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पीरियड के दौरान महिलाओं के लिए नर्क तैयार करवाने वाले बाबा नए नहीं हैं!

    • अनु रॉय
    • Updated: 02 मार्च, 2020 05:53 PM
  • 02 मार्च, 2020 04:04 PM
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महिलाओं के मासिक धर्म पर बकवास करने वाले बाबा तो चाहते यही हैं कि लड़कियाँ और औरतें पीरियड (menstruation period) के दिनों में जानवर की सी ज़िंदगी जीते हुए घर के एक कोने में पड़ी रहें. उन्हें न तो सोने को बिस्तर दो, न खाने को ढंग का कुछ. पैड तो क्या ही देना, राख और पुराने कपड़े थमा दो ताकि इन्फ़ेक्शन से ही मर जाए.

मदुरै का कोई गाँव है व‍िरुद्धनगर (Virudhunagar), जहाँ पीरियड (menstruation period) आने पर लड़कियों और स्त्रियों को अपने घर से बाहर कर दिया जाता है. जब इस गाँव की औरतों और लड़कियों को पीरियड आता है तो इन्हें गाँव के बीचों-बीच बने एक झोपड़ीनुमा कमरे में भेज दिया जाता है. वो कमरा ऐसा है कि उसमें ढंग से आप खड़े भी नहीं रह सकते. कमरे में दो चटाई और दो तकिया रखा मिलता है. न उस कमरे में कोई खिड़की होती है न रोशनदान. छत के नाम पर छप्पड़ ऐसा कि अब गिरे या तब. बारिश के दिनों में कमरा पूरा पानी से भर जाता है. न तो वहाँ शौचालय की सुविधा है न ही बाथरूम की. पीरियड के दौरान वहाँ रह रही औरतें खेतों में जाती हैं.

अगर किसी महीने किसी औरत को या लड़की को पीरियड न भी आए फिर भी वहाँ जाना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर वो नहीं गयी तो लोग तरह-तरह की बातें करने लगते हैं. गाँव की औरतें इस रिवाज को इसलिए निभाती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वो ऐसा नहीं करेंगी तो उनके गाँव पर विपत्ति आ जाएगी.

वैसे ऐसा ही कुछ रिवाज नेपाल और भारत के कई दूसरे गाँवों में बदस्तूर निभाए जा रहें हैं. औरतों को पीरियड के नाम पर प्रताड़ित करने के लिए धर्म का सहारा लिया जा  है.

आपको याद तो होगा अभी कुछ दिन पहले ही ये ख़बर आयी थी, अगर कोई औरत अपने पति के लिए खाना बनाएगी तो अगले जन्म में वो कुतिया बनकर जन्म लेगी. ये स्टेटमेंट स्वामी कृष्णास्वरूप ने दिया था. अब जब बड़े-बड़े मठों और आश्रमों में बैठे गुरु लोग ऐसी बयानबाज़ी करेंगे तो देश का पिछड़ा तबका क्या सोचेगा और करेगा.

पीरियड को लेकर जब भी लिखो तो लोग कहने लगते हैं कि अब बहुत लिखा जा चुका है इस पर. पीरियड अब नॉर्मल सी बात है. काश वो लोग इन खबरों को पढ़ते और समझने की कोशिश करते कि पीरियड पर बातें होनी ज़रूरी है.

मदुरै का कोई गाँव है व‍िरुद्धनगर (Virudhunagar), जहाँ पीरियड (menstruation period) आने पर लड़कियों और स्त्रियों को अपने घर से बाहर कर दिया जाता है. जब इस गाँव की औरतों और लड़कियों को पीरियड आता है तो इन्हें गाँव के बीचों-बीच बने एक झोपड़ीनुमा कमरे में भेज दिया जाता है. वो कमरा ऐसा है कि उसमें ढंग से आप खड़े भी नहीं रह सकते. कमरे में दो चटाई और दो तकिया रखा मिलता है. न उस कमरे में कोई खिड़की होती है न रोशनदान. छत के नाम पर छप्पड़ ऐसा कि अब गिरे या तब. बारिश के दिनों में कमरा पूरा पानी से भर जाता है. न तो वहाँ शौचालय की सुविधा है न ही बाथरूम की. पीरियड के दौरान वहाँ रह रही औरतें खेतों में जाती हैं.

अगर किसी महीने किसी औरत को या लड़की को पीरियड न भी आए फिर भी वहाँ जाना पड़ता है. ऐसा इसलिए क्योंकि अगर वो नहीं गयी तो लोग तरह-तरह की बातें करने लगते हैं. गाँव की औरतें इस रिवाज को इसलिए निभाती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर वो ऐसा नहीं करेंगी तो उनके गाँव पर विपत्ति आ जाएगी.

वैसे ऐसा ही कुछ रिवाज नेपाल और भारत के कई दूसरे गाँवों में बदस्तूर निभाए जा रहें हैं. औरतों को पीरियड के नाम पर प्रताड़ित करने के लिए धर्म का सहारा लिया जा  है.

