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यूपी चुनाव के बीच जब सुपरहीरो बन गए मोदी !

    • आईचौक
    • Updated: 07 मार्च, 2017 01:22 PM
  • 07 मार्च, 2017 01:22 PM
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नरेंद्र मोदी ने अपनी यूपी चुनाव की व्यस्तता को छोड़कर एक ऐसा काम किया है कि उन्हें सुपरहीरो की उपाधि दी जा सकती है.

हमारे प्रधानमंत्री जी ने फिर एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि उन्हें हीरो की उपाधि मिल गई है. एक तरफ यूपी चुनाव में व्यस्त प्रधानमंत्री रैलियां कर रहे हैं और दूसरी तरफ खबर आती है कि मोदी ने असम की एक 8 दिन की बीमार बच्ची की जान बचाई है.

इस बच्ची की जान बचाई है मोदी नेबच्ची को एयरलिफ्ट करवाकर दिल्ली लाया गया, जहां गंगाराम अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है और अब वो खतरे से बाहर है. पीएम मोदी के निर्देश पर बच्ची के लिए दिल्‍ली में ट्रैफिक फ्री पैसेज की व्यवस्था की गई, जिससे उसके इलाज में कोई देरी ना हो जाए. किसी फिल्मी हीरो की तरह मोदी जी ने अपना काम किया है. जिस समय बच्ची अस्पताल तक पहुंच सकी तब तक लाइफ सपोर्ट सिस्टम में सिर्फ 7 मिनट की ही बैटरी बची थी. अगर ट्रैफिक में फंसे होते तो बच्ची को बचाया नहीं जा सकता. बच्‍ची के माता पिता कह रहे हैं कि वे इस नन्‍हीं से जान बचाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के जीवनभर एहसानमंद रहेंगे. बच्‍ची के पिता ध्रुबज्‍योति कलिता मोदी को भगवान कह रहे हैं.कलिता के मुताबिक दिल्‍ली एयरपोर्ट से अस्‍पताल तक के सफर में दिल्‍ली पुलिस का सहयोग और उनका प्रोफेशनलिज्‍म देखते ही बनता था. कलिता डिब्रूगढ़ में सरकारी उपक्रम ब्रह्मपुत्र क्रेकर एंड पॉलिमर में नौकरी करते हैं, जबकि उनकी पत्‍नी प्राइमरी स्‍कूल टीचर हैं.

पहली बार नहीं हुआ है ऐसा-

ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि मोदी जी ने किसी को बचाया हो. 2015 में मोदी सरकार ने यमन से 3,500 भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकाला था. युद्ध प्रभावी क्षेत्र से अपने नागरिकों को निकालने वाला ये ऑपरेशन दुनिया के कुछ सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशनों में से एक था.

यमन में इतना बड़ा ऑपरेशन करने के बाद 26 देशों ने भारत...

हमारे प्रधानमंत्री जी ने फिर एक ऐसा कारनामा कर दिखाया है कि उन्हें हीरो की उपाधि मिल गई है. एक तरफ यूपी चुनाव में व्यस्त प्रधानमंत्री रैलियां कर रहे हैं और दूसरी तरफ खबर आती है कि मोदी ने असम की एक 8 दिन की बीमार बच्ची की जान बचाई है.

इस बच्ची की जान बचाई है मोदी नेबच्ची को एयरलिफ्ट करवाकर दिल्ली लाया गया, जहां गंगाराम अस्पताल में उसका इलाज चल रहा है और अब वो खतरे से बाहर है. पीएम मोदी के निर्देश पर बच्ची के लिए दिल्‍ली में ट्रैफिक फ्री पैसेज की व्यवस्था की गई, जिससे उसके इलाज में कोई देरी ना हो जाए. किसी फिल्मी हीरो की तरह मोदी जी ने अपना काम किया है. जिस समय बच्ची अस्पताल तक पहुंच सकी तब तक लाइफ सपोर्ट सिस्टम में सिर्फ 7 मिनट की ही बैटरी बची थी. अगर ट्रैफिक में फंसे होते तो बच्ची को बचाया नहीं जा सकता. बच्‍ची के माता पिता कह रहे हैं कि वे इस नन्‍हीं से जान बचाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के जीवनभर एहसानमंद रहेंगे. बच्‍ची के पिता ध्रुबज्‍योति कलिता मोदी को भगवान कह रहे हैं.कलिता के मुताबिक दिल्‍ली एयरपोर्ट से अस्‍पताल तक के सफर में दिल्‍ली पुलिस का सहयोग और उनका प्रोफेशनलिज्‍म देखते ही बनता था. कलिता डिब्रूगढ़ में सरकारी उपक्रम ब्रह्मपुत्र क्रेकर एंड पॉलिमर में नौकरी करते हैं, जबकि उनकी पत्‍नी प्राइमरी स्‍कूल टीचर हैं.

पहली बार नहीं हुआ है ऐसा-

ऐसा पहली बार नहीं हुआ कि मोदी जी ने किसी को बचाया हो. 2015 में मोदी सरकार ने यमन से 3,500 भारतीयों को सुरक्षित बाहर निकाला था. युद्ध प्रभावी क्षेत्र से अपने नागरिकों को निकालने वाला ये ऑपरेशन दुनिया के कुछ सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशनों में से एक था.

यमन में इतना बड़ा ऑपरेशन करने के बाद 26 देशों ने भारत से मदद मांगी थी कि उनके नागरिकों को यमन से बाहर निकाला जाए.

2013 में भी उत्तराखंड की आपदा के समय मोदी ने (तत्कालीन चीफ मिनिस्टर गुजरात) 15000 गुजरातियों को दो दिन के अंदर ही उत्तराखंड से बाहर निकाला था. हालांकि, इस आंकड़े को लेकर काफी कॉन्ट्रोवर्सी हुई थी, लेकिन एक बात तो है कि इस दौरान नरेंद्र मोदी ने वाकई काबिले तारीफ काम किया था. जैसे ही उत्तराखंड में बादल फटने की खबर आई थी गुजरात सरकार काम पर लग गई थी.

हो सकता है गुजरात का आफ्टर इफेक्ट-

मोदी जी ने एक बार नहीं कई बार ये साबित किया है कि किसी आपदा के दौर पर वो तेजी से और बेहतर तरीके से काम कर सकते हैं. शायद ये 2001 में आए गुजरात भूकंप का आफ्टर इफेक्ट है कि मोदी को ये अंदाजा है कि आपदा के समय लोगों की क्या हालत होती है.

गुजरात ने इतने विनाशकारी भूकंप के बाद भी 10 सालों में काफी तरक्की कर ली थी. एक ऐसी आपदा जिसने हर इंसान को हिला कर रख दिया था.

अब बात ये है कि क्या मोदी व्यस्त नहीं थे, जरूर थे, लेकिन फिर भी किसी की जान बचाने के लिए अपनी व्यस्तता के बारे में नहीं सोचा उन्होंने. हमारे प्रधानमंत्री लाख बुरे सही, लेकिन कई मामलों में उनकी तत्परता से कई लोगों का भला हुआ जरूर हुआ है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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