• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
समाज

हिन्दू त्योहारों पर रोक लगाने वाली याचिका क्या नजरअंदाज की जा सकती है?

    • आईचौक
    • Updated: 24 अक्टूबर, 2021 11:22 AM
  • 16 मई, 2021 10:04 PM
offline
पिछले दिनों मद्रास हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. मामला इसलिए सबकी नज़रों में आया क्योंकि एक इलाके में रहने वाला बहुसंख्यक मुस्लिम समाज लोगों की धार्मिक आजादी और वहां के रीति रिवाज तय करना चाह रहा था.

पिछले दिनों 'धार्मिक अधिकार' से जुड़े एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. मामला इसलिए सबकी नज़रों में आया क्योंकि एक इलाके में रहने वाला बहुसंख्यक मुस्लिम समाज लोगों की धार्मिक आजादी और वहां के रीति रिवाज तय करना चाह रहा था. इसलिए कि उसके धर्म में दूसरे वर्ग की मान्यताओं को लेकर पाबंदी है. जब संविधान में हर नागरिक को मूलभूत अधिकार मिले हुए हैं (जिसमें पूजा-पाठ और धार्मिक जलसे-उत्सव मनाना शामिल है) फिर कैसे एक वर्ग आपत्ति पर दूसरे वर्ग के अधिकारों को प्रभावित किया गया.

दरअसल, तमिलनाडु के पेरम्बलूर जिले में कलाथुर नाम का एक गांव है. यहां मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय आबाद हैं. स्वाभाविक सी बात है कि हिंदू पहले से होंगे और मुसलमान उसके बाद आए होंगे. मगर इलाके में आज की हकीकत यह है कि मुस्लिम आबादी ज्यादा है. बहुसंख्यक हैं. हिन्दू और मुसलमानों के बीच विवाद भी है. विवाद 1951 से शुरू है. इसकी की वजह है सरकारी पट्टे की 96 प्रतिशत भूमि का इस्तेमाल. यहां की सड़कों और गलियों से होकर गुजरने वाला हिन्दुओं के तीन मंदिरों का तीन दिन तक चलने वाला उत्सव.

प्रतीकात्मक फोटो

गांव में जो सरकारी पट्टे की भूमि है, मुस्लिम उसका संयुक्त इस्तेमाल चाहते हैं. जबकि हिन्दू लम्बे समय से दावा करते हैं और संयुक्त इस्तेमाल के खिलाफ हैं. दावे को लेकर दोनों समुदायों के बीच कई बार संघर्ष हुआ है. कई मामले भी दर्ज हुए हैं. बावजूद साल 2011 तक यहां हिन्दू उत्सवों के विरोध का कोई मुद्दा नहीं था जिसपर मद्रास हाईकोर्ट को फैसला सुनाना पड़ा. 2011 तक मंदिरों का तीन दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान शांतिपूर्वक चलता रहा.

मगर, दिक्कत शुरू हुई 2012 से जब इस में धार्मिक बहुलता के आधार पर हिन्दू उत्सवों का विरोध होने लगा. विरोध इसलिए कि उत्सव की...

पिछले दिनों 'धार्मिक अधिकार' से जुड़े एक मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. मामला इसलिए सबकी नज़रों में आया क्योंकि एक इलाके में रहने वाला बहुसंख्यक मुस्लिम समाज लोगों की धार्मिक आजादी और वहां के रीति रिवाज तय करना चाह रहा था. इसलिए कि उसके धर्म में दूसरे वर्ग की मान्यताओं को लेकर पाबंदी है. जब संविधान में हर नागरिक को मूलभूत अधिकार मिले हुए हैं (जिसमें पूजा-पाठ और धार्मिक जलसे-उत्सव मनाना शामिल है) फिर कैसे एक वर्ग आपत्ति पर दूसरे वर्ग के अधिकारों को प्रभावित किया गया.

दरअसल, तमिलनाडु के पेरम्बलूर जिले में कलाथुर नाम का एक गांव है. यहां मुस्लिम और हिंदू दोनों समुदाय आबाद हैं. स्वाभाविक सी बात है कि हिंदू पहले से होंगे और मुसलमान उसके बाद आए होंगे. मगर इलाके में आज की हकीकत यह है कि मुस्लिम आबादी ज्यादा है. बहुसंख्यक हैं. हिन्दू और मुसलमानों के बीच विवाद भी है. विवाद 1951 से शुरू है. इसकी की वजह है सरकारी पट्टे की 96 प्रतिशत भूमि का इस्तेमाल. यहां की सड़कों और गलियों से होकर गुजरने वाला हिन्दुओं के तीन मंदिरों का तीन दिन तक चलने वाला उत्सव.

प्रतीकात्मक फोटो

गांव में जो सरकारी पट्टे की भूमि है, मुस्लिम उसका संयुक्त इस्तेमाल चाहते हैं. जबकि हिन्दू लम्बे समय से दावा करते हैं और संयुक्त इस्तेमाल के खिलाफ हैं. दावे को लेकर दोनों समुदायों के बीच कई बार संघर्ष हुआ है. कई मामले भी दर्ज हुए हैं. बावजूद साल 2011 तक यहां हिन्दू उत्सवों के विरोध का कोई मुद्दा नहीं था जिसपर मद्रास हाईकोर्ट को फैसला सुनाना पड़ा. 2011 तक मंदिरों का तीन दिवसीय धार्मिक अनुष्ठान शांतिपूर्वक चलता रहा.

