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#Metoo: सिर्फ सोशल मीडिया नहीं, इन कानूनी तरीकों से दिलाएं दोषी को सज़ा

    • ऑनलाइन एडिक्ट
    • Updated: 11 अक्टूबर, 2018 06:13 PM
  • 11 अक्टूबर, 2018 06:13 PM
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Metoo मूवमेंट ने सोशल मीडिया पर तो अपना जलवा दिखा दिया, लेकिन दोषी को सज़ा दिलाने का क्या? भारत में इन कानूनी तरीकों से दिला सकते हैं दोषी को सज़ा.

सेक्शुअल हैरेस्मेंट की बात करें तो शायद भारत में पहली बार ऐसा हो रहा है कि इतनी बड़ी तादाद में महिलाओं ने अपने साथ हुई घटनाओं के बारे में खुलकर बोलना शुरू किया है. आलोक नाथ से लेकर नाना पाटेकर और बॉलीवुड, मीडिया, कॉर्पोरेट और पॉलिटिक्स से जुड़े कई दिग्गज माने जाने वाले व्यक्तियों पर यौन शोषण का आरोप लग रहा है. #Metoo मूवमेंट ने जो क्रांति लाई है वो शायद कई लोगों के लिए सबक बन जाएगी. जो महिलाएं पहले अपने खिलाफ होने वाले अत्याचार के लिए आवाज़ नहीं उठा पाईं वो अब उठा रही हैं. सालों पुराने केस सामने आ रहे हैं, लेकिन क्या इन केस की सुनवाई सोशल मीडिया से परे भी हो सकती है?

ऐसा नहीं है कि अगर कोई पुराना केस है तो वो कानून के अंतर्गत नहीं आता और दोषी के खिलाफ रिपोर्ट नहीं दर्ज करवाई जा सकती है. तनुश्री दत्ता ने भी अभी एक बार फिर से नाना पाटेकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है. किसी भी विक्टिम के साथ अगर कोई ऐसी घटना हुई है तो उसे कानूनी तौर पर पूरी सुविधा है कि वो उसके बारे में बताए.

घटना कभी की भी हो चुप बैठना सही नहीं

अगर ऑफिस या काम की जगह पर हुआ है हैरेस्मेंट तो...

सेक्शुअल हैरेस्मेंट एट वर्क प्लेस एक्ट 2013 के अंतरगत हर संस्था की अपनी इंटरनल शिकायतें करने वाली कमेटी होती है (ICC) हर ऑफिस की हर ब्रांच में इसका होना जरूरी है. इसमें 10 या उससे ज्यादा कर्मचारी हो सकते हैं. भले ही महिला उस ऑफिस में पहले काम करती हो या वो अभी भी कार्यरत हो इससे फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर उसके साथ सेक्शुअल हैरेस्मेंट हुआ है तो वो शिकायत कर सकती है. ये किसी भी उम्र की महिला के साथ हो सकता है.

अगर न ही महिला और न ही हैरेस करने वाला इंसान उस ऑफिस में काम करता है तो एक टाइम फ्रेम के अंतरगत ही शिकायत की जा सकती है. अगर घटना को तीन...

सेक्शुअल हैरेस्मेंट की बात करें तो शायद भारत में पहली बार ऐसा हो रहा है कि इतनी बड़ी तादाद में महिलाओं ने अपने साथ हुई घटनाओं के बारे में खुलकर बोलना शुरू किया है. आलोक नाथ से लेकर नाना पाटेकर और बॉलीवुड, मीडिया, कॉर्पोरेट और पॉलिटिक्स से जुड़े कई दिग्गज माने जाने वाले व्यक्तियों पर यौन शोषण का आरोप लग रहा है. #Metoo मूवमेंट ने जो क्रांति लाई है वो शायद कई लोगों के लिए सबक बन जाएगी. जो महिलाएं पहले अपने खिलाफ होने वाले अत्याचार के लिए आवाज़ नहीं उठा पाईं वो अब उठा रही हैं. सालों पुराने केस सामने आ रहे हैं, लेकिन क्या इन केस की सुनवाई सोशल मीडिया से परे भी हो सकती है?

ऐसा नहीं है कि अगर कोई पुराना केस है तो वो कानून के अंतर्गत नहीं आता और दोषी के खिलाफ रिपोर्ट नहीं दर्ज करवाई जा सकती है. तनुश्री दत्ता ने भी अभी एक बार फिर से नाना पाटेकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई है. किसी भी विक्टिम के साथ अगर कोई ऐसी घटना हुई है तो उसे कानूनी तौर पर पूरी सुविधा है कि वो उसके बारे में बताए.

घटना कभी की भी हो चुप बैठना सही नहीं

अगर ऑफिस या काम की जगह पर हुआ है हैरेस्मेंट तो...

सेक्शुअल हैरेस्मेंट एट वर्क प्लेस एक्ट 2013 के अंतरगत हर संस्था की अपनी इंटरनल शिकायतें करने वाली कमेटी होती है (ICC) हर ऑफिस की हर ब्रांच में इसका होना जरूरी है. इसमें 10 या उससे ज्यादा कर्मचारी हो सकते हैं. भले ही महिला उस ऑफिस में पहले काम करती हो या वो अभी भी कार्यरत हो इससे फर्क नहीं पड़ता, लेकिन अगर उसके साथ सेक्शुअल हैरेस्मेंट हुआ है तो वो शिकायत कर सकती है. ये किसी भी उम्र की महिला के साथ हो सकता है.

अगर न ही महिला और न ही हैरेस करने वाला इंसान उस ऑफिस में काम करता है तो एक टाइम फ्रेम के अंतरगत ही शिकायत की जा सकती है. अगर घटना को तीन महीने नहीं हुए हैं तो ICC कमेटी को शिकायत की जा सकती है. अगर तीन महीने से ऊपर हो गया है तो पुलिस को शिकायत की जा सकती है और दोषी के खिलाफ क्रिमिनल कम्प्लेन लिखवाई जा सकती है.

क्या आता है सेक्शुअल हैरेस्मेंट के अंतर्गत?

ऐसा कोई भी कमेंट जो अभद्र लगे, रंग-रूप पर हो, बिना इजाजत कोई छू ले, गंदे इशारे या आवाज़ें करे, कोई ऑनलाइन सामग्री भेजे जिसे अश्लील माना जाए, ऑनलाइन मैसेज कर परेशान करे और अभद्रता करे तो ये सब कुछ सेक्शुअल हैरेस्मेंट के अंतरगत आता है.

अगर सबूत न हो तो?

अगर सबूत न हो तो भी शिकायत तो दर्ज करवाई ही जा सकती है. इसके बाद जांच करने वाले आधिकारी सबूतों को ढूंढेंगे. सबूतों का न होना थोड़ा मुश्किल इसलिए होता है क्योंकि अगर सबूत नहीं मिले तो कोर्ट में इस बात को सही ठहराना मुश्किल हो जाएगा. पर इसका भी मतलब ये नहीं है कि पुलिस में शिकायत नहीं की जा सकती.

अगर शिकायत करने के बाद भी हैरेस्मेंट जारी है तो इसके बारे में देर न करें और डरे नहीं फौरन अधिकारियों या पुलिस से संपर्क करें.

अगर किसी के साथ कोई हैरेस्मेंट कर रहा है तो शिकायत दर्ज करवाना पहली स्टेप होनी चाहिए. ऐसी संस्था या पुलिस के पास जाएं जो हैरेस्मेंट से बचा भी सके, प्रोटेक्शन दे सके और साथ ही साथ दोषी को सज़ा दिलवाने में सक्षम हो. बिना किसी सुरक्षा के हैरेस करने वाले को धमकाने या डराने की कोशिश न करें क्योंकि वो खतरनाक हो सकता है.

कब जाएं वकील के पास?

जितनी जल्दी मुमकिन हो वकील के पास जाएं. वकील ये बताएगा कि आखिर ऐसे मौके पर मौलिक अधिकार क्या हैं, किस धारा के तहत केस किया जा सकता है, जो हैरेस कर रहा है वो कितना गंभीर है और पुलिस से डील करते वक्त भी वकील मदद कर सकता है.

अगर बहुत साल बीत गए हैं तो?

अगर बहुत समय बीत गया है और घटना पुरानी हो चुकी है तब सीधे मजिस्ट्रेट के पास एक प्राइवेट शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है. वहां से पुलिस को निर्देश दिए जाएंगे कि वो एक्शन ले. एक्शन केस के आधार पर लिया जाएगा.

अगर कोई ऑनलाइन हैरेस कर रहा है तो?

अगर कोई ऑनलाइन हैरेस कर रहा है या फिर ब्लैकमेल कर रहा है तो उसके खिलाफ साइबर सेल में शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है. ऑनलाइन हैरेस्मेंट का सबूत आम तौर पर पास होता है क्योंकि हर चीज़ का रिकॉर्ड रखा जा सकता है, स्क्रीनशॉट्स शेयर किए जा सकते हैं. भारतीय संविधान के ये पांच नियम ऐसे में विक्टिम की मदद कर सकते हैं.

1. धारा 509: अगर किसी महिला को गाली दी गई है, कोई अभ्रद शब्द बोला गया है, उसके जेंडर को लेकर बातें की गई हैं या किसी तरह की कोई ऐसी हरकत की गई है तो महिला सेक्शन 509 का इस्तेमाल कर सकती है.

2. धारा 499: मानहानि का नियम. ये नियम हर उस तरह की हरकत पर लागू हो सकता है जहां विक्टिम को लग रहा हो कि उसके मान-सम्मान को किसी तरह की ठेस पहुंची है. हालांकि, ये नियम लड़कों-लड़कियों दोनों के उतने ही काम आ सकता है. ऑनलाइन किसी तरह की कोई फोटो, वीडियो या कमेंट पोस्ट किया गया है या ऑफलाइन किया गया है ये धारा इस्तेमाल की जा सकती है.

3. धारा 503: आपराधिक धमकी. इस धारा का इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब किसी भी तरह की धमकी मिल रही हो. महिलाओं को अक्सर उठा ले जाने, रेप, जान से मारने की धमकी देते हैं हैरेसर और इसके खिलाफ तत्काल पुलिस में शिकायत करनी चाहिए.

4. धारा 507: अनाम व्यक्ति द्वारा धमकी मिलना. अगर रेप की धमकी या किसी अन्य तरह की धमकी बिना पहचान बताए कोई व्यक्ति दे रहा है तो इस धारा का इस्तेमाल किया जा सकता है.

5. धारा 228A: अगर किसी विक्टिम की पहचान बता दी गई हो तो. भारत में रेप विक्टिम की पहचान न बताना कानून है और अगर किसी महिला के साथ ऐसी हरकत हुई है या फिर सेक्शुअल हैरेस्मेंट हुआ है और उसकी पहचान उजागर कर दी गई है तो इस धारा के तहत केस दर्ज करवाया जा सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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