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एक ब्लैक महिला के Miss Universe बनने पर संतोष करने से पहले ये पढ़ लें

    • पारुल चंद्रा
    • Updated: 12 दिसम्बर, 2019 07:22 PM
  • 12 दिसम्बर, 2019 07:22 PM
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इस बार Miss Universe 2019 का ताज एक ब्लैक वुमन Zozibini Tunzi को दिया गया है इसलिए पीजेंट की भी खूब तारीफें हो रही है कि सांवले रंग को लेकर होने वाले भेदभाव को किनारे रखकर ब्रह्मांड सुंदरी एक ऐसी महिला को बनाया गया है जिसका रंग गोरा नहीं है.लेकिन मैं इससे सहमत नहीं हूं.

मिस यूनिवर्स 2019 (Miss niverse 2019) का ताज इस बार साउथ अफ्रीका (south Africa) की जोजिबिनी टूंजी (Zozibini Tunzi) से सिर पर सजा हुआ है. वो एक ब्लैक वुमन हैं, और यही वजह है कि इस बार मिस यूनिवर्स 2019 की चर्चा हर तरफ की जा रही है. इस ताज को इस बार the power of unity कहा गया है जो महिलाओं की शक्ति का प्रतीक माना जा रहा है.

इस बार ताज एक ब्लैक वुमन को दिया गया है इसलिए पीजेंट की भी खूब तारीफें हो रही है कि सांवले रंग को लेकर होने वाले भेदभाव को किनारे रखकर ब्रह्मांड सुंदरी एक ऐसी महिला को बनाया गया है जिसका रंग गोरा नहीं है. कोई Miss niverse 2019 winner Zozibini Tunzi को सांवले रंग वाली लड़कियों के लिए उम्मीद की किरण बता रहा है तो कोई जोजोबिनी के जीतने को प्रेरणा कह रहा है. बेशक उनका इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर खड़ा होना प्रेरणा देता है और वो सांवले रंग की हर महिला का प्रतिनिधित्व भी करती हैं. उनके आत्मविश्वास को मजबूत भी करती हैं. लेकिन इसके लिए अगर मिस युनिवर्स पीजेंट की तारीफ की जा रही है तो मैं इससे सहमत नहीं हूं.

दक्षिण अफ्रीका की पहली ब्लैक वुमन बनी है miss universe

सौंदर्य प्रतियोगिताएं हमेशा से ही अपने ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को लेकर आलोचनाओं की शिकार हुई हैं. भले ही आप कितना कह लें कि मिस युनिवर्स पीजेंट अब काले रंग को भी अहमियत दे रहा है लेकिन इसमें सच नजर नहीं आता. Miss niverse प्रतियोगिता के इतिहास को बारीकी से समझने पर ये पता लगा कि ये सौंदर्य प्रतियोगिता हमेशा से रंग भेद करती रही ही. यकीन नहीं होता तो ये आंकड़े देख लीजिए.

रंग भेदी रही है Miss niverse प्रतियोगिता

Miss niverse पीजेंट की शुरुआत 1952 से हुई. ये प्रतियोगिता लगातार 67 सालों से हो रही है. दुनिया का हर देश इसमें...

मिस यूनिवर्स 2019 (Miss niverse 2019) का ताज इस बार साउथ अफ्रीका (south Africa) की जोजिबिनी टूंजी (Zozibini Tunzi) से सिर पर सजा हुआ है. वो एक ब्लैक वुमन हैं, और यही वजह है कि इस बार मिस यूनिवर्स 2019 की चर्चा हर तरफ की जा रही है. इस ताज को इस बार the power of unity कहा गया है जो महिलाओं की शक्ति का प्रतीक माना जा रहा है.

इस बार ताज एक ब्लैक वुमन को दिया गया है इसलिए पीजेंट की भी खूब तारीफें हो रही है कि सांवले रंग को लेकर होने वाले भेदभाव को किनारे रखकर ब्रह्मांड सुंदरी एक ऐसी महिला को बनाया गया है जिसका रंग गोरा नहीं है. कोई Miss niverse 2019 winner Zozibini Tunzi को सांवले रंग वाली लड़कियों के लिए उम्मीद की किरण बता रहा है तो कोई जोजोबिनी के जीतने को प्रेरणा कह रहा है. बेशक उनका इतने बड़े प्लेटफॉर्म पर खड़ा होना प्रेरणा देता है और वो सांवले रंग की हर महिला का प्रतिनिधित्व भी करती हैं. उनके आत्मविश्वास को मजबूत भी करती हैं. लेकिन इसके लिए अगर मिस युनिवर्स पीजेंट की तारीफ की जा रही है तो मैं इससे सहमत नहीं हूं.

दक्षिण अफ्रीका की पहली ब्लैक वुमन बनी है miss universe

सौंदर्य प्रतियोगिताएं हमेशा से ही अपने ब्यूटी स्टैंडर्ड्स को लेकर आलोचनाओं की शिकार हुई हैं. भले ही आप कितना कह लें कि मिस युनिवर्स पीजेंट अब काले रंग को भी अहमियत दे रहा है लेकिन इसमें सच नजर नहीं आता. Miss niverse प्रतियोगिता के इतिहास को बारीकी से समझने पर ये पता लगा कि ये सौंदर्य प्रतियोगिता हमेशा से रंग भेद करती रही ही. यकीन नहीं होता तो ये आंकड़े देख लीजिए.

