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दोषी कम पर हिरासत में बढ़ गए मुसलमान!

    • सरोज कुमार
    • Updated: 02 नवम्बर, 2016 11:04 AM
  • 02 नवम्बर, 2016 11:04 AM
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जेलों में बंद ऐसे मुसलमान कैदियों की संख्या घटी है, जिन पर अपराध साबित हुआ हो. लेकिन दूसरी ओर हिरासत में लिए गए मुसलमानों का प्रतिशत 2014 के मुकाबले बढ़ गया है.

भोपाल के कथित एनकाउंटर पर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. इसमें जो आठ कथित सिमी कार्यकर्ता मारे गए हैं वे सभी अंडरट्रायल या विचाराधीन कैदी थे. उन पर विभिन्न मामलों में केस अभी चल रहा था और आरोप अभी साबित होना बाकी था. ऐसे में हाल ही में जारी हुए एनसीआरबी के 2015 के जेलों के आंकड़ों को देखा जाना चाहिए. इससे जाहिर होता है कि 2014 के मुकाबले 2015 में जेलों में बंद ऐसे मुसलमान कैदियों की संख्या घटी है, जिन पर अपराध साबित हुआ हो. लेकिन दूसरी ओर हिरासत में लिए गए मुसलमानों का प्रतिशत 2014 के मुकाबले बढ़ गया है. आइए एनसीआरबी की ओर से जारी चार श्रेणियों का जायजा लें:-

1.  Convicts (जिन पर किसी अदालत में जुर्म साबित हुआ हो, दोषी) की श्रेणी में जेलों में बंद मुसलमानों की संख्या कम हुई है. 2014 में जहां ये कुल कन्विक्ट 16.4 फीसदी (21,550) थे वहीं 2015 में ये 15.8 फीसदी (21,220) हो गए. इससे संकेत मिलता है कि दोषी साबित होने वालों में मुसलमानों की संख्या घटी है.

ये भी पढ़ें-एक मुसलमान कभी नहीं बन सकता भारत का प्रधानमंत्री

2. ndertrials (जिन पर अभी केस चल ही रहा है/विचाराधीन) की श्रेणी में मुसलमान कैदियों का प्रतिशत तकरीबन पिछले साल के बराबर है. 2014 में कुल अंडर ट्रायल कैदियों में मुसलमान 21.1 फीसदी (59,550) थे वहीं 2015 में 20.9 (59,053) फीसदी हो गए. वैसे इस श्रेणी में करीब 500 मुसलमान घटे हैं.

 सांकेतिक फोटो

3. Detenues...

भोपाल के कथित एनकाउंटर पर कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. इसमें जो आठ कथित सिमी कार्यकर्ता मारे गए हैं वे सभी अंडरट्रायल या विचाराधीन कैदी थे. उन पर विभिन्न मामलों में केस अभी चल रहा था और आरोप अभी साबित होना बाकी था. ऐसे में हाल ही में जारी हुए एनसीआरबी के 2015 के जेलों के आंकड़ों को देखा जाना चाहिए. इससे जाहिर होता है कि 2014 के मुकाबले 2015 में जेलों में बंद ऐसे मुसलमान कैदियों की संख्या घटी है, जिन पर अपराध साबित हुआ हो. लेकिन दूसरी ओर हिरासत में लिए गए मुसलमानों का प्रतिशत 2014 के मुकाबले बढ़ गया है. आइए एनसीआरबी की ओर से जारी चार श्रेणियों का जायजा लें:-

1.  Convicts (जिन पर किसी अदालत में जुर्म साबित हुआ हो, दोषी) की श्रेणी में जेलों में बंद मुसलमानों की संख्या कम हुई है. 2014 में जहां ये कुल कन्विक्ट 16.4 फीसदी (21,550) थे वहीं 2015 में ये 15.8 फीसदी (21,220) हो गए. इससे संकेत मिलता है कि दोषी साबित होने वालों में मुसलमानों की संख्या घटी है.

ये भी पढ़ें-एक मुसलमान कभी नहीं बन सकता भारत का प्रधानमंत्री

2. ndertrials (जिन पर अभी केस चल ही रहा है/विचाराधीन) की श्रेणी में मुसलमान कैदियों का प्रतिशत तकरीबन पिछले साल के बराबर है. 2014 में कुल अंडर ट्रायल कैदियों में मुसलमान 21.1 फीसदी (59,550) थे वहीं 2015 में 20.9 (59,053) फीसदी हो गए. वैसे इस श्रेणी में करीब 500 मुसलमान घटे हैं.

 सांकेतिक फोटो

3. Detenues (हिरासत में लेकर बंदी बनाए गए) श्रेणी में जेलों में बंद मुसलमानों की संख्या बढ़ गई है. 2014 में ये कुल Detenues कैदियों के 20.3 फीसदी (658) थे तो 2015 में ये 23.8 फीसदी (609) हो गए. इससे जाहिर है कि 2015 में हिरासत में लिए गए लोगों मुसलमानों की संख्या थोड़ी घटी है पर उनका प्रतिशत बढ़ा है.

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4. सबसे गंभीर तथ्य यह उभरकर आता है कि nspecified (बिना ब्योरे वाले/अन्य की श्रेणी में) कैदियों में सबसे ज्यादा मुसलमान हैं. 2015 में इस श्रेणी में 51.9 फीसदी (424) मुसलमान हैं, तो 2014 में ये 47.8 फीसदी थे. जाहिर है, इस श्रेणी में मुसलमानों का प्रतिशत बढ़ा है. जेलो में बंद ये लोग न तो दोषी की श्रेणी में हैं, न विचाराधीन, न ही हिरासत में बंदी की श्रेणी में. nspecified श्रेणी में या तो उनके ब्योरे जाहिर नहीं किए गए, या फिर उन्हें बेहद छोटे-मोटे मामलों में पकड़कर उन्हें जेल में डाल दिया जाता है.

चूंकि देश में मुसलमानों की आबादी करीब 14 फीसदी है, इस लिहाज से ऊपर्युक्त श्रेणियों में 2015 में अपनी आबादी के अनुपात से क्रमश: डेढ़ फीसदी, 7 फीसदी, 9 फीसदी और 38 फीसदी ज्यादा मुसलमान जेलों में बंद हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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