया कि वो उनकी फार्मेसी से ही दवाई लें.

20 अप्रैल को उनकी मां फिर बीमार पड़ गईं पीलिया के कारण. यशोदा अस्पताल के डॉक्टर्स ने एक और ट्रीटमेंट करने को कहा दिल्ली के अस्पताल वालों को, लेकिन थोड़ी सी देरी...

हैदराबाद की एक महिला ने अपनी मां की मृत्यु और उनके इलाज को मेडिकल किडनैपिंग का नाम दिया है. हैदराबाद की पारुल भसिन ने बताया कि उनकी मां लिवर फेल होने के कारण सिकंदराबाद के यशोदा अस्पताल में एडमिट हुई थीं. इसके बाद दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल में. इन सबका खर्च कुल 1.2 करोड़ रुपए आया और उनकी मां कई इन्फेक्शन होने के कारण बच न सकीं.

क्या है पूरा मामला?

पारुल भसीन की मां 2 जनवरी को दिल्ली के बीएल कपूर अस्पताल में एड्मिट हुईं और पता चला कि लिवर ट्रांस्प्लांट करना होगा. इसके बाद हैदराबाद की ज्योत्सना वर्मा ने उन्हें बताया कि लिवर ट्रांस्पलांट हो सकता है जिसकी कीमत 23 लाख आएगी और सिर्फ जानकारी देने के 1 लाख रुपए उसने लिए. इसके बाद मरीज़ को यशोदा अस्पताल शिफ्ट किया गया और कीमत 27 लाख हो गई.

पारुल और उनकी मां

20 दिन के ट्रीटमेंट के बाद मां को लंग इन्फेक्शन हो गया और वो और 30 दिन अस्पताल में रहीं. हर दिन का खर्च लगभग 1 लाख रुपए था. अकाउंट डिपार्ट्मेंट ने कहा कि वो इलाज नहीं करेंगे अगर पैसे नहीं दिए. 13 मार्च को परिवार ने अस्पताल को बताया कि उनके पास अब पैसे नहीं हैं तो अगले ही दिन उनकी मां को डिस्चार्ज कर दिया गया ये कहकर की अब उन्हें सिर्फ नर्सिंग की जरूरत है.

परिवार वापस दिल्ली आ गया और ट्रीटमेंट लेने लगा. बीएल कपूर अस्पताल ने या मान लिया कि दवाइयां उनकी फार्मेसी से नहीं किसी अन्य फार्मेसी से ली जाएंगी, लेकिन थोड़े दिन में जब दोबारा एड्मिट करने की बात की गई तो अस्पताल ने परिवार को फोर्स किया कि वो उनकी फार्मेसी से ही दवाई लें.

20 अप्रैल को उनकी मां फिर बीमार पड़ गईं पीलिया के कारण. यशोदा अस्पताल के डॉक्टर्स ने एक और ट्रीटमेंट करने को कहा दिल्ली के अस्पताल वालों को, लेकिन थोड़ी सी देरी होने के कारण पारुल की मां की मौत हो गई.

इस पूरे समय में परिवार ने करीब 1.2 करोड़ रुपए खर्च कर दिए, अस्पतालों ने किडनी से लेकर लिवर और फेफड़े तक सबका इलाज भी किया और हर चीज़ का टेस्ट भी किया.

मेडिकल किडनैपिंग का मायाजाल..

मेडिकल किडनैपिंग दरअसल एक अमेरिकी टर्म है जहां उन माता-पिता से बच्चों को ले लिया जाता है जो डॉक्टर के कहे अनुसार बच्चों का इलाज नहीं करवाते. वहां Free will (स्वतंत्र इच्छा) का कोई मोल नहीं. अगर किसी डॉक्टर ने कोई जांच या कोई प्रिस्क्रिप्शन अमेरिका में लिख दिया है तो उसकी बात मानिए, नहीं तो अपने बच्चे की कस्टडी सिर्फ दूसरे डॉक्टर से पूछने में भी जा सकती है. ये तो अमेरिका का हाल है जहां पैसा नहीं ईगो के लिए मेडिकल किडनैपिंग को जन्म दिया है.

भारतीय मेडिकल किडनैपिंग सबसे खतरनाक..

भारत में मेडिकल किडनैपिंग का एक नया ही रूप देखने को मिला है. यहां मेडिकल किडनैपिंग सिर्फ पैसे से जोड़ा जाता है. अगर कोई मरीज़ आया है तो उससे जितना हो सके उतना पैसा ले लो. यकीनन एक छोटे से पेट दर्द के इलाज के लिए भी अगर किसी अस्पताल में जाते हैं तो आज के समय में ये कहा जाता है कि एडमिट हो जाइए, फलानी जांच करवाइए. ये किसी से नहीं छुपा कि अस्पताल कितना ज्यादा पैसा चार्ज करते हैं.

भले ही इस समय पारुल भसीन के केस में अस्पताल पूरी तरह से इस बात को नकार रहे हों कि कोई भी एक्स्ट्रा पैसा नहीं लिया गया है, लेकिन मेडिकल किडनैपिंग का भारतीय रूप है कुछ-कुछ ऐसा ही.

'मेडिकल टूरिज्म' और 'मेडिकल किडनैपिंग' भारत में पिछले साल जुलाई से प्रचलन में आए थे. बेंगलुरु के अभिनव वर्मा ने आरोप लगाया था कि उनकी मां सिर्फ एक गालब्लैडर स्टोन के लिए फोर्टिस अस्पताल में गईं थीं, उनपर कई तरह के एक्सपेरिमेंट किए गए और अंतत: उनकी मौत हो गई. 45 मिनट की सर्जरी की जगह मल्टिपल ऑर्गेन्स के साथ खिलवाड़ किया गया यहां तक कि एक सर्जरी तो तब रोक दी गई जब पैसे नहीं भरे गए थे.

मेडिकल टूरिज्म तब शुरू होता है जब मरीज किसी छोटे इलाज के लिए अस्पताल जाए और उसका दुनिया भर का इलाज कर दिया जाए, लेकिन मेडिकल किडनैपिंग तब शुरू होती है जब पैसों के लिए जबरन मरीज़ पर दुनिया भर के एक्सपेरिमेंट किए जाएं और उसे अंतत: पूरी तरह से निचोड़ लिया जाए.

ये एक वीभत्स परिकल्पना नहीं बल्कि असल जिंदगी की सच्चाई बनती जा रही है. अगर कोई मरीज किसी अस्पताल के इमर्जेंसी वार्ड में ग्लूकोज की बोतल चढ़वाने भी जाता है तो ग्लूकोज की बॉटल खत्म हो जाने पर भी तब तक उसके हाथ से ड्रिप तक नहीं हटाई जाती जब तक मरीज़ का कोई परिजन बिल न भर आए.

यकीनन मेडिकल किडनैपिंग वो शब्द बनता जा रहा है जो भारत में लोकप्रिय भले ही न हो, लेकिन किस्सों और कहानियों में इसके उदाहरण मिलते हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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