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तीन तलाक़: मोदी सरकार संसद से कानून बनाकर रच सकती है इतिहास

    • बिजय कुमार
    • Updated: 22 अगस्त, 2017 07:35 PM
  • 22 अगस्त, 2017 07:35 PM
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वैसे इस तरह के मामलों में खूब राजनीति देखने को मिलती है, देखना ये है कि सरकार कितना जल्दी संसद से इसपर कानून बनाने में सफल होती है.

तीन तलाक को लेकर उच्चतम न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है और इसपर रोक लगाते हुए न्यायालय ने कहा कि ये काम सरकार और संसद का है, सरकार 6 महीने में तीन तलाक को लेकर कानून बनाए.

उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायधीश जे.एस. खेहर के नेतृत्व में 5 जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. पीठ में शामिल तीन जज तीन तलाक को अंसवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे, वहीं 2 दो जज इसके पक्ष में नहीं थे. मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक का लंबे समय से विरोध कर रही हैं. हाल के कुछ वर्षों में तो तीन तलाक से जुड़े कई अजीबो-गरीब मामले देखने को मिले हैं जो हैरान करने वाले हैं.

तीन तलाक के खिलाफ याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील अमित चड्ढा ने कहा था कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रथा की बात है और तीन तलाक अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं हो सकता है. वहीं धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को बुरा और पाप कहा गया है. तीन तलाक पीड़ितों में से एक की ओर से अदालत में पेश वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने इस प्रथा की कठोर शब्दों में आलोचना करते हुए इसे 'घृणित' बताया था और कहा था कि यह महिलाओं को तलाक का समान अधिकार नहीं देता.

वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत परंपरा की बात है और संविधान पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है. उन्होंने कहा था कि 1400 साल से यह आस्था चली आ रही है. सरकार चाहे तो पर्सनल लॉ को रेग्युलेट करने के लिए कानून बना सकती है.

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि संविधान कहता है कि जो भी कानून मौलिक अधिकार के खिलाफ है, वह कानून असंवैधानिक है और न्यायलय को इस मामले को संविधान के दायरे में देखना चाहिए. यह मूल अधिकार का उल्लंघन करता...

तीन तलाक को लेकर उच्चतम न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुना दिया है. न्यायालय ने तीन तलाक को असंवैधानिक करार दिया है और इसपर रोक लगाते हुए न्यायालय ने कहा कि ये काम सरकार और संसद का है, सरकार 6 महीने में तीन तलाक को लेकर कानून बनाए.

उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायधीश जे.एस. खेहर के नेतृत्व में 5 जजों की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी. पीठ में शामिल तीन जज तीन तलाक को अंसवैधानिक घोषित करने के पक्ष में थे, वहीं 2 दो जज इसके पक्ष में नहीं थे. मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक का लंबे समय से विरोध कर रही हैं. हाल के कुछ वर्षों में तो तीन तलाक से जुड़े कई अजीबो-गरीब मामले देखने को मिले हैं जो हैरान करने वाले हैं.

तीन तलाक के खिलाफ याचिकाकर्ता शायरा बानो के वकील अमित चड्ढा ने कहा था कि अनुच्छेद 25 में धार्मिक प्रथा की बात है और तीन तलाक अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं हो सकता है. वहीं धार्मिक दर्शनशास्त्र में तीन तलाक को बुरा और पाप कहा गया है. तीन तलाक पीड़ितों में से एक की ओर से अदालत में पेश वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी ने इस प्रथा की कठोर शब्दों में आलोचना करते हुए इसे 'घृणित' बताया था और कहा था कि यह महिलाओं को तलाक का समान अधिकार नहीं देता.

वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि अनुच्छेद-25 यानी धार्मिक स्वतंत्रता के तहत परंपरा की बात है और संविधान पर्सनल लॉ को संरक्षित करता है. उन्होंने कहा था कि 1400 साल से यह आस्था चली आ रही है. सरकार चाहे तो पर्सनल लॉ को रेग्युलेट करने के लिए कानून बना सकती है.

केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि संविधान कहता है कि जो भी कानून मौलिक अधिकार के खिलाफ है, वह कानून असंवैधानिक है और न्यायलय को इस मामले को संविधान के दायरे में देखना चाहिए. यह मूल अधिकार का उल्लंघन करता है साथ ही तीन तलाक महिलाओं के मान-सम्मान और समानता के अधिकार में दखल देता है.

तीन तलाक पर मुस्लिम महिलाओं की सफलता के लिए कामना करते मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से अपने संबोधन में कहा था कि "वो बहनें जो तीन तलाक की वजह से पीड़ित हैं, उन्होंने आंदोलन खड़ा किया. पूरे देश में तीन तलाक के खिलाफ एक माहौल बना. इस आंदोलन को चलाने वाली बहनों का हृदय से अभिनंदन करता हूं. उनकी इस लड़ाई में हिंदुस्तान पूरी मदद करेगा, वे सफल होंगी, ऐसा मुझे भरोसा है."

उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए आज बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने ट्वीट कर कहा कि "तीन तलाक पर सुप्रीमकोर्ट का निर्णय- मुस्लिम महिलाओं के लिए स्वाभिमान पूर्ण एवं समानता के एक नए युग की शुरुआत".

वैसे इस तरह के मामलों में खूब राजनीति देखने को मिलती है, देखना ये है कि सरकार कितना जल्दी संसद से इसपर कानून बनाने में सफल होती है.कुछ इसी तरह के मामले में मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली पांच बच्चों की मां शाहबानो को उच्चतम न्यायालय में केस जीतने के बाद भी अपने पति से हर्जाना नहीं मिल सका.

शाहबानो

कारण था मुस्लिम मामलों को लेकर हुई राजनीति. मुस्लिम धर्मगुरुओं को पारिवारिक और धार्मिक मामलों में अदालत का दख़ल मुस्लिम अधिकारों के लिए खतरा लगा और उनके विरोध के फलस्वरूप 1986 में राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम धर्मगुरुओं के दबाव में आकर मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986 पारित किया, जिससे शाहबानो के बजाय उसके पति को राहत मिली गयी.

इतना तो तय है कि मोदी सरकार इसपर कानून बनाने कि पूरी कोशिश करेगी, क्योंकि उसका रुख तीन तलाक के खिलाफ रहा है. ऐसे में ये कहा जा सकता है कि मोदी सरकार शाह बानो के मामले से सीख लेते हुए मुस्लिम महिलाओं के हक में फैसला करेगी.

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