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चंद्र ग्रहण का सबसे ज्‍यादा कु्प्रभाव चंदा मामा की कहानी पर पड़ता है

    • प्रवीण मिश्रा
    • Updated: 27 जुलाई, 2018 08:46 AM
  • 27 जुलाई, 2018 08:46 AM
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स्कूल में टीचर चंदा मामा को ग्रह बताते हैं. चंद्रग्रहण को एक खगोलिय घटना समझाते हैं. बच्चा टीचर की बात मानता भी है लेकिन बाल मन चंदामामा को मामा के रूप में ही मानना चाहता है.

चंदा मामा दूर के, पुए पकाएं बूर के,

आप खाएं थाली में, मुन्ने को दें प्याली में,

ये लोरी आप ने बचपन में जरूर सुनी होगी और खूब हंसे भी होंगे. अपने मामा बाबा से पहले चंदामामा को जाना होगा. चांद को देखकर खुश हुए होंगे. कभी चांद पर जाने की ललक बाल मन में जागी होगी. स्कूल जाना शुरु करने पर चांद पर पहली बार कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग के बारे में पढ़ा होगा. मन में भरोसा बढ़ा होगा कि जब नील आर्मस्ट्रांग चांद पर जा सकते हैं तो हम क्यों नहीं जा सकते हैं.

चांद हमेशा से ही हमारा करीबी रहा है

धीरे-धीरे उमर बढ़ने के साथ-साथ चांद को लेकर समझ भी बढ़ी होगी. मन में सवाल भी उठे होंगे- ये चंदा मामा कभी-कभी गायब क्यों हो जाता है, फिर धीर- धीरे दिखना शुरु होता है और बड़ा होता जाता है, रोज बढ़ता है. हर रात में आसमान में चलता है बादलों में छिपता है. कभी दिखता है, कभी आंख मिचौली खेलता है. पूर्णिमा की रात को पूरा खिला चांद और बिखरी चांदनी मन में ऐसे हिलोरे मारती है जैसे हिरण शावक खुश होकर हवा में कुलाचें भरता है. चंदा मामा से बच्चों का लगाव ऐसा हो जाता है जैसे चंदा मामा उनके परिवार का हिस्सा हो, उनकी बात सुनता हो उन्हें समझता हो.

चंदामामा के प्रति बच्चों का लगाव सदियों से रहा है यहां तक कि जब भगवान विष्णु ने अयोध्या में राम के रूप में अवतार लिया तो बचपन में प्रभु राम ने खेल-खेल में माता कौशल्या से चांद को मांगने की जिद की. परेशान माता ने थाली में पानी रखकर चंद्रमा की परछाई दिखाई, तब वे शांत हुए. भगवान कृष्ण तो एक कदम आगे निकल जाते हैं चांद से खेलने के लिए. जिद में अड़ जाते हैं, खाना-पीना छोड़ देते हैं. कहते हैं-

मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं। जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं...

चंदा मामा दूर के, पुए पकाएं बूर के,

आप खाएं थाली में, मुन्ने को दें प्याली में,

ये लोरी आप ने बचपन में जरूर सुनी होगी और खूब हंसे भी होंगे. अपने मामा बाबा से पहले चंदामामा को जाना होगा. चांद को देखकर खुश हुए होंगे. कभी चांद पर जाने की ललक बाल मन में जागी होगी. स्कूल जाना शुरु करने पर चांद पर पहली बार कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग के बारे में पढ़ा होगा. मन में भरोसा बढ़ा होगा कि जब नील आर्मस्ट्रांग चांद पर जा सकते हैं तो हम क्यों नहीं जा सकते हैं.