आपको याद तो होगा अभी कुछ दिन पहले ही ये ख़बर आयी थी, अगर कोई औरत अपने पति के लिए खाना बनाएगी तो अगले जन्म में वो कुतिया बनकर जन्म लेगी. ये स्टेटमेंट स्वामी कृष्णास्वरूप ने दिया था. अब जब बड़े-बड़े मठों और आश्रमों में बैठे गुरु लोग ऐसी बयानबाज़ी करेंगे तो देश का पिछड़ा तबका क्या सोचेगा और करेगा.

पीरियड को लेकर जब भी लिखो तो लोग कहने लगते हैं कि अब बहुत लिखा जा चुका है इस पर. पीरियड अब नॉर्मल सी बात है. काश वो लोग इन खबरों को पढ़ते और समझने की कोशिश करते कि पीरियड पर बातें होनी ज़रूरी है.

पीरियड के नाम पर औरत को दी जाने वाली यातना का दायरा किसी खास क्षेत्र तक सीम‍ित नहीं है.

अब भी वक़्त सबके लिए नहीं बदला है. जहाँ हम लड़कियाँ पीरियड को ले कर नॉर्मल होने की बात करते हैं. सनैटरी पैड पेपर में छिपा कर नहीं खुले में ख़रीद कर लाने की पहल करते हैं. पिछड़े इलाक़ों में जा कर वहाँ की औरतों और लड़कियों को हाईजीन का मतलब समझाने की कोशिश करते हैं कि कुछ बदलाव आए. लेकिन उसके पहले ऐसे महान बाबा आ जाते हैं, जो उन पिछड़े घरों के मर्दों के दिमाग़ में ऐसा गोबर भरना शुरू कर देते हैं. वो औरतें जो कम पढ़ी-लिखी हैं वो इन्हें सच मान कर स्वीकार कर भी लेती है.

बदलाव की तरफ़ दो कदम हम बढ़ाते हैं तो सौ कदम पीछे चले जाएँ इसलिए ऐसे बयान ये बाबा देते हैं. उनका ये बयान कहीं न कहीं पितृसत्तात्मक सोच को बूस्ट करती नज़र आती है. लड़कियाँ और औरतें पीरियड के दिनों में जानवर की सी ज़िंदगी जीते हुए घर के एक कोने में पड़ी रहें. उन्हें न तो सोने को बिस्तर दो, न खाने को ढंग का कुछ. पैड तो क्या ही देना, राख और पुराने कपड़े थमा दो ताकि इन्फ़ेक्शन से ही मर जाए. सही है.

और जो मैं कह रही हूँ वो कपोल कल्पना नहीं है. भारत के सुदूर गाँव में जाइए और देखिए दुर्दशा वहाँ की स्त्रियों और बेटियों की. पीरियड शुरू होते ही आधी लड़कियाँ स्कूल जाना छोड़ देती है. उनके पास न तो पैड होता है और नहीं स्कूल में ढंग का बाथरूम जहाँ वो का सके. ऊपर से खुल कर कोई बात भी नहीं करता उनसे. माँ और घर की बाक़ी औरतों के साथ जो हुआ रहता है, उसके आधार पर बेटियों के साथ हो रही ये बात सामान्य सी लगती है.

बाक़ी दिनों को छोड़िए अभी भी पर्व-त्योहार में अगर पीरियड आ जाए तो पढ़े-लिखे परिवारों की बेटियाँ और बहुएँ भगवान की भोग लगने वाली चीज़ें नहीं बना सकतीं. तुलसी के पौधे में न तो दीया जला कर रख सकती और न सूर्य को जल अर्पण कर सकतीं.

बताइए अब ऐसे में जो ये बाबा बयान देते फिर रहें हैं कि पति अगर पीरियड के दिनों में पत्नी के हाथ का बना खाना खाया तो साँड़ और पत्नियाँ कुतिया में जन्म लेगी. उनके इस बयान से समाज को क्या उपदेश मिल रहा. ऊपर से उनका ये बयान तब आया है जब पिछले दिनों भुज के एक स्कूल में 66 लड़कियों को पैंट उतार कर ये दिखाना पड़ा कि उन्हें पीरियड नहीं आया है या आया है. ये स्कूल उसी ट्रस्ट द्वारा चलाया जाता है जहाँ के ये बाबा हैं. बजाय शर्म आने के ये बयान आ रहा कितनी शर्मिंदगी की बात है.

लड़कियों ये लड़ाई हमारी है. हम लड़ेंगे अपनी अस्मिता के लिए. पीरियड होना कोई पाप या कलंक नहीं है. कोई तुम अशुद्ध नहीं होती. तुम्हें ऐसे बाबाओं को सुनने और सुन कर मनाने की दरकार नहीं है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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