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Mirabai Chanu: बेटियां देश के गौरव का 'भार' भी उठाती हैं

    • प्रीति अज्ञात
    • Updated: 25 जुलाई, 2021 01:57 PM
  • 25 जुलाई, 2021 01:57 PM
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टोक्यो ओलिंपिक का रजत पदक गले में डाले मीराबाई चानू का चेहरा आपने देखा? देखा वो कैसे दमक रहीं थीं. बता रही थीं कि स्त्रियाँ घर-गृहस्थी का ही बोझ नहीं उठाती बल्कि देश को वैश्विक पटल पर चाँदी से रंगना भी बखूबी जानती हैं.

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है

जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

आज अगर आप कवि सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित इस कविता को पढ़ेंगे तो आंखों के सामने बस एक ही चेहरा उभरकर आएगा. मीराबाई चानू का चेहरा. वो चेहरा जो टोक्यो ओलंपिक के पहले ही दिन चाँदी का मेडल जीतकर लाया है. वो चेहरा जिसने तमाम देशवासियों की रगों में बहते खून को नई रवानी दी है. वो चेहरा जिसने आज यह समझाया कि स्त्रियाँ घर-गृहस्थी का ही बोझ नहीं उठाती बल्कि देश को वैश्विक पटल पर चाँदी से रंगना भी बखूबी जानती हैं. यह लड़की जिसके गले में आज चंद्रहार है. उसकी आंखों से छलकते मोतियों ने यह भी सिखाया कि कड़ी मेहनत, लगन एवं आत्मविश्वास से पुरानी क़सक को कैसे सुख के आंसुओं में तब्दील किया जाता है. यह लड़की जब कई किलो वज़न उठा रही होती है तो उसके पीछे उसकी पुरानी जीतों को दरकिनार करते हुए 2016 में हारने की एक अफसोसजनक कहानी भी साथ चलती है.

ओलंपिक में सिल्वर मेडल लाने वाली मीराबाई चानू पर पूरे देश को नाज है

जब रियो ओलंपिक में उसके नाम के आगे 'डिड नॉट फ़िनिश' लिख दिया गया था. यह घटना किसी भी खिलाड़ी का मनोबल तोडने के लिए काफ़ी है. उस पर खिलाड़ियों के प्रति हम भारतीयों का व्यवहार हमेशा से ही निर्दयी और संवेदना विहीन रहा है. ये जानते हुए भी कि प्रत्येक खिलाड़ी जीतने के लिए ही खेलता है, अभ्यास में दिन रात एक किये रहता है.

हम उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें आसमान पर बिठा लेते हैं तो...

डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है

जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है

मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में

बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में

मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती

कोशिश करने वालों की हार नहीं होती

आज अगर आप कवि सोहनलाल द्विवेदी द्वारा रचित इस कविता को पढ़ेंगे तो आंखों के सामने बस एक ही चेहरा उभरकर आएगा. मीराबाई चानू का चेहरा. वो चेहरा जो टोक्यो ओलंपिक के पहले ही दिन चाँदी का मेडल जीतकर लाया है. वो चेहरा जिसने तमाम देशवासियों की रगों में बहते खून को नई रवानी दी है. वो चेहरा जिसने आज यह समझाया कि स्त्रियाँ घर-गृहस्थी का ही बोझ नहीं उठाती बल्कि देश को वैश्विक पटल पर चाँदी से रंगना भी बखूबी जानती हैं. यह लड़की जिसके गले में आज चंद्रहार है. उसकी आंखों से छलकते मोतियों ने यह भी सिखाया कि कड़ी मेहनत, लगन एवं आत्मविश्वास से पुरानी क़सक को कैसे सुख के आंसुओं में तब्दील किया जाता है. यह लड़की जब कई किलो वज़न उठा रही होती है तो उसके पीछे उसकी पुरानी जीतों को दरकिनार करते हुए 2016 में हारने की एक अफसोसजनक कहानी भी साथ चलती है.

ओलंपिक में सिल्वर मेडल लाने वाली मीराबाई चानू पर पूरे देश को नाज है

जब रियो ओलंपिक में उसके नाम के आगे 'डिड नॉट फ़िनिश' लिख दिया गया था. यह घटना किसी भी खिलाड़ी का मनोबल तोडने के लिए काफ़ी है. उस पर खिलाड़ियों के प्रति हम भारतीयों का व्यवहार हमेशा से ही निर्दयी और संवेदना विहीन रहा है. ये जानते हुए भी कि प्रत्येक खिलाड़ी जीतने के लिए ही खेलता है, अभ्यास में दिन रात एक किये रहता है.

हम उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उन्हें आसमान पर बिठा लेते हैं तो निराशाजनक स्थिति में उनकी छवि की धज्जियाँ उड़ा देने में भी गुरेज नहीं करते! इसी हतोत्साह के चलते कइयों का खेल समाप्त हो जाता है, वे दुख और गहरे अवसाद में ऐसे डूबते हैं कि कभी उबर ही नहीं पाते. लेकिन मीराबाई चानू का खेल तो यहाँ से प्रारंभ होता है.

इतिहास साक्षी है कि मीरा समाज और उसके तानों की चिंता नहीं किया करतीं! वे तो अपने प्रेम को पूजती हैं. पितृसत्तात्मक समाज में सिर उठाकर चलने में यक़ीन रखती हैं. वही इस मीरा ने भी किया. अपने खेल से प्रेम. फिर अथक परिश्रम, एकाग्रचित्त मन और कुशल प्रदर्शन के दम पर उन्होंने 2017 में वर्ल्ड वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में एवं 2018 में ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रमंडल खेलों में गोल्ड जीता.

कह सकते हैं कि जुझारूपन और साहस की मिसाल बने हमारे इस 'छोटा पैकेट, बड़े धमाके' ने असफलता को धता बताते हुए दोनों हाथों से सोना बटोरा. एक बार फिर लकड़ी का बोझ सिर पर उठाए उस लड़की की कहानी, आज टोक्यो ओलंपिक में चांदी के वर्क से सज गई है. जैसे एक पुराना बोझ उसके मन से हट गया है.

जीतने के बाद उसने जो नृत्य किया, उसका वो भांगड़ा दिल से निकली यही बल्ले-बल्ले थी कि आज वो निर्भार हुई. उसे देख यूँ महसूस हुआ कि जैसे वो कटु स्मृति को झटक अपने-आप को यही प्रसिद्ध शे'र कह रही हो कि -

गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,

वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले

ओलंपिक 2021 में रजत पदक से देश का खाता खोलने वाली, साइखोम मीराबाई चानू को हार्दिक बधाई एवं देशवासियों की करोड़ों दुआएं एवं स्नेह भी उन तक पहुंचे. लेकिन चानू की विजयी मुस्कान को एक खिलाड़ी की जीत भर मान लेना काफ़ी नहीं होगा.

यह उस हौसले की भी जीत है जो पराजय के अंधेरे को परास्त करते हुए आपके मस्तक पर जगमगाता है. यह रेगिस्तान हुए बंजर मन में नखलिस्तान की उम्मीद का लबालब भरना भी है. यह संघर्षों की कठिन ऊंची पहाड़ी के उस पार दिखती, मीठी झील की चमचमाती मुस्कान है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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