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भारत में रेप का गलत इस्तेमाल हो रहा है या फिर आंकड़ों का?

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 06 जुलाई, 2018 05:33 PM
  • 06 जुलाई, 2018 05:33 PM
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अपनी कमियां छुपाने के लिए दूसरे पर दोष मढ़ना हमारी फितरत है. NCW की चेयरमेन का ये बयान उसी थ्योरी का बड़ा हिस्सा है

कुछ दिनों पहले एक रिपोर्ट आई थी. ये रिपोर्ट भारतीय महिलाओं की स्थिति‍ बता रही थी. Thomson Reuters की ये सर्वे रिपोर्ट बता रही थी कि भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है और इस देश में महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. इस रिपोर्ट के आते ही हाहाकार मच गया था और चारों तरफ इसी की चर्चा थी. इसके आते ही नैशनल कमीशन ऑफ वुमन (NCW) की चेयरमैन रेखा शर्मा ने इसे सिरे से खारिज किया था और कहा था कि भारत अफ्गानिस्तान और सीरिया से ज्यादा खराब नहीं हो सकता.

अब रेखा शर्मा एक और खुलासे के साथ आई हैं. रेखा शर्मा का कहना है कि भारत में 30% गैंग रेप केस फेक होते हैं. हफिंगटन पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में रेखा जी ने कहा कि, ' गैंगरेप के कई फेक केस होते हैं, कम से कम 30 प्रतिशत फेक. कोई प्रॉपर्टी इशू होता है और कोई लड़की इस झगड़े में सेक्शुअल हैरेस्मेंट ले आती है. '

रेखा शर्मा का ये भी कहना है कि बुलंदशहर गैंगरेप केस के बाद जब से गैंगरेप का मुआवजा बढ़ा है तब से ही गैंगरेप के किस्से भी बढ़ने लगे हैं. ये शिकायतें उन्हीं इलाकों से बढ़ी हैं जहां मुआवजा बढ़ा है.

रेखा का ये भी कहना है कि ज्यादा भयावह रेप वो लोग करते हैं जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और सेक्शुअल वॉयलेंस शिक्षा से जुड़ी हुई है. हां, काम करने की जगह पर भी हैरेस्मेंट होता है, लेकिन कैसा हैरेस्मेंट होगा ये करने वाले की शिक्षा पर निर्भर करता है.

रेखा ने ये सारी बातें तो बोल दीं, लेकिन इन्हें साबित करने के लिए कोई डेटा नहीं दिया. एक बार फिर से उन्होंने Thomson Reuters की रिपोर्ट को खारिज किया और कहा कि ये आंकड़े सिर्फ कुछ महिलाओं के आधार पर हैं और इन्हें सच नहीं माना जा सकता.

रेखा की बात से मैं पूरी तरह से सहमत नहीं हूं. कारण ये है कि इन बातों में आंकड़ों की कमी दिख रही है. जिस तरह रेखा बता रही...

कुछ दिनों पहले एक रिपोर्ट आई थी. ये रिपोर्ट भारतीय महिलाओं की स्थिति‍ बता रही थी. Thomson Reuters की ये सर्वे रिपोर्ट बता रही थी कि भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है और इस देश में महिलाएं सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. इस रिपोर्ट के आते ही हाहाकार मच गया था और चारों तरफ इसी की चर्चा थी. इसके आते ही नैशनल कमीशन ऑफ वुमन (NCW) की चेयरमैन रेखा शर्मा ने इसे सिरे से खारिज किया था और कहा था कि भारत अफ्गानिस्तान और सीरिया से ज्यादा खराब नहीं हो सकता.

अब रेखा शर्मा एक और खुलासे के साथ आई हैं. रेखा शर्मा का कहना है कि भारत में 30% गैंग रेप केस फेक होते हैं. हफिंगटन पोस्ट को दिए एक इंटरव्यू में रेखा जी ने कहा कि, ' गैंगरेप के कई फेक केस होते हैं, कम से कम 30 प्रतिशत फेक. कोई प्रॉपर्टी इशू होता है और कोई लड़की इस झगड़े में सेक्शुअल हैरेस्मेंट ले आती है. '

रेखा शर्मा का ये भी कहना है कि बुलंदशहर गैंगरेप केस के बाद जब से गैंगरेप का मुआवजा बढ़ा है तब से ही गैंगरेप के किस्से भी बढ़ने लगे हैं. ये शिकायतें उन्हीं इलाकों से बढ़ी हैं जहां मुआवजा बढ़ा है.

रेखा का ये भी कहना है कि ज्यादा भयावह रेप वो लोग करते हैं जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं हैं और सेक्शुअल वॉयलेंस शिक्षा से जुड़ी हुई है. हां, काम करने की जगह पर भी हैरेस्मेंट होता है, लेकिन कैसा हैरेस्मेंट होगा ये करने वाले की शिक्षा पर निर्भर करता है.

रेखा ने ये सारी बातें तो बोल दीं, लेकिन इन्हें साबित करने के लिए कोई डेटा नहीं दिया. एक बार फिर से उन्होंने Thomson Reuters की रिपोर्ट को खारिज किया और कहा कि ये आंकड़े सिर्फ कुछ महिलाओं के आधार पर हैं और इन्हें सच नहीं माना जा सकता.

रेखा की बात से मैं पूरी तरह से सहमत नहीं हूं. कारण ये है कि इन बातों में आंकड़ों की कमी दिख रही है. जिस तरह रेखा बता रही हैं उस तरह से तो NCRB का डेटा भी झूठ ही लगेगा. 30% रेप अगर भारत में फेक ही हैं तो आखिर क्यों हर दूसरे दिन किसी न किसी बच्ची, किसी न किसी महिला के साथ बलात्कार की खबर आती है और क्यों मेरे जैसे लोग सड़कों पर अकेले चलने से भी डरते हैं?

आलम ये है कि भारत में छोटे से लेकर बड़े शहरों तक में महिलाओं और बच्चियों का रेप कर उन्हें फेंक दिया जाता है. कई की जान भी नहीं बच पाती. भले ही Thomson Reuters की रिपोर्ट को न माना जाए, लेकिन क्या NCRB के डेटा को भी झुठला दें जो कह रहा है कि भारत में हर 15 मिनट में एक रेप हो रहा है?

N Crime Trend Statistics के मुताबित भारत रेप के मामले में टॉप 5 देशों में से एक है. क्या इन आंकड़ों को भी गलत कहा जाएगा? भारत में रेप कल्चर लोगों के अंदर घर कर रहा है, ये फैक्ट है. क्या इसे भी झुठलाया जाएगा?

हर बात को नकार देना तो वाजिब नहीं लगता. मसला ये है कि आखिर इतने आंकड़ों के बाद भी किस बात का इंतजार किया जा रहा है. रिपोर्ट को नकार देने से स्थिती तो नहीं बदल जाएगी न. वक्त कुछ करने का है न की सिर्फ कोरी बातों से पेट भरने का. अगर अभी कुछ नहीं किया गया तो महिलाओं की स्थिती और बद्तर हो सकती है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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