रंग भेदी रही है Miss niverse प्रतियोगिता

Miss niverse पीजेंट की शुरुआत 1952 से हुई. ये प्रतियोगिता लगातार 67 सालों से हो रही है. दुनिया का हर देश इसमें हिस्सा लेता है. लेकिन 67 सालों में इस सौंदर्य प्रतियोगिता में केवल 6 ब्लैक महिलाओं को ही मिस युनिवर्स बनाया गया है. 25 साल लगे इस पीजेंट को ये स्वीकार करने में कि खूबसूरती रंग से नहीं आंकी जाती.

1977 में पहली ब्लैक वुमन को मिस युनिवर्स का ताज दिया गया था. और ये थीं त्रिनिदाद और टोबैगो की Janelle Commissiong. लेकिन ये केवल एक रस्म अदायगी ही थी क्योंकि इसके बाद इस प्रतियोगिता ने काले रंग को फिर से किनारे रख दिया था. 20 साल बाद ये फिर जागे और इन्होंने 1995 में Chelsi Smith को मिस युनिवर्स बनाया.

1977 में Janelle Commissiong और 995 में Chelsi Smith मिस युनिवर्स बनीं

अब तक आलोचनाओं का दौर काफी बढ़ गया था और रंगभेद को लेकर आवाजें बुलंद हो चुकी थीं. और इसलिए 1998 और 1999 में लगातार ब्लैक ब्यूटी की ही ताजपोशी की गई थी. 1998 में दोबारा त्रिनिदाद और टोबैगो की Wendy Fitzwilliam को चुना गया और 1999 में बोट्सवाना की Mpule Kwelagobe को. और इसके बाद 2011 में अंगोला की लीला लोप्स को. और अब 2019 में जोजिबिनी टूंजी. तो इस हिसाब से 67 सालों में केवल 6 महिलाएं ही ऐसी रही हैं जिनका रंग गोरा नहीं था, वो ब्लैक थीं.

1998 में Wendy Fitzwilliams, 1999 में Mpule Kwelagobe और 2011 में लीला लोप्स मिस युनिवर्स बनीं

67:6 क्या इस आंकड़े पर फख्र किया जा सकता है?

67 में केवल 6 ब्लैक वुमन को सौंदर्य प्रतियोगिता की विजेता बना देना मुझे तो सिर्फ औपचारिकता ही नजर आती है. हां आप ये कह सकते हैं कि शायद प्रतियोगिता में आने वाली ब्लैक प्रतियोगी इस लायक ही न हों, क्योंकि प्रतियोगिता में विजेता का चुनाव बहुत सारे स्तर पर किया जाता है, खासकर इनसे पूछे जाने वाले सवालों को लेकर. लेकिन हमने इन प्रतियोगिताओं में वो दौर भी देखा जब गलत जवाब पर भी विजेता चुन लिया गया था. ये तो अब साफ तौर पर जाहिर हो चुका है कि किस देश की ब्यूटी क्वीन को मिस वर्ल्ड या मिस युनिवर्स बनाना है ये सीधे-सीधे बाजार से जुड़ा होता है. दक्षिण अफ्रीका अब विकसित हो रहा है और इसलिए सौंदर्य बाजार का भी विकसित होना जरूरी है. इन देशों से ब्यूटी क्वीन चुना जाना काले रंग को सम्मान देना कम बल्कि बाजार को बढ़ावा देना ही है.

रंग को लेकर हमेशा से ही आलोचना का शिकार हुई हैं ये सौंदर्य प्रतियोगिताएं

याद नहीं कि सुष्मिता सेन (Sushmita Sen) और लारा दत्ता(Lara Dutta) के मिस युनिवर्स बनने के बाद भारत की लड़कियों में भी खूबसूरत दिखने की चाह बड़ी थी. फैशन को बढ़ावा मिला, मेकअप ब्रांड्स ने भारत में खूब तरक्की की, और अब तक कर रही हैं. इन देशों से सुंदरियों का चुनाव होना उस देश के लिए तो गर्व की बात हो सकती है, लेकिन इसके पीछे की सोच वो नहीं है जिसपर खुश हुआ जा सके.

जोजिबिनी टूंजी विजेता हैं क्योंकि

जोजिबिनी टूंजी ने दुनिया भर की 90 सुंदरियों को हराकर मिस यूनिवर्स का ताज अपने नाम किया है. जोजिबिनी इस पीजेंट के लायक हैं क्योंकि उनकी सोच इस लायक है. इस पीजेंट में सवाल किया गया कि आज के जमाने में युवा लड़कियों को क्या सिखाना ज्यादा जरूरी है? तो इसके जवाब में जोजिबिनी ने कहा- 'आज के जमाने में युवा लड़कियों को लीडरशिप सिखाना बहुत जरूरी है. चाहे वो युवा लड़कियां हो या महिलाएं, इनमें अक्सर लीडरशिप की कमी देखी जाती है. ऐसा नहीं है कि महिलाएं आगे नहीं आना चाहतीं बल्कि ऐसा इसलिए है क्योंकि समाज उन्हें इतने मौके नहीं देता. महिलांए दुनिया में सबसे शक्तिशाली हैं और उन्हें हर तरह के अवसर दिए जाने चाहिए. समाज में अपने लिए जगह बनाने से ज्यादा जरूरी किसी भी लड़की के लिए कुछ नहीं हो सकता'.

खुशी है कि ब्लैक होने के बावजूद भी जोजिबिनी टूंजी उस ताज की विजेता रहीं. इससे सांवले रंग की महिलाओं को भी अच्छा लगता है. लेकिन क्या हमारा समाज इन सौंदर्य प्रतियोगिताओं की वजह से अपनी सोच बदल सकता है? 'सुंदरता के मायने गोरा रंग ही है' इस सोच को जाने में अभी बहुत वक्त लगेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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