मगर, दिक्कत शुरू हुई 2012 से जब इस में धार्मिक बहुलता के आधार पर हिन्दू उत्सवों का विरोध होने लगा. विरोध इसलिए कि उत्सव की परम्पराएं और पूजा पद्धति इस्लाम के विरुद्ध है. इसलिए उसे रोक देना चाहिए. 2012 से 2015 के बीच मंदिरों के उत्सव होते रहे. हालांकि इस बीच विवाद पर कुछ फैसले आए जिसमें उत्सवों पर थोड़ी बहुत पाबंदियां लगाई गईं ताकि दोनों वर्गों के बीच सांप्रदायिक तनाव ना हो. बाद में मामला मद्रास हाईकोर्ट पहुंचा. 

क्या सिर्फ अल्पसंख्यक होने की वजह से उस इलाके के हिन्दुओं ने अपना धार्मिक अधिकार खो दिया था?

हालांकि पूरे मामले में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला ना सिर्फ उस क्षेत्र विशेष के हिन्दू अल्पसंख्यकों बल्कि देशभर के अल्पसंख्यकों के लिए नजीर से कम नहीं. हाईकोर्ट ने कहा- भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है. किसी क्षेत्र का बहुसंख्यक वर्ग दूसरे वर्ग के मूलभूत अधिकारों, जिसमें धार्मिक प्रक्रियाएं शामिल हैं- रोक नहीं सकता. हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अगर ऐसा हुआ तो देश के ज्यादातर हिस्सों में अल्पसंख्यक धार्मिक रीति-रिवाज और त्योहार नहीं मना सकते. कोर्ट ने कहा कि सड़कों गलियों पर कोई धर्म दावा नहीं कर सकता. उसे सब इस्तेमाल कर सकते हैं.

अब सवाल उठता है कि धार्मिक आधार पर देश में हिन्दू या किसी धर्म के उत्सवों पर पाबंदी लगाई जा सकती है क्या? ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक कि देश में संविधान का राज है. हमारा संविधान यहां रहने वाले सभी धर्मों (हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, क्रिश्चियन और पारसी आदि) को बिना भेदभाव धारा 25 (1) के तहत अधिकार देता है. सभी नागरिक मनमुताबिक धर्म और उसके रीति रिवाज का पालन कर सकते हैं. मद्रास हाईकोर्ट ने भी सुनवाई में धारा 25 (1) का उल्लेख किया.

ये पूरा मामला साफ़ था और इसमें विवाद का प्रश्न ही नहीं था. सोचने वाली बात तो ये है कि स्थानीय प्रशासन ने आखिर इसे विवाद का रूप कैसे लेने दिया. उत्सवों पर रोक या परंपराओं पर शर्तें थोपना तो एक वर्ग के मूलभूत अधिकारों का हनन था. अगर कोई ऐसा कर रहा था तो ये प्रशासन की जिम्मेदारी थी कि वो संविधान के पालन की व्यवस्था करे और लोगों को सुरक्षा दे ताकि वो अपनी स्वतंत्रता को महसूस कर सके. अगर ऐसी मांगें किसी हिन्दू बहुल इलाके में मुसलमान या दूसरे धार्मिक समूहों के खिलाफ की जाएं तो भी सरासर गलत है. ये तो संविधान से अलग सुविधाजनक व्यवस्था की मांग करना है. जो सिर्फ संविधान ही नहीं बल्कि भारत की भी आत्मा के खिलाफ है.

आखिर किस संवैधानिक अधिकार के तहत लोगों ने दूसरों के मूलभूत अधिकारों के निर्धारण करने की कोशिश की. मद्रास हाईकोर्ट का फैसला मील का पत्थर है और उन लोगों के लिए संदेश भी जो धार्मिक वजहों से "निजी व्यवस्था" बनाना और चलाना चाहते हैं. मद्रास हाईकोर्ट ने पूरे विवाद में साफ़ कर दिया कि तीन दिन तक तीन मंदिरों की यात्रा जिन रास्तों और गलियों से होकर निकलती थी वो आगे भी जारी रहे. हालांकि हिंदुओं ने खुद तीसरे दिन की उस यात्रा को ना करने की हामी भरी जिसमें हल्दी के पानी का छिड़काव किया जाता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    आम आदमी क्लीनिक: मेडिकल टेस्ट से लेकर जरूरी दवाएं, सबकुछ फ्री, गांवों पर खास फोकस
  • offline
    पंजाब में आम आदमी क्लीनिक: 2 करोड़ लोग उठा चुके मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा का फायदा
  • offline
    CM भगवंत मान की SSF ने सड़क हादसों में ला दी 45 फीसदी की कमी
  • offline
    CM भगवंत मान की पहल पर 35 साल बाद इस गांव में पहुंचा नहर का पानी, झूम उठे किसान
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