चांद हमेशा से ही हमारा करीबी रहा है

धीरे-धीरे उमर बढ़ने के साथ-साथ चांद को लेकर समझ भी बढ़ी होगी. मन में सवाल भी उठे होंगे- ये चंदा मामा कभी-कभी गायब क्यों हो जाता है, फिर धीर- धीरे दिखना शुरु होता है और बड़ा होता जाता है, रोज बढ़ता है. हर रात में आसमान में चलता है बादलों में छिपता है. कभी दिखता है, कभी आंख मिचौली खेलता है. पूर्णिमा की रात को पूरा खिला चांद और बिखरी चांदनी मन में ऐसे हिलोरे मारती है जैसे हिरण शावक खुश होकर हवा में कुलाचें भरता है. चंदा मामा से बच्चों का लगाव ऐसा हो जाता है जैसे चंदा मामा उनके परिवार का हिस्सा हो, उनकी बात सुनता हो उन्हें समझता हो.

चंदामामा के प्रति बच्चों का लगाव सदियों से रहा है यहां तक कि जब भगवान विष्णु ने अयोध्या में राम के रूप में अवतार लिया तो बचपन में प्रभु राम ने खेल-खेल में माता कौशल्या से चांद को मांगने की जिद की. परेशान माता ने थाली में पानी रखकर चंद्रमा की परछाई दिखाई, तब वे शांत हुए. भगवान कृष्ण तो एक कदम आगे निकल जाते हैं चांद से खेलने के लिए. जिद में अड़ जाते हैं, खाना-पीना छोड़ देते हैं. कहते हैं-

मैया, मैं तौ चंद-खिलौना लैहौं। जैहौं लोटि धरनि पर अबहीं, तेरी गोद न ऐहौं ॥

यानी- चंद्र खिलौना नहीं मिलेगा तो धरती में लोट जाउंगा तुम्हारी गोद में नहीं आउंगा.

कृष्ण भगवान ने भी चांद की जिद की थी

चांद का लुभावना स्वरूप बच्चों के दिल दिमाग में बैठ जाता है. बड़े होने पर बाल मन विज्ञान की किताब में सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण के बारे में पड़ता है. स्कूल में टीचर चंदा मामा को ग्रह बताते हैं. चंद्रग्रहण को एक खगोलिय घटना समझाते हैं. बच्चा टीचर की बात मानता भी है लेकिन बाल मन चंदामामा को मामा के रूप में ही मानना चाहता है. चांद से जुड़ा उसके बचपन का रिश्ता आज भी उसमें वही बालपन का अक्स खोजना चाहता है.

नानी के घर से रात में दिखा चांद, दादी के घर से दिखा चांद, नानी की कहानियों का चंदामामा, दादी की कहानियों का चंदामामा किशोर अवस्था आते-आते किशोर मन में प्रेम का पाग पगाने लगता है.

ऐसे गीत मन में गूंजने लगते हैं प्यार के परवाने चांद को अपने प्यार के पलों का गवाह मानने लगते हैं चंद्रमा की चांदनी मन में रोमांच जगाती है, प्यार की खुशबू फैलाती है. युवा होते-होते सपनों का संसार सजाते हैं चांद के साथ प्रेमी प्रेमिका पति-पत्नी दिल से जुड़े रहते हैं. उन्हें ऐसा लगता है उनके मन के भाव ये चांद समझता है उनके सुख-दुख का साथी है.

चांद को निहारना हमेशा अच्छा लगता है. चांद से अपने मन की बात कहने का मन करता है. चांद में अच्छा दोस्त नजर आने लगता है. करवा चौथ का व्रत सुहागनें अपनी पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं और चांद देखकर ही व्रत खोलती हैं.

करवा चौथ का चांद पति-पत्नी के बीच प्रेम के रंग को और गहरा करता है. बिना खाए पीए दिन भर व्रत रखकर पत्नी अपने पति के मन को जीत लेती है. चांद निकलने का इंतजार पूरे परिवार को होता है. करवा चौथ का चांद गवाह बनता है प्रेम का, संस्कार का.

लेकिन ये चंद्रग्रहण का फसाना, ये सूतक की पाबंदी, ये नियमों के बंधन मन में कई सवाल उठाते हैं क्या मेरे बचपन का चंदामामा, मेरे प्यार के पलों का रखवाला, मेरे सुख-दुख का साथी क्या कभी मुझे नुकसान पहुंचा सकता है. शायद नहीं, शायद कभी नहीं...

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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