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वो बीमारियां जिनकी भारत में एक ही पहचान है...

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 26 नवम्बर, 2016 05:13 PM
  • 26 नवम्बर, 2016 05:13 PM
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भारत में 36% लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं यानी कुल 47 करोड़ 55 लाख भारतीय. फिर भी इसके बारे में बात करने से सभी कतराते हैं. मरीज को सबसे छुपा कर रखा जाता है, आखिर ऐसा क्यों?

कुछ दिन पहले एक फेसबुक पोस्ट में भारत में डिप्रेशन के मरीजों के बारे में पढ़ा था. उसी के 5 मिनट बाद फेसबुक वॉल पर भारत में करप्शन, नोटबंदी आदि की पोस्ट आईं और सभी उस आपदा के बारे में बात करने लगे. बाकी सबके साथ मैंने भी डिप्रेशन को देखकर भी अनदेखा कर दिया. हाल ही में अंजली छाबड़िया की किताब 'डेथ इज नॉट द आंसर' रिलीज हुई है. इस बुक रिलीज में फिल्म जगत की कई जानी मानी हस्तियां शामिल हुईं. किताब को बड़े कैनवास में पेश किया गया, लेकिन कुछ तस्वीरों को देखकर एक बात मन में आई कि क्या वाकई स्थिति इतनी खराब है. दरअसल, ये किताब भारत में होने वाली आत्महत्याओं कि कहानी कहती है. किताब के मुताबिक हर 3 सेकंड में भारत में एक इंसान सुसाइड अटेम्प्ट करता है.

 सांकेतिक फोटो

उस किताब के बारे में पढ़कर एक बार फिर डिप्रेशन की याद आ गई. वाकई स्थिति बहुत खराब है.

36% भारतीय हैं डिप्रेशन के शिकार...

WHO के आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया के सबसे डिप्रेसिंग देशों में से एक है. यहां 36 प्रतिशत लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. यानी कुल 47 करोड़ 52 लाख भारतीय डिप्रेशन के शिकार हैं. यानी हर 10 में से एक इंसान को डिप्रेशन है. क्या ये अपने आप में चौंकाने वाला आंकड़ा नहीं है.

मनोचिकित्सक के पास जाना समझा जाता है पागलपन की निशानी...

सुसाइड रेट बढ़ रहा है, डिप्रेशन के शिकार लोग बढ़ रहे हैं, लोगों को नींद नहीं आती ये सब पागलपन की निशानी नहीं है. अगर कोई डिप्रेशन के लिए मनोचिकित्सक के पास जाता है तो उसके आस पास वाले उसे पागल करार देते हैं. लोग छुपकर अपनी बीमारी के बारे में...

कुछ दिन पहले एक फेसबुक पोस्ट में भारत में डिप्रेशन के मरीजों के बारे में पढ़ा था. उसी के 5 मिनट बाद फेसबुक वॉल पर भारत में करप्शन, नोटबंदी आदि की पोस्ट आईं और सभी उस आपदा के बारे में बात करने लगे. बाकी सबके साथ मैंने भी डिप्रेशन को देखकर भी अनदेखा कर दिया. हाल ही में अंजली छाबड़िया की किताब 'डेथ इज नॉट द आंसर' रिलीज हुई है. इस बुक रिलीज में फिल्म जगत की कई जानी मानी हस्तियां शामिल हुईं. किताब को बड़े कैनवास में पेश किया गया, लेकिन कुछ तस्वीरों को देखकर एक बात मन में आई कि क्या वाकई स्थिति इतनी खराब है. दरअसल, ये किताब भारत में होने वाली आत्महत्याओं कि कहानी कहती है. किताब के मुताबिक हर 3 सेकंड में भारत में एक इंसान सुसाइड अटेम्प्ट करता है.

 सांकेतिक फोटो

उस किताब के बारे में पढ़कर एक बार फिर डिप्रेशन की याद आ गई. वाकई स्थिति बहुत खराब है.

36% भारतीय हैं डिप्रेशन के शिकार...

WHO के आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया के सबसे डिप्रेसिंग देशों में से एक है. यहां 36 प्रतिशत लोग डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. यानी कुल 47 करोड़ 52 लाख भारतीय डिप्रेशन के शिकार हैं. यानी हर 10 में से एक इंसान को डिप्रेशन है. क्या ये अपने आप में चौंकाने वाला आंकड़ा नहीं है.

मनोचिकित्सक के पास जाना समझा जाता है पागलपन की निशानी...

सुसाइड रेट बढ़ रहा है, डिप्रेशन के शिकार लोग बढ़ रहे हैं, लोगों को नींद नहीं आती ये सब पागलपन की निशानी नहीं है. अगर कोई डिप्रेशन के लिए मनोचिकित्सक के पास जाता है तो उसके आस पास वाले उसे पागल करार देते हैं. लोग छुपकर अपनी बीमारी के बारे में बात करते हैं. क्या इस छवि को तोड़ने की जरूरत नहीं? अगर कोई डिप्रेशन, ओसीडी जैसी किसी बीमारी के लिए डॉक्टर के पास जाता है तो वो पागल नहीं है. फिर उसे क्यों बाकी बीमारियों की तरह सामान्य नजरिये से नहीं देखा जाता.

ये भी पढ़ें- ...और सोच रही हूं कि वो ठीक तो होगी न !

हमारे देश में हर मानसिक स्वास्थ्य को पागलपन करार दिया जाता है. कोई बच्चा अपनी मां से नींद ना आने की शिकायत करता है तो खिसियाई हुई मां उसे डांटकर सोने को कहती है. कोई पत्नी अपने पति से कहती है कि उसे चीजें सही से रखनी है तो पति ध्यान नहीं देता. कोई ब्वॉय फ्रेंड अपनी गर्लफ्रेंड को अगर कहता है कि उसे स्ट्रेस हो रहा है तो झगड़ा पक्का समझें. क्यों कोई नहीं समझता कि ये सब मनोरोग के ही लक्षण हैं. इनके लिए जागरुक होने की जरूरत है. ये सब पागलपन तो कतई नहीं है.

इन बीमारियों को समझा जाता है पागलपन-

- डिप्रेशन..

डिप्रेशन का नाम इस लिस्ट में सबसे ऊपर है. ना ही इसे समझाने की जरूरत है ना ही इसके बारे में कुछ अलग से बताने की.

- ओसीडी..

ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर यानी किसी एक काम के बारे में सनक की हद तक सोचना और उसे बार-बार करना. ये डिप्रेशन के बाद दूसरी सबसे खतरनाक बीमारी है जो फैल रही है. दरवाजा ठीक से बंद हुआ कि नहीं इसके बारे में सोचने पर कई घरों में दोबारा रात में उठा जाता है और बार-बार देखा जाता है कि सही से बंद हुआ या नहीं. ये तो छोटा सा उदाहरण है, कई लोगों में ये हद से ज्यादा बढ़ जाता है.

 सांकेतिक फोटो

- इन्सॉम्निया..

ये कोई आम नींद ना आने की बीमारी नहीं. कई बार डिप्रेशन के चलते इन्सॉम्निया विकराल रूप ले लेता है. यकीन मानिए में इसकी खुद भुक्तभोगी हूं. इन्सॉम्निया कब स्ट्रेस और स्ट्रेस कब डिप्रेशन में बदल जाए इसका कोई अंदाजा नहीं लगा सकता.

- स्ट्रेस..

डिप्रेशन से ज्यादा अगर किसी मानसिक रोग से भारतीय ग्रसित हैं तो वो है स्ट्रेस. तनाव के कारण ना जाने कितने ही लोग सुसाइड कर लेते हैं. अगर किसी से इसके बारे में बात करो तो लोगों को अपनी परेशानी समझाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में लगता है कि चुप ही रहा जाए.

ये भी पढ़ें-नोटबंदी का मानसिक असर...

- एंग्जाइटी (चिंता)..

चिंता, चिता के समान है ये कहावत तो प्रचलित है, लेकिन इसके पीछे की सीख कोई नहीं लेता. स्ट्रेस का असर अक्सर एंग्जाइटी में देखा गया है. लोग तनाव में रहते हैं और हर छोटी बात पर चिंता करते हैं. ये भी एक बड़ा मानसिक रोग है.

- बायपोलर डिसऑर्डर..

एक ऐसी बीमारी जिसमें मूड स्विंग्स होते हैं. मरीज इस बीमारी में किसी दिन पूरी तरह से शांत रहता है और किसी दिन बड़ा उग्र हो जाता है. किसी दिन दुखी रहता है तो किसी दिन खुश हो जाता है. कई बार एक मूड महीनों तक चलता है. भारत में हर साल इसके 10 लाख नए मरीज देखने को मिलते हैं.

 सांकेतिक फोटो

- पैनिक डिसऑर्डर..

इसे आसान भाषा में समझने की कोशिश करें तो हायतौबा मचाना कहा जा सकता है. ये भी एक तरह की मानसिक बीमारी है जो भारत में आम है.

- ईटिंग डिसऑर्डर...

इसके बारे में शायद आपने सुना हो. एनोरेक्सिया जिसमें लोग इतना कम खाते हैं कि उनका वजन बहुत तेजी से घटने लगता है. या फिर ओवरईटिंग जो कि ठीक इसका उलटा है.

इनमें से अधिकतर बीमारियां लाइलाज हैं. जी हां, ट्रीटमेंट से इनके मरीजों को आराम जरूर मिल सकता है पर ये कभी जड़ से नहीं जातीं. तो क्या भारत में मानसिक रोग जिस तरह से बढ़ रहे हैं उसे महामारी का नाम नहीं दे देना चाहिए. क्यों मानसिक रोगियों को ऐसे देखा जाता है जैसे वो पूरा पागल हो. मनोरोगी को छुपाया जाता है. बेटी से मां कहती है कि डिप्रेशन के बारे में किसी को पता नहीं लगने देना, शादी में समस्या आएगी, लोग पागल कहेंगे. आखिर क्या करे वो बेटी जो अपने मन में कई चीजें छुपाए बैठी है. एक बेटा जिसे सरकारी नौकरी नहीं करनी उसे बार-बार एंट्रेंस देने को कहा जाता है, एक प्रेमी जोड़ा जो साथ रहना चाहते हैं उन्हें अलग कर दिया जाता है. आखिर क्या करें वो लोग?

 सांकेतिक फोटो

एक रिसर्च के अनुसार स्ट्रेस से सर दर्द की बीमारी होती है, किसी को भुला ना पाने से गर्दन दर्द, किसी इमोशनल दौर से गुजर रहे हों तो कंधों में दर्द की वजह बनता है. तो क्या इन्हें मनोरोग की शुरुआत माना जाए? भारत में दर्द की शिकायत तो हर दूसरा इंसान करता है. तो क्या आने वाला कल और खतरनाक होगा? सबसे ज्यादा युवा वर्ग - देश में क्या सभी युवा डिप्रेशन का शिकार रहेंगे? सवाल बड़ा है, लेकिन इसका जवाब ढूंढने के लिए शायद अभी कोई कोशिश नहीं करना चाहता.